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भारतीय अर्थव्यवस्था

RBI का ग्रीन डिपॉज़िट फ्रेमवर्क

  • 13 Apr 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीन फाइनेंस इकोसिस्टम, ग्रीन बाॅण्ड, भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI), गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), प्रदर्शन उपलब्धि और व्यापार

मेन्स के लिये:

ग्रीन फाइनेंस इकोसिस्टम।

चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भारत में ग्रीन फाइनेंस इकोसिस्टम (GFS) विकसित करने के उद्देश्य से ग्राहकों के लिये ग्रीन डिपॉज़िट (हरित जमा) की पेशकश करने हेतु एक नए फ्रेमवर्क (ढाँचा) की घोषणा की है।

  • यह ढाँचा 1 जून, 2023 से लागू होगा।
  • ग्रीन डिपॉज़िट (हरित निक्षेप) निश्चित अवधि के लिये एक विनियमित इकाई (Regulated Entity-RE) द्वारा प्राप्त ब्याज-युक्त जमा को संदर्भित करता है, जिसमें ग्रीन फाइनेंस (हरित वित्तपोषण) के आवंटन हेतु निर्धारित आय होती है।

ढाँचे की प्रमुख विशेषताएँ:

  • प्रयोज्यता:
    • यह ढाँचा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों, भुगतान बैंकों तथा आवास वित्त कंपनियों के साथ-साथ सभी जमा स्वीकार करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies- NBFCs) को छोड़कर लघु वित्त बैंकों सहित अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर लागू होता है। 
  • आवंटन:
    • REs को हरित गतिविधियों एवं परियोजनाओं की एक सूची हेतु ग्रीन डिपॉज़िट के माध्यम से संग्रहीत आय को आवंटित करने की आवश्यकता होगी जो संसाधन उपयोग में ऊर्जा दक्षता को प्रोत्साहित करते हैं, कार्बन उत्सर्जन एवं ग्रीनहाउस गैसों को कम करते हैं, जलवायु लचीलापन और/या अनुकूलन को बढ़ावा देते हैं तथा प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र एवं जैवविविधता में सुधार करते हैं। 
  • अपवर्ज़न: 
    • जीवाश्म ईंधन के नए या मौजूदा निष्कर्षण, उत्पादन और वितरण से जुड़ी परियोजनाओं हेतु ग्रीन फाइनेंसिंग उपलब्ध नहीं है, जिसमें सुधार तथा उन्नयन, परमाणु ऊर्जा, प्रत्यक्ष अपशिष्ट भस्मीकरण, शराब, हथियार, तंबाकू, गेमिंग या ताड़ तेल उद्योग, संरक्षित क्षेत्रों में उत्पन्न फीडस्टॉक का उपयोग करके बायोमास से ऊर्जा उत्पन्न करने वाली नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ, लैंडफिल परियोजनाएँ या 25 मेगावाट से बड़े जलविद्युत संयंत्र शामिल हैं।  
  • वित्तपोषण ढाँचा: 
    • हरित जमा/ग्रीन डिपॉज़िट का प्रभावी आवंटन सुनिश्चित करने हेतु RE को बोर्ड द्वारा अनुमोदित वित्तपोषण ढाँचा (Financing Framework- FF) स्थापित करना चाहिये। ग्रीन डिपॉज़िट को केवल भारतीय रुपए में मूल्यवर्गित किया जाएगा।
    • वित्तीय वर्ष के दौरान RE द्वारा ग्रीन डिपॉज़िट के माध्यम से एकात्रित धनराशि का आवंटन स्वतंत्र तृतीय-पक्ष सत्यापन/आश्वासन के अधीन होगा, जो वार्षिक आधार पर किया जाएगा।

ग्रीन फाइनेंस इकोसिस्टम: 

  • परिचय: 
    • GFS वित्तीय प्रणाली को संदर्भित करता है जो पर्यावरणीय रूप से स्थायी परियोजनाओं और गतिविधियों में निवेश का समर्थन एवं उन्हें सक्षम बनाता है।
    • इसमें कई प्रकार के वित्तीय उत्पाद शामिल हैं, जैसे कि ग्रीन बाॅण्ड, ग्रीन लोन, ग्रीन इंश्योरेंस और ग्रीन फंड जो पर्यावरण के अनुकूल विधियों एवं परियोजनाओं को बढ़ावा देने हेतु तैयार किये गए हैं।
    • ग्रीन फाइनेंस इकोसिस्टम का उद्देश्य एक ऐसी वित्तीय प्रणाली बनाना है जो कम कार्बन, संसाधन-कुशल और टिकाऊ अर्थव्यवस्था में संक्रमण में सहयोग करती है, जबकि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण एवं जैवविविधता क्षति जैसे पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़े जोखिमों तथा अवसरों को भी शामिल करता है।
  • आवश्यकता: 
    • संसाधन जुटाने और हरित गतिविधियों/परियोजनाओं हेतु आवंटन में वित्तीय क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। भारत में ग्रीन फाइनेंस उत्तरोत्तर गति तथा लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है।
    • जमाकर्त्ताओं के हितों की रक्षा करते हुए और ग्रीनवाशिंग चिंताओं को दूर करते हुए GFS हरित गतिविधियों और परियोजनाओं के लिये ऋण प्रवाह में वृद्धि कर सकता है।
    • साथ ही यह भारत में पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव के लिये सतत् विकास को बढ़ावा दे सकता है।
  • भारतीय परिदृश्य: 
    • भारत ने वर्ष 2070 तक कार्बन तटस्थता का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है और 'ग्रीन डील' इसी दिशा में एक कदम है।
      • ग्रीन डील ने डीकार्बोनाइज़ेशन में तेज़ी लाने के लिये ग्रीन फाइनेंस को एक सक्षमकर्त्ता के रूप में वर्गीकृत किया है। यह ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने के लिये सरकार और निजी संस्थाओं से पूंजी प्रवाह में वृद्धि की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
    • वर्ष 2016 में RBI ने स्थायी वित्तीय प्रणालियों की तर्ज़ पर UNEP (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) और भारत के सहयोग के संबंध में एक रिपोर्ट जारी की थी।
      • यह रिपोर्ट भारत में वित्तीय प्रणालियों के विभिन्न पहलुओं और हरित वित्त/ग्रीन फाइनेंस में तेज़ी लाने में इसकी भूमिका का आकलन करती है।
    • 'परफॉर्म अचीव एंड ट्रेड' स्कीम के ज़रिये देश के नीतिगत ढाँचे में कार्बन ट्रेडिंग की शुरुआत की गई है।
    • वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार, वर्ष 2023 तक ग्रीन बाॅण्ड का बाज़ार दो ट्रिलियन डॉलर से अधिक का हो सकता है।

संबंधित पहलें: 

  • विदेशी पूंजी को प्रोत्साहन: सरकार ने अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में स्वचालित मार्ग के तहत 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहित करना: 
  • भारत का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान: वर्ष 2015 में हस्ताक्षरकर्त्ता देशों द्वारा अपनाए गए पेरिस समझौते के तहत भारत ने निर्धारित लक्ष्यों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) प्रस्तुत किया था।
    • अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की उत्सर्जन की मात्रा को वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक 33-35% तक कम करना।
    • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40% तक संचयी विद्युत शक्ति क्षमता प्राप्त करना। 

आगे की राह  

  • भारत में हरित अर्थव्यवस्था आशाजनक संकेतकों के साथ विस्तार कर रही है और बैंक सक्रिय रूप से स्थायी वित्त को बढ़ावा देने के साथ-साथ देश को न्यूनतम कार्बन, संसाधन-कुशल तथा टिकाऊ अर्थव्यवस्था की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
  • हरित परियोजनाओं का वित्तपोषण एक सतत् भविष्य प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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