तिब्बत के सेडोंगपु घाटी में बृहत् क्षरण | 27 Aug 2024

प्रिलिम्स के लिये:

बृहत् क्षरण, हिमस्खलन, ग्लेशियर, गॉर्ज, नाला, सेडोंगपु नाला, भूकंप, कटाव

मेन्स के लिये:

आपदा प्रबंधन, महत्त्वपूर्ण भूभौतिकीय घटनाएँ, जलवायु परिवर्तन 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों

जर्नल ऑफ रॉक मैकेनिक्स एंड जियोटेक्निकल इंजीनियरिंग में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में वर्ष 2017 से तिब्बत के सेडोंगपु घाटी (Sedongpu Gully) में बृहत् क्षरण की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति के संबंध में चिंता जताई गई है, जिसका प्रभाव क्षेत्र की निकटता और नदी प्रणालियों के कारण भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर भी पड़ सकता है।

अध्ययन की मुख्य बातें क्या हैं?

  • बृहत् क्षरण की आवृत्ति में वृद्धि: अध्ययन में वर्ष 2017 के बाद से सेडोंगपु घाटी में बृहत् क्षरण की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।
    • वर्ष 1969 से 2023 तक के सैटेलाइट डेटा का उपयोग करते हुए, अध्ययन ने 19 प्रमुख बृहत् क्षरण की घटनाओं की पहचान की, जिन्हें बर्फ-चट्टान हिमस्खलन, बर्फ-मोराइन हिमस्खलन और ग्लेशियर मलबे के प्रवाह में वर्गीकृत किया गया। उल्लेखनीय रूप से इनमें से 68.4% घटनाएँ वर्ष 2017 के बाद हुईं।
    • वर्ष 2017 से सेडोंगपु घाटी के जलग्रहण क्षेत्र में 700 मिलियन क्यूबिक मीटर से अधिक मलबा जमा हो चुका है। मलबे की इतनी बड़ी मात्रा का निचले नदी तंत्रों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ: सेडोंगपु घाटी में सबसे पहले दर्ज की गई बृहत् क्षरण की घटना वर्ष 1974 और 1975 के बीच हुई थी तथा वर्ष 1987 में फिर से उल्लेखनीय गतिविधि शुरू हुई।
  • बढ़ी हुई गतिविधि के कारण: बृहत् क्षरण की घटनाओं में वृद्धि का कारण क्षेत्र का दीर्घकालिक तापमान बढ़ना और भूकंपीय घटनाओं में वृद्धि है।
    • सेडोंगपु बेसिन में अधिकांशतः प्रोटेरोज़ोइक (2.5 बिलियन से 541 मिलियन वर्ष पूर्व) संगमरमर मौजूद है तथा स्थितियाँ दर्शाती हैं कि इसकी भूमि की सतह का तापमान -5º से -15º सेल्सियस के बीच रहता है, जो वर्ष 2012 से पहले शायद ही कभी 0º सेल्सियस से अधिक रहा हो।
    • निकटवर्ती मौसम केंद्रों से प्राप्त हालिया आँकड़ों से पता चला है कि इस क्षेत्र में वार्षिक तापमान वर्ष 1981-2018 के दौरान 0.34º से 0.36º सेल्सियस की दर से बढ़ा है, जो वैश्विक औसत (1970 से वैश्विक औसत तापमान प्रति शताब्दी 1.7°C की दर से बढ़ रहा है) से अधिक है।
  • त्सांगपो नदी पर प्रभाव: बृहत् क्षरण की घटनाओं से उत्पन्न मलबे ने त्सांगपो नदी और उसकी सहायक नदियों को अस्थायी रूप से अवरुद्ध कर दिया है, जिससे निचले इलाकों में, विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश और असम में, संभावित बाढ़ की चिंता पैदा हो गई है।
    • उल्लेखनीय है कि ऐसी अवरोधों के कारण वर्ष 2000 में अरुणाचल प्रदेश और असम में विनाशकारी बाढ़ आई थी।

सेडोंगपु 

  • सेडोंगपु घाटी तिब्बत में सेडोंगपु ग्लेशियर के जलग्रहण क्षेत्र में स्थित है।
    • घाटी एक भू-आकृति है, जो बहते पानी, बृहत् गति या दोनों के कारण कटाव के कारण निर्मित होती है।
  • यह यारलुंग ज़ंगबो या त्सांगपो नदी में मिल जाती है, जहाँ यह ग्रेट बेंड नामक एक तीव्र मोड़ लेती है, जबकि माउंट नामचा बरवा (ऊँचाई 7,782 मीटर) और माउंट ग्याला पेरी (7,294 मीटर) के आसपास बहती है और 505 किलोमीटर लंबी और 6,009 मीटर गहरी गॉर्ज बनाती है। यह धरती की सबसे गहरी गॉर्ज में से एक है।
  • माउंट नामचा बरवा (7,782 मीटर ऊँचाई) और माउंट ग्याला पेरी (7,294 मीटर ऊँचाई) के समीप बहते हुए यह यारलुंग ज़ंगबो या त्सांगपो नदी में गिरती है, जहाँ यह तीव्र मोड़ लेती है, जिसे ग्रेट कैनियन के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप एक घाटी निर्मित हुई जो 505 किलोमीटर लंबी और 6,009 मीटर गहरी है। यह पृथ्वी की सबसे गहरी घाटियों में से एक है।
  • त्सांगपो नदी, जिसे सियांग नदी के नाम से भी जाना जाता है, तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर ग्रेट कैनियन से मिलती है।
    • असम में आगे की ओर सियांग नदी दिबांग और लोहित नदियों से मिलकर ब्रह्मपुत्र नदी का निर्माण करती है, जो बांग्लादेश में यमुना के नाम से जानी जाती है।

बृहत् क्षरण क्या है?

  • परिभाषा: बृहत् क्षरण (Mass Wasting) का तात्पर्य  गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के तहत शैल, मृदा और मलबे का ढाल के अनुरूप संचलन से है। इसमें ढाल पर विभिन्न प्रकार के संचलन शामिल हैं जैसे शैल पात (Rock Fall), अवसर्पण (Slump) और मलबे का प्रवाह।
  • बृहत् क्षरण के प्रमुख कारक: अतिवृष्टि मृदा को संतृप्त कर सकती है, जिससे उसका भार बढ़ सकता है और यह संचलन प्रवण हो सकता है।
    • बर्फ के तेज़ी से पिघलने से मृदा में जल की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
    • भूकंप (भूकंपीय सक्रियता) सतह में कंपन उत्पन्न कर सकता है और भूस्खलन को उत्प्रेरित कर सकता है।
    • ज्वालामुखी उद्गार और उससे संबंधित भूकंपीय घटनाओं के माध्यम से ढलानों में अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
    • जल निकायों द्वारा कटाव से ढलानों का क्षरण हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर अपरदन हो सकता है।
  • बृहत् क्षरण की घटनाओं के प्रकार:
    • शैल पात अथवा टॉपल: इसमें शैल के मलबे का ढाल के अनुरूप पात, उच्छलन और झुलाव शामिल है। यह आकस्मिक हो सकता है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
    • भूस्खलन और शैल स्खलन: इन घटनाओं में मृदा और शैल का ढाल के अनुरूप बृहत् फिसलन होता है।
    • मलबे का प्रवाह: मलबे के प्रवाह का तात्पर्य जल से संतृप्त शैल के मलबे और मृदा का ढाल के अनुरूप तीव्र संचलन से है, जो आद्र सीमेंट जैसा प्रतीत होता है। यह तेज़ी से आगे बढ़ता है और अत्यंत विध्वंशकारी हो सकता है।
    • हिमस्खलन: हिमस्खलन गुरुत्वाकर्षण के तहत शैल या हिम का आकस्मिक बृहत् संचलन है। यह पर्वतीय और हिमनद दोनों क्षेत्रों में हो सकता है।
    • ढाल का मंद विरूपण (Creep): यह ढाल से मृदा और शैल का एक क्रमिक, मंद संचलन है, जो अक्सर अल्प अवधि के लिये अगोचर होता है किंतु इसके परिणाम दीर्घकालिक होते हैं।

तिब्बत में बृहत् क्षरण की घटनाएँ भारत और बांग्लादेश को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?

  • डाउनस्ट्रीम प्रभाव: इन घटनाओं से उत्पन्न तलछट त्सांगपो नदी और उसकी सहायक नदियों को प्रभावित कर सकती है।
    • यह नदी भारत में प्रवाहित होती है और ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है, जो विश्व की सबसे अधिक तलछट वाली नदियों में से एक है।
    • चीन की त्सांगपो पर 60 गीगावाट की परियोजना स्थापित करने की योजना है, जिसकी क्षमता यांग्त्ज़ी पर चीन की तीन घाटियों की परियोजना की क्षमता से तीन गुना अधिक होगी, जो विश्व का सबसे बड़ा जलविद्युत संयंत्र है।
      • यह भूकंपीय रूप से अस्थिर क्षेत्र, जो वर्ष 1950 में 8.6 तीव्रता के असम-तिब्बत भूकंप और वर्ष 2017 में 6.4 तीव्रता के न्यिंगची भूकंप से प्रभावित हुआ था, में त्सांगपो-सियांग-ब्रह्मपुत्र-जमुना नदी प्रणाली में अवसादन बढ़ सकता है, जिसके भारत और बांग्लादेश के लिये विनाशकारी परिणाम होंगे।
  • बाढ़ और नौवहन संबंधी मुद्दे: ब्रह्मपुत्र नदी गुवाहाटी के पांडु में 800 टन से अधिक तलछट लाती है, जो बांग्लादेश के बहादुराबाद में बढ़कर एक अरब टन से अधिक हो जाती है।
    • बढ़ते अवसादन के कारण असम के मैदानों में नदी का प्रवाह अधिक तीव्र हो सकता है, जिससे तटों का अधिक अपरदन हो सकता है।
    • अवसादन के कारण नदी तल ऊपर उठ सकता है, जिससे बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो सकता है तथा वर्षा ऋतु में चैनल रेत और गाद से अवरुद्ध हो सकते हैं, जिससे नौवहन कठिन हो सकता है तथा मत्स्यन से संबंधित आजीविका प्रभावित हो सकती है।

आगे की राह

  • अध्ययन में अवसादन के प्रबंधन तथा ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों पर उनके प्रभाव का आकलन करने के लिये भूभौतिकीय घटनाओं की निरंतर निगरानी की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
    • इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में बृहत् क्षरण की प्रवृत्तियों एवं प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता है।
  • ढलानों को स्थिर करने और अपरदन को कम करने हेतु वनीकरण प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिये। उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के विकास (निर्माण आदि) से बचने के लिये सतत् भूमि उपयोग योजना को लागू करना चाहिये
  • मृदा अपरदन को रोकने और बृहत् क्षरण के जोखिम को कम करने के लिये सीढ़ीदार कृषि, बाँधों की जाँच तथा गैबियन जैसे अपरदन नियंत्रण उपायों को अपनाना चाहिये
  • संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने और शमन उपायों को प्राथमिकता देने के लिये नियमित रूप से आपदा जोखिम आकलन करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. सेडोंगपु घाटी में बृहत् क्षरण की घटनाओं में वृद्धि का भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में नदी तंत्रों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी/नदियाँ है/हैं? (2016

  1. दिबांग 
  2. कामेंग 
  3. लोहित

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. हिमालय क्षेत्र और पश्चिमी घाट में भूस्खलन के कारणों के बीच अंतरों को बताइये। (2021)