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जैव विविधता और पर्यावरण

IPBES ट्रांसफॉर्मेटिव चेंज असेसमेंट

  • 01 Jan 2025
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आईपीबीईएस, संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, कार्बन-तटस्थता, राष्ट्रीय जैवविविधता कार्य योजना (एनबीएपी), स्वच्छ भारत अभियान, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना। 

मेन्स के लिये:

जैवविविधता संरक्षण, स्थिरता के लिये शासन, पर्यावरण संरक्षण के लिये सार्वजनिक नीतियाँ 

स्रोत: IPBES

चर्चा में क्यों? 

 ‘जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये अंतर-सरकारी विज्ञान-नीति मंच’ (IPBES) द्वारा जारी रिपोर्ट, जिसका शीर्षक ट्रांसफॉर्मेटिव चेंज असेसमेंट है, जैवविविधता की हानि को कम करने में शासन की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर देती है। 

  • यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि समावेशिता और स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने वाला प्रभावी शासन, जैवविविधता को संरक्षित करने और दीर्घकालिक, प्रणालीगत परिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिये कितना आवश्यक है।

ट्रांसफॉर्मेटिव चेंज असेसमेंट रिपोर्ट के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • पारिस्थितिक हानि: रिपोर्ट में जैवविविधता की हानि को रोकने के लिये समाज द्वारा प्रकृति के साथ किये जाने वाले व्यवहार में मूलभूत बदलाव की त्वरित आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है तथा चेतावनी दी गई है कि निष्क्रियता से अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक क्षति हो सकती है, जिसमें प्रवाल भित्तियों और वर्षावनों का विनाश भी शामिल है।
  • आर्थिक और रोज़गार के अवसर: तत्काल कार्रवाई से वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यावसायिक अवसर तथा 395 मिलियन रोज़गार उत्पन्न हो सकती हैं, विशेष रूप से उन उद्योगों में जो प्रकृति पर अत्यधिक निर्भर हैं।
  • जैवविविधता हानि के कारण: रिपोर्ट में मूल कारणों की पहचान लोगों और प्रकृति के बीच संबंध विच्छेद, प्रकृति तथा अन्य पर प्रभुत्व के रूप में की गई है।
    • अन्य कारणों में शक्ति और धन का संकेंद्रण तथा दीर्घकालिक स्थिरता की तुलना में अल्पकालिक भौतिक लाभ को प्राथमिकता देना शामिल है।
  • परिवर्तन हेतु पाँच प्रमुख रणनीतियाँ:
    • संरक्षण एवं पुनरुद्धार: जैव-सांस्कृतिक विविधता के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना, जो पर्यावरणीय पुनरुद्धार को सांस्कृतिक मूल्यों के साथ जोड़ते हैं, जैसे नेपाल में समुदाय-संचालित वन प्रबंधन।
    • प्रमुख क्षेत्रों में व्यवस्थित परिवर्तन: कृषि, मत्स्य पालन और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्र, जो जैवविविधता हानि में योगदान करते है, को स्थायी प्रथाओं के माध्यम से संबोधित करना।
    • आर्थिक प्रणालियों में परिवर्तन: हार्मफुल सब्सिडी में सुधार और सतत् व्यापार मॉडल को बढ़ावा देकर प्रकृति-सकारात्मक अर्थव्यवस्थाओं की ओर रुख करना।
    • अनुकूली शासन: स्वदेशी समुदायों सहित विविध हितधारकों को एकीकृत करने वाली अनुकूल शासन प्रणालियों को निर्मित करना तथा नीतियों में जैवविविधता को केंद्रित चिंता का विषय बनाएं।
      • अनुकूली शासन, बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों और नई जानकारी के आधार पर रणनीतियों के निरंतर समायोजन को सक्षम बनाता है।
      • यह लचीलापन जटिल जैवविविधता चुनौतियों से निपटने तथा उभरते खतरों के प्रति अनुक्रियाशील बने रहने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • दृष्टिकोण और मूल्यों में बदलाव: शिक्षा, अनुभवात्मक गतिविधियों और विविध ज्ञान प्रणालियों को एकीकृत करने पर ज़ोर देते हुए मानव-प्रकृति के अंतर्संबंध की मान्यता को बढ़ावा देना।

IPBES

  • वर्ष 2012 में स्थापित IPBES एक स्वतंत्र अंतर-सरकारी निकाय है जिसमें भारत सहित लगभग 150 सदस्य देश शामिल हैं। 
    • यह जैवविविधता, पारिस्थितिकी तंत्र तथा लोगों के लिये उनके योगदान पर वैज्ञानिक आकलन प्रदान करता है, साथ ही उनके संरक्षण तथा सतत् उपयोग के लिये उपकरण एवं तरीके भी प्रदान करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) IPBES को सचिवालय सेवाएँ प्रदान करता है। हालाँकि यह संयुक्त राष्ट्र का निकाय नहीं है।
  • सचिवालय: बॉन, जर्मनी।

ट्रांसफॉर्मेटिव चेंज (परिवर्तनकारी बदलाव ) क्या है और इसे किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है?

  • ट्रांसफॉर्मेटिव चेंज (परिवर्तनकारी बदलाव): यह तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक कारकों के बीच एक मौलिक, प्रणाली-व्यापी पुनर्गठन है, जिसमें प्रतिमान, लक्ष्य तथा मूल्य शामिल हैं, जो जैवविविधता के संरक्षण एवं सतत् उपयोग के लिये और एक अच्छी गुणवत्ता वाले जीवन एवं सतत् विकास को प्राप्त करने हेतु आवश्यक है।
  • ट्रांसफॉर्मेटिव चेंज (परिवर्तनकारी बदलाव) हेतु कदम:
    • कार्बन-तटस्थ कार्यवाहियाँ: कार्बन-तटस्थता के लिये प्रयास करना, इसे व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकारों के लिये एक आदर्श बनाना, साथ ही वैध जलवायु-अनुकूल प्रतिसंतुलन का समर्थन करना।
    • भू-सकारात्मक विकल्प: आपूर्ति शृंखलाओं में बदलाव लाकर और नीतियों को प्रभावित करके लोगों के लिये पर्यावरण में सकारात्मक योगदान करना आसान, आनंददायक तथा किफायती बनाना।
    • सब्सिडी में सुधार: पर्यावरणीय संरक्षण को समर्थन देने के लिये सब्सिडी और प्रोत्साहनों को पुनर्निर्देशित करना तथा संसाधन-निष्कर्षण उद्योगों से हटकर संधारणीय प्रथाओं की ओर संक्रमण को सुगम बनाना।
    • एहतियाती निर्णय लेना: पर्यावरणीय खतरों को पूर्व सक्रियता से संबोधित करते हुए, यहाँ तक ​​कि निश्चित प्रमाण के बगैर भी, एहतियाती, अनुकूली, समावेशी और अंतर-क्षेत्रीय निर्णय लेने को लागू करना।
    • पर्यावरण कानूनों को सुदृढ़ बनाना: सुदृढ़ पर्यावरण कानूनों की वकालत करना, उनका सुसंगत क्रियान्वयन सुनिश्चित करना और प्रकृति की रक्षा करने तथा सतत् आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने वाली वैश्विक पहलों का समर्थन करना।

परिवर्तनकारी बदलाव के लिये भारत की पहल क्या हैं?

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: ट्रांसफॉर्मेटिव चेंज (परिवर्तनकारी बदलाव) की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। जैवविविधता के नुकसान को दूर करने और सतत् विकास को प्राप्त करने के लिये इसे कैसे लागू किया जा सकता है?

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-से भौगोलिक क्षेत्र में जैवविविधता के लिये संकट हो सकते हैं? (2012)

  1. वैश्विक तापन
  2. आवास का विखंडन
  3. विदेशी जाति का संक्रमण
  4. शाकाहार को प्रोत्साहन 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करते हुए सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)

प्रश्न 2. जैवविविधता निम्नलिखित तरीकों से मानव अस्तित्व का आधार बनाती है: (2011)

  1. मृदा निर्माण
  2. मृदा अपरदन की रोकथाम
  3. अपशिष्ट का पुनर्चक्रण
  4. फसलों का परागण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करते हुए सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)


मेन्स

भारत में जैवविविधता किस प्रकार अलग-अलग पाई जाती है? वनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण में जैवविविधता अधिनियम, 2002 किस प्रकार सहायक है? (2018)

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