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भारतीय अर्थव्यवस्था

विज्ञान क्षेत्र के नोबेल पुरस्कारों में भारत का निम्न प्रदर्शन

  • 21 Oct 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नोबेल पुरस्कार, सी. वी. रमन, गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GEM), पद्म श्री, भारत रत्न, नाभिकीय संलयन परियोजनाएँ, वायरलेस संचार, रमन प्रकीर्णन प्रभाव, होमी भाभा, सत्येंद्र नाथ बोस, राइबोसोम, व्हाइट ड्वार्फ, अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, वैभव फेलोशिप 

मेन्स के लिये:

भारत में अनुसंधान वित्तपोषण और वैज्ञानिक विकास की स्थिति।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

  • भारत में काम करने वाले किसी भी भारतीय को 94 वर्षों में भौतिकी, रसायन विज्ञान या चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार नहीं मिला है।
  • भारत में नोबेल पुरस्कारों की कमी को प्राय: भारतीय विज्ञान की स्थिति का प्रतिबिंब माना जाता है, हालाँकि अन्य कारक भी इसमें भूमिका निभाते हैं।
  • विज्ञान में नोबेल पुरस्कार पाने वाले अंतिम भारतीय सी. वी. रमन थे, जिन्हें वर्ष 1930 में भौतिकी में प्रकाश के प्रकीर्णन (Scattering of Light) के लिये नोबेल पुरस्कार मिला था।  

विज्ञान नोबेल पुरस्कारों में भारत के खराब प्रदर्शन के क्या कारण हैं? 

  • अनुसंधान के लिये कम सार्वजनिक वित्तपोषण: भारतीय सरकार वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये अपर्याप्त वित्तपोषण उपलब्ध कराती है, जिससे अभूतपूर्व कार्यों के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
    • भारत में पिछले दशक में बुनियादी अनुसंधान के लिये प्रत्यक्ष वित्तपोषण सकल घरेलू उत्पाद के 0.6-0.8% के निम्न स्तर पर रहा है, जो अन्य ब्रिक्स देशों की तुलना में काफी कम है। 
    • वास्तव में अनुसंधान एवं विकास पर भारत का कुल व्यय 2005 और 2023 के बीच सकल घरेलू उत्पाद के 0.82% से घटकर 0.64% रह गया है।
  • अत्यधिक नौकरशाही: भारत के शोध संस्थानों में नौकरशाही की लालफीताशाही नवाचार में बाधा उत्पन्न करती है और वैज्ञानिक प्रगति को धीमा कर देती है। उदाहरणार्थ: 
    • IIT दिल्ली में उपकरण मंगाने में 11 महीने का समय लगता है।
    • IIT दिल्ली को दिया गया 150 करोड़ रुपए का GST नोटिस इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार कर नीतियाँ शैक्षणिक संस्थानों पर वित्तीय दबाव उत्पन्न करती हैं।
    • गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GEM) सरकारी संस्थाओं के लिये अनिवार्य खरीद प्लेटफॉर्म का दायित्व आरोपित करता है।
  • लघु शोधकर्त्ता पूल/समूह: भारत में इसकी जनसंख्या के सापेक्ष शोधकर्त्ताओं की संख्या अनुपातहीन रूप से कम है।
    • भारत में शोधकर्त्ताओं की संख्या वैश्विक औसत से पाँच गुना कम है, जिससे नोबेल पुरस्कार के संभावित दावेदारों की संख्या कम हो रही है।
  • व्यक्तिगत प्रतिभा पर निर्भरता: एक मज़बूत अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र की अनुपस्थिति में भविष्य में भारत की नोबेल पुरस्कार जीतने की संभावनाएँ व्यवस्थित समर्थन या बुनियादी ढाँचे के बजाय काफी हद तक वैज्ञानिकों की व्यक्तिगत प्रतिभा पर निर्भर हैं।
  • शोध संस्थानों में विवेकाधिकार: कथित तौर पर कई शोध संस्थानों के प्रमुख आवश्यक शोध पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, इन शक्तियों का उपयोग व्यक्तिगत कॅरियर विकास (जैसे कि पद्म श्री या भारत रत्न जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार हासिल करना या सेवानिवृत्ति के बाद अपने कार्यकाल को बढ़ाना) के लिये करते हैं
  • स्पष्ट अनुसंधान का अभाव: कई वैज्ञानिक पुराने या अप्रासंगिक विषयों पर शोध करते हैं, जो अक्सर संयुक्त राज्य अमेरिका या यूरोपीय संघ में हुए असफल प्रयोगों पर आधारित होते हैं, जिनका भारत में कोई व्यावहारिक अनुप्रयोग नहीं है। 
    • उदाहरण के लिये, उच्च ऊर्जा कण त्वरक या जटिल परमाणु संलयन परियोजनाओं के लिये जल प्रौद्योगिकियों एवं कृषि नवाचार की उपेक्षा करना।
  • गुणवत्ता की अपेक्षा मात्रा पर ध्यान: सरकारी वित्तपोषित अनुसंधान संस्थानों में किये जाने वाले अधिकांश अनुसंधान सार्थक नवाचार के बजाय "संख्या के स्तर पर" प्रकाशन जारी करने पर केंद्रित हैं।
  • विदेशी प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता: मूल समाधान विकसित करने के बजाय भारतीय वैज्ञानिक अक्सर विदेशों में विकसित प्रौद्योगिकियों की नकल करने या उन्हें अपनाने में ही लगे रहते हैं, जिसके लिये गहन वैज्ञानिक नवाचार या योग्यता की आवश्यकता नहीं होती है।
  • निजी क्षेत्र की सफलता पर अत्यधिक निर्भरता: कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन विकास में हाल की सफलताएँ, मुख्य रूप से निजी क्षेत्र की प्रयोगशालाओं द्वारा हासिल की गई हैं जो सरकार द्वारा वित्तपोषित अनुसंधान संस्थानों एवं सफल वैज्ञानिक सफलताओं के बीच एक विसंगति को दर्शाती है। 
    • इस निर्भरता से वैज्ञानिक प्रगति में सरकारी प्रयोगशालाओं की विश्वसनीयता और आवश्यकता में कमी आती है।
  • अनुभव से पर्याप्त लाभ न उठा पाना: यहाँ तक ​​कि जब विदेश से प्रशिक्षित वैज्ञानिक भारत लौटते हैं तो वे अक्सर अस्वस्थ संस्थागत वातावरण के कारण अपनी क्षमता के अनुरूप कार्य नहीं कर पाते हैं।
    • वे उत्कृष्टता प्राप्त करने या प्रमुख वैज्ञानिक चुनौतियों से निपटने के बजाय अप्रासंगिक शोध प्रकाशित करने और पदोन्नति पाने के चक्र में फँस जाते हैं।
  • अवसरों का लाभ न उठा पाना: कई उल्लेखनीय भारतीय वैज्ञानिकों ने अभूतपूर्व कार्य किया, लेकिन उन्हें या तो अनदेखा कर दिया गया या नोबेल के लिये नामांकित नहीं किया गया। जैसे:
    • जगदीश चंद्र बोस: इन्होने वर्ष 1895 में वायरलेस संचार का प्रदर्शन किया, लेकिन उनके कार्य को उस स्तर पर पहचान नहीं मिल सकी, जबकि वर्ष 1909 में इसी कार्य के लिये गुग्लिल्मो मार्कोनी और फर्डिनेंड ब्राउन को नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
    • के.एस. कृष्णन: इन्होने सी.वी. रमन के साथ मिलकर रमन प्रकीर्णन प्रभाव की खोज की, लेकिन उन्हें कभी नोबेल के लिये नामांकित नहीं किया गया।
    • ECG सुदर्शन: वर्ष 1979 और 2005 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार ऐसे कार्यों के लिये दिये गए थे जिनमें सबसे मौलिक योगदान सुदर्शन का था लेकिन उन्हें पुरस्कार के लिये नजरअंदाज कर दिया गया था। 
      • ECG सुदर्शन ने मूलभूत कणों के बीच की विद्युत चुंबकीय अंतर्क्रिया पर कार्य किया।
  • कई भारतीय वैज्ञानिकों (जैसे मेघनाद साहा, होमी भाभा, सत्येंद्र नाथ बोस, जीएन रामचंद्रन और टी शेषाद्रि) को नोबेल पुरस्कार के लिये कई बार नामांकित किया गया, लेकिन उन्हें पुरस्कार नहीं मिल पाया।
  • नोबेल पुरस्कारों में पश्चिमी प्रभुत्व: नोबेल पुरस्कारों पर अमेरिका और यूरोप के वैज्ञानिकों का प्रभुत्व रहा है, जिनके पास मज़बूत वैज्ञानिक बुनियादी ढाँचा और अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र है।
    • भौतिकी, रसायन विज्ञान या चिकित्सा के लिये नोबेल पुरस्कार जीतने वाले 653 लोगों में से 150 से ज़्यादा यहूदी समुदाय से (जो कि काफी उच्च अनुपात है) हैं लेकिन इज़राइल को विज्ञान में केवल चार नोबेल पुरस्कार मिले हैं।

विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले भारतीय मूल के वैज्ञानिक:

  • हरगोविंद खुराना (वर्ष 1968, चिकित्सा में): आनुवंशिक कोड और उसके प्रोटीन संश्लेषण कार्य को डिकोड करने के लिये।
  • सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर (वर्ष 1983, भौतिकी में): तारों की संरचना और विकास के लिये महत्त्वपूर्ण भौतिक प्रक्रियाओं के सैद्धांतिक अध्ययन के लिये।
    • उन्होंने दर्शाया कि जब एक निश्चित आकार के तारों का हाइड्रोजन ईंधन समाप्त होने लगता है, तो वह एक सघन, चमकदार तारे में परिवर्तित हो जाता है जिसे सफेद बौना तारा के रूप में जाना जाता है।
  • वेंकटरमन रामकृष्णन (वर्ष 2009, रसायन विज्ञान में): राइबोसोम की संरचना और कार्य के अध्ययन के लिये

अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु प्रमुख सरकारी पहलें क्या हैं?

विज्ञान के नोबेल पुरस्कारों में भारत के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • अनुसंधान एवं विकास हेतु सार्वजनिक वित्तपोषण में वृद्धि: भारत सरकार को अनुसंधान एवं विकास के लिये आवंटित सकल घरेलू उत्पाद का प्रतिशत बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध होना चाहिये, जिसका उद्देश्य निकट भविष्य में कम-से-कम 1.5% तक पहुँचना है।
  • उच्च प्रभाव वाले अनुसंधान को प्रोत्साहित करना: उच्च जोखिम, उच्च लाभ वाले अनुसंधान पहलों को बढ़ावा देना और वित्तपोषित करना, जिससे क्रांतिकारी प्रौद्योगिकियों का विकास हो सके।
  • मूल्यांकन प्रक्रियाओं में सुधार: अनुसंधान प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिये प्रासंगिक विशेषज्ञता वाले  समीक्षकों के विविध पैनल बनाना।
    • इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि पूर्वाग्रहों या गलतफहमियों के कारण मूल्यवान विचारों की अनदेखी न की जाए।
  • शोधकर्त्ता पूल का विस्तार: STEM शिक्षा को बढ़ावा देने और उच्च शिक्षा में निवेश करने से शोधकर्त्ताओं के एक बड़े और अधिक कुशल पूल को विकसित करने में सहायता मिल सकती है। 
  • अनुसंधान संस्थानों में सुधार: यह सुनिश्चित करना कि वित्तपोषण और अवसरों का आवंटन व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा के बजाय योग्यता और संभावित सामाजिक प्रभाव के आधार पर किया जाए।
  • सार्वजनिक-निज़ी भागीदारी का लाभ उठाना: अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ाने और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये सरकारी अनुसंधान संस्थानों और निजी क्षेत्र की फर्मों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाना।
  • वैज्ञानिक प्रतिभा को मान्यता देना: उत्कृष्ट वैज्ञानिक योगदान के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार कार्यक्रम स्थापित करना, ताकि क्रांतिकारी कार्यों के लिये और अधिक महत्त्वपूर्ण प्रयासों को प्रोत्साहित किया जा सके।
  • वैश्विक सहयोग को मज़बूत करना: भारतीय वैज्ञानिकों को अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान समुदायों के साथ सहयोग करने, ज्ञान और संसाधनों को साझा करने के लिये प्रोत्साहित करना ताकि वैश्विक मंच पर भारतीय अनुसंधान की प्रतिष्ठा बढ़ाई जा सके।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भौतिकी, रसायन विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने में भारतीय वैज्ञानिकों की सीमित सफलता के कारणों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रारंभिक परीक्षा 

प्रश्न: निम्नलिखित में से किस वैज्ञानिक ने अपने बेटे के साथ भौतिकी का नोबेल पुरस्कार साझा किया? (2008)

(a) मैक्स प्लैंक
(b) अल्बर्ट आइंस्टीन
(c) विलियम हेनरी ब्रैग
d) एनरिको फर्मिक

उत्तर: (c)


प्रश्न. नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक जेम्स डी. वाटसन किस क्षेत्र में अपने काम के लिये जाने जाते हैं? (2008)

(a) धातु विज्ञान
(b) मौसम विज्ञान
(c) पर्यावरण संरक्षण
(d) आनुवंशिकी

उत्तर: (d)

मेन्स

प्रश्न. वर्ष 1990 के दशक में ब्लू एलईडी के आविष्कार के लिये अकासाकी, अमानो और नाकामुरा को संयुक्त रूप से वर्ष 2014 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। इस आविष्कार ने मनुष्य के दैनिक जीवन को कैसे प्रभावित किया है? (वर्ष 2021)

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