अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारतीय प्रधानमंत्री की यूरोपीय देशों की यात्रा
- 05 May 2022
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प्रिलिम्स के लिये:नॉर्डिक देश, यूरोप में भौगोलिक स्थान, पहला भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन। मेन्स के लिये:द्वितीय विश्व युद्ध, भारतीय प्रधानमंत्री की यूरोप यात्रा, भारत-जर्मनी संबंध, भारत-डेनमार्क संबंध, भारत-फ्राँस संबंध, भारत-यूरोप संबंध, भारत से जुड़े समूह और समझौते और/या भारत के हितों, द्विपक्षीय समूहों और समझौतों को प्रभावित करना। |
चर्चा में क्यों?
भारत के प्रधानमंत्री तीन यूरोपीय देशों- ज़र्मनी, डेनमार्क और फ्रांँस की यात्रा पर हैं। उनकी यह विदेश यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब यूरोप रूस-यूक्रेन युद्ध का साक्षी बना हुआ है।
- भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा इस बात पर प्रकाश डालती है कि भारत यूरोप के साथ अपने संबंधों को कितना महत्त्व देता है।
यात्रा का महत्त्व:
- भारत-जर्मनी संबंध:
- पृष्ठभूमि: जर्मनी, यूरोप में भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण भागीदारों में से एक है, जिसके गहरे द्विपक्षीय संबंध हैं और यूरोपीय संघ में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- भारत द्वितीय विश्व युद्ध (WWII) के बाद जर्मनी के संघीय गणराज्य के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक था।
- भारत और जर्मनी के बीच मई 2000 से 'रणनीतिक साझेदारी' है और वर्ष 2011 में सरकार के प्रमुखों के स्तर पर अंतर-सरकारी परामर्श (IGC) के शुभारंभ के साथ इसे मज़बूत किया गया है।
- भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल है जिनके साथ जर्मनी का संवाद तंत्र है।
- महत्व: रूस-यूक्रेन युद्ध में जर्मनी महत्त्वपूर्ण रणनीतिक विकल्प बना है।
- इसने रूस पर अपनी ऊर्जा निर्भरता को कम करने के साथ रक्षा खर्च बढ़ाने का फैसला किया है, यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की स्थिति को देखते हुए महत्त्वपूर्ण कदम है।
- भारत भी रक्षा आपूर्ति के लिये रूस पर निर्भर है, अतः भारत और जर्मनी का रणनीतिक विकल्पों पर आपस में नोट्स का आदान-प्रदान करना और अपनी-अपनी ज़रूरतों के लिये रूस से दूर जाना महत्त्वपूर्ण होगा।
- पृष्ठभूमि: जर्मनी, यूरोप में भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण भागीदारों में से एक है, जिसके गहरे द्विपक्षीय संबंध हैं और यूरोपीय संघ में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- भारत-डेनमार्क संबंध:
- पृष्ठभूमि: सितंबर 2020 में आयोजित वर्चुअल समिट के दौरान द्विपक्षीय संबंधों को "हरित रणनीतिक साझेदारी" के स्तर तक बढ़ा दिया गया था।
- पहला भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन सहयोग के नए क्षेत्रों का पता लगाने के लिये अप्रैल 2018 में हुआ था।
- यह सहयोग महत्त्वपूर्ण है क्योंकि नॉर्डिक देशों- स्वीडन, फिनलैंड, नॉर्वे, डेनमार्क, आइसलैंड का इस तरह का सहयोग केवल अमेरिका के साथ है।
- महत्त्व: नॉर्डिक देश नवाचार, स्वच्छ ऊर्जा, हरित प्रौद्योगिकी, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, मानवाधिकार एवं कानून के शासन में अग्रणी हैं। इन देशों के साथ सहयोग भारत के लिये अपनी ताकत का विस्तार करने हेतु बहुत बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है।
- साथ ही भारत अपने बड़े बाज़ार के कारण इन देशों के लिये भी अवसर प्रस्तुत करता है।
- भारत द्वारा कई नई प्रमुख योजनाएँ शुरू की गई हैं जिसमें नॉर्डिक देश सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं और अपनी विशेषज्ञता प्रदान कर सकते हैं। जैसे मेक इन इंडिया, स्मार्ट सिटीज़ मिशन, स्टार्ट-अप इंडिया, स्वच्छ गंगा आदि।
- पृष्ठभूमि: सितंबर 2020 में आयोजित वर्चुअल समिट के दौरान द्विपक्षीय संबंधों को "हरित रणनीतिक साझेदारी" के स्तर तक बढ़ा दिया गया था।
- भारत-फ्राँस संबंध:
- पृष्ठभूमि: भारत और फ्रांस के पारंपरिक रूप से घनिष्ठ संबंध रहे हैं।
- वर्ष 1998 में दोनों ने एक रणनीतिक साझेदारी शुरू की, जिसमें रक्षा और सुरक्षा सहयोग, अंतरिक्ष सहयोग तथा असैन्य परमाणु सहयोग स्तंभ थे।
- भारत एवं फ्राँस के बीच एक मज़बूत आर्थिक साझेदारी है और सहयोग के नए क्षेत्रों में तेज़ी से संलग्न हैं।
- वर्ष 1998 के पोखरण परीक्षणों के बाद भारत की निंदा नहीं करने वाले कुछ पश्चिमी देशों में फ्राँस भी शामिल था।
- इसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिये भारत के दावे का समर्थन करना जारी रखा है।
- मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था, वासेनार व्यवस्था और ऑस्ट्रेलिया समूह में भारत के प्रवेश में फ्राँस का समर्थन महत्त्वपूर्ण था।
- फ्राँस परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में शामिल होने के लिये भारत का समर्थन करना जारी रखता है।
- फ्राँस ने यूएनएससी 1267 प्रतिबंध समिति के तहत भारतीय नागरिकों को सूचीबद्ध करने के पाकिस्तान के प्रयासों को रोकने के लिये भारत के अनुरोधों का भी समर्थन किया है।
- महत्त्व:
- हिंद महासागर में साझा हित: फ्राँस को अपनी औपनिवेशिक क्षेत्रीय संपत्ति, जैसे- रीयूनियन द्वीप और हिंद महासागर को भारत के लिये प्रभाव का क्षेत्र होने, की रक्षा करने की आवश्यकता है।
- आतंकवाद का मुकाबला: फ्राँस ने आतंकवाद पर वैश्विक सम्मेलन के लिये भारत के प्रस्ताव का समर्थन किया है।
- दोनों देश एक नए "नो मनी फॉर टेरर"- फाइटिंग टेररिस्ट फाइनेंसिंग’ पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन का भी समर्थन करते हैं।
- फ्राँस द्वारा भारत का समर्थन: फ्राँस, कश्मीर पर भारत का लगातार समर्थन करता रहा है, जबकि पाकिस्तान के साथ उसके संबंधों में हाल के दिनों में कमी देखी गई है और चीन के साथ संशययुक्त संबंध हैं।
- रक्षा सहयोग: भारत और फ्राँस घनिष्ठ रक्षा साझेदारी के चरण में प्रवेश कर चुके हैं। उदाहरण के लिये हाल ही में भारतीय वायु सेना (IAF) में फ्रांँस के राफेल की बहु-भूमिका लड़ाकू श्रेणी के विमान को शामिल किया गया है।
- पृष्ठभूमि: भारत और फ्रांस के पारंपरिक रूप से घनिष्ठ संबंध रहे हैं।
- भारत-यूरोप संबंध:
- पृष्ठभूमि: 1962 में भारत यूरोपीय आर्थिक समुदाय के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक था।
- 1994 में हस्ताक्षरित एक सहयोग समझौते ने मंत्री स्तरीय बैठकों और राजनीतिक संवादों को शामिल कर संबंधों को और व्यापक बनाया।
- राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों, जलवायु परिवर्तन तथा स्वच्छ ऊर्जा, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष व परमाणु, स्वास्थ्य, कृषि और खाद्य सुरक्षा, शिक्षा तथा संस्कृति को शामिल कर इन संबंधों का विस्तार किया गया है।
- यात्रा का महत्त्व: यूरोप की यात्रा से भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन के लिये मंच तैयार करने और मुक्त व्यापार समझौते की वार्ता को बढ़ावा मिलने की संभावना है, जो पिछले डेढ़ दशक से चल रही है।
- पृष्ठभूमि: 1962 में भारत यूरोपीय आर्थिक समुदाय के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक था।