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भारतीय अर्थव्यवस्था

मानव विकास उत्पाद (HDP)

  • 16 Aug 2021
  • 13 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 14/08/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘We need a way to measure true human progress’’ लेख पर आधारित है। इसमें विकास के आर्थिक संकेतकों में व्याप्त कमियों की चर्चा की गई है और वैकल्पिक विकास संकेतकों के संबंध में सुझाव दिये गये हैं।

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) किसी देश की आर्थिक गतिविधियों की एक माप होता है। यह किसी देश की वस्तुओं और सेवाओं के वार्षिक उत्पादन का कुल मान होता है। यह उपभोक्ता पक्ष की ओर से आर्थिक उत्पादन का संकेत देता है। 

हालाँकि, जीडीपी की अपनी खामियाँ भी हैं क्योंकि यह केवल आर्थिक विकास को इंगित करता है और असमानताओं एवं अन्याय की पहचान नहीं करता है।

इस प्रकार, हमें विकास के बारे में अधिक व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त करने के लिये वैकल्पिक ‘मीट्रिक’ या संकेतकों की आवश्यकता है और ऐसा सुविज्ञ नीतिनिर्माण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है जो आर्थिक विकास को ही विशेष रूप से प्राथमिकता नहीं देता हो।

विकास के संकेतक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद से संबद्ध समस्याएँ

  • GDP के तहत उत्पाद की माप की जाती है न कि उनके प्रभाव की: सकल घरेलू उत्पाद उत्पादित कारों की सकारात्मक गणना तो करता है लेकिन उनके द्वारा उत्पन्न प्रभाव की गणना नहीं करता; यह बिक्री हुए चीनीयुक्त पेय पदार्थों के मूल्य को तो जोड़ लेता है लेकिन उनके कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को इस मान में से घटाने में विफल रहता है; इसमें नए शहरों के निर्माण के महत्त्व को तो शामिल कर लिया जाता है, लेकिन उनके द्वारा प्रतिस्थापित किये गए जीवनदायी वनों के विनाश का कोई हिसाब नहीं किया जाता।  
    • जैसा कि रॉबर्ट कैनेडी ने कहा है—सकल घरेलू उत्पाद संक्षिप्ततः प्रत्येक चीज़ का मापन करता है सिवाय उनके जो जीवन को सार्थक बनाते हैं।
  • असमानता को संबोधित करने में विफल: वर्तमान विश्व में विकसित और विकासशील देश, दोनों में ही असमानता का स्तर एकसमान है। जीडीपी असमान समाज और समतावादी समाज के बीच अंतर कर सकने में अक्षम है। 
    • चूँकि बढ़ती असमानता के परिणामस्वरूप सामाजिक असंतोष और ध्रुवीकरण में वृद्धि हो रही है, नीति निर्माताओं को विकास का आकलन करते समय इन विषयों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होगी।
  • पर्यावरणीय क्षरण का मापन नहीं: पर्यावरणीय क्षरण एक प्रमुख बाह्यता (औद्योगिक या वाणिज्यिक गतिविधियों के वे परिणाम जो अन्य पक्षों पर प्रभाव डालते हैं लेकिन बाज़ार मूल्यों में प्रतिबिंबित नहीं होते) है जिसे जीडीपी अपने मापन में शामिल करने में विफल रहा है।  
    • अधिक वस्तुओं का उत्पादन, इससे होने वाली पर्यावरणीय क्षति के बावजूद, अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान दर्शाता है।
    • इस प्रकार, जीडीपी के मानक पर भारत जैसे देश को विकास-पथ पर अग्रसर माना जाता है, जबकि दिल्ली में शीतकाल धुंध की अधिकाधिक समस्या और बेंगलुरु की झीलों में आग लगने के अधिकधिक खतरे का शिकार हो रहा है।
  • आधुनिक सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था के साथ तालमेल नहीं: अमेज़ॅन पर किराने की खरीदारी से लेकर उबर पर कैब की बुकिंग तक आज का समाज तेज़ी से उभर रही सेवा अर्थव्यवस्था से अधिकाधिक प्रेरित है।  
    • जैसे-जैसे अनुभव की गुणवत्ता अथक उत्पादन का अधिक्रमण कर रही है, जीडीपी की धारणा तेज़ी से अपना महत्त्व खोती जा रही है।
    • हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ सोशल मीडिया बिना कोई कीमत लिये सूचना और मनोरंजन प्रदान कर रहा है, जिसके मूल्य को साधारण आँकड़ों से संपुटित नहीं किया जा सकता है।
    • आधुनिक अर्थव्यवस्था की अधिक सटीक स्थिति दर्शाने के लिये हमारे आर्थिक विकास और वृद्धि के मापकों को इन परिवर्तनों के अनुकूल होने की भी आवश्यकता है।
    • सकल घरेलू उत्पाद शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल पहुँच में भारी असमानता और लिंग, जाति, क्षेत्र एवं अन्य विषयों में अन्यायपूर्ण स्थिति का प्रतिबिंबन नहीं कर पाता है।  

सकल घरेलू उत्पाद के विकल्प के रूप में मानव विकास उत्पाद (HDP) 

HDP में निम्नलिखित मानदंड शामिल हो सकते हैं:

  • महिला श्रमशक्ति भागीदारी दर: यह भारत में आश्चर्यजनक रूप से कम है, जबकि महिलाओं का सशक्तिकरण (उनकी आर्थिक स्वतंत्रता के माध्यम से) मानव विकास के लिये केंद्रीय विषय है। 
  • लैंगिक आय समानता: एक ही काम के लिये पुरुष और महिला द्वारा अर्जित आय में मौजूद अंतर को पाटने की आवश्यकता है।  
    • यदि हम उन्हें पुरुषों की तुलना में असुरक्षित और कम वेतन वाली नौकरियाँ देना जारी रखते हैं तो फिर श्रमबल में महिलाओं की अधिकाधिक भागीदारी का कोई अर्थ नहीं है।
  • आयु अनुरूप छोटा कद (Stunting): स्टंटिंग न केवल उस अत्यंत क्रूर स्थिति में एक है जिसे समाज स्वीकार करता है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य, पोषण और सार्वजनिक शिक्षा की व्यापक स्थितियों को भी प्रकट करता है। 
  • जल की गुणवत्ता और उपलब्धता: हम निर्दिष्ट भौगोलिक बिंदुओं और आवधिकता के आधार पर 10 प्रमुख नदियों की जल गुणवत्ता और प्रवाह का मापन कर सकते हैं; साथ ही कुछ सबसे अधिक दबावग्रस्त क्षेत्रों में भूजल स्तर और उसकी गुणवत्ता की माप कर सकते हैं।  
    • इससे हमें एक समग्र जल स्वास्थ्य सूचकांक प्राप्त हो सकता है।
  • राज्य व्यवस्था की गुणवत्ता: इसके अंतर्गत सभी विधान-मंडल सदस्यों (संसद और राज्य विधान-मंडलों के सदस्य) के उस प्रतिशत का पता लगाया जा सकता है जिनके विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं या जिन पर दोषसिद्धि हुई है। 
  • अन्य मानदंड: ये कुछ महत्त्वपूर्ण मानदंड हैं जो देश में सबसे बुनियादी चीज़ों की प्रगति की माप कर सकते हैं और मानव प्रगति की स्थिति को प्रतिबिंबित कर सकते हैं। आवश्यकता के अनुसार अन्य मानदंड (जैसे CO2 उत्सर्जन, इंटरनेट तक पहुँच आदि) भी जोड़े जा सकते हैं।      
    • उदाहरणस्वरूप, वर्तमान में मानव विकास के लिये इंटरनेट की उपलब्धता एक अनिवार्य स्थिति हो गई है।

आगे की राह

  • विकास के मापन के वैकल्पिक उपाय: HDP के साथ-साथ अन्य संकेतक भी अपनाए जा सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिये, भूटान द्वारा सकल राष्ट्रीय खुशहाली सूचकांक विकसित किया गया है जो निष्पक्ष और न्यायसंगत सामाजिक-आर्थिक विकास और सुशासन जैसे कारकों पर विचार करता है।   
    • UNDP का मानव विकास सूचकांक (HDI) आर्थिक समृद्धि के अलावा स्वास्थ्य और ज्ञान को समाहित करता है। 
  • क्षमता दृष्टिकोण: अमर्त्य सेन की विकास अवधारणा के केंद्र में 'क्षमता दृष्टिकोण' है, जहाँ मानव विकास की मूल चिंता जीडीपी में वृद्धि, तकनीकी प्रगति या बढ़ते औद्योगिकीकरण के बजाय 'उस तरह के जीवन जीने की हमारी क्षमता जिसका सम्मान करने का हमारे पास कारण हो’ पर केंद्रित है।     
    • मानव क्षमता को बढ़ाना अच्छा है क्योंकि यह लोगों के विकल्पों, भलाई और स्वतंत्रता; सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने में उनकी भूमिका; और आर्थिक उत्पादन में उनके योगदान में सुधार लाता है।  
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन आजीविका, स्वास्थ्य और अन्य सभी विषयों को प्रभावित कर रहा है। हमें जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों से कई मोर्चों पर निपटना होगा। 
  • समग्रता की आवश्यकता: मानव विकास उत्पाद शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, सामाजिक मानदंड, राजनीतिक वातावरण, पर्यावरण की स्थिति एवं अन्य असंख्य महत्त्वपूर्ण कारकों का एक उत्पाद है, इसलिये केवल आर्थिक कारक पर केंद्रित होना उपयुक्त नहीं है। 
     HDP में सुधार इन सभी कारकों में सुधार के साथ ही घटित और प्रतिबिंबित होगा।
  • सतत् विकास लक्ष्यों के लिये प्रयास: आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं को कल्याण के बेहतर मापन की आवश्यकता है जो विकास का सही प्रतिबिंब प्राप्त करने के लिये पर्यावरण के क्षरण जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को भी ध्यान में रखे।  
    • इसलिये, आवश्यकता व्यापक और सतत् विकास की है।

निष्कर्ष

हमारा अंतिम लक्ष्य एक अधिक निष्पक्ष और न्यायसंगत समाज का निर्माण करना है जो आर्थिक रूप से संपन्न हो और नागरिकों को जीवन की एक सार्थक गुणवत्ता प्रदान कर सके।

जिस अर्थव्यवस्था में लोगों का कल्याण उसके केंद्र में होगा, वहाँ आर्थिक विकास बस एक और साधन होगा तथा जीडीपी केंद्रीय मानदंड नहीं रह जाएगा। वहाँ अर्थव्यवस्था का ध्यान कल्याण के अधिक वांछनीय और वास्तविक निर्धारकों की ओर स्थानांतरित होगा।

वर्तमान समय में भारत को स्वयं के लिये यह प्रतिबद्धता तय करनी चाहिये कि वह अपने HDP विकास दर को GDP विकास दर से अधिक उन्नत करेगा।

अभ्यास प्रश्न: ‘हमारा अंतिम लक्ष्य एक अधिक निष्पक्ष और न्यायसंगत समाज का निर्माण करना है जो आर्थिक रूप से संपन्न हो और नागरिकों को जीवन की एक सार्थक गुणवत्ता प्रदान कर सके।‘ GDP/GNP जैसे विद्यमान विकास संकेतकों के संबंध में इस कथन पर विचार कीजिये।

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