चुनावी ट्रस्ट के माध्यम से दान में वृद्धि | 20 Jan 2025
प्रिलिम्स के लिये:चुनावी बॉण्ड, सर्वोच्च न्यायालय (SC), एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ मामला, 2024, चुनावी बॉण्ड योजना, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, भारत का निर्वाचन आयोग (ECI), वित्त अधिनियम 2017, अनुच्छेद 19, 14 और 21। मेन्स के लिये:चुनावी बॉण्ड का चुनाव प्रक्रिया पर प्रभाव, चुनावी बॉण्ड के डिज़ाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा वित्त वर्ष 2023-24 के लिये जारी चुनावी ट्रस्ट योगदान रिपोर्ट, चुनावी ट्रस्टों के माध्यम से राजनीतिक दलों को दिये जाने वाले दान में उल्लेखनीय वृद्धि का संकेत देती है।
- यह वृद्धि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ मामले, 2024 के बाद हुई, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना को असंवैधानिक घोषित किया और बैंकों को तुरंत बॉण्ड जारी करना बंद करने का निर्देश दिया।
ECI की रिपोर्ट के मुख्य बिंदु और उसके निहितार्थ क्या हैं?
- रिपोर्ट की मुख्य बातें:
- दान में वृद्धि: प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट (PET) में योगदान वर्ष 2022-23 से 2023-24 तक लगभग तीन गुना बढ़ गया।
- PET भारत का सबसे बड़ा चुनावी ट्रस्ट है, जिसे वित्त वर्ष 24 में 1,075.71 करोड़ रुपए मिले। यह एक ही ट्रस्ट के भीतर कॉर्पोरेट दान का एक महत्त्वपूर्ण संकेंद्रण दर्शाता है।
- प्रमुख लाभार्थी: केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी (भाजपा) सबसे बड़ी लाभार्थी रही, उसके बाद कॉन्ग्रेस, भारत राष्ट्र समिति (BRS) तथा YSR कॉन्ग्रेस का स्थान रहा।
- चुनावी ट्रस्टों की स्थिति : भारत निर्वाचन आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त 15 से अधिक चुनावी ट्रस्टों में से, इस अवधि के दौरान केवल पाँच ट्रस्टों को, जिनमें PET भी शामिल है, को दान प्राप्त हुआ।
- दान में वृद्धि: प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट (PET) में योगदान वर्ष 2022-23 से 2023-24 तक लगभग तीन गुना बढ़ गया।
- निहितार्थ:
- तुलनात्मक विश्लेषण: चुनावी बॉण्ड के विपरीत, जिसने वर्ष 2018 से वर्ष 2023 के बीच गुमनाम दान में 12,000 करोड़ रुपए दिये, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले वर्ष 2024 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने, उन्हें असंवैधानिक घोषित करते हुए राजनीतिक फंडिंग को चुनावी ट्रस्टों की ओर
- इस बदलाव ने दानकर्त्ता की पहचान, राशि और प्राप्तकर्त्ता पक्षों का खुलासा करके पारदर्शिता में वृद्धि की है, प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट जैसे ट्रस्टों को फैसले के बाद वित्त वर्ष 24 के उनके दान का 74% (1,075.7 करोड़ रुपए में से 797.1 करोड़ रुपए) प्राप्त हुए।
- आर्थिक आयाम: चुनावी ट्रस्ट बड़े पैमाने पर कॉर्पोरेट फंड को राजनीतिक प्रणालियों में प्रवाहित करते हैं, जिससे पार्टी के वित्त पर कॉर्पोरेट प्रभाव मज़बूत होता है।
- प्रूडेंट एवं ट्रायम्फ जैसे कुछ ट्रस्टों का प्रभुत्व शीर्ष दानदाताओं के बीच राजनीतिक फंडिंग के केंद्रीकरण को उजागर करता है।स्थानांतरित कर दिया है।
- तुलनात्मक विश्लेषण: चुनावी बॉण्ड के विपरीत, जिसने वर्ष 2018 से वर्ष 2023 के बीच गुमनाम दान में 12,000 करोड़ रुपए दिये, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले वर्ष 2024 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने, उन्हें असंवैधानिक घोषित करते हुए राजनीतिक फंडिंग को चुनावी ट्रस्टों की ओर
चुनावी ट्रस्ट क्या हैं?
- चुनावी ट्रस्ट के बारे में; वर्ष 2013 में शुरू किये गए चुनावी ट्रस्ट गैर-लाभकारी संस्थाएँ हैं जो दानदाताओं से धन एकत्र करने और उन्हें राजनीतिक दलों को वितरित करने के लिये स्थापित की गई हैं।
- कानूनी ढाँचा: इन ट्रस्टों को कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत विनियमित किया जाता है । इस अधिनियम की धारा 25 (वर्तमान में नए कंपनी अधिनियम, 2013 में धारा 8 ) किसी भी कंपनी को इस योजना के तहत चुनावी ट्रस्ट स्थापित करने की अनुमति देती है।
- दान के लिये पात्रता: आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 17CA चुनावी ट्रस्टों को निम्नलिखित से दान की अनुमति देती है:
- भारतीय नागरिक, भारत में पंजीकृत कंपनियाँ, फर्म, हिंदू अविभाजित परिवार (HUF), या भारत में रहने वाले व्यक्तियों के संघ।
- दानदाताओं को अंशदान करते समय अपना पैन (निवासियों के लिये) या पासपोर्ट नंबर (NRIs के लिये) देना आवश्यक है।
- राजनीतिक दलों को दान: चुनावी ट्रस्टों को एक वित्तीय वर्ष में प्राप्त धनराशि का कम से कम 95% उन पात्र राजनीतिक दलों को दान करना होगा जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत पंजीकृत हैं।
- पंजीकरण एवं नवीकरण: चुनावी ट्रस्टों को अपना पंजीकरण और संचालन जारी रखने के लिये प्रत्येक तीन वित्तीय वर्षों में नवीकरण के लिये आवेदन करना आवश्यक है।
- चुनावी बॉण्ड तथा चुनावी ट्रस्ट के बीच मुख्य अंतर:
विशेषता |
चुनावी बॉण्ड |
चुनावी ट्रस्ट |
विनियमन |
मुख्य रूप से RBI, SBI और चुनाव आयोग द्वारा विनियमित। |
कंपनी अधिनियम द्वारा विनियमित, चुनाव आयोग एवं आयकर विभाग द्वारा निगरानी। |
उद्देश्य |
इसका उद्देश्य दानकर्त्ता की गुमनामी को बनाए रखते हुए दान को सुव्यवस्थित करना है। |
दान को एकत्रित करने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है । |
कर लाभ |
दानकर्ता धारा 80 GGC के अंतर्गत कटौती का लाभ उठा सकते हैं। |
ट्रस्ट के माध्यम से दानदाताओं को कर में छूट मिलती है । |
परिचालन तंत्र |
दान बॉण्ड के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दलों को दिया जाता है। |
ट्रस्ट धन एकत्र करते हैं और उसे राजनीतिक दलों में वितरित करते हैं। |
दाता प्रकटीकरण |
दानदाताओं की पहचान गुप्त रखी गयी है। |
दानदाताओं की पहचान सार्वजनिक रूप से उजागर की जाती है। |
पारदर्शिता |
दानदाताओं और प्राप्तकर्त्ताओं की गुमनामी; अघोषित कॉर्पोरेट प्रभाव की चिंता। |
दानदाताओं और प्राप्तकर्त्ताओं के विवरण का जनता के समक्ष पूर्ण खुलासा। |
चुनावी बॉण्ड योजना क्या है?
- परिचय : 2018 में शुरू की गई चुनावी बॉण्ड योजना, वचन पत्र के समान एक धन साधन है, जो भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से व्यक्तियों और कंपनियों द्वारा खरीद के लिये उपलब्ध है ।
- बॉण्ड को केवल पंजीकृत राजनीतिक दलों द्वारा निर्दिष्ट खाते में ही भुनाया जा सकता है।
- बॉण्ड खरीदने वाला व्यक्ति या तो अकेले या दूसरों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
- उद्देश्य : प्राथमिक लक्ष्य चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करना था, सरकार इसे डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते राष्ट्र के लिये एक सुधार के रूप में प्रस्तुत कर रही थी।
- योजना में संशोधन: वर्ष 2022 में योजना में संशोधन करके राज्य विधान सभा चुनावों के वर्षों के दौरान चुनावी बॉण्ड की खरीद के लिये अतिरिक्त 15 दिन की अवधि की शुरुआत की गई।
- चुनावी बॉन्ड जारी होने के 15 दिन तक वैध होते हैं। अगर उस समय के भीतर जमा नहीं किया जाता है, तो उनका प्रयोग नहीं किया जा सकता। अगर राजनीतिक दल वैधता अवधि के भीतर जमा कर देता है, तो बॉन्ड उसी दिन उनके खाते में जमा हो जाता है।
- केवल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) की धारा 29A के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल, जिन्होंने पिछले आम चुनाव (या तो लोकसभा या राज्य विधानसभा) में कम से कम 1% वोट प्राप्त किये हों, चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के पात्र हैं।
- असंवैधानिक घोषित: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ, 2024 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, इस योजना की अनुमत गुमनामी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) द्वारा गारंटीकृत ज्ञान के मूल अधिकार का उल्लंघन करती है।
भारत में चुनावी वित्तपोषण से संबंधित सिफारिशें क्या हैं?
- इंद्रजीत गुप्ता समिति, 1998: कम वित्तीय संसाधनों वाले दलों के लिये समान अवसर उपलब्ध कराने हेतु राज्य प्रायोजित चुनावों के विचार का समर्थन किया।
- अनुशंसित सीमाएँ:
- राज्य निधि केवल राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को आवंटित की जाएगी, जिन्हें आवंटित चुनाव चिन्ह प्राप्त होंगे, स्वतंत्र उम्मीदवारों को नहीं।
- प्रारंभ में, राज्य द्वारा वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिये, तथा मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों एवं उनके उम्मीदवारों को कुछ सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिये।
- आर्थिक बाधाओं को स्वीकार किया गया तथा पूर्ण राज्य वित्त पोषण के स्थान पर आंशिक वित्त पोषण की वकालत की गई।
- विधि आयोग, 1999: चुनावों के लिये संपूर्ण राज्य वित्तपोषण को वांछनीय बताया गया, बशर्ते कि राजनीतिक दलों को अन्य स्रोतों से धन प्राप्त करने पर प्रतिबन्ध हो।
- आयोग ने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन का प्रस्ताव रखा, जिसमें राजनीतिक दलों के खातों के रखरखाव, लेखापरीक्षा एवं प्रकाशन के लिये धारा 78A को शामिल किया गया, तथा अनुपालन न करने पर दंड का प्रावधान किया गया।
- चुनाव आयोग की सिफारिशें: चुनाव आयोग की वर्ष 2004 की रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि राजनीतिक दलों को अपने खातों को वार्षिक रूप से प्रकाशित करना आवश्यक है, ताकि सामान्य जनता और संबंधित संस्थाओं द्वारा उनकी जाँच की जा सके।
- सटीकता सुनिश्चित करते हुए लेखापरीक्षित खातों को सार्वजनिक किया जाना चाहिये, तथा लेखापरीक्षा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा अनुमोदित फर्मों द्वारा की जानी चाहिये।
भारत में चुनावी फंडिंग से संबंधित मुद्दे क्या हैं?
- पारदर्शिता का मुद्दा: चुनावी बॉन्ड का उद्देश्य पारदर्शिता सुनिश्चित करना था, लेकिन दानदाताओं की गुमनामी इसे कमज़ोर करती है, विशेष रूप से जनता और विपक्ष के लिये। चुनावी बॉन्ड में पारदर्शिता का मुद्दा सत्तारूढ़ पार्टी को दानदाताओं की जानकारी में हेरफेर करने की अनुमति देता है, जिससे चुनावों में समझौता होता है।
- सत्तारूढ़ पार्टी SBI के माध्यम से दानदाताओं के विवरण तक पहुँच सकती है, जिससे गैर-सहायक कंपनियों को हानि पहुँच सकता है ।
- लोकतंत्र पर प्रभाव: मतदाता दान के स्रोतों से अनभिज्ञ रहते हैं, जिससे सूचित विकल्प बनाने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। चुनावी बॉण्ड नागरिकों के राजनीतिक दान के बारे में जानने के अधिकार को प्रतिबंधित करते हैं, जिससे सहभागी लोकतंत्र प्रभावित होता है।
- क्रोनी कैपिटलिज्म: दान की सीमा (पिछले 3 वित्तीय वर्षों के औसत शुद्ध लाभ का 7.5%) को हटाने से राजनीति पर कॉर्पोरेट प्रभाव के लिये द्वार खुल जाते हैं, जिससे क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा मिलता है।
- क्रोनी कैपिटलिज्म एक आर्थिक प्रणाली है जिसमें व्यापारिक नेताओं और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंध होते हैं।
- फंडिंग में असंतुलन: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) रिपोर्ट, 2023 में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि राष्ट्रीय दल, विशेष रूप से सत्तारूढ़ दल, चुनावी बॉण्ड दान पर हावी हैं, जिससे असमान फंडिंग परिदृश्य बनता है।
- चुनावी बॉण्ड से पता चलता है कि कॉर्पोरेट क्षेत्र से अनुपातहीन दान प्राप्त हुआ है, जिससे सत्तारूढ़ पार्टी की शक्ति मज़बूत हुई है।
आगे की राह
- पारदर्शिता एवं गुमनामी के बीच संतुलन: सबसे प्रमुख प्रतिक्रियाओं में से एक पारदर्शिता एवं गुमनामी में वैध सार्वजनिक हितों के बीच संतुलन बनाना है। कई अधिकार क्षेत्र छोटे दानदाताओं के लिये गुमनामी की अनुमति देकर इस संतुलन को बनाए रखते हैं, जबकि बड़े दान के लिये खुलासे की आवश्यकता होती है।
- ब्रिटेन में, किसी पार्टी को एक कैलेंडर वर्ष में एक ही स्रोत से प्राप्त कुल 7,500 पाउंड से अधिक दान की रिपोर्ट देनी होती है।
- जर्मनी में यह सीमा 10,000 यूरो है।
- दान का विनियमन: देशों को बड़े दानदाताओं के प्रभुत्व से बचने के लिये दान को सीमित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये । क्योंकि सीमाएँ चुनावों में वित्तीय हथियारों की होड़ को रोकती हैं।
- चुनावी ट्रस्ट यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि दान सीमा के भीतर रहे तथा उसका उचित आवंटन हो।
- राजनीतिक दलों के लिये सार्वजनिक वित्तपोषण: सार्वजनिक वित्तपोषण पार्टी के प्रदर्शन पर आधारित होता है, जिसके प्रकटीकरण से पारदर्शिता सुनिश्चित होती है, जबकि गुमनामी से छोटे दानदाताओं की सुरक्षा होती है।
- राष्ट्रीय चुनाव कोष: एक राष्ट्रीय कोष सभी दाताओं से दान एकत्र कर सकता है और उसे राजनीतिक दलों को उनके चुनावी प्रदर्शन के आधार पर वितरित कर सकता है।
- इस दृष्टिकोण से दाताओं के विरुद्ध संभावित प्रतिशोध की चिंताओं का समाधान हो सकेगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: इलेक्टोरल बॉण्ड और इलेक्टोरल ट्रस्ट के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए पारदर्शिता को बढ़ावा देने में इलेक्टोरल ट्रस्टों की भूमिका की विवेचना कीजिये और निर्वाचकीय जवाबदेही और नियामक निगरानी बढ़ाने के उपायों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'निजता का अधिकार' भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संरक्षित है? (a) अनुच्छेद 15 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के संदर्भ में नहीं है, यह अनिवार्य रूप से जवाबदेही की अवधारणा को पुनः परिभाषित करता है।” चर्चा कीजिये। (2018) |