गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व | 18 Nov 2024

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रपति, प्रकाश पर्व, गुरु नानक देव, सिख धर्म, लोदी प्रशासन, निर्गुण शाखा, कबीर दास, सिख गुरु अर्जुन, गुरु अंगद, भक्ति आंदोलन, करतारपुर कॉरिडोर, स्वर्ण मंदिर

मेन्स के लिये:

गुरु नानक की शिक्षाएँ और आज के विश्व में उनकी प्रासंगिकता।

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व की पूर्व संध्या पर नागरिकों को बधाई दी तथा उनसे उनकी शिक्षाओं को अपनाने तथा समाज में एकता और समानता को बढ़ावा देने का आग्रह किया।

  • प्रकाश पर्व सिख धर्म के संस्थापक और समाज सुधारक गुरु नानक देव जी की जयंती पर मनाया जाता है।
  • इसे प्रकाश पर्व के रूप में इसलिये मनाया जाता है क्योंकि उन्होंने लोगों को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का प्रयास किया था।

गुरु नानक देव के विषय में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • जन्म और प्रारंभिक जीवन: गुरु नानक (1469-1539) का जन्म वर्ष 1469 में पाकिस्तान में लाहौर के पास तलवंडी गाँव में हुआ था।
    • वह 10 सिख गुरुओं में से प्रथम थे।  
    • उन्होंने लोदी प्रशासन में सुल्तानपुर में क्लर्क के रूप में कार्य किया।
  • आध्यात्मिक रहस्योद्घाटन: लगभग 30 वर्ष की आयु में, गुरु नानक को एक गहन आध्यात्मिक अनुभव हुआ और काली बेन नदी के पास उनका ईश्वर से सीधा साक्षात्कार हुआ, जिसके कारण उन्होंने घोषणा की कि "न तो कोई हिंदू है और न ही कोई मुसलमान।"
  • दार्शनिक प्रेरणा: वे भक्ति आंदोलन की निर्गुण शाखा के समर्थक थे और कबीर दास से प्रभावित थे। उन्होंने "नाम जपना" जैसे आध्यात्मिक अभ्यासों पर ज़ोर दिया, यानी ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करने के लिये ईश्वर के नाम का दोहराव।
  • शिक्षाएँ और यात्राएँ: उन्होंने अपने मुस्लिम साथी मरदाना के साथ अपना संदेश फैलाते हुए पूरे भारत और मध्य पूर्व में व्यापक रूप से यात्रा की।
  • समुदाय और विरासत: वह करतारपुर में बस गए और पहला सिख समुदाय स्थापित किया जहाँ शिष्य एक साथ रहते थे तथा पूजा करते थे।
  • उन्होंने समुदाय का नेतृत्व करने के लिये गुरु अंगद (भाई लहना) को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

भक्ति आंदोलन

  • भक्ति आंदोलन ने मोक्ष प्राप्ति के लिये व्यक्तिगत रूप से कल्पित सर्वोच्च ईश्वर के प्रति भक्तिपूर्ण समर्पण का समर्थन किया।
  • भक्ति की अवधारणा: श्वेताश्वतर उपनिषद में भक्ति का अर्थ केवल किसी भी प्रयास में भागीदारी, समर्पण और प्रेम है।
    • भगवद गीता ईश्वर में अटूट विश्वास रखने के महत्त्व पर बल देती है। 
  • उत्पत्ति: भक्ति आंदोलन दक्षिण भारत में 7 वीं से 8 वीं शताब्दी के दौरान नयनारों (शिव के भक्त) और अलवारों (विष्णु के भक्त) द्वारा शुरू हुआ।
    • यह आंदोलन दक्षिण भारत से उत्तर भारत तक फैल गया, जिसमें संतों द्वारा अपनी शिक्षाओं के संप्रेषण के लिये स्थानीय भाषाओं के प्रयोग से सहायता मिली।
  • सामाजिक और धार्मिक सुधार: भक्ति संतों ने जाति, वर्ग या धर्म की परवाह किये बिना सभी मनुष्यों की समानता का उपदेश दिया।
  • प्रमुख भक्ति संत: भक्ति आंदोलन से जुड़े संतों में रामदास, मीराबाई, तुलसीदास, नामदेव, तुकाराम, रामानुज, कबीर, नानक और अन्य शामिल हैं।
    • कबीर और गुरु नानक ने हिंदू तथा इस्लामी दोनों परंपराओं से प्रेरणा लेकर हिंदुओं मुसलमानों के बीच की खाई को पाटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गुरु नानक की शिक्षाएँ क्या हैं?

  • एक ओंकार (एकेश्वरवाद): गुरु नानक ने इस बात पर बल दिया कि ईश्वर एक हैं जो सर्वव्यापी हैं और सभी मनुष्य उसी एक ईश्वर की संतान हैं।
  • नाम जप (ईश्वर का नाम जपना): उन्होंने अंधकार को दूर करने, शांति और खुशी लाने तथा दया एवं प्रेम के मूल्यों को विकसित करने के लिए ईश्वर के नाम के स्मरण और जप करने को महत्त्व दिया।
  • ईमानदारी से कार्य करना: गुरु नानक ने ईमानदारी से कार्य करने के साथ उचित साधनों के माध्यम से कमाई करने के महत्त्व पर बल दिया। उन्होंने ईमानदारी से किये गए कार्य को संतुष्टि की भावना और आत्मविश्वास का पूरक बताया।
  • वंड छको (वितरण और सेवा): उन्होंने सामाजिक समानता और करुणा को बढ़ावा देने के क्रम में अपनी आय के एक भाग को ज़रूरतमंदों के बीच बाँटने की प्रथा को महत्त्व दिया।
  • अन्य धर्मों के प्रति दृष्टिकोण: गुरु नानक सभी धर्मों का सम्मान करते थे और मानते थे कि सभी मनुष्य समान हैं तथा वे धार्मिक मतभेदों के आधार पर निर्णय को अस्वीकार करते थे। 
    • वेद, कुरान और बाइबल जैसे ग्रंथों की गहरी समझ के साथ उन्होंने प्रत्येक धर्म के प्रति समान सम्मान को महत्त्व दिया।
  • मूर्ति पूजा: नानक ने मूर्ति पूजा को अस्वीकार किया। उनका मानना ​​था कि भगवान को मूर्तियों में नहीं पाया जा सकता है। उन्होंने सिखाया कि भगवान अनंत हैं तथा वह मानवीय शब्दों, प्रतीकों या रूपों से परे हैं और उन्हें मानव निर्मित मूर्तियों द्वारा परिभाषित नहीं किया जा सकता है।
    • गुरु नानक, भक्ति आंदोलन की निर्गुण ('निराकार ईश्वर') शाखा के मुख्य प्रस्तावक थे।
  • मोक्ष: गुरु नानक का मानना ​​था कि अच्छे कर्म आत्मा को शाश्वत आत्मा में विलीन होने में मदद करते हैं जबकि बुरे कर्म इसमें बाधा डालते हैं। 
    • ईश्वर के नाम का ध्यान मोक्ष (जिसका अर्थ है पुनर्जन्म से मुक्ति और ईश्वर के साथ मिलन) की कुंजी है। 
  • भाईचारा और समानता: गुरु नानक ने जाति, धर्म या वर्ग के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव का विरोध किया।
    • वह सभी लोगों के बीच अंतर्निहित समानता में विश्वास करते थे और उपदेश देते थे कि सभी को समान प्रेम और सम्मान मिलना चाहिये।
  • भौतिकवाद से अलगाव: उन्होंने भौतिक संपत्ति के प्रति आसक्ति के खिलाफ वकालत की तथा एक न्यायपूर्ण एवं आदर्श समाज के निर्माण के क्रम में आध्यात्मिक विकास के साथ ईश्वर के प्रति समर्पण को प्रोत्साहन दिया।
  • महिलाओं के प्रति सम्मान: गुरु नानक ने महिलाओं की समानता और सम्मान को बल देने के साथ उनकी गरिमा एवं उनके साथ समान व्यवहार का समर्थन किया।

गुरु नानक देव जी के अनमोल वचन

  • यदि आप अपना मन शांत रख सकें तो आप दुनिया जीत लेंगे।
  • केवल वही बोलें जिससे आपको सम्मान मिले।
  • अपनी आय के दसवें हिस्से को दान करना चाहिये तथा अपने समय के दसवें हिस्से को ईश्वर की भक्ति में लगाना चाहिये।
  • हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहें क्योंकि जब आप किसी की मदद करते हैं तो भगवान आपकी मदद करते हैं।
  • केवल वही व्यक्ति ईश्वर पर विश्वास कर सकता है जिसे स्वयं पर विश्वास है।

सिख गुरु और उनके प्रमुख योगदान

गुरु

अवधि

प्रमुख योगदान

गुरु नानक देव

1469-1539

सिख धर्म के संस्थापक; गुरु का लंगर शुरू किया (सामुदायिक रसोई); बाबर के समकालीन; 550 वीं जयंती करतारपुर गलियारे के साथ मनाई गई।

गुरु अंगद

1504-1552

गुरु-मुखी लिपि का आविष्कार; गुरु का लंगर (सामुदायिक रसोई) की प्रथा को लोकप्रिय बनाया।

गुरु अमर दास

1479-1574

आनंद कारज विवाह की शुरुआत की, सती प्रथा और पर्दा प्रथा को समाप्त किया, अकबर के समकालीन थे।

गुरु राम दास

1534-1581

वर्ष 1577 में अमृतसर की स्थापना की; स्वर्ण मंदिर का निर्माण शुरू किया।

गुरु अर्जुन देव

1563-1606

वर्ष 1604 में आदि ग्रंथ की रचना की; स्वर्ण मंदिर का निर्माण पूरा किया गया; जहाँगीर द्वारा इसका निर्माण कराया गया।

गुरु हरगोबिंद

1594-1644

सिखों को एक सैन्य समुदाय में परिवर्तित किया; अकाल तख्त (सिख धर्म की धार्मिक सत्ता का मुख्य केंद्र) की स्थापना की; जहाँगीर और शाहजहाँ के विरुद्ध संघर्ष किया।

गुरु हर राय

1630-1661

औरंगजेब के साथ शांति को बढ़ावा दिया; धर्मप्रचार के कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया।

गुरु हरकिशन

1656-1664

सबसे युवा गुरु; इस्लाम विरोधी ईशनिंदा के संबंध में औरंगजेब द्वारा इन्हें अपने समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया गया।

गुरु तेग बहादुर

1621-1675

आनंदपुर साहिब की स्थापना की ।

गुरु गोबिंद सिंह

1666-1708

वर्ष 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की; इन्होंने एक नया संस्कार "पाहुल" (Pahul) शुरू किया, ये मानव रूप में अंतिम सिख गुरु थे और इन्होंने ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को सिखों के गुरु के रूप में नामित किया

निष्कर्ष:

एकता, समानता और भक्ति पर केंद्रित गुरु नानक की शिक्षाओं ने सिख धर्म एवं भक्ति आंदोलन को गहराई से प्रभावित दिया। एकेश्वरवाद, सभी धर्मों के प्रति सम्मान एवं सामाजिक सुधारों से संबंधित उनके दृष्टिकोण से लाखो लोग प्रेरित हुए हैं। शांति, प्रेम एवं सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने पर केंद्रित गुरु नानक की शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: गुरु नानक की प्रमुख शिक्षाओं को बताते हुए समकालीन समाज में उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित भक्ति संतों पर विचार कीजिये: (2013)

  1. दादू दयाल
  2. गुरु नानक
  3. त्यागराज

इनमें से कौन उस समय उपदेश देता था/देते थे जब लोदी वंश का पतन हुआ तथा बाबर सत्तारुढ़ हुआ?

(a) केवल 1 और 3

(b) केवल 2

(c) केवल 2 और 3

(d) केवल 1 और 2

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न: भक्ति साहित्य की प्रकृति एवं भारतीय संस्कृति में इसके योगदान का मूल्यांकन कीजिये। (2021)