प्रारंभिक परीक्षा
परिवार न्यायालय (संशोधन) विधेयक, 2022
- 28 Jul 2022
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हाल ही में लोकसभा ने परिवार न्यायालय (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित किया, जो हिमाचल प्रदेश और नगालैंड में पारिवारिक न्यायालयों की स्थापना के लिये परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 में संशोधन करने का प्रयास करता है।
परिवार न्यायालय एक्ट 1984:
- पारिवारिक न्यायालयों की स्थापना:
- पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 को पारिवारिक न्यायालयों की स्थापना के लिये अधिनियमित किया गया था ताकि सुलह को बढ़ावा दिया जा सके और विवाह तथा पारिवारिक मामलों एवं संबंधित विवादों का त्वरित निपटारा सुनिश्चित किया जा सके।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति:
- राज्य सरकार, उच्च न्यायालय की सहमति से एक या अधिक व्यक्तियों को परिवार न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकती है।
- समाज कल्याण एजेंसियों का संघ:
- राज्य सरकार निम्नलिखित के लिये पारिवारिक न्यायालय की व्यवस्था कर सकती है:
- समाज कल्याण में लगे संस्थान या संगठन।
- परिवार के कल्याण को बढ़ावा देने में पेशेवर रूप से लगे व्यक्ति।
- समाज कल्याण के क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति।
- कोई अन्य व्यक्ति जिसका परिवार न्यायालय के साथ जुड़ाव इस अधिनियम के उद्देश्यों के अनुसार अपने अधिकार क्षेत्र का अधिक प्रभावी ढंग से प्रयोग करने में सक्षम होगा।
- राज्य सरकार निम्नलिखित के लिये पारिवारिक न्यायालय की व्यवस्था कर सकती है:
परिवार न्यायालय (संशोधन) विधेयक:
- यह 15 फरवरी, 2019 से हिमाचल प्रदेश राज्य में और 12 सितंबर, 2008 से नगालैंड राज्य में परिवार न्यायालय की स्थापना के लिये प्रावधान करना चाहता है।
- यह परिवार न्यायालय (संशोधन) अधिनियम, 2022 के प्रारंभ होने से पहले हिमाचल प्रदेश और नगालैंड की राज्य सरकारों और उन राज्यों के परिवार न्यायालय द्वारा किये गए उक्त अधिनियम के तहत सभी कार्यों को पूर्वव्यापी रूप से मान्यता प्रदान करने के लिये एक नई धारा 3ए सम्मिलित करना चाहता है।
- विधेयक के अनुसार, परिवार न्यायालय के जज की नियुक्ति के सभी आदेश और अधिनियम के तहत ऐसे जज की पोस्टिंग, प्रमोशन या ट्रांसफर भी दोनों राज्यों में मान्य होंगे।
संशोधन की आवश्यकता:
- 26 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में स्थापित और कार्यरत कुल 715 परिवार न्यायालय हैं, जिनमें से हिमाचल प्रदेश राज्य में तीन परिवार न्यायालय और नगालैंड राज्य में दो परिवार न्यायालय शामिल हैं।
- हालाँकि हिमाचल और नगालैंड के लिये इन राज्यों में उक्त अधिनियम को लागू करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी नहीं की गई थी।
- हिमाचल प्रदेश राज्य में पारिवार न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र की कमी के मुद्दे को हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई है।
- यह कहा गया था कि चूँकि केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश राज्य में परिवार न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने के लिये कोई अधिसूचना जारी नहीं की है, ऐसे न्यायालय अधिकार क्षेत्र के बिना कार्य कर रहे हैं और उक्त अधिनियम के तहत किया गया कोई भी कार्य या की गई कोई भी कार्रवाई शुरू से ही शून्य प्रतीत होती है। (स्थापना का कोई कानूनी प्रभाव न होना)।
- नगालैंड में भी परिवार न्यायालय का संचालन वर्ष 2008 से बिना किसी कानूनी अधिकार के किया जा रहा था।