बाल मृत्यु दर और मृत जन्म पर रिपोर्ट | 12 Jan 2023
प्रिलिम्स के लिये:बाल मृत्यु दर, मृत जन्म, यूनिसेफ, ईट राइट इंडिया, फिट इंडिया मूवमेंट, रोगों का अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण, समय से पहले जन्म मेन्स के लिये:भारत में मृत जन्म और बाल मृत्यु दर का मुद्दा, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूनाइटेड नेशन इंटर-एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मॉर्टेलिटी एस्टिमेशन (UN IGME) द्वारा बाल मृत्यु दर (बाल मृत्यु दर का स्तर एवं प्रवृत्ति) और मृत जन्म पर दो वैश्विक रिपोर्ट जारी की गईं।
प्रमुख बिंदु
- बाल मृत्यु दर का स्तर एवं प्रवृत्ति:
- मृत्यु दर से संबंधित आँकड़े:
- वैश्विक स्तर पर वर्ष 2021 में पाँच वर्ष से कम आयु में मरने वाले बच्चों की संख्या 5 मिलियन थी।
- इनमें आधे से अधिक (2.7 मिलियन) 1-59 माह की आयु के बच्चे शामिल हैं, जबकि शेष (2.3 मिलियन) की जीवन के पहले माह (नवजात मृत्यु) में ही मृत्यु हो गई।
- भारत में पाँच वर्ष से कम आयु में मरने वाले बच्चों की संख्या लगभग 7 लाख है, जिनमें 5.8 लाख शिशु मृत्यु (एक वर्ष से पूर्व मृत्यु) और 4.4 लाख नवजात मौतें शामिल हैं।
- मृत्यु दर में गिरावट:
- सदी की शुरुआत के बाद से वैश्विक अंडर-5 मृत्यु दर में 50% की गिरावट आई है, जबकि बड़े बच्चों और युवाओं की मृत्यु दर में 36% की गिरावट आई है एवं मृत जन्म दर में 35% की कमी आई है।
- यह महिलाओं, बच्चों और युवाओं के कल्याण हेतु प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाने की दिशा में किये जाने वाले निवेश के परिणामस्वरूप है।
- हालाँकि वर्ष 2010 के बाद से प्रगति नाटकीय रूप से धीमी हो गई है और 54 देश अंडर-5 मृत्यु दर के लिये सतत् विकास लक्ष्यों को पूरा करने में पीछे रह गए।
- क्षेत्रवार विश्लेषण:
- उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिणी एशिया में बाल मृत्यु दर की उच्चतम दर बनी हुई है, उप-सहारा अफ्रीका में पैदा हुए बच्चों के जीवित रहने की संभावना सबसे कम है।
- गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य तक पहुँच:
- विश्व स्तर पर बच्चों के लिये गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच और उपलब्धता जीवन या मृत्यु का मामला बना हुआ है।
- अधिकांश बच्चों की मृत्यु पहले पाँच वर्षों में हो जाती है, जिनमें से 50% बच्चों की मृत्यु जीवन के पहले माह में ही हो जाती है।
- इन कम उम्र के बच्चों के समय से पूर्व जन्म और प्रसव के दौरान जटिलताएँ मृत्यु के प्रमुख कारण हैं।
- बढ़ते संक्रामक रोग:
- मृत्यु दर से संबंधित आँकड़े:
- स्टिलबर्थ (मृत जन्म) पर रिपोर्ट:
- वैश्विक स्तर पर वर्ष 2021 में मृत जन्म का आँकड़ा अनुमानित 1.9 मिलियन है।
- वर्ष 2021 में भारत में मृत जन्मों की कुल अनुमानित संख्या (2,86,482) 1-59 माह (2,67,565) में मृत बच्चों की संख्या से अधिक थी।
अधिकांश बच्चों की मृत्यु का कारण:
- समय पूर्व जन्म (गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पूर्व जन्मे बच्चे):
- यह एक चुनौती है क्योंकि 37 सप्ताह के गर्भ के बाद जन्म लेने वालों की तुलना में 'समय पूर्व जन्मे शिशुओं' में जन्म के बाद मृत्यु का जोखिम दो से चार गुना अधिक होता है।
- विश्व स्तर पर प्रत्येक 10 जन्मों में से एक अपरिपक्व है; भारत में प्रत्येक छह से सात जन्मों में से एक समय से पूर्व होता है।
- भारत में समय पूर्व जन्म का एक बड़ा संकट है, जिसका अर्थ है कि देश में नवजात शिशुओं को जटिलताओं और मृत्यु दर का अधिक खतरा है।
- मृत जन्म:
- समय पूर्व जन्म और मृत जन्म दोनों की दर तथा संख्या अस्वीकार्य रूप से उच्च है जो भारत में नवजात शिशु एवं बाल मृत्यु दर को बढ़ाती है। इस प्रकार वे तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हैं।
- एक बच्चा जिसकी गर्भावस्था के 22 सप्ताह के बाद लेकिन जन्म से पहले या उसके दौरान किसी भी समय मृत्यु हो जाती है, तो उसे मृत शिशु के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- समय पूर्व जन्म और मृत जन्म पर उचित ध्यान न देने का एक कारण विस्तृत और विश्वसनीय डेटा की कमी है।
- समय पूर्व जन्म और मृत जन्म दोनों की दर तथा संख्या अस्वीकार्य रूप से उच्च है जो भारत में नवजात शिशु एवं बाल मृत्यु दर को बढ़ाती है। इस प्रकार वे तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हैं।
भारत की संबंधित पहल:
- पोषण अभियान: भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक "कुपोषण मुक्त भारत" सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय पोषण मिशन (NHM) या पोषण अभियान शुरू किया है।
- एनीमिया मुक्त भारत अभियान: वर्ष 2018 में शुरू किये गए इस मिशन का उद्देश्य एनीमिया की गिरावट की वार्षिक दर को 1-3 प्रतिशत अंक तक बढ़ाना है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: इसका उद्देश्य अपनी संबद्ध योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से सबसे कमज़ोर लोगों के लिये खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जिससे भोजन तक पहुँच एक कानूनी अधिकार बन जाता है।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती महिलाओं के प्रसव के लिये बेहतर सुविधाओं का लाभ उठाने हेतु उनके बैंक खातों में सीधे 6,000 रुपए हस्तांतरित किये जाते हैं।
- समेकित बाल विकास सेवा (ICDS) योजना: यह 1975 में शुरू की गई थी और इस योजना का उद्देश्य 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और उनकी माताओं को भोजन, प्री-स्कूल शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच एवं रेफरल सेवाएँ प्रदान करना है।
- स्वस्थ भोजन और स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिये ईट राइट इंडिया और फिट इंडिया मूवमेंट कुछ अन्य पहलें हैं।
यूनाइटेड नेशन इंटर-एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मॉर्टेलिटी एस्टिमेशन (UN IGME):
- UN IGME का गठन वर्ष 2004 में बाल मृत्यु दर पर डेटा साझा करने, बाल मृत्यु दर अनुमान के तरीकों में सुधार करने, बाल उत्तरजीविता लक्ष्यों की दिशा में प्रगति पर रिपोर्ट करने और बाल मृत्यु दर का सटीक अनुमान लगाने एवं देश की क्षमता को मज़बूत करने के लिये की गई थी।
- UN IGME का नेतृत्त्व संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) द्वारा किया जाता है और इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक समूह और संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक मामलों का विभाग, जनसंख्या प्रभाग शामिल हैं।
मृत जन्म और बाल मृत्यु दर को रोकने के लिये संभावित उपाय:
- ज्ञात और प्रमाणिक उपायों में वृद्धि करना:
- मृत जन्म और बाल मृत्यु दर को रोकने के लिये निम्न बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये:
- परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना।
- गर्भवती माताओं द्वारा आयरन फोलिक एसिड के सेवन सहित स्वास्थ्य और पोषण जैसी प्रसव पूर्व सेवाओं में सुधार।
- स्वस्थ आहार, और इष्टतम पोषण के महत्त्व पर परामर्श प्रदान करना।
- जोखिम कारकों की पहचान और प्रबंधन।
- मृत जन्म और बाल मृत्यु दर को रोकने के लिये निम्न बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये:
- दिशा-निर्देशों का प्रभावी कार्यान्वयन:
- यदि समय से पहले जन्म और मृत जन्म के आँकड़ों को बेहतर तरीके से रिकॉर्ड एवं रिपोर्ट किया जाए तो और बेहतर परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय रोगों के वर्गीकरण की परिभाषा के अनुरूप मातृ और प्रसवकालीन मृत्यु की निगरानी से संबंधित दिशा-निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता है।
- इस वर्गीकरण के उपयोग से मृत जन्म रिपोर्टिंग के कारणों को मानकीकृत करने में मदद मिलेगी।
- साथ ही भारत को स्थानीय और लक्षित हस्तक्षेपों के लिये स्टिलबर्थ/मृत जन्म एवं अपरिपक्व जन्म के प्रमुख क्षेत्र समूहों की पहचान करने की आवश्यकता है।
- अधिक राशि का आवंटन:
- वर्ष 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के अनुसार, सरकार ने वर्ष 2025 तक स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई थी।
- तब से छह वर्ष बाद भी स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार द्वारा किये जाने वाले आवंटन में मामूली वृद्धि हुई है।
- हालिया दो रिपोर्टें की मानें तो अब समय आ गया है कि सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये अधिक राशि आवंटित करे, जिसकी शुरुआत आगामी बजट से की जा सकती है।
- वर्ष 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के अनुसार, सरकार ने वर्ष 2025 तक स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई थी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. क्या लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुश्चक्र को महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस) प्रदान करके तोड़ा जा सकता है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिये। (2021) |