अंतर्राष्ट्रीय संबंध
जापान की बदलती कूटनीतिक स्थिति
- 01 May 2024
- 19 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारत-जापान रक्षा अभ्यास, G-20, क्वाड समूह, G-4 मेन्स के लिये:जापान की बदलती कूटनीतिक स्थिति का महत्त्व, भारत-जापान संबंधों में चुनौतियाँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल के दिनों में बदलते भू-राजनीति परिदृश्य के रूप में विश्वस्तर एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला है क्योंकि जापान, जो लंबे समय से युद्धोत्तर शांतिवाद का प्रतीक रहा है, अपनी सैन्य क्षमताओं को और मज़बूत कर रहा है। जापान के इस परिवर्तन में एशिया और उसके बाहर शक्ति संतुलन को प्रभावी रूप से बदलने की क्षमता है।
जापान की कूटनीतिक स्थिति के बारे में प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- द्वितीय विश्व युद्ध से पहले जापान की कूटनीतिक स्थिति:
- अलगाव (1600-1850 ई.):
- 200 से अधिक वर्षों तक जापान ने विश्व से न्यूनतम बाह्य संपर्क रखा। अलगाव की इस नीति का उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखना और विदेशी प्रभाव का प्रसार होने से रोकना था।
- संधि (1850-1900 ई):
- 1853 में पुर्तगाली कमोडोर पेरी के "ब्लैक शिप्स" के आगमन ने जापान को स्वयं थोपे गए एकांत से बाहर निकलने के लिये मजबूर कर दिया।
- जापानी सरकार के उद्देश्य:
- उन्होंने एक मज़बूत राष्ट्र बनने के लिये सेना का आधुनिकीकरण किया और पश्चिमी तकनीक को अपनाया।
- जापान ने अपने व्यापार और विदेश नीति पर नियंत्रण पाने के लिये पिछली संधियों पर पुनः वार्तालाप किया।
- आक्रामक रुख (1900-1930 ई.):
- अपनी विजयों के बावजूद, जापान को पश्चिमी शक्तियों द्वारा पूर्ण रूप से समान नहीं माना गया, विशेष रूप से नस्लीय समानता के संबंध में (उदाहरण के लिये, वर्साय की संधि में नस्लीय समानता खंड की अस्वीकृति)।
- पश्चिम के प्रति इस निराशा ने आक्रामक विस्तारवाद की ओर बदलाव को बढ़ावा दिया, जैसे 1931 में मंचूरिया का सैन्यवादी अधिग्रहण, द्वितीय विश्व युद्ध से पहले धुरी (Axis) राष्ट्रों गठबंधन का गठन आदि।
- अनादर की इस भावना और पश्चिमी-प्रभुत्व वाली विश्व व्यवस्था को चुनौती देने की इच्छा ने अंततः जापान को सैन्य विजय के रास्ते पर ले जाया, जिसकी परिणति द्वितीय विश्व युद्ध में हुई।
- अनादर की इस भावना और पश्चिमी वर्चस्व वाली वैश्विक व्यवस्था को चुनौती देने की इच्छा ने अंततः जापान को सैन्य विजय की और अग्रसर किया, जिसकी परिणति द्वितीय विश्व युद्ध में हुई।
- अलगाव (1600-1850 ई.):
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान की कूटनीतिक स्थिति:
- द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापानी राज्य के कब्ज़े और पुनर्वास में मित्र राष्ट्रों का नेतृत्त्व किया। इस प्रकार, जापान ने शांतिवाद की नीति अपनाई।
- सैन्य व्यय को कठोर नियमों के साथ सीमित किया गया था और राष्ट्र ने अपनी अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया। यह रणनीति सफल साबित हुई, जिससे जापान 1970 के दशक तक विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।
- हाल के दशकों में जापान ने अपनी कूटनीतिक स्थिति में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव किया है, जो युद्ध के बाद के शांतिवाद से दूर जा रहा है और वैश्विक मंच पर अधिक मुखर भूमिका की ओर बढ़ रहा है।
किन कारकों ने जापान को अपनी कूटनीतिक स्थिति बदलने के लिये प्रेरित किया?
- बाह्य कारक:
- चीन का उदय: चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति और पूर्वी चीन सागर में, विशेष रूप से सेनकाकू द्वीप जैसे विवादित क्षेत्रों के संबंध में, मुखर दावों ने जापान के लिये अपनी सुरक्षा को मज़बूत करने की तात्कालिकता की भावना उत्पन्न की है।
- उत्तर कोरियाई जोखिम: उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु हथियारों और बैलिस्टिक मिसाइलों का निरंतर विकास जापान के लिये प्रमुख सुरक्षा चिंता का विषय बना हुआ है।
- अनिश्चित अमेरिकी प्रतिबद्धता: ट्रंप प्रशासन के तहत एशियाई सुरक्षा के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता कम होने के साथ-साथ अमेरिका में बढ़ती अलगाववादी प्रवृत्तियों ने जापान को अपनी रक्षा में अधिक आत्मनिर्भर बनने के लिये प्रेरित किया है।
- उदाहरणों में शांति बनाए रखने में संयुक्त राज्य अमेरिका की मध्य पूर्व नीति की विफलता शामिल है।
- आंतरिक कारक:
- रूढ़िवादी पुनरुत्थान: जापान में रूढ़िवादी विचारधाराओं की बढ़ती प्रबलता अधिक सक्रिय सुरक्षा करने की भूमिका का पक्षधार है और यह तर्क देती है कि "सामान्य शक्ति" के रूप में जापान की क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान करने एवं अपने हितों की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी है।
- शांतिवादी श्रम: सुरक्षा के लिये दशकों तक केवल अमेरिका पर निर्भर रहने के कारण कुछ लोगों ने इस दृष्टिकोण की स्थिरता पर प्रश्न उठाया है, विशेषकर बदलते क्षेत्रीय परिदृश्य के सामने।
जापान अपनी कूटनीतिक स्थिति कैसे बदल रहा है?
- परिवर्तन की अभिव्यक्तियाँ:
- रक्षा खर्च में वृद्धि: जापान ने सकल घरेलू उत्पाद के 1% की स्वयं लगाई गई सीमा को समाप्त करते हुए अपने रक्षा बजट में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
- वर्ष 1960 से 2020 तक जापान का सैन्य खर्च GDP का 1% या उससे कम रहाI
- सैन्य निर्माण: जापान नई सैन्य क्षमताएँ विकसित कर रहा है, जिसमें क्रूज़ मिसाइल जैसे आक्रामक हथियार और अन्य हथियारों के निर्यात पर प्रतिबंधों में छूट शामिल है।
- प्रधानमंत्री किशिदा ने जापान द्वारा वर्ष 2027 तक रक्षा के वार्षिक व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 2% तक बढ़ाने की घोषणा की।
- सहयोगियों के साथ गहन सुरक्षा सहयोग: जापान संयुक्त सैन्य अभ्यास पर अमेरिका के साथ मिलकर काम कर रहा है और कमांड संरचनाओं के गहन एकीकरण की खोज कर रहा है।
- जापान-अमेरिका संयुक्त सैन्य अभ्यास के प्रमुख बिंदु कीन स्वॉर्ड, ओरिएंट शील्ड और वैलियेंट शील्ड (एक बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा-केंद्रित अभ्यास) अभ्यास हैं।
- ग्लोबल कॉम्बैट एयर प्रोग्राम (GCAP) यूनाइटेड किंगडम, जापान और इटली के नेतृत्व में एक बहुराष्ट्रीय पहल है, जिसका लक्ष्य संयुक्त रूप से वर्ष 2035 तक छठी पीढ़ी का स्टील्थ फाइटर विकसित करना है।
- इसके साथ ही जापान ने अपने सख्त रक्षा निर्यात नियमों को सरल बनाने का फैसला किया है, जिससे उसे कुछ शर्तों के तहत निर्यात के लिये अगली पीढ़ी के लड़ाकू जेट बनाने के लिये ब्रिटेन और इटली के साथ सहयोग करने की अनुमति मिल जाएगी।
- रक्षा खर्च में वृद्धि: जापान ने सकल घरेलू उत्पाद के 1% की स्वयं लगाई गई सीमा को समाप्त करते हुए अपने रक्षा बजट में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
- सक्रिय क्षेत्रीय कूटनीति: जापान "स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक" दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हुए, भारत तथा ऑस्ट्रेलिया जैसी अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत कर रहा है।
- चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (QUAD): क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिये जापान, अमेरिका, भारत और ऑस्ट्रेलिया को शामिल करते हुए एक रणनीतिक सुरक्षा संवाद।
- प्रशांत द्वीप फोरम (PIF): जापान प्रशांत द्वीप देशों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है, यह उनके साथ विकास सहायता की पेशकश करता है और घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देता है।
- यूक्रेन के लिये समर्थन: रूस के विरुद्ध यूक्रेन के समर्थन में जापान के कड़े रुख को, अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों को बनाये रखने तथा एशिया में इस तरह की आक्रामकता को रोकने की प्रतिबद्धता के संकेत के रूप में देखा जाता है।
- ऐतिहासिक मुद्दों पर रुख बदलना: जापान एक अधिक सामंजस्यपूर्ण क्षेत्रीय सुरक्षा संरचना बनाने के प्रयास में अपने ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्वी दक्षिण कोरिया के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।
नोट:
- जापान ने दिवंगत प्रधानमंत्री शिंजो आबे के अंतर्गत संचालित की गई एक "विशालदर्शी कूटनीति"(panoramic diplomacy) का प्रदर्शन कर, अपनी वैश्विक दृष्टिकोण का विस्तार किया है तथा अपनी सुरक्षा नीति को सामान्य बनाया है।
- "शब्द "विशालदर्शी कूटनीति" का अनुवाद “विश्व के विशाल परिप्रेक्ष्य को प्रभावित करने वाली कूटनीति" अथवा "विशाल परिदृश्यों के साथ कूटनीति" है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिये एक सक्रिय और बहुआयामी दृष्टिकोण पर ज़ोर देता है, जिसका लक्ष्य विभिन्न देशों के साथ मज़बूत संबंध बनाना है।
- मुख्य लक्षण :
- व्यापक दायरा: विशिष्ट क्षेत्रों या विचारधाराओं पर केंद्रित पारंपरिक गठबंधनों के विपरीत, विशालदर्शी कूटनीति यथासंभव अधिक से अधिक देशों के साथ पारस्परिक संबंध स्थापित करने का प्रयास करती है, भले ही उनके मूल्य पूरी तरह से जापान के साथ संरेखित न हों।
- टकराव से अधिक, सहयोग पर ध्यान: हालाँकि चीन के बढ़ते प्रभाव के बारे में चिंताओं ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, परंतु विशालदर्शी कूटनीति ने केवल हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित नहीं किया, बल्कि वह अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और अन्य क्षेत्रों के देशों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा रहा।
जापान का बदलता रुख भारतीय हितों को कैसे प्रभावित करेगा?
- संभावित लाभ:
- चीन का मुकाबला: भारत और जापान दोनों चीन को एक रणनीतिक चिंता के रूप में देखते हैं। जापान की बढ़ी हुई सैन्य क्षमताएँ और हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने से दोनों देशों की चीनी आक्रामकता को रोकने की क्षमता मज़बूत हो सकती है।
- भारत और जापान दोनों क्वाड ग्रुपिंग, जी20 तथा जी-4, इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) के सदस्य हैं।
- इंडिया-जापान एक्ट ईस्ट फोरम की स्थापना 2017 में की गई थी, जिसका उद्देश्य भारत की "एक्ट ईस्ट पॉलिसी" और जापान की "फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी" के तहत भारत-जापान सहयोग के लिये एक मंच प्रदान करना है।
- उन्नत सुरक्षा सहयोग: नई रणनीति भारत जैसे समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग पर ज़ोर देती है। इससे अधिक संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रौद्योगिकी साझाकरण और भारत के लिये जापानी रक्षा उपकरणों पर निर्यात प्रतिबंधों में संभावित रूप से छूट दी जा सकती है।
- जापान उन कुछ देशों में से एक है जिनके साथ भारत की 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता होती है।
- भारत और जापान के सुरक्षा बल JIMEX (नौसेना), मालाबार अभ्यास (नौसेना अभ्यास), 'वीर गार्जियन' तथा शिन्यू मैत्री (वायु सेना), एवं धर्म गार्जियन (सेना) जैसे द्विपक्षीय अभ्यासों की एक शृंखला भी आयोजित करते हैं।
- बुनियादी ढाँचा विकास: रणनीतिक उद्देश्यों के लिये नया जापानी आधिकारिक विकास सहायता (ODA) ऋण भारत को चीन के साथ सीमा क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये आवश्यक निधि प्रदान कर सकता है। इससे भारत की रक्षा तैयारियों और संयोजकता में सुधार होगा।
- भारत पिछले दशकों से जापानी ODA ऋण ढाँचे का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता रहा है।
- दिल्ली मेट्रो ODA के उपयोग के माध्यम से जापानी सहयोग के सबसे सफल उदाहरणों में से एक है।
- भारत की वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) परियोजना जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी द्वारा प्रदान किये गए सॉफ्ट लोन द्वारा वित्तपोषित है।
- आर्थिक सहयोग:जापान का आर्थिक रूप से मज़बूत होना, भारत के लिये अधिक विश्वसनीय आर्थिक भागीदार सुनिश्चित कर सकता है, जिससे संभावित रूप से व्यापार और निवेश में वृद्धि होगी।
- वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान भारत के साथ जापान का द्विपक्षीय व्यापार कुल 20.57 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा तथा भारत जापान के लिये 18वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था, और वर्ष 2020 में जापान भारत के लिये 12वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा।
- चीन का मुकाबला: भारत और जापान दोनों चीन को एक रणनीतिक चिंता के रूप में देखते हैं। जापान की बढ़ी हुई सैन्य क्षमताएँ और हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने से दोनों देशों की चीनी आक्रामकता को रोकने की क्षमता मज़बूत हो सकती है।
- संभावित चुनौतियाँ:
- प्रतिस्पर्धा: भारत और जापान दोनों लंबी दूरी की मारक क्षमता वाले आयुधों को विकसित कर रहे हैं। इससे क्षेत्र में हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है, जिससे संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है।
- समान प्रकृति के बाज़ार में और अफ्रीका, फिलीपींस व दक्षिण अमेरिका जैसे सहयोगियों में जापान तथा भारत के बीच रक्षा उपकरण निर्यात करने की प्रतिस्पर्धा लंबे समय में भारत के हितों को हानि पहुँचा सकती है।
- कूटनीतिक चुनौतियाँ: भारत के लिये क्वाड ग्रुपिंग और ब्रिक्स जैसे प्रतिस्पर्धी ब्लॉकों में अधिक मुखर शक्तियों को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- वैचारिक संघर्ष: मानवाधिकार, परमाणु प्रसार और अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप जैसे क्षेत्रों में वैचारिक संघर्ष उत्पन्न हो सकते हैं, जहाँ भारत तथा जापान के रुख भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।
- प्रतिस्पर्धा: भारत और जापान दोनों लंबी दूरी की मारक क्षमता वाले आयुधों को विकसित कर रहे हैं। इससे क्षेत्र में हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है, जिससे संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है।
निष्कर्ष:
- जापान के कूटनीतिक परिवर्तन का एशिया और विश्व पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इससे संभवतः अधिक बहुध्रुवीय क्षेत्रीय व्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, जिसमें जापान सुरक्षा गतिशीलता को आकार देने में अधिक प्रमुख भूमिका निभाएगा।
- जापान की गतिशील अवस्था का भारत पर प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों देश संबंधों को कितने प्रभावी ढंग से प्रबंधित करते हैं। हालाँकि दोनों देशों के मध्य सुरक्षा और आर्थिक सहयोग में वृद्धि की अत्यधिक संभावना है, लेकिन पारस्परिक रूप से लाभकारी परिणाम के लिये प्रतिस्पर्धा, सामर्थ्य एवं रणनीतिक संरेखण से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: हाल के दशकों में जापान के बदलते राजनीतिक रुख के बारे में चर्चा कीजिये। जापान के बदलते रुख का भारतीय हितों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न1. निम्नलिखित में से किस एक समूह के चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020) (a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की उत्तर: (a) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. 'चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड)' वर्तमान समय में स्वयं को सैनिक गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में रूपांतरित कर रहा है - विवेचना कीजिये। (2020) |