ई-प्रौद्योगिकी द्वारा फसल डेटा संग्रह में सुधार | 26 Aug 2024

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल फसल सर्वेक्षण और डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (DGCES), रिमोट सेंसिंग, फसल मानचित्र, फसल सर्वेक्षण, कृषि क्षेत्र, जियोटैगिंग, GPS, अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय, डिजिटल कौशल, NGO, विश्व कृषि जनगणना (WCA), खाद्य और कृषि संगठन (FAO)

मेन्स के लिये:

नीति निर्माण में अद्यतन फसल अनुमान डेटा का महत्त्व और आवश्यकता।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने राज्यों से कृषि उत्पादन अनुमानों में सुधार और डेटा सटीकता बढ़ाने के लिये डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (DGCES), डिजिटल फसल सर्वेक्षण और संशोधित FASAL कार्यक्रम को तेज़ी से अपनाने तथा इसे लागू करने का आग्रह किया।

  • इसका उद्देश्य कृषि सांख्यिकी की सटीकता, विश्वसनीयता और पारदर्शिता को बढ़ाना है, जिससे नीति निर्माण, व्यापार एवं कृषि नियोजन में मदद मिलेगी।

फसल डेटा संग्रह को बेहतर बनाने के लिये शुरू की गईं नई पहल क्या हैं?

  • डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (DGCES): यह एक राष्ट्रव्यापी पहल है, जो फसल की पैदावार का आकलन करने और भारत में कृषि पद्धतियों को बेहतर बनाने के लिये एक मोबाइल ऐप तथा वेब पोर्टल पर आधारित है।
    • इसका उद्देश्य देशभर में सभी प्रमुख फसलों के लिये वैज्ञानिक रूप से विकसित किये गए फसल कटाई अनुप्रयोगों के आधार पर उपज की गणना करना है। 
    • इसमें पारदर्शिता और सटीकता बढ़ाने के लिये GPS-सक्षम फोटो कैप्चर, स्वचालित प्लॉट चयन तथा जियो-रेफरेंसिंग जैसी सुविधाएँ शामिल हैं।
  • डिजिटल फसल सर्वेक्षण: यह एक प्रौद्योगिकी-संचालित पहल है, जिसे डिजिटल माध्यमों से विस्तृत और सटीक फसल डेटा प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • इसका उद्देश्य फसल क्षेत्र अनुमान और अन्य संबंधित कृषि सांख्यिकी की सटीकता को बढ़ाना है।
    • मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:
      • जियोटैग्ड डेटा: फसल के भू-खंडों के सटीक स्थानों को रिकॉर्ड करने के लिये जियोटैगिंग का उपयोग करता है, जिससे सटीक क्षेत्र माप सुनिश्चित होता है। 
      • डिजिटल दस्तावेज़ीकरण: डेटा संग्रह के लिये डिजिटल टूल और प्लेटफॉर्म का उपयोग करता है, जिससे मैन्युअल तरीकों पर निर्भरता कम होती है। 
      • रियल-टाइम अपडेट: फसल क्षेत्रों के संदर्भ में लगभग रियल-टाइम सुचना/जानकारी प्रदान करता है, जिससे समय पर और सटीक आकलन संभव हो पाता है।
  • संशोधित फसल कार्यक्रम: अंतरिक्ष, कृषि-मौसम विज्ञान और भूमि आधारित टिप्पणियों (FASAL) का उपयोग करके कृषि उत्पादन का पूर्वानुमान लगाना, प्रमुख फसलों के लिये सटीक फसल मानचित्र और क्षेत्र अनुमान तैयार करने हेतु सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना।
    • कृषि एवं किसान कल्याण विभाग का महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र (MNCFC) नियमित रूप से प्रमुख फसलों के लिये ज़िला/राज्य/राष्ट्रीय स्तर पर फसल पूर्वानुमान तैयार करता है।
  • कृषि सांख्यिकी के लिये एकीकृत पोर्टल (UPAg पोर्टल): UPAg पोर्टल फसल उत्पादन, बाज़ार के रुझान, मूल्य निर्धारण और अन्य महत्त्वपूर्ण कृषि आँकड़ों पर लगभग वास्तविक समय की जानकारी के लिये एक केंद्र के रूप में कार्य करता है।
    • यह विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों के परस्पर सत्यापन की अनुमति देता है, जिससे सुदृढ़ कृषि सांख्यिकी सुनिश्चित होती है।
  • उपज पूर्वानुमान मॉडल: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय उपज पूर्वानुमान मॉडल विकसित करने के लिये  अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान सहित विभिन्न संस्थानों के साथ सहयोग कर रहा है।
  • पर्यवेक्षण: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय  राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा फसल कटाई प्रयोगों के पर्यवेक्षण को बढ़ाने के लिये सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के साथ मिलकर कार्य कर रहा है।

फसल संबंधी आँकड़े एकत्र करने हेतु नए तंत्र की क्या आवश्यकता है?

  • वास्तविक समय निगरानी: पारंपरिक विधियाँ  फसल की स्थिति और उत्पादन अनुमान के विषय में समय पर अद्यतन जानकारी उपलब्ध नहीं करा पातीं।  
    • अप्रत्याशित मौसम की स्थिति या कीट प्रकोप की स्थिति में समय पर हस्तक्षेप और सटीक आकलन के लिये वास्तविक समय का डेटा महत्त्वपूर्ण होता है।
  • उन्नत प्रौद्योगिकियों का एकीकरण: आधुनिक प्रौद्योगिकियों के साथ एकीकरण का अभाव वर्तमान डेटा संग्रहण विधियों की प्रभावशीलता को सीमित करता है।
  • डेटा विश्वसनीयता में वृद्धि: रिमोट सेंसिंग का उपयोग करने वाली पहल और कार्यक्रम सटीक फसल मानचित्र बना सकते हैं, जिससे मैन्युअल डेटा संग्रह पर निर्भरता कम हो सकती है तथा डेटा की स्थिरता बढ़ सकती है।
  • नीति-निर्माण में सुविधा: डिजिटल फसल सर्वेक्षण जैसी नई पहलों से प्राप्त सटीक और समय पर आँकड़े नीति-निर्माताओं को संसाधन आवंटन तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली, खाद्य सुरक्षा आदि जैसे सहायक उपायों के विषय में उचित निर्णय लेने में मदद करते हैं।
  • जलवायु प्रभावों पर ध्यान देना: जलवायु परिवर्तन से फसल उत्पादन प्रभावित होता है और पारंपरिक प्रणालियाँ बदलती परिस्थितियों के अनुकूल ढलने में विफल हो सकती हैं।
    • सैटेलाइट इमेजरी जैसी उन्नत तकनीकें खेती के तरीकों को समायोजित करने हेतु बेहतर डेटा प्रदान कर सकती हैं, जैसे कि टिड्डियों के हमले के मामले में पूर्व चेतावनी। 
  • बड़े पैमाने पर डेटा को संभालना: भारत में डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग करके विशाल और विविध कृषि क्षेत्रों में फसल उत्पादन का अनुमान लगाना आसान हो सकता है।

कृषि जनगणना और पशुधन जनगणना

  • कृषि जनगणना: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय कृषि क्षेत्र पर महत्त्वपूर्ण आँकड़े एकत्र करने के लिये कृषि जनगणना आयोजित करता है।
    • यह जनगणना संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा निर्धारित दशकीय विश्व कृषि जनगणना (WCA) दिशानिर्देशों का पालन करती है। डेटा को विभिन्न वर्गों (सीमांत, लघु, अर्ध-मध्यम, मध्यम एवं बड़े) और अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों सहित सामाजिक समूहों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
    • कृषि जनगणना पाँच वर्ष में एक बार की जाती है। 
      • वर्ष 1970-71 से अब तक देश में दस कृषि जनगणनाएँ की जा चुकी हैं और संदर्भ वर्ष 2021-22 के साथ वर्तमान कृषि जनगणना इस शृंखला की ग्यारहवीं जनगणना है।
  • पशुधन जनगणना: मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय प्रत्येक 5 वर्ष में एक बार पशुधन जनगणना करता है। 
    • पशुधन जनगणना में सभी पालतू पशु शामिल होते हैं। 
    • यह वर्ष 1919-20 से समय-समय पर आयोजित की जाती रही है। अब तक ऐसी 20 जनगणनाएँ की जा चुकी हैं, जिनमें से 20वीं जनगणना वर्ष 2019 में की गई थी।

कृषि डेटा संग्रहण के लिये नई तकनीकी पहलों को अपनाने में क्या चुनौतियाँ शामिल हैं?

  • डिजिटल अवसंरचना का अभाव: सरकारी अधिकारियों के डेटा भंडारण और डेटा प्रसंस्करण कौशल के लिये क्लाउड जैसे अपर्याप्त अवसंरचना कृषि में डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग में बाधा डालती है।
  • प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच: छोटे किसानों के पास अक्सर प्रौद्योगिकी और आवश्यक डिजिटल कौशल तक पहुँच की कमी होती है, जो डिजिटल उपकरणों को अपनाने में बाधा डालती है एवं डेटा उत्पादन को सीमित करती है।
  • डेटा सटीकता और विश्वसनीयता: नई प्रौद्योगिकियों के माध्यम से एकत्र किये गए डेटा की सटीकता और विश्वसनीयता के बारे में चिंताएँ बनी हुई हैं।
  • गलत डेटा संग्रह उपकरण खराब निर्णय लेने और डिजिटल प्रणालियों में विश्वास को कम करने का कारण बन सकते हैं।
  • मौजूदा सिस्टम के साथ एकीकरण: नए डेटा संग्रह उपकरण पारंपरिक सिस्टम के साथ सहजता से एकीकृत नहीं हो सकते हैं, जिससे डेटा प्रबंधन संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं। यह अपनाने की प्रक्रिया को जटिल बना सकता है और अक्षमताओं को जन्म दे सकता है। 
    • पारंपरिक सिस्टम में फसल डेटा क्षेत्रीय भाषा और स्थानीय लिपि में होता है। सार्वभौमिक पहुँच के लिये उन्हें कई भाषाओं में परिवर्तित करना तथा उन्हें क्लाउड स्टोरेज पर सही तरीके से अपलोड करना एक थकाऊ प्रक्रिया है।

आगे की राह

  • तकनीकी कौशल में सुधार करना: प्रशिक्षण देने के लिये कृषि विस्तार सेवाओं जैसे कि कृषि विज्ञान केंद्र (Krishi Vigyan Kendras- KVK), गैर सरकारी संगठनों और तकनीकी कंपनियों के साथ साझेदारी करना। कार्यशालाएँ, ऑनलाइन पाठ्यक्रम और व्यावहारिक प्रदर्शन प्रदान करें।
  • मौजूदा प्रणालियों के साथ एकीकरण को सुगम बनाना: सुनिश्चित करना कि नई प्रौद्योगिकियाँ उपयोगकर्ताओं के लिये निर्बाध अनुभव हेतु मौजूदा कृषि प्रबंधन प्रणालियों के साथ संगत हों।
  • नियमित ऑडिट और सत्यापन: विसंगतियों की पहचान करने और इसकी विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये एकत्रित आँकड़ों की आवधिक ऑडिट तथा क्रॉस-चेक आयोजित करें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: अर्थव्यवस्था में वास्तविक समय फसल डेटा आकलन की क्या आवश्यकता है? फसल आकलन के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने में मौजूद चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित में से किस/किन पद्धति/यों को पारितंत्र-अनुकूली कृषि माना जाता है? (2020)

  1. फसल विविधीकरण
  2. शिंब आधिक्य (Legume Intensification)
  3. टेंसियोमीटर का प्रयोग
  4. ऊर्ध्वाधर कृषि 

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 3
(c) केवल 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)


प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का उद्देश्य देश के चिह्नित ज़िलों में स्थायी तरीके से क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से कुछ फसलों के उत्पादन में वृद्धि करना है। वे फसलें कौन-सी हैं? (2010)

(a) केवल चावल और गेहूँ
(b) केवल चावल, गेहूँ और दालें
(c) केवल चावल, गेहूँ, दालें और तिलहन
(d) चावल, गेहूँ, दालें, तिलहन और सब्जियाँ

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021)

प्रश्न. क्या कारण है कि भारत में हरित क्रांति पूर्वी प्रदेश में उर्वरक मृदा और जल की बढ़िया उपलब्धता के बावजूद, असलियत में उससे बच कर आगे निकल निकल गई? (2014)