मुस्लिम महिलाओं हेतु न्यूनतम विवाह योग्य आयु में वृद्धि | 12 Dec 2022

प्रिलिम्स के लिये:

महिलाओं हेतु न्यूनतम विवाह योग्य आयु में वृद्धि, बाल विवाह, जया जेटली टास्क फोर्स, महिला अधिकारिता और लैंगिक समानता।

मेन्स के लिये:

न्यूनतम विवाह आयु संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women- NCW) द्वारा मुस्लिम महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु को अन्य धर्मों के लोगों के समान करने के लिये दायर याचिका पर जवाब देने के लिये कहा।

विवाह हेतु न्यूनतम आयु कानूनी ढाँचा

  • पृष्ठभूमि:
    • भारत में विवाह की न्यूनतम आयु पहली बार शारदा अधिनियम, 1929 के रूप में जाने जाने वाले कानून द्वारा निर्धारित की गई थी। बाद में इसका नाम बदलकर बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम (Child Marriage Restraint Act- CMRA), 1929 कर दिया गया।
    • वर्ष 1978 में लड़कियों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिये 21 वर्ष करने के लिये CMRA में संशोधन किया गया था।
    • बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (Prohibition of Child Marriages Act- PCMA), 2006 नामक नए कानून में भी यही स्थिति बनी हुई है, जिसने CMRA, 1929 का स्थान लिया है।
  • वर्तमान:
    • हिंदुओं के लिये हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 लड़कियों के लिये न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिये न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करता है।
    • इस्लाम में नाबालिग की शादी जो तरुण अवस्था (प्यूबर्टी) प्राप्त कर चुकी है, वैध मानी जाती है।
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 भी क्रमशः महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 एवं 21 वर्ष निर्धारित करते हैं।
    • शादी की नई उम्र को लागू करने के लिये इन कानूनों में संशोधन किये जाने की उम्मीद है।
      • वर्ष 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिलाओं के लिये विवाह की कानूनी आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव दिया।

महिलाओं के कम उम्र में विवाह संबंधी मुद्दे:

  • मानवाधिकारों का उल्लंघन: बाल विवाह महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है और नीति निर्माताओं का इस पर ध्यान नहीं जाता है।
    • इन बुनियादी अधिकारों में शिक्षा का अधिकार, आराम और अवकाश का अधिकार, मानसिक या शारीरिक शोषण से सुरक्षा का अधिकार (बलात्कार एवं यौन शोषण सहित) शामिल हैं।
  • महिलाओं का अशक्तीकरण: चूँकि बालिकाएँ अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाती हैं, इसलिये वे आश्रित और शक्तिहीन बनी रहती हैं, जो लैंगिक समानता प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ी बाधा के रूप में कार्य करती है।
  • संबद्ध समस्याएँ: बाल विवाह के साथ ही किशोर गर्भावस्था एवं चाइल्ड स्टंटिंग, जनसंख्या वृद्धि, बच्चों के खराब लर्निंग आउटकम और कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी की हानि जैसे परिणाम भी जुड़ जाते हैं।
    • घर में किशोर पत्नियों का निम्न दर्जा आमतौर पर उन्हें लंबे समय तक घरेलू श्रम, बदतर पोषण और एनीमिया की समस्या, सामाजिक अलगाव, घरेलू हिंसा और घरेलू विषयों में निर्णय लेने की कम शक्तियों की ओर धकेलता है।
    • कमज़ोर शिक्षा, कुपोषण और कम आयु में गर्भावस्था बच्चों के जन्म के समय कम वजन का कारण बनती है, जिससे कुपोषण का अंतर-पीढ़ी चक्र बना रहता है।

निष्कर्ष:

  • विवाह संबंधी वर्तमान कानून आयु-केंद्रित हैं और किसी धर्म विशेष इसमें कोई अपवाद नहीं है और 'युवावस्था' मात्र के आधार पर वर्गीकरण का कोई वैज्ञानिक समर्थन नहीं है और न ही विवाह करने की क्षमता के साथ कोई प्रत्यक्ष संबंध है।
  • एक व्यक्ति जिसने तरुणावस्था प्राप्त कर ली है वह प्रजनन के लिये जैविक रूप से सक्षम हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उक्त व्यक्ति मानसिक या शारीरिक रूप से यौन क्रियाओं में संलग्न होने और बच्चे को जन्म देने के लिये पर्याप्त रूप से परिपक्व है।

स्रोत: द हिंदू