भारतीय राजव्यवस्था
वैवाहिक विवाद में अंतिम विकल्प के रूप में पुलिस
- 21 May 2024
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, विश्व आर्थिक मंच, ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2023, भारतीय न्याय संहिता, 2023, दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961, वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) मेन्स के लिये:वैवाहिक विवाद में अंतिम विकल्प के रूप में पुलिस, घरेलू हिंसा में योगदान देने वाले कारक, वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वैवाहिक समस्याओं का सामना कर रहे परिवारों को सावधानी बरतने की सलाह देते हुए कहा है कि पुलिस के पास जाना उनके लिये "अंतिम विकल्प" होना चाहिये।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या हैं?
- परिचय:
- सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध पति द्वारा दायर याचिका पर निर्णय सुनाते हुए कुछ टिप्पणियाँ कीं, जिसमें उसके विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।
- सर्वोच्च न्यायालय केवल "क्रूरता और उत्पीड़न के वास्तविक मामलों" में पुलिस के हस्तक्षेप का उपयोग करने में सावधानी बरतने की सलाह देता है।
- टिप्पणियाँ:
- यह निर्णय भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (घरेलू क्रूरता) के यांत्रिक अनुप्रयोग के विरुद्ध चेतावनी देता है।
- एक "पूर्ण" घरेलू हिंसा के मामले में आपराधिक धमकी या मामूली परेशानियों से परे क्षति पहुँचाने जैसे तत्त्वों की आवश्यकता होती है।
- न्यायालय ने संसद से भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 और 86 (3 वर्ष तक की सज़ा) (IPC की धारा 498A के समान) की समीक्षा करने का आग्रह किया।
- तलाक को बच्चे के पालन-पोषण के लिये हानिकारक माना जाता है, विशेष रूप से जब कानूनी प्रक्रियाओं के कारण जल्दबाज़ी की जाती है।
- यह निर्णय उच्च न्यायालयों को वैवाहिक मुद्दों से उत्पन्न आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की याचिका पर निर्णय लेने से पूर्व सभी पहलुओं और परिस्थितियों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
नोट:
- मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध को IPC की धारा 377 के तहत "बलात्कार" नहीं माना जाएगा क्योंकि ऐसे मामले में पत्नी की सहमति महत्त्वहीन हो जाती है क्योंकि वह उससे विवाहित थी।
- एक पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाते हुए दर्ज़ कराई गई FIR को न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया।
- हालाँकि वैवाहिक बलात्कार IPC में अपराध नहीं है, फिर भी केरल उच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में फैसला सुनाया कि वैवाहिक बलात्कार पति द्वारा पत्नी के प्रति क्रूरता है और क्रूरता के दायरे में यह तलाक का आधार है।
वैवाहिक विवादों को हल करने हेतु अन्य मौजूदा उपाय क्या हैं?
- वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution- ADR) के तहत विभिन्न तंत्र वैवाहिक विवादों के यथाशीघ्र समाधान में सहायता कर सकते हैं:
- मध्यस्थता: एक तटस्थ तृतीय पक्ष वैवाहिक और पारिवारिक विवादों के संबंध में पारस्परिक रूप से सहमत समाधान तक पहुँचने के लिये पति-पत्नी के बीच बातचीत एवं समझौते की सुविधा प्रदान करता है।
- के. श्रीनिवास राव बनाम डी.ए. दीपा मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने वैवाहिक विवादों में मध्यस्थता पर ज़ोर दिया।
- सुलह: मध्यस्थता के समान, सुलहकर्त्ता भी समाधान प्रस्तावित कर सकता है और युग्म को एक समझौते की ओर मार्गदर्शित कर सकता है।
- माध्यस्थम्: यहाँ दोनों पक्षों द्वारा चुना गया एक निजी मध्यस्थ तर्क सुनता है और विवाद से संबंधित बाध्यकारी निर्णय देता है।
- मध्यस्थता: एक तटस्थ तृतीय पक्ष वैवाहिक और पारिवारिक विवादों के संबंध में पारस्परिक रूप से सहमत समाधान तक पहुँचने के लिये पति-पत्नी के बीच बातचीत एवं समझौते की सुविधा प्रदान करता है।
- इसके अतिरिक्त विभिन्न कानूनी संस्थान विवाह की अवधारणा में भावनाओं और सामाजिक वर्जनाओं जैसे कारकों की भागीदारी के कारण न्याय प्रदान करने के अधिक प्रभावी तरीके के रूप में वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution- ADR) प्रदान करते हैं।
- 1984 के परिवार न्यायालय अधिनियम द्वारा स्थापित परिवार न्यायालय विवाह और पारिवारिक मामलों तथा उससे संबंधित विवादों के सुलह एवं त्वरित निपटान को बढ़ावा देते हैं।
- ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 के तहत स्थापित ग्राम न्यायालय भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में वैवाहिक विवादों तक त्वरित और सीधी पहुँच प्रदान करते हैं।
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 भी पारिवारिक विवादों में सुलह को प्रोत्साहित करते हैं।
आगे की राह
- संसद को भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 और 86 की समीक्षा पर विचार करना चाहिये ताकि भविष्य इसके दुरुपयोग या फर्ज़ी मामलों को रोका जा सके।
- वैवाहिक विवादों से संबंधित मामलों में पुलिस के हस्तक्षेप को कम करने के लिये कानूनी कार्रवाई से पूर्व सुलह के प्रयासों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिये।
- संवेदनशील वैवाहिक मुद्दों को संभालने में मध्यस्थों और सुलहकर्त्ताओं के उचित प्रशिक्षण द्वारा ADR तंत्र को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- खाप पंचायतों (जाति या सामुदायिक समूहों) जैसे स्थानीय एवं अनियमित ADR तंत्र को विनियमित और सुधारने की आवश्यकता है, जो अर्द्ध-न्यायिक निकायों के रूप में कार्य करते हैं तथा संवेदनशील वैवाहिक मुद्दों में भी सदियों पुराने रीति-रिवाज़ों के आधार पर कठोर दंड देते हैं।
- शांतिपूर्ण विवाद समाधान के लिये कानूनी अधिकारों और ADR विकल्पों के बारे में जन जागरूकता पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
- वैवाहिक कलह का सामना कर रहे जोड़ों को सुलभ मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने, संचार और संघर्ष समाधान कौशल को बढ़ावा देने के लिये उचित तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी वैवाहिक विवादों के प्रति सूक्ष्म दृष्टिकोण पर आधारित है। यह जोड़ों को तत्काल पुलिस हस्तक्षेप या आपराधिक कार्यवाही पर सुलह करने और सहनशीलता को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित करता है। क्रूरता के वास्तविक मामलों को स्वीकार करते हुए, न्यायालय का उद्देश्य कानूनों के दुरुपयोग को रोकना तथा पति-पत्नी और बच्चों दोनों की भलाई की रक्षा करना है।
दृष्टि मुख्य प्रश्न: प्रश्न. वैवाहिक मामलों में पुलिस की भागीदारी पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों पर चर्चा कीजिये। इसके अलावा भारत में वैवाहिक विवादों को सुलझाने के अन्य मौजूदा तरीकों का भी उल्लेख कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, गत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. प्रायः समाचारों में देखी जाने वाली 'बीजिंग घोषणा और कार्रवाई मंच (बीजिंग डिक्लरेशन ऐंड प्लैटफॉर्म फॉर ऐक्शन)' निम्नलिखित में से क्या है? (2015) (a) क्षेत्रीय आतंकवाद से निपटने की एक कार्यनीति (स्ट्रैटजी), शंघाई सहयोग संगठन (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन) की बैठक का एक परिणाम उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी, ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइए। (2014) प्रश्न. भारत में एक मध्यम-वर्गीय कामकाज़ी महिला की अवस्थिति को पितृतंत्र (पेट्रिआर्की) किस प्रकार प्रभावित करता है? (2014) |