भारत में मुद्रास्फीति: मांग बनाम आपूर्ति | 03 Jan 2024

प्रिलिम्स के लिये:

मुद्रास्फीति, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) हेडलाइन मुद्रास्फीति, कोविड-19, महामारी, रूस-यूक्रेन संघर्ष, लॉकडाउन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, मांगजनित मुद्रास्फीति, लागत जनित मुद्रास्फीति

मेन्स के लिये:

मुद्रास्फीति पर मांग और आपूर्ति का प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

भारत की हालिया मुद्रास्फीति दर चिंता का एक विषय है, लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की हालिया अवलोकन से आपूर्ति और मांग दोनों कारकों से प्रभावित होने वाली बाज़ार की बदलती प्रवृत्ति के संकेत मिलते हैं।

हाल के वर्षों में भारत में मुद्रास्फीति का क्या कारण है?

  • कोविड-19 की दोनों लहरों के दौरा आपूर्ति में व्यवधान मुद्रास्फीति का मुख्य कारण था। 
    • महामारी की शुरुआत, लॉकडाउन के कारण उत्पादन और मांग में कमी से आर्थिक विकास में भारी गिरावट आई।
    • इस चरण में कम मांग के कारण कमोडिटी की कीमतों में भी कमी देखी गई।
    • टीकों के वितरण और नियंत्रित मांग जारी होने के साथ अर्थव्यवस्था में पुनः सुधार हुआ, आपूर्ति की तुलना में मांग में तेज़ी से वृद्धि हुई। इस असंतुलन के परिणामस्वरूप कमोडिटी/वस्तुओं की कीमतों पर दबाव बढ़ गया। 
  • वर्ष 2022 में रूस-यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत ने आपूर्ति शृंखला चुनौतियों को और बढ़ा दिया तथा कमोडिटी की कीमतों पर दबाव डाला।

मुद्रास्फीति के कारणों का आकलन करने की पद्धति क्या है?

  • एक महीने के भीतर कीमतों और वस्तु की मात्रा (prices and quantities) में अप्रत्याशित बदलाव यह निर्धारित करते हैं कि मुद्रास्फीति मांगजनित (जब कीमतें और मात्राएँ समानुपाती होती हैं) या आपूर्तिजनित (जब कीमतें और मात्राएँ व्युत्क्रमानुपाती होती हैं) है।
    • मांग (demand) में वृद्धि से कीमतों और मात्रा दोनों में वृद्धि होती है जबकि मांग में कमी से दोनों में कमी आती है।
    • यदि कीमतों और मात्राओं में अप्रत्याशित परिवर्तन होता है जो एक-दूसरे के विपरीत बढ़ते हैं, तो मुद्रास्फीति को आपूर्ति-प्रेरित माना जाता है। आपूर्ति में कमी कम मात्रा लेकिन कीमत में वृद्धि से संबंधित है। 
  • समग्र हेडलाइन मुद्रास्फीति (overall headline inflation) का आकलन करने के लिये उप-समूह स्तर पर मांग और आपूर्ति कारकों को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer price index- CPI) का उपयोग करके जोड़ा गया था।
  • हेडलाइन मुद्रास्फीति, अर्थव्यवस्था की कुल मुद्रास्फीति की माप है, जिसमें खाद्य एवं ऊर्जा की कीमतें इत्यादि शामिल हैं, जो अधिक अस्थिर(volatile) होती हैं और इनसे मुद्रास्फीति के बढ़ने की संभावना होती है।
    • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI), जो यह निर्धारित करता है कि वस्तुओं की एक निश्चित टोकरी (basket of goods) खरीदने की लागत की गणना करके पूरी अर्थव्यवस्था में कितनी मुद्रास्फीति हुई है, इसका उपयोग हेडलाइन मुद्रास्फीति के आँकड़े ज्ञात करने के लिये किया जाता है।

मुद्रास्फीति क्या है?

  • परिचय:
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) द्वारा परिभाषित मुद्रास्फीति, एक निश्चित अवधि में कीमतों में वृद्धि की दर है, जिसमें समग्र मूल्य वृद्धि या विशिष्ट वस्तुओं और सेवाओं की व्यापक माप शामिल है।
    • यह जीवन यापन की बढ़ती लागत को दर्शाता है और इंगित करता है कि एक निर्दिष्ट अवधि, आमतौर पर एक वर्ष में, वस्तुओं और/या सेवाओं की लागत का एक समुच्चय कितना महँगा हो गया है।
      • आर्थिक असमानताओं और बड़ी आबादी के कारण भारत में मुद्रास्फीति का प्रभाव विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
  • मुद्रास्फीति के विभिन्न कारण:
    • मांगजनित मुद्रास्फीति (Demand Pull Inflation):
      • मांगजनित मुद्रास्फीति (Demand Pull Inflation) तब होती है जब वस्तुओं और सेवाओं की मांग उनकी आपूर्ति से अधिक हो जाती है। जब अर्थव्यवस्था में समग्र मांग अधिक होती है, तो उपभोक्ता उपलब्ध वस्तुओं तथा सेवाओं के लिये अधिक भुगतान करने को तैयार होते हैं, जिससे कीमतों में सामान्य वृद्धि होती है।
        • उच्च उपभोक्ता व्यय वाली एक उभरती अर्थव्यवस्था अतिरिक्त मांग उत्पन्न कर सकती है, जिससे कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है।
    • लागतजनित मुद्रास्फीति:
      • लागतजनित मुद्रास्फीति (Cost-Push inflation) वस्तुओं तथा सेवाओं की उत्पादन लागत में वृद्धि से प्रेरित होती है। यह बढ़ी हुई आय, कच्चे माल की बढ़ी हुई लागत अथवा आपूर्ति शृंखला में व्यवधान जैसे कारकों के कारण हो सकता है।
    • अंतर्निहित अथवा वेतन-मूल्य मुद्रास्फीति:
      • इस प्रकार की मुद्रास्फीति को अमूमन मज़दूरी तथा कीमतों के बीच फीडबैक लूप के रूप में वर्णित किया जाता है। जब श्रमिक अधिक वेतन की मांग करते हैं तो व्यवसाय बढ़ी हुई श्रम लागत की पूर्ति करने के लिये कीमतें बढ़ा सकते हैं। यह श्रमिकों को अधिक वेतन की मांग करने के लिये प्रेरित करता है तथा यह चक्र जारी रहता है।
        • श्रमिक संघों द्वारा सामूहिक सौदेबाज़ी के परिणामस्वरूप उच्च मज़दूरी दर प्राप्त हो सकती है, जिससे उत्पादन लागत में वृद्धि हो सकती है तथा बाद में वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष  प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति या उसमें वृद्धि निम्नलिखित किन कारणों से होती है? (2021)

  1. विस्तारित नीतियाँ 
  2. राजकोषीय प्रोत्साहन 
  3. मुद्रास्फीति सूचकांकन मज़दूरी 
  4. उच्च क्रय शक्ति 
  5. बढ़ती ब्याज़ दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2, 3 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (a)