भारतीय अर्थव्यवस्था
उत्तराधिकार कर
- 02 May 2024
- 21 min read
प्रिलिम्स के लिये:आर्थिक और सामाजिक विकास, सतत् विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र की पहल, आदि। मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था और नियोजन, संसाधन जुटाने, वृद्धि, विकास तथा रोज़गार से संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के विपक्षी दल के एक प्रमुख राजनीतिक नेता ने उत्तराधिकार कर पर प्रस्तावित कानून में रुचि व्यक्त की है।
- भारत में आय असमानता को दूर करने के लिये धन के पुनर्वितरण के लिये उत्तराधिकार कर को एक उपकरण के रूप में उपयोग करने के बारे में बहुत चर्चा हुई है।
उत्तराधिकार कर क्या है?
- परिचय:
- उत्तराधिकार कर एक ऐसा कर है जो किसी मृत व्यक्ति से संपत्ति या परिसंपत्ति विरासत में प्राप्त करने के लिये चुकाया जाता है।
- यह लाभार्थी द्वारा प्राप्त विरासत के मूल्य पर लगाया जाता है, और इसका भुगतान लाभार्थी द्वारा किया जाता है।
- देश के आधार पर, यह 55% तक हो सकता है।
- कोई व्यक्ति वसीयत के तहत या मृतक के व्यक्तिगत कानून के तहत उत्तराधिकार प्राप्त कर सकता है।
- भारत में उत्तराधिकार पर कर लगाने की अवधारणा अब मौजूद नहीं है।
- उत्तराधिकार कर की गणना:
- पहला कदम संपत्ति का कुल मूल्य निर्धारित करना है।
- इसमें मृतक के स्वामित्व वाली सभी संपत्तियों के मूल्य का आकलन करना शामिल है, जिसमें किसी भी बकाया ऋण या देनदारियों पर भी विचार करते हुए, रियल एस्टेट, निवेश, बैंक खाते, वाहन और व्यक्तिगत सामान शामिल होते हैं।
- उत्तराधिकार कर लागू होगा या नहीं यह कई कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें संपत्ति का कुल मूल्य और क्षेत्राधिकार कानून भी शामिल हैं।
- कुछ स्थानों पर, कुछ लाभार्थियों, जैसे पति/पत्नी या बच्चों को उत्तराधिकार कर का भुगतान करने से छूट मिल सकती है या कम दर प्राप्त हो सकती है।
- पहला कदम संपत्ति का कुल मूल्य निर्धारित करना है।
- इसे समाप्त करने का कारण:
- प्रक्रियात्मक उत्पीड़न: संपत्ति पर दो अलग-अलग करों यानी संपत्ति कर (मृत्यु से पहले) और एस्टेट ड्यूटी (मृत्यु के बाद), के अस्तित्व से करदाताओं को अनुचित रूप से परेशान किया जा रहा था ।
- अपूर्ण उद्देश्य: धन के असमान वितरण में कोई कमी नहीं आई, जबकि कर से राज्यों को उनकी विकास योजनाओं के वित्तपोषण में भी महत्त्वपूर्ण सहायता नहीं मिली।
- आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं: जबकि वर्ष 1985 में एस्टेट ड्यूटी से उपज केवल 20 करोड़ रुपए थी, जबकि इसके प्रशासन और संग्रह की लागत अपेक्षाकृत अधिक थी।
- कर चोरी: कराधान की उच्च दरों के परिणामस्वरूप अक्सर पूंजी और निवेश अनुकूल कर दरों वाले टैक्स हेवेन या कर क्षेत्राधिकार की ओर पलायन कर जाते हैं।
दुनिया भर में उत्तराधिकार कर के उदाहरण:
- अधिकांश यूरोपीय, अमेरिकी और यहाँ तक कि अफ्रीकी देश उत्तराधिकार कर लगाते हैं।
- यूरोप में उत्तराधिकार में मिली संपत्तियों पर कर लगाने वाले शीर्ष देश फ्राँस (60%), जर्मनी (50%), यूनाइटेड किंगडम (40%), स्पेन (33%) और हंगरी (18%) हैं।
- उच्च उत्तराधिकार करों वाले अन्य देश जापान (55%), दक्षिण कोरिया (50%), इक्वाडोर (37%), चिली (25%), दक्षिण अफ्रीका (25%) और ताइवान (20%) हैं।
भारत में उत्तराधिकार कर लागू करने की मांग को कौन-से कारक प्रभावित करते हैं?
- भारत में धन और आय असमानता में वृद्धि:
- विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत विश्व स्तर पर सबसे असमान देशों में से एक है, शीर्ष 10% और शीर्ष 1% देशों के पास क्रमशः 57% तथा 22% राष्ट्रीय आय है।
- इसके अतिरिक्त निचले 50% राष्ट्रों की हिस्सेदारी घटकर मात्र 13% रह गई है।
- भारत अत्यधिक संपत्ति असमानता प्रदर्शित करता है, जिसमें शीर्ष 10% जनसंख्या के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77% हिस्सा है।
- भारत में 1% धनी व्यक्तियों के पास देश की 53% संपत्ति है, जबकि जनसंख्या के अधिकांश गरीब तबके के पास केवल 4.1% संपत्ति है।
- विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत विश्व स्तर पर सबसे असमान देशों में से एक है, शीर्ष 10% और शीर्ष 1% देशों के पास क्रमशः 57% तथा 22% राष्ट्रीय आय है।
- गरीबों पर कर चुकाने का दवाब:
- देश में कुल वस्तु एवं सेवा कर (GST) का लगभग 64% नीचे की 50% जनसंख्या द्वारा प्राप्त हुआ, जबकि 10% शीर्ष द्वारा केवल 4% प्राप्त हुआ।
- समावेशी विकास का अभाव:
- आर्थिक लाभ का विषम वितरण: आर्थिक विकास से कुछ क्षेत्रों या आय समूहों को असमान रूप से लाभ हो सकता है, जिससे धन का असमान वितरण हो सकता है।
- सामाजिक सुरक्षा जाल की कमी: अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा जाल होने तथा कल्याण कार्यक्रम का कमज़ोर जनसंख्या को पर्याप्त समर्थन न दिये जाने के कारण जनसंख्या में धन का अंतर बढ़ सकता है।
- नीति आयोग के राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के अनुसार, वर्ष 2019-21 में बहुआयामी गरीबी में रहने वाली भारत की जनसंख्या 14.96% थी।
- भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 19.28% बहुआयामी गरीबी दर्ज़ की गई।
- शहरी क्षेत्रों में गरीबी दर 5.27% थी।
- भारत में गिनी संपत्ति गुणांक वर्ष 2017 में बढ़कर 85.4% हो गया है जो वर्ष 2013 में 81.3% था (100% अधिकतम असमानता का प्रतिनिधित्व करता है)। भारत में विकास समावेशी नहीं रहा है।
- सामाजिक क्षेत्र के संस्थानों के लिये वृतिक: उत्तराधिकार कर से प्राप्त होने वाला वृतिक (Endowments) और धनराशि भारतीय अस्पतालों, विश्वविद्यालयों एवं अन्य संस्थानों के लिये आवश्यक है। उदाहरण के लिये, संपदा से धन प्राप्त करने वाले हार्वर्ड विश्वविद्यालय को उत्तराधिकार कर से छूट प्राप्त है।
- अधिक प्रत्यक्ष करों की और आवश्यकता: हाल के वर्षों में सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ा है। इसलिये FRBM अधिनियम के अनुसार, राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के लिये उत्तराधिकार कर जैसे प्रत्यक्ष करों के अतिरिक्त स्रोतों की खोज की जानी चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएँ: इंग्लैंड, फ्राँस, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देश तथा भारत के दक्षिण पूर्व एशियाई समकक्ष जैसे फिलीपींस, ताइवान और थाईलैंड उत्तराधिकार कर वसूल रहे हैं।
विश्व बैंक अध्ययन 2000 द्वारा (1970-1990 के दौरान भारत की निर्धनता में कमी):
- जब शुरुआती वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर मात्र 3.5% से बढ़ी, तो भारत की निर्धनता में निरंतर कमी हुई।
- अध्ययन में पाया गया कि औसत उपभोग में वृद्धि गरीबी में कुल कमी का आश्चर्यजनक रूप से 87% है, जबकि पुनर्वितरण इस गिरावट का केवल 13% है।
भारत में उत्तराधिकार कर के कार्यान्वयन में लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं?
लाभ:
- धन का अधिक कुशलता से वितरण: भारत में अमीर और सबसे अमीर परिवारों को बड़ी मात्रा में धन विरासत में मिला।
- यह न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से असंगत है, बल्कि सामाजिक गतिशीलता को भी प्रतिबंधित करता है।
- इस प्रकार, उत्तराधिकार करों का उचित कार्यान्वयन इस समस्या को काफी हद तक दूर कर सकता है।
- समतावादी आदर्शों पर आधारित: भारत के संविधान में समानता के अधिकार के सिद्धांत में निहित समानता सुनिश्चित करने के लिये प्रारंभिक वृतिक का पुनर्वितरण उस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- प्रगतिशील प्रकृति: उत्तराधिकार कर (Inheritance tax) एक प्रगतिशील कर है क्योंकि यह केवल धनी व्यक्तियों पर अधिक कर का भार डालता है।
- उत्तराधिकार कर के रूप में एकत्रित इस अतिरिक्त कर राजस्व से शासन को देश के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों पर मूल आयकर दायित्व को कम करने की स्वतंत्रता मिलेगी।
- इससे अधिक उद्यम उपक्रम प्रारंभ करने में आने वाली बड़ी बाधाओं से निपटने में सहायता मिल सकती है।
चुनौतियाँ:
- कर संरचना की जटिलता: भारत में पूर्व से ही केंद्र और राज्य स्तरों पर विभिन्न करों के साथ एक जटिल कर प्रणाली मौज़ूद है।
- उत्तराधिकार कर जैसे अतिरिक्त कर को लागू करने से यह जटिलता और बढ़ जाएगी, जिससे अनुपालन एवं प्रवर्तन चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
- उत्तराधिकार कर को लागू और प्रशासित करने के लिये एक दृढ़ प्रशासनिक बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है।
- धनी परिवारों का प्रतिरोध: भारत में धनी परिवार उत्तराधिकार कर लगाने का विरोध कर सकते हैं, क्योंकि इससे उनके उत्तराधिकारियों को दी जाने वाली संपत्ति की मात्रा कम हो जाएगी।
- यह प्रतिरोध राजनीतिक और सामाजिक रूप से प्रकट हो सकता है, जिससे शासन के लिये भारत में इस प्रकार के कर को लागू करना तथा जारी रखना कठिन हो जाएगा।
- उत्तराधिकार कर का परिवारिक स्वामित्व वाले व्यवसायों पर प्रभाव पड़ सकता है, विशेषतः उन क्षेत्रों में जहाँ उत्तराधिकार महत्त्वपूर्ण है।
- व्यापक डेटा का अभाव: एक प्रभावी उत्तराधिकार कर को लागू करने के लिये व्यक्तियों की संपत्ति एवं परिसंपत्तियों से संबंधित सटीक डेटा की आवश्यकता है।
- भारत में उत्तराधिकार और धन वितरण पर व्यापक डेटा एकत्र करने में चुनौतियाँ हो सकती हैं, विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ अनौपचारिक अर्थव्यवस्थाएँ प्रचलित हैं।
- परिहार एवं अपवंचन: अत्यधिक धनी व्यक्ति अपने जीवनकाल के दौरान ट्रस्ट, विदेशी खाते एवं संपत्ति उपहार में देने जैसे विभिन्न माध्यमों से उत्तरधिकार कर से बचने या अपवंचन का प्रयास कर सकते हैं।
- कृषि भूमि पर प्रभाव: भारत में कृषि योग्य भूमि महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक एवं आर्थिक मूल्य रखती है और इसे उत्तराधिकार के रूप में देना पीढ़ियों से चला आ रहा है।
- कृषि भूमि पर उत्तराधिकार कर लगाने से कृषि समुदायों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है और भूमि जोत के विखंडन के विषय में चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
भारत में अन्य कौन-से कर हैं?
- मृत्यु कर: 1953 में भारत की संसद ने संपदा शुल्क 'मृत्यु कर' अधिनियम पारित किया था, जिसे बाद में 1985 में समाप्त कर दिया गया था।
- अधिनियम के अनुसार, यह कर कृषि भूमि सहित चल और अचल संपत्ति के मूल मूल्य पर लगाया गया था, वह संपत्ति जो इस के स्वामी की मृत्यु के उपरांत किसी व्यक्ति को उत्तराधिकार में दी गई थी।
- यह अधिनियम केवल तभी लागू होता था जब संपत्ति के मालिक की मृत्यु वयस्क अवस्था में हो जाती थी (अर्थात 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो)।
- इसके अतिरिक्त, संपत्ति शुल्क केवल उत्तराधिकार में प्राप्त उन संपत्तियों पर लागू होता था, जिनका मूल्य अधिनियम द्वारा निर्धारित बहिष्करण सीमा से अधिक था, तथा कर की दर की गणना संपत्ति के स्वामी की मृत्यु के समय के बाज़ार मूल्य के अनुसार की जाती थी।
- इसमें भारत और विदेश में मृतक के स्वामित्व वाली चल व अचल संपत्तियाँ सम्मिलित थीं, जो उत्तराधिकारी को प्रदान दी जाती थीं- यदि संपत्ति के स्वामी की मृत्यु भारत में निवास करते समय हुई थी।
- उपहार कर (Gift Tax):
- उपहार कर अधिनियम 1958 में संसद द्वारा पारित किया गया था। इसने उस वित्तीय वर्ष में एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को दिये गए किसी भी 'उपहार' पर शुल्क लगाया।
- इस पर 30% की दर से शुल्क लगाया गया था।
- उपहार को 01 अप्रैल, 1957 के बाद धन के संदर्भ में इसके मूल्य पर विचार किये बिना, एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को स्वेच्छा से हस्तांतरित किसी भी मौजूदा चल या अचल संपत्ति के रूप में परिभाषित किया गया था।
- उद्देश्य यह था कि जब एक उच्च आयकर दाता ने निम्न आयकर के दायरे में आने वाले दानकर्त्ता को संपत्ति हस्तांतरित की तो सरकार ने कम हुए कर राजस्व में से कुछ की वसूली करना चाहा।
- संपत्ति शुल्क लागू करते समय आने वाली समान बाधाओं के कारण, इस कर को 1998 में समाप्त कर दिया गया था।
- इसे 2004 में आयकर अधिनियम में परिवर्धन के भाग के रूप में वित्त अधिनियम में पुनः प्रस्तुत किया गया था।
- 50,000 रुपए से अधिक का कोई भी नकद उपहार और 50,000 रुपए से अधिक मूल्य का कोई भी उपहार (यानी अचल संपत्ति) कर योग्य है।
- अपवादों में शादियों के दौरान प्राप्त दान, विरासत और उपहार राशि शामिल हैं।
- संपत्ति कर (Wealth Tax):
- इसे 1957 में किसी व्यक्ति की निवल संपत्ति पर शुल्क लगाने के लिये पेश किया गया था।
- उस वित्तीय वर्ष में एक नागरिक द्वारा अर्जित 30 लाख रुपए से अधिक की कमाई पर 1% शुल्क लगाया गया था।
- यह कर भारतीय नागरिकों की सभी संपत्तियों और केवल प्रवासी भारतीयों (Non-Residential Indians (NRI) की भारतीय संपत्तियों पर लगाया गया था।
- इस शासन के दायरे में आने वाली संपत्ति में सोना, चाँदी और प्लैटिनम के गहने, निज़ी विमान, जहाज़ व कार जैसे परिवहन वाहन, किसी के आवासीय घर के अतिरिक्त संपत्ति तथा 50,000 रुपए से ऊपर की कोई भी नकदी शामिल थी।
- कानून के तहत छूट में किराये की संपत्ति, व्यावसायिक संपत्ति, निर्धारित सीमा से कम छोटी संपत्ति और योजनाओं में निवेश शामिल हैं।
- कार्यान्वयन में भारी लागत के कारण 2015 में इस कर को भी समाप्त कर दिया गया था।
आगे की राह
- उच्च सीमा निर्धारित करना: यदि सरकार उत्तराधिकार कर लागू करने का उद्देश्य रखती है, तो उसे इसे एक उच्च सीमा के साथ लागू करना चाहिये, ताकि केवल अत्यधिक-अमीर लोगों पर ही कर लगाया जा सके।
- दान हेतु छूट का प्रावधान: अत्यधिक अमीरों द्वारा अस्पतालों और विश्वविद्यालयों को दी जाने वाली बंदोबस्ती को उत्तराधिकार कर गणना से छूट दी जानी चाहिये।
- सरकार की कर प्रशासनिक क्षमता में सुधार: कर एजेंसियों को उत्तराधिकार कर के प्रशासन और निगरानी अनुपालन की लागत को कम करने के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: उत्तराधिकार कर (Inheritance tax) क्या है और इसे भारत में क्यों समाप्त कर दिया गया? भारत में आर्थिक असमानता को कम करने पर इसकी वांछनीयता और प्रभाव पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 'आधार क्षरण और लाभ स्थानांतरण' शब्द को कभी-कभी समाचारों में किसके संदर्भ में देखा जाता है? (2016) (a) बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा संसाधन संपन्न लेकिन पिछड़े क्षेत्रों में खनन संचालन उत्तर (B) प्रश्न. वर्ष-प्रतिवर्ष निरंतर घाटे का बजट रहा है। घाटे को कम करने के लिये सरकार द्वारा निम्नलिखित में से कौन-सी कार्यवाई/कार्यवाईयांँ की जा सकती है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. उन अप्रत्यक्ष करों को गिनाइये जो भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में सम्मिलित किये गए हैं। भारत में जुलाई 2017 से क्रियान्वित जीएसटी के राजस्व निहितार्थों पर भी टिप्पणी कीजिये। ( 2019) |