भारतीय अर्थव्यवस्था
रेपो रेट में कटौती और इसके निहितार्थ
- 08 Feb 2025
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:मौद्रिक नीति समिति (MPC), मुद्रास्फीति, वैयक्तिक आयकर, रेपो रेट, ब्याज दर, थोक मूल्य सूचकांक (WPI), M3 मुद्रा आपूर्ति। मेन्स के लिये:रेपो रेट और अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने 5 वर्षों में (वर्ष 2020 से) पहली बार रेपो रेट को 6.5% (25 आधार अंक (BPS)) से घटाकर 6.25% कर दिया।
- केंद्रीय बजट 2025-26 में उपभोग को बढ़ावा देने के लिये वैयक्तिक आयकर में कटौती के बाद, इस कदम का उद्देश्य मंदी के बीच आर्थिक विकास को पुनर्जीवित करना है।
RBI द्वारा रेपो रेट में कटौती के निर्णय के पीछे क्या कारण थे?
- विकास को बढ़ावा देने वाला बजट: केंद्रीय बजट 2025-26 में वैयक्तिक आयकर में कटौती और TDS सीमा में संशोधन किया गया, जिससे प्रयोज्य आय में वृद्धि हुई।
- RBI की रेपो रेट में कटौती, उधार लागत को कम करके और मांग को बनाए रखकर सरकार की कर कटौती का समर्थन करती है।
- घटती मुद्रास्फीति: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) दिसंबर 2024 में घटकर 5.22% हो गया, जो चार महीने का निम्नतम स्तर है, जबकि नवंबर में यह 5.48% था, जो मौद्रिक सुलभता (Monetary Easing) के लिये रिक्ति प्रदान करता है।
- बाज़ार तरलता वृद्धि: RBI ने हाल ही में बैंकिंग प्रणाली में तरलता सुधारने के लिये 1.5 ट्रिलियन रुपए की पूंजी डालकर उपाय शुरू किये हैं।
- तरलता के प्रवाह ने मँहगे ऋण बाज़ारों को सुलभ बना दिया, जबकि रेपो दर में कटौती ने तरलता सुनिश्चित की और विकास को बढ़ावा देने के लिये ब्याज दरें कम कर दीं।
- वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता: कनाडा, मैक्सिको और चीन पर हाल ही में अमेरिकी टैरिफ ने व्यापार युद्ध की आशंकाओं को जन्म दिया, जिससे रुपया कमज़ोर होकर 87.29 प्रति डॉलर पर आ गया और मुद्रास्फीति का जोखिम बढ़ गया।
- रेपो रेट में कटौती से बाह्य आघातों के प्रभाव को कम करने तथा घरेलू विकास को समर्थन देने में मदद मिल सकती है।
रेपो रेट क्या है?
- रेपो रेट (रिपर्चेज़ एग्रीमेंट रेट) वह ब्याज दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक केंद्रीय बैंक से ऋण लेते हैं।
- उद्देश्य एवं कार्यप्रणाली: ऋण लेकर, यह बैंकों को उनकी अल्पकालिक तरलता आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करता है।
- बैंक प्रतिभूतियाँ लघु-अवधि के रूप में उपलब्ध कराते हैं तथा बाद में उन्हें अधिक कीमत पर (ब्याज सहित) पुनर्खरीद (रिपर्चेज़) करने पर सहमत होते हैं।
- ऋण लेने की लागत पर प्रभाव:
- उच्च रेपो रेट → बैंकों के लिये महंगे ऋण → उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिये उच्च ब्याज दरें → उधार लेने और व्यय करने की धीमी प्रक्रिया।
- कम रेपो रेट → बैंकों के लिये सस्ता ऋण → उधारकर्त्ताओं के लिये कम ब्याज दरें → उधार और व्यय में वृद्धि।
- मौद्रिक नीति में भूमिका: इसका उपयोग केंद्रीय बैंक द्वारा धन की आपूर्ति, मुद्रास्फीति और आर्थिक विकास को नियंत्रित करने के लिये किया जाता है।
रेपो रेट में कटौती के क्या निहितार्थ हैं?
- आर्थिक विकास: कम ऋण लागत से व्यवसायों के लिये विस्तार और निवेश करना आसान हो जाता है, जिससे उत्पादन और रोज़गार सृजन में वृद्धि होती है।
- रेपो रेट में कटौती से ब्याज दरें कम हो जाती हैं, ऋण सस्ते हो जाते हैं, EMI कम हो जाती है, तथा ऋण लेने और खर्च करने में वृद्धि होती है।
- वित्तीय बाज़ारों को मज़बूत करना: बैंक बचत खातों और सावधि जमाओं पर ब्याज दरें कम हो सकती हैं, जिससे बचत कम आकर्षक हो जाएगी तथा उपभोक्ता स्टॉक, म्यूचुअल फंड या रियल एस्टेट की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता: कम रेपो रेट से निवेश पर मिलने वाले रिटर्न में कमी आ सकती है, जिससे पूंजी का बहिर्वाह हो सकता है। इससे मुद्रा कमज़ोर, आयात लागत में वृद्धि तथा निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि हो सकती है।
- मुद्रास्फीति: ब्याज दरों में कटौती के कारण खर्च में वृद्धि से समय के साथ कीमतें और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, जिससे RBI का मुद्रास्फीति लक्ष्य (+/- 2% के दायरे में 4%) में वृद्धि हो सकती है।
4% मुद्रास्फीति लक्ष्य की पृष्ठभूमि:
- चक्रवर्ती समिति (1982-85): इस समिति का गठन तत्कालीन RBI गवर्नर मनमोहन सिंह द्वारा सुखमय चक्रवर्ती के नेतृत्व में मौद्रिक नीति की समीक्षा के लिये किया गया था। इसकी सिफारिशें इस प्रकार थीं:
- M3 = M1 (जनता द्वारा धारित मुद्रा+वाणिज्यिक बैंकों द्वारा धारित मांग जमाराशि)+वाणिज्यिक बैंकों की निवल आवधिक जमाराशि
- मौद्रिक नीति के मुख्य उद्देश्य के रूप में मूल्य स्थिरता पर ज़ोर दिया गया।
- आर्थिक प्राथमिकताओं में संतुलन लाने के लिये थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में 4% औसत वार्षिक मुद्रास्फीति का प्रस्ताव रखा गया।
- RBI वित्तपोषण पर निर्भरता कम करने के लिये बाज़ार संचालित सरकारी उधारी और सक्रिय सरकारी प्रतिभूति बाज़ार की सिफारिश की गई।
- मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने के लिये मौद्रिक लक्ष्यीकरण (M3 मुद्रा आपूर्ति नियंत्रण) किया जाने की अनुशंसा की गई।
- उर्जित पटेल समिति (2014): इससे मुद्रास्फीति लक्ष्य को औपचारिक रूप दिया गया जिसमें 4% लक्ष्य (± 2% बैंड) निर्धारित किया गया। यह लक्ष्य पहली बार 40 वर्ष पहले चक्रवर्ती समिति द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
- भारत का मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढाँचा, जिसे वर्ष 2016 में अपनाया गया था, भारत की मौद्रिक नीति को वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप बनाता है।
क्लिक टू रीड: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक क्या है?
निष्कर्ष:
RBI की रेपो रेट में कटौती का उद्देश्य उधार लेने की लागत को कम कर आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। हालाँकि, इससे मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है, जो RBI MPC द्वारा निर्धारित 4% लक्ष्य प्रभावित हो सकता है। विशेष रूप से वैश्विक अनिश्चितताओं को दृष्टिगत रखते हुए विकास और मूल्य स्थिरता को संतुलित किया जाना महत्त्वपूर्ण है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति पर रेपो रेट में कटौती के प्रभाव पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न. यदि आर.बी.आई. प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. संभाव्य सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) को परिभाषित कीजिये और उसके निर्धारकों की व्याख्या कीजिये। वे कौन से कारक हैं जो भारत को अपनी संभाव्य जी.डी.पी. को साकार करने से रोकते हैं? (2020) प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि स्थिर सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019) |