जैव विविधता और पर्यावरण
आर्कटिक महासागर में समुद्री हीटवेव
- 16 Feb 2024
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प्रिलिम्स के लिये:ग्रीनहाउस गैस (GHG), आर्कटिक महासागर, समुद्री हीटवेव, खाद्य शृंखलाएँ। मेन्स के लिये:आर्कटिक महासागर में समुद्री हीटवेव, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट। |
स्रोत:डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में एक नया अध्ययन प्रकाशित हुआ, जिसका शीर्षक है- 'ग्रीनहाउस गैसों द्वारा तीव्र आर्कटिक समुद्री हीटवेव और अचानक समुद्री बर्फ पिघलना', जो दर्शाता है कि यह वर्ष 2007 के बाद आर्कटिक महासागर में अभूतपूर्व समुद्री हीटवेव (MHW) की घटना है।
अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- आर्कटिक समुद्री हीटवेव (MHWs) विशेषताएँ:
- वर्ष 2007 से 2021 तक आर्कटिक में 11 MHW घटनाएँ हुई हैं, जो लंबे समय तक उच्च समुद्री सतह तापमान (SST) की विशेषता है।
- ये घटनाएँ आर्कटिक सागर की बर्फ में रिकॉर्ड गिरावट के साथ मेल खाती हैं।
- स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट, 2022 रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में आर्कटिक में वसंत से शरद ऋतु तक लापतेव और ब्यूफोर्ट समुद्र में गंभीर तथा चरम समुद्री हीटवेव देखी गई।
- बर्फ के आवरण में कमी:
- 1990 के दशक के मध्य से आर्कटिक महासागर के ऊपर ग्रीष्मऋतु और शीतऋतु में समुद्री बर्फ के आवरण में उल्लेखनीय गिरावट आई है, जो सौर ऊर्जा को प्रतिबिंबित करता है।
- वर्ष 2007 के बाद से एक उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है, जो मोटे और अधिक विकृत बर्फ के आवरण से पतले बर्फ के आवरण की ओर बढ़ रहा है।
- पतली बर्फ कम मज़बूत होती है और अधिक तेज़ी से पिघलती है, जिससे आने वाली सौर विकिरण जल की सतह को गर्म कर देती है।
- आर्कटिक MHWs के ड्राइवर:
- आर्कटिक MHW मुख्य रूप से सीमांत सागरों पर होते हैं, जिनमें कारा, लापतेव, पूर्वी साइबेरियाई और चुकची सागर शामिल हैं।
- इन स्थानों पर उथली मिश्रित परत की गहराई और मुख्य रूप से प्रथम वर्ष के बर्फ के आवरण के कारण MHW के विकास हेतु परिस्थितियाँ अनुकूल हैं।
- प्रथम वर्ष की बर्फ समुद्री बर्फ है जो एक ही सर्दियों के मौसम में विकसित होने के साथ बढ़ती है और आमतौर पर गर्मियों के मौसम में पूरी तरह से पिघल जाती है।
- अचानक समुद्री बर्फ का पीछे हटना एक और चिंता का विषय है क्योंकि इससे समुद्री हीटवेव की घटनाएँ शुरू हो सकती हैं।
- ग्रीनहाउस गैस (GHG) का प्रभाव:
- GHG के बिना, 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की समुद्री हीटवेव नहीं चल सकती।
- 66-99% संभावना के साथ GHG मध्यम समुद्री हीटवेव का पर्याप्त कारण हैं।
- GHG के बिना, 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की समुद्री हीटवेव नहीं चल सकती।
- दीर्घकालिक रुझान:
- आर्कटिक में दीर्घकालिक उष्मीय प्रवृत्ति स्पष्ट है, जिसमें वर्ष 1996 से वर्ष 2021 तक SST प्रति दशक 1.2 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है।
- पिछले दो दशकों में पूर्वी आर्कटिक सीमांत समुद्रों में चरम SST घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।
- चिंताएँ:
- अध्ययन में समुद्री हीटवेव के नाटकीय परिणामों जैसे खाद्य शृंखलाओं, मछली भंडार पर प्रभाव एवं समग्र जैवविविधता में कमी की चेतावनी दी गई है।
- अध्ययन में प्रयुक्त तकनीक:
- आर्कटिक MHW में ग्रीनहाउस गैस (GHG) की भूमिका का आकलन करने के लिये अध्ययन एक एक्सट्रीम इवेंट एट्रिब्यूशन (EEA) तकनीक का उपयोग करता है।
- EEA तकनीक यह निर्धारित करती है कि मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन किस हद तक विशिष्ट चरम मौसम की घटनाओं की संभावना और गंभीरता को प्रभावित करता है।
समुद्री हीटवेव्स (MHW) क्या हैं?
- परिचय:
- MHW एक विषम मौसमी घटना है जो समुद्र के किसी विशेष क्षेत्र की सतह का ताप निरंतर पाँच दिनों के लिये औसत तापमान से 3 अथवा 4 डिग्री सेल्सियस अधिक होने पर होती है।
- नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के अनुसार MHW की निरंतरता सप्ताह, माह अथवा वर्षों तक बनी रह सकती है।
- प्रभाव:
- महासागर पर प्रभाव: औसत तापमान में 3 अथवा 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि समुद्री जीवन के लिये विनाशकारी हो सकती है।
- वर्ष 2010 और वर्ष 2011 में पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाई तट पर MHW के कारण बड़ी मात्रा में मछलियों की मौत हुई जो एक अल्प अवधि में तथा मुख्य रूप से एक विशेष क्षेत्र में कई मछलियों अथवा अन्य जलीय जीवों की अचानक एवं अप्रत्याशित मौत को दर्शाता है।
- MHW ने समुद्री केल्प वनों को नष्ट कर दिया और तट के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया।
- केल्प्स की मौजूदगी सामान्य तौर पर शीतल जल में पाई जाती है जो कई समुद्री जीवों के लिये आवास और भोजन प्रदान करते हैं।
- प्रवाल विरंजन/कोरल ब्लीचिंग: वर्ष 2005 में उष्णकटिबंधीय अटलांटिक और कैरेबियन में समुद्र के तापमान में हुई वृद्धि से उत्पन्न गर्मी के कारण बड़े पैमाने पर कोरल ब्लीचिंग की घटना हुई।
- प्रवाल जल के तापमान के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। जल के तापमान में अत्यधिक वृद्धि होने की स्थिति में वे अपने ऊतकों में मौजूद जूजैंथिली नामक शैवाल को बाहर निकाल देते हैं जिससे उनका रंग पूरी तरह से सफेद हो जाते हैं। इसे प्रवाल विरंजन कहा जाता है।
- मनुष्यों पर प्रभाव: समुद्री तापमान में वृद्धि से MHW की स्थिति उत्पन्न होती है जिससे तूफान और उष्णकटिबंधीय चक्रवात जैसी गंभीर घटनाएँ हो सकती हैं।
- तापमान में वृद्धि के साथ वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है और महासागरों से वायुमंडल में गर्मी का संचरण भी बढ़ जाता है। जब तूफान गर्म महासागरों के संपर्क में आते हैं तो वे अधिक जलवाष्प और ऊष्मा एकत्र करते हैं।
- इसके परिणामस्वरूप अधिक शक्तिशाली पवनें, भारी वर्षा और अधिक बाढ़ आती है जो मनुष्यों के लिये विनाश का कारण बन सकती है।
- महासागर पर प्रभाव: औसत तापमान में 3 अथवा 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि समुद्री जीवन के लिये विनाशकारी हो सकती है।
समुद्री हीटवेव के अन्य प्रभाव क्या हैं?
- पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना पर प्रभाव:
- समुद्री हीटवेव कुछ प्रजातियों के लाभकारी किंतु अन्य के विनाशकारी होती हैं जिससे पारिस्थितिक तंत्र की संरचना पर प्रभाव पड़ता है।
- अकशेरुकी जीवों के संदर्भ में समुद्री हीटवेव के परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं जिससे इन प्रजातियों का व्यवहार प्रभावित हो सकता है जिससे संभावित रूप से वन्यजीवों को अत्यधिक क्षति का सामना करना पड़ सकता है।
- पर्यावास पर प्रभाव:
- समुद्री हीटवेव के कुछ प्रजातियों के पर्यावास बदल सकता है जैसे कि दक्षिणपूर्वी ऑस्ट्रेलिया में कांटेदार समुद्री अर्चिन केल्प वनों के विनाश के परिणामस्वरूप तस्मानिया में दक्षिण की ओर अग्रसर हो रहा है।
- आर्थिक हानि:
- समुद्री हीटवेव मत्स्य पालन और जलीय कृषि को प्रभावित कर आर्थिक क्षति पहुँचा सकती हैं।
- जैवविविधता पर प्रभाव:
- समुद्री हीटवेव से जैवविविधता अत्यधिक प्रभावित हो सकती है।
- समुद्री हीटवेव के कारण तमिलनाडु तट के पास मन्नार की खाड़ी में 85% प्रवाल का विरंजन हुआ।
- समुद्री हीटवेव से जैवविविधता अत्यधिक प्रभावित हो सकती है।
- डीऑक्सीजनेशन और अम्लीकरण का खतरा:
- समुद्र का अम्लीकरण, डीऑक्सीजनेशन जैसे अन्य कारक समुद्री हीटवेव से संबंधित हैं।
- ऐसे मामलों में समुद्री हीटवेव न केवल पर्यावास को और अधिक नुकसान पहुँचाते हैं बल्कि डीऑक्सीजनेशन तथा अम्लीकरण का खतरा भी बढ़ाते हैं।
आर्कटिक के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय:
- आर्कटिक महासागर में बैरेंट्स सागर, कारा सागर, लापतेव सागर, चुकची सागर, ब्यूफोर्ट सागर, वांडेल सागर, लिंकन सागर शामिल हैं।
- आर्कटिक पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक ध्रुवीय क्षेत्र है।
- आर्कटिक में आर्कटिक महासागर, एड्जेसेंट सागर और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस तथा स्वीडन के कुछ हिस्से शामिल हैं।
- आर्कटिक क्षेत्र के भीतर की भूमि में मौसम के अनुसार अलग-अलग बर्फ और उसका आवरण होता है।
- आर्कटिक पर वार्मिंग का पारिस्थितिक प्रभाव:
- बर्फ के नष्ट होने और पानी के गर्म होने से समुद्र का स्तर, लवणता का स्तर, अचानक उठे तूफान तथा वर्षा के पैटर्न पर असर पड़ेगा।
- टुंड्रा दलदल में लौट रहा है, पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहा है, अचानक आने वाले तूफान समुद्रतटों को तबाह कर रहे हैं और वनाग्नि कनाडा तथा रूस के अंदरूनी हिस्सों को तबाह कर रही है।
- टुंड्रा: एक प्रकार की वनस्पति, जो आर्कटिक वृत्त के उत्तर और अंटार्कटिक वृत्त के दक्षिण के क्षेत्रों में पाई जाती है। ये वृक्षविहीन क्षेत्र हैं।
- आर्कटिक लगभग 40 विभिन्न देशज समूहों का भी घर है, जैसे- रूस में चुक्ची, अलास्का में अलेउत, युपिक और इनुइट।
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मेन्स:प्रश्न. वैश्विक तापन का प्रवाल जीवन तंत्र पर के प्रभाव का, उदाहरणों के साथ, आकलन कीजिये। (2019) प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017) प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग(वैश्विक तापन) पर चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये।(2022) |