भारत में बढ़ती मुद्रास्फीति | 21 Nov 2024

प्रिलिम्स के लिये:

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक, भारतीय रिज़र्व बैंक, खाद्य मुद्रास्फीति, हीटवेव, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय

मेन्स के लिये:

मुद्रास्फीति का आर्थिक प्रभाव, मौद्रिक नीति और मुद्रास्फीति प्रबंधन

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने बताया कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) या खुदरा मुद्रास्फीति अक्तूबर 2024 में बढ़कर 6.2% हो गई और उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) के अनुसार खाद्य मुद्रास्फीति बढ़कर 10.87% हो गई।

  • यह अगस्त 2023 के बाद से सबसे अधिक मुद्रास्फीति दर है, जो भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की 6% की ऊपरी सहन सीमाओं को पार कर गई है।
  • वैश्विक मुद्रास्फीति में कमी के बावजूद, भारत निरंतर मूल्य दबाव का सामना कर रहा है, जिससे विशेषज्ञ पूर्वानुमानों और ब्याज दर प्रभावों का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं।

भारत में उच्च खुदरा मुद्रास्फीति के लिये कौन-से कारक ज़िम्मेदार हैं?

  • उच्च खाद्य मुद्रास्फीति: इस वृद्धि में खाद्य मुद्रास्फीति का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा, जो 15 महीने के उच्चतम स्तर 10.8% पर पहुँच गई
    • सब्जियों की कीमतों में 42% की वृद्धि हुई, जो 57 महीने का उच्चतम स्तर है। फलों की कीमतों में 8.4% की वृद्धि हुई और दलहनों में 7.4% की वृद्धि देखी गई।
  • कोर मुद्रास्फीति में वृद्धि: कोर मुद्रास्फीति जिसमें खाद्य और ईंधन की कीमतें शामिल नहीं हैं, में भी वृद्धि हुई है, जो खाद्य के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी मुद्रास्फीति के दबाव का संकेत देती है।
    • घरेलू सेवाओं में मुद्रास्फीति बढ़ रही है, जो जीवन-यापन की बढ़ती लागत को दर्शाती है।
  • वैश्विक मूल्य अस्थिरता: आपूर्ति में व्यवधान और अन्य अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार कारकों के कारण वैश्विक खाद्य तेल की कीमतों में तीव्र वृद्धि ने भारत की मुद्रास्फीति को सीधे प्रभावित किया है।
    • चूँकि भारत खाद्य तेलों का एक प्रमुख आयातक है, इसलिये वैश्विक कीमतों में किसी भी वृद्धि के परिणामस्वरूप घरेलू उपभोक्ताओं के लिये लागत बढ़ जाती है, जिससे खाद्य मुद्रास्फीति में योगदान होता है।
  • चरम मौसमी घटनाएँ: हीटवेव ने फसल की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव डाला है, जिससे आपूर्ति में कमी आई है और कीमतें बढ़ी हैं

RBI की मौद्रिक नीति पर उच्च खुदरा मुद्रास्फीति के क्या प्रभाव होंगे?

  • ब्याज दरों में कटौती में देरी:  RBI का मुद्रास्फीति लक्ष्य 4% है, जिसमें 2% से 6% बीच की मुद्रास्फीति को अनुकूल माना गया है। मुद्रास्फीति इस लक्ष्य से अधिक होने पर, ब्याज दरों में तत्काल कटौती की संभावना नहीं है। 
    • विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि मुद्रास्फीति में निरंतर गिरावट आती है तो RBI वर्ष 2025 में दरों में कटौती पर विचार कर सकता है। 
  • मुद्रास्फीति नियंत्रण पर ध्यान: RBI मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिये मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने को प्राथमिकता देना जारी रखेगा, क्योंकि अनियंत्रित मुद्रास्फीति आर्थिक विकास और क्रय शक्ति को कमज़ोर करती है। 
    • RBI ने अनुमान लगाया था कि वित्त वर्ष 2024-25 की तीसरी तिमाही में मुद्रास्फीति 4.8% और चौथी तिमाही में 4.2% तक कम हो जाएगी, लेकिन अब इसकी संभावना कम लगती है, जिससे ब्याज दरों के भविष्य के अनुमान पर असर पड़ सकता है।
  • RBI की नीतिगत दुविधा: RBI के सामने एक कठिन निर्णय है, उसे मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाना है, साथ ही आर्थिक विकास को भी रोकना है। खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें और आपूर्ति में व्यवधान मुद्रास्फीति में प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं, जो नीतिगत निर्णयों को जटिल बनाते हैं। 
    • लगातार मुद्रास्फीति के दबाव को देखते हुए, RBI सतर्क रुख अपना सकता है, ब्याज दरों को समायोजित करने से पहले मुद्रास्फीति में गिरावट का इंतजार कर सकता है। वैकल्पिक रूप से यह एक सख्त मौद्रिक नीति लागू कर सकता है, जो मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के साथ-साथ आर्थिक विकास को भी प्रभावित कर सकती है। 
  • अनियंत्रित मुद्रास्फीति के संभावित जोखिम: RBI ने कहा कि निरंतर मुद्रास्फीति वास्तविक अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से उद्योग और निर्यात को कमज़ोर कर सकती है।
  • यदि बढ़ती इनपुट लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर डाला जाता है, तो इससे उपभोक्ता मांग कम हो सकती है और कॉर्पोरेट आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • इसका विशेष रूप से विनिर्माण जैसे क्षेत्र पर प्रभाव पड़ सकता है, जो स्थिर इनपुट लागत और मार्जिन पर निर्भर करते हैं।

नोट: भारत सरकार और RBI के बीच मौद्रिक नीति रूपरेखा समझौते (Monetary Policy Framework Agreement- MPFA) का उद्देश्य विकास पर विचार करते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना है। 

  • इस समझौते के अनुसार, यदि मुद्रास्फीति लगातार तीन तिमाहियों तक 2% से 6% की लक्ष्य के बाहर रहती है, तो RBI को केंद्र सरकार को रिपोर्ट देनी होगी, जिसमें कारण बताना होगा, सुधारात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव देना होगा, तथा यह अनुमान लगाना होगा कि मुद्रास्फीति कब लक्ष्य सीमा पर वापस आएगी।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक क्या है?

  • परिचय: CPI दैनिक उपभोग के लिये घरों द्वारा आमतौर पर खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की खुदरा कीमतों में परिवर्तन को मापता है। 
    •  इसका उपयोग मुद्रास्फीति पर नज़र रखने के लिये किया जाता है, CPI का आधार वर्ष 2012 है। 
  • उद्देश्य: CPI मुद्रास्फीति का एक व्यापक रूप से प्रयुक्त वृहद आर्थिक संकेतक है, जिसका उपयोग सरकारों और केंद्रीय बैंकों द्वारा मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण और मूल्य स्थिरता निगरानी के लिये तथा राष्ट्रीय खातों में अपस्फीतिकारक के रूप में किया जाता है।
    • CPI का उपयोग कीमतों में वृद्धि के लिये कर्मचारियों के महँगाई भत्ते को अनुक्रमित करने के लिये भी किया जाता है।
    • CPI जीवन-यापन की लागत, क्रय शक्ति तथा वस्तुओं और सेवाओं की महँगाई को समझने में मदद करती है।

उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक क्या है?

  • CFPI मुद्रास्फीति को मापता है जो विशेष रूप से उपभोक्ता की टोकरी में खाद्य पदार्थों के मूल्य परिवर्तन पर केंद्रित होता है।
  • CFPI सामान्य रूप से उपभोग किये जाने वाले खाद्य पदार्थों जैसे अनाज, सब्जियाँ, फल, डेयरी, माँस और अन्य प्रमुख वस्तुओं के मूल्य परिवर्तनों पर नज़र रखता है।
    • CPI की तरह, CFPI की गणना मासिक आधार पर की जाती है, तथा वर्तमान में इसका आधार वर्ष 2012 माना जाता है।
  • केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO), सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय अखिल भारतीय आधार पर तीन श्रेणियों (ग्रामीण, शहरी और संयुक्त) के लिये अलग-अलग CFPI जारी करता है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति पर उच्च खुदरा मुद्रास्फीति के प्रभावों का परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न  1. भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंक दर को कम करना _______की ओर जाता है:(2011)

(a) बाज़ार में अधिक तरलता
(b) बाज़ार में कम तरलता
(c) बाज़ार में तरलता में कोई बदलाव नहीं
(d) वाणिज्यिक बैंकों द्वारा अधिक जमा जुटाना

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

  1. खाद्य वस्तुओं का ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ (CPI) भार (Wegitage) उनके ‘थोक मूल्य सूचकांक’ (WPI) में दिये गए भार से अधिक है। 
  2. WPI, सेवाओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को नहीं पकड़ता, जैसा कि CPI करता है। 
  3. भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब मुद्रास्फीति के मुख्य मान तथा प्रमुख नीतिगत दरों के निर्धारण हेतु WPI को अपना लिया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. यदि आर.बी.आई. प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता को घटाकर उसे अनुकूलित करना  
  2. सीमांत स्थायी सुविधा दर को बढ़ाना  
  3. बैंक दर को घटाना तथा रेपो दर को भी घटाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)