राज्य वित्त 2024-25 पर RBI की रिपोर्ट | 23 Dec 2024

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, कर संग्रहण में उछाल, सकल घरेलू उत्पाद, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन, केंद्र प्रायोजित योजनाएँ, राज्य माल एवं सेवा कर

मेन्स के लिये:

राज्यों की राजकोषीय स्थिति पर सब्सिडी का प्रभाव, सतत् विकास के लिये राजकोषीय अनुशासन, राज्य बजट

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) राज्य वित्त: 2024-25 के बजट का अध्ययन, विषयक रिपोर्ट जारी की, जिसमें राजकोषीय समेकन में राज्य सरकारों द्वारा की गई प्रगति पर प्रकाश डाला गया और साथ ही उच्च ऋण स्तर तथा बढ़ती सब्सिडी जैसी गंभीर चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला गया।

रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • महामारी के बाद राज्यों का प्रदर्शन:
    • बेहतर कर राजस्व: औसत कर संग्रहण में उछाल (आर्थिक विकास दर में परिवर्तन के प्रति कर राजस्व की अनुक्रियाशीलता) 0.86 (2013 से 2020 के दौरान) से बढ़कर 1.4 (2021-25 के दौरान) हो गई, जो कर संग्रह में बेहतर दक्षता को दर्शाती है।
      • उच्च कर राजस्व से राज्यों द्वारा राजमार्गों और पुलों सहित परिसंपत्ति निर्माण के लिये अधिक धनराशि आवंटित करने में सहायता प्राप्त हुई है।
    • पूंजीगत व्यय: राज्यों ने व्यय की गुणवत्ता में लगातार सुधार किया है, पूंजीगत व्यय 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 2.4 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 2.8 प्रतिशत हो गया तथा इसके लिये 2024-25 में जीडीपी का 3.1 प्रतिशत बजट किया गया है।
      • इससे विकास को बढ़ावा देने वाले निवेश के साथ व्यय की गुणवत्ता में सुधार लाने पर निरंतर ध्यान केंद्रित करने का संकेत मिलता है।
    • राजकोषीय अनुशासन: राज्यों का सकल राजकोषीय घाटा 2024-25 के लिये सकल घरेलू उत्पाद का 3.2% निर्धारित किया गया है, जो 2023-24 (2.9%) के स्तर में साधारण वृद्धि है।
      • राज्यों का राजस्व व्यय वित्त वर्ष 25 में बढ़कर 47.5 ट्रिलियन रुपए होने का अनुमान है, जो सकल घरेलू उत्पाद का 14.6% है, जबकि वित्त वर्ष 24 में यह 39.9 ट्रिलियन रुपए या सकल घरेलू उत्पाद का 13.5% था।
  • उधार पर निर्भरता: राज्यों की बाज़ार उधार पर निर्भरता बढ़ गई है, जो वित्त वर्ष 2025 में सकल राजकोषीय घाटे (GFD) का 79% था।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सकल बाज़ार उधारी 32.8% बढ़कर 10.07 ट्रिलियन रुपये हो गई।
  • उन्नत ऋण स्तर: राज्यों का ऋण-से-GDP अनुपात (आर्थिक उत्पादन की तुलना में ऋण का सापेक्ष माप) मार्च 2021 में GDP के 31.0% से घटकर मार्च 2024 में 28.5% हो गया, लेकिन मार्च 2019 में महामारी-पूर्व स्तर 25.3% से अधिक रहा।
    • राज्यों का ऋण स्तर राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन समिति द्वारा 2023 तक 60% तक ऋण-से-GDP अनुपात की सिफारिश से अधिक है (जिसमें केंद्र सरकार के लिये 40% और राज्य सरकारों के लिये 20%)।
    • अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और त्रिपुरा जैसे राज्यों ने उच्च राजकोषीय घाटे का अनुमान लगाया है, जबकि गुजरात तथा महाराष्ट्र जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में घाटा कम है।
    • विद्युत वितरण कंपनियाँ (DISCOM) राज्य की वित्तीय स्थिति पर दबाव बना रही हैं तथा इनका संचित घाटा वर्ष 2022-23 तक 6.5 लाख करोड़ रुपए (भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 2.4%) तक पहुँच गया।
  • राज्यों के बजट से संबंधित चिंताएँ:  
    • सब्सिडी का बढ़ता बोझ: विभिन्न राज्यों ने कृषि ऋण माफी, मुफ्त/सब्सिडी वाली सेवाएँ (जैसे- कृषि और घरों के लिये विद्युत, परिवहन, गैस सिलेंडर तथा किसानों, युवाओं एवं महिलाओं को नकद हस्तांतरण)” की घोषणा की है।
      • इन उपायों से महत्त्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढाँचे के लिये निर्धारित धनराशि के खत्म होने का जोखिम है।
      • महिलाओं के लिये आय हस्तांतरण (लगभग 2 लाख करोड़ रुपए, सकल घरेलू उत्पाद का ~0.6%) जैसी सब्सिडी योजनाएँ राज्य की वित्तीय स्थिति पर दबाव डालती हैं।
    • राजस्व सृजन: वित्त वर्ष 2025 में गैर-कर स्रोतों और केंद्रीय अनुदानों से राजस्व में कमी का अनुमान है।
    • राजकोषीय पारदर्शिता का अभाव: बजट से इतर देनदारियों की अपर्याप्त रिपोर्टिंग वास्तविक राजकोषीय स्थिति को अस्पष्ट कर देती है।

राज्य वित्त पर RBI की सिफारिशें क्या हैं?

  • ऋण समेकन: ऋण में कमी के लिये स्पष्ट, पारदर्शी और समयबद्ध मार्ग स्थापित करना। राजकोषीय जवाबदेही में सुधार के लिये देनदारियों की एक समान रिपोर्टिंग सुनिश्चित करना।
    • रिपोर्ट में "अगली पीढ़ी" के राजकोषीय नियमों का आह्वान किया गया है, जो राज्यों को आघातों से निपटने के लिये लचीलापन प्रदान करते हैं, साथ ही मध्यम अवधि की राजकोषीय स्थिरता सुनिश्चित करते हैं।
  • व्यय दक्षता: परिणाम-आधारित और जलवायु-संवेदनशील बजट पर ध्यान केंद्रित करना।
    • राज्य-विशिष्ट आवश्यकताओं के लिये संसाधनों को मुक्त करने और राजकोषीय तनाव को कम करने के लिये केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) को प्रभावी ढंग से युक्तिसंगत बनाना ।
  • सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाना: सब्सिडी को अधिक उत्पादक व्यय पर हावी होने से रोकने के लिये उसे नियंत्रित और अनुकूलित करना।
  • प्रभावी बाज़ार ऋण: राजकोषीय घाटे का प्रबंधन करने और वित्तीय कमज़ोरियों को न्यूनतम करने के लिये बाज़ार ऋण पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना।
  • राजस्व सृजन: SGST, स्टांप ड्यूटी और अन्य प्रमुख राजस्व स्रोतों के लिये संग्रह तंत्र को मज़बूत करना। बाज़ार ऋण पर निर्भरता कम करने के लिये गैर-कर राजस्व तथा अनुदान में वृद्धि करना।

नोट: सब्सिडी एक सरकारी लाभ है जो व्यक्तियों या संस्थाओं को प्रत्यक्ष रूप से (नकद भुगतान) या अप्रत्यक्ष रूप से (कर छूट) प्रदान किया जाता है, जिसका उद्देश्य भार को कम करना और सामाजिक या आर्थिक लक्ष्यों को बढ़ावा देना है।

सब्सिडी और राजकोषीय अनुशासन में संतुलन की क्या आवश्यकता है?

  • सब्सिडी का महत्त्व: 
    • मानव विकास: सब्सिडी, स्वास्थ्य देखभाल और आय हस्तांतरण जैसे कल्याणकारी कार्यक्रम सुभेद्द आबादी को सहायता प्रदान करते हैं। 
    • आर्थिक समानता: सब्सिडी धन का पुनर्वितरण करके आय असमानता को कम करने में मदद करती है, जो अधिक समावेशी विकास में योगदान दे सकती है।
      • सब्सिडी गरीबों पर बाज़ार की ताकतों के नकारात्मक प्रभाव को कम करने में मदद करती है तथा आर्थिक संकट के समय सुरक्षा कवच प्रदान करती है।
  • राजकोषीय अनुशासन का महत्त्व: 
    • स्थायी सार्वजनिक वित्त: उचित वित्तपोषण के बिना अत्यधिक कल्याणकारी व्यय से उच्च घाटा और सार्वजनिक ऋण बढ़ सकता है, जिससे दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता खतरे में पड़ सकती है।
      • राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने से सरकारी व्यय स्थायी रहता है तथा अत्यधिक घाटे से बचाव होता है।
    • निवेशकों का विश्वास: राजकोषीय अनुशासन बनाए रखना यह सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है कि बाज़ार और विदेशी निवेशक देश को एक विश्वसनीय आर्थिक साझेदार के रूप में देखते रहें। 
    • आर्थिक विकास: उत्पादक निवेश की कीमत पर कल्याणकारी व्यय पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करने से आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है तथा सतत् विकास के लिये उपलब्ध संसाधन कम हो सकते हैं।
    • सब्सिडी और राजकोषीय अनुशासन में संतुलन:
      • लक्षित कल्याण कार्यक्रम: किसानों के लिये प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-किसान) और कुशल सब्सिडी वितरण के लिये प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना जैसे लक्षित कल्याण व्यय, यह सुनिश्चित करते हैं कि संसाधन ज़रूरतमंदों तक पहुँचें, प्रभाव को अधिकतम करें और अपव्यय को न्यूनतम करें।
        • डिजिटल इंडिया और आधार से जुड़े लाभों के माध्यम से कल्याणकारी कार्यक्रमों को सुव्यवस्थित करने से सब्सिडी दक्षता में सुधार होता है, लीकेज कम होती है, तथा बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश के लिये संसाधन उपलब्ध होते हैं।
      • राजस्व वृद्धि: GST के माध्यम से कर आधार को मज़बूत करने से राजस्व संग्रह में वृद्धि होती है। उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI) जैसी पहलों का विकास, जो अतिरिक्त सब्सिडी के बजाय दीर्घकालिक आय प्रदान कर सकते हैं, कल्याण और निवेश दोनों के लिये राजकोषीय स्थान बनाता है।
      • आर्थिक स्थिरता: राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने, सार्वजनिक ऋण को कम करने और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है। 

निष्कर्ष

भारत के विकास पथ को बनाए रखने के लिये राजकोषीय अनुशासन के साथ सब्सिडी को संतुलित करना महत्त्वपूर्ण है। संसाधनों का कुशल आवंटन, कल्याणकारी व्यय और राजस्व सृजन में रणनीतिक सुधारों के साथ, एक स्थिर और समृद्ध अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: कल्याणकारी व्यय और राजकोषीय अनुशासन के बीच संतुलन बनाने में भारतीय राज्यों के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और उन्हें दूर करने के उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

Q1. निम्नलिखित में से कौन-सा अपने प्रभाव में सर्वाधिक मुद्रास्फीतिकारक हो सकता है? (2021)

(a) सार्वजनिक ऋण की चुकौती
(b) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये जनता से उधार लेना 
(c) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये बैंकों से उधार लेना 
(d) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये नई मुद्रा का सृजन करना

उत्तर: (d)


प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) समीक्षा समिति के प्रतिवेदन में सिफारिश की गई है कि वर्ष 2023 तक केंद्र एवं राज्य सरकारों को मिलाकर ऋण-जीडीपी अनुपात 60% रखा जाए, जिसमें केंद्र सरकार के लिये यह 40% तथा राज्य सरकारों के लिये यह 20% हो।
  2. राज्य सरकारों के GDP के 49% की तुलना में केंद्र सरकार के लिये GDP का 21% घरेलू देयताएँ हैं।
  3. भारत के संविधान के अनुसार, यदि किसी राज्य के पास केंद्र सरकार की बकाया देयताएँ हैं तो उसे कोई भी ऋण लेने से पहले केंद्र सरकार से सहमति लेना अनिवार्य है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न 3. निम्नलिखित में से किसको/किनको भारत सरकार के पूंजी बजट में शामिल किया जाता है? (2016)

  1. सड़कों, इमारतों, मशीनरी आदि जैसी परिसंपत्तियों के अधिग्रहण पर व्यय।
  2. विदेशी सरकारों से प्राप्त ऋण
  3. राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को अनुदत्त ऋण और अग्रिम

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)