शासन व्यवस्था
भारत का चमड़ा उद्योग
- 22 Apr 2025
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प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय हरित अधिकरण, भारतीय फुटवियर और चमड़ा विकास कार्यक्रम, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना, माल और सेवा कर, व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण मेन्स के लिये:भारत की अर्थव्यवस्था और रोज़गार में चमड़ा उद्योग, सतत् औद्योगिकीकरण |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
केंद्र ने कानपुर के रमईपुर में एक मेगा लेदर क्लस्टर बनाने का प्रस्ताव दिया है। इस परियोजना का उद्देश्य चमड़ा क्षेत्र का पुनरुत्थान करना है, जो एक समय इस क्षेत्र की पहचान और अर्थव्यवस्था का केंद्र था, लेकिन वर्तमान में प्रदूषण नियंत्रण, व्यापार में गिरावट और अनुपयुक्त श्रम स्थितियों से त्रस्त है।
कानपुर में चमड़ा उद्योग के पतन का क्या कारण था?
- विरासत: कानपुर को अपने समृद्ध ब्रिटिश युग के चमड़ा उद्योग, गंगा नदी की निकटता और श्रमिकों की पर्याप्त संख्या के कारण "लेदर सिटी ऑफ इंडिया" कहा जाता था।
- वर्ष 1857 के बाद हुए परिवर्तनों के परिणामस्वरुप 600 चमड़े के कारखानों में 1 लाख से अधिक श्रमिकों को रोज़गार प्राप्त हुआ।
- विमुद्रीकरण और प्रदूषण नियंत्रण का प्रभाव (2016-17): वर्ष 2016 में हुए विमुद्रीकरण से कानपुर का चमड़ा उद्योग गंभीर रूप से प्रभावित हुआ, क्योंकि नकदी की कमी और सीमित डिजिटल वित्तीय समावेशन से भुगतान और कच्चे माल की खरीद सीमित हो गई, जिससे उत्पादन में भारी गिरावट आई।
- इसके पश्चात्, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) के 2017 के निर्देश में बुनियादी ढाँचे में 50% की कटौती का आदेश दिया गया, जिसका पालन न करने पर प्रतिदिन 12,500 रुपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया।
- इसके परिणामस्वरूप कारखानों को अपूर्ण क्षमता के साथ कार्य करना पड़ा अथवा आंतरायिकता में समापन करना पड़ा।
- इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने चमड़े के कारखानों से निकलने वाले अपशिष्टों के कारण गंगा और मिट्टी प्रदूषित होने पर चिंता जताई है, जिनमें क्रोमियम और पारा जैसी भारी धातुएँ पाई गई हैं, जो कानपुर और आसपास के क्षेत्रों के निवासियों के रक्त के नमूनों में भी उच्च स्तर पर पाई गई हैं।
- परिचालन लागत में वृद्धि: चमड़े के कारखानों के अपशिष्ट उपचार की लागत 2 रुपए से बढ़कर 100 रुपए प्रति चमड़ा हो गई, जिससे प्रदूषण नियंत्रण का बोझ चमड़े के कारखानों के मालिकों पर आ गया।
- सख्त अनुपालन नियमों के कारण, अपशिष्ट जल उपचार की लागत को व्यवसायों में स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे लाभ मार्जिन में काफी कमी आई।
- परिणामस्वरूप, कानपुर में चमड़े के कारखानों ने अपने परिचालन को लगभग 600 से घटाकर 200 से अधिक कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर रोज़गार कम हुए हैं और श्रमिकों की आय में कमी आई है।
भारत के चमड़ा उद्योग का महत्त्व क्या है?
- चमड़ा उप-क्षेत्र: भारत के चमड़ा उद्योग में चार क्षेत्र शामिल हैं: टैनिंग, फुटवियर, चमड़ा वस्त्र और सहायक उपकरण।
- तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्य अग्रणी उत्पादक हैं।
- वैश्विक नेतृत्व: भारत वैश्विक स्तर पर चीन के बाद चमड़े के जूते का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है।
- चीन के बाद भारत चमड़े के वस्त्रों का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है, तथा विश्व में चमड़े की वस्तुओं का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है।
- विश्व के चमड़ा उत्पादन में इसका योगदान 13% है, जिससे यह निर्यात में प्रमुख योगदानकर्ता बन गया है।
- भारत में विश्व की 20% गाय और भैंस जनसंख्या तथा 11% बकरी और भेड़ जनसंख्या है, जिससे कच्चे माल की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
- रोज़गार: भारत का चमड़ा उद्योग 4.42 मिलियन लोगों को रोज़गार देता है, जिसमें 30% महिला कार्यबल हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
- भारत का चमड़ा निर्यात विवरण: वित्त वर्ष 2025 (अप्रैल-दिसंबर) में देश के कुल चमड़ा निर्यात में वस्त्र क्षेत्र का योगदान 7.62% था।
- भारत 50 से अधिक देशों को चमड़ा निर्यात करता है, जिसमें अमेरिका (21.82%), जर्मनी (11.33%), और UK (9.17%) शीर्ष आयातक हैं।
- भारत की पहल: चमड़ा निर्यात परिषद (CLE), वाणिज्य मंत्रालय के तहत शीर्ष निर्यात संवर्द्धन परिषद, बाज़ार पहुँच, क्रेता-विक्रेता बैठकों की सुविधा प्रदान करती है, तथा नीति और उद्योग के बीच एक सेतु का काम करती है।
- भारतीय फुटवियर और चमड़ा विकास कार्यक्रम (IFLDP) का लक्ष्य, वर्ष 2026 तक 1,700 करोड़ रुपए का बजट है, जिसका उद्देश्य चमड़ा क्षेत्र में विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धा और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देना है।
- प्रस्तावित उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना (केंद्रीय बजट 2025-26) में टर्नओवर को 4 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाने, 2.2 मिलियन रोज़गार सृजित करने और घरेलू मूल्य संवर्द्धन को बढ़ावा देने के लिये 2,600 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन योजना की परिकल्पना की गई है।
भारत के चमड़ा उद्योग के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- निर्यात में गिरावट: अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाज़ारों से कमज़ोर मांग के कारण वित्त वर्ष 24 में चमड़ा और चमड़े के सामान का निर्यात लगभग 10% गिर गया।
- सबसे बड़े चमड़ा निर्यातक तमिलनाडु में 18% की गिरावट देखी गई, जिससे राष्ट्रीय आँकड़े काफी प्रभावित हुए।
- रूस -यूक्रेन युद्ध ने यूरोजोन की अर्थव्यवस्था को बाधित कर दिया है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय मांग कम हो गई है।
- कृत्रिम चमड़े (लेदर) के विकल्पों से खतरा और नवाचार की कमी: फॉक्स लेदर, कॉर्क लेदर, ओसियन लेदर, माइक्रोफाइबर और वेगन लेदर जैसे पर्यावरण अनुकूल विकल्पों के उदय से चमड़े (लेदर) का विशिष्ट बाज़ार नष्ट हो रहा है।
- ये विकल्प सस्ते हैं और वैश्विक बाज़ारों में, विशेषकर पर्यावरण के प्रति जागरूक अर्थव्यवस्थाओं में, तेज़ी से स्वीकार किये जा रहे हैं।
- जबकि भारत के चमड़ा उद्योग में धीमी गति से नवाचार और अनुसंधान एवं विकास की कमी इसकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा डालती है।
- पर्यावरणीय विनियमन और अनुपालन बोझ: चमड़ा उद्योग स्वाभाविक रूप से प्रदूषणकारी है, क्योंकि इससे भारी मात्रा में रासायनिक और कार्बनिक अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं, जिनमें हेक्सावेलेंट क्रोमियम जैसे खतरनाक पदार्थ भी शामिल हैं।
- कई चमड़े के कारखानों में अपशिष्ट उपचार की क्षमता का अभाव है जहाँ अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में कार्य किया जाता हैं, जिससे श्रमिकों को गंभीर स्वास्थ्य जोखिम का सामना करना पड़ता है।
- श्रमिकों को पर्याप्त सुरक्षा या जागरूकता के बिना खतरनाक रसायनों के संपर्क में लाया जाता है, जिससे व्यावसायिक स्वास्थ्य जोखिम और खराब श्रमिक कल्याण उत्पन्न होता है।
- नियामक चुनौतियाँ: बूचड़खानों पर प्रतिबंध और पशु व्यापार पर प्रतिबंधों ने कच्चे माल की उपलब्धता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था से लागत में 6-7% की वृद्धि हुई, जिससे विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को नुकसान पहुँचा।
- NGT और UPPCB के सख्त मानदंडों के कारण विशेष रूप से कानपुर और उन्नाव जैसे केंद्रों में इकाइयाँ बंद हो गई हैं।
- श्रम मुद्दे और कौशल अंतराल: कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा अप्रशिक्षित और अशिक्षित है, जिसके कारण उत्पादकता, स्वास्थ्य और सुरक्षा प्रथाओं के बारे में जागरूकता कम है तथा नई प्रौद्योगिकियों के प्रति अनुकूलन सीमित है।
भारत अपने चमड़ा उद्योग को कैसे पुनर्जीवित कर सकता है?
- CETP को सर्किल्स में बदलना: सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों (CETP) को सर्किल्स (स्वच्छ एकीकृत संसाधन-संरक्षण चमड़ा पारिस्थितिकी तंत्र) में बदलना।
- व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) के माध्यम से विकेंद्रीकृत शून्य तरल निर्वहन (ZLD) सूक्ष्म उपचार संयंत्रों को वित्तपोषित करना।
- डिजिटल अपशिष्ट मीटरिंग और ट्रेसेबिलिटी को अनिवार्य बनाने के साथ इसे केंद्रीय ग्रीन लेदर अनुपालन डैशबोर्ड (पर्यावरण मंजूरी हेतु PARIVESH पोर्टल के समान) से जोड़ा जाए।
- भारत को 'चीन प्लस वन' के रूप में स्थापित करना: बढ़ते अमेरिकी-चीन व्यापार तनाव के बीच भारत वैश्विक चमड़ा मूल्य शृंखला में रणनीतिक रूप से स्वयं को "चीन प्लस वन" केंद्र के रूप में स्थापित कर सकता है।
- भारत विश्वसनीय विकल्प चाहने वाले वैश्विक खरीदारों को आकर्षित कर सकता है। पर्यावरण-अनुपालन और डिज़ाइन नवाचार को मज़बूत करने से भारत एक पसंदीदा सोर्सिंग गंतव्य बन सकता है।
- नवाचार संबंधी अंतराल को कम करना: चमड़ा क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद - केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान संस्थान (CSIR-CLRI) एवं अटल नवाचार मिशन के तहत एक राष्ट्रीय चमड़ा प्रौद्योगिकी हब की स्थापना की जा सकती है।
- इस केंद्र द्वारा स्टार्टअप्स और MSME के साथ मिलकर बायोडिग्रेडेबल टैनिंग एजेंट, क्रोम-मुक्त विकल्प और स्मार्ट पहनने योग्य चमड़े के कंपोजिट का सह-विकास किया जा सकता है।
- नवाचार संबंधी अंतराल को कम करना: चमड़ा क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद - केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान संस्थान (CSIR-CLRI) एवं अटल नवाचार मिशन के तहत एक राष्ट्रीय चमड़ा प्रौद्योगिकी हब की स्थापना की जा सकती है।
- भारतीय चमड़े के लिये एथिकल लक्जरी ब्रांडिंग को अनलॉक करना: धारणीय सोर्सिंग और एथिकल श्रम ऑडिट द्वारा समर्थित "भारत लेदर मार्क" प्रस्तुत करना चाहिये।
- कानपुर, तमिलनाडु और कोलकाता की विरासती कारीगरी को प्रदर्शित करते हुए '100 इंडियन लेदर स्टोरी' नामक वैश्विक ब्रांडिंग अभियान इसी के अनुरूप है ।
- मेक इन इंडिया के तहत वैश्विक फैशन हाउसों के साथ लक्जरी सहयोग को प्रोत्साहित करना ।
- इस क्षेत्र को अनौपचारिक से औपचारिक बनाना: इसमें संलग्न श्रमिक को डिजिटल उद्योग कार्ड प्रदान करना चाहिये ताकि इनकी कौशल, स्वास्थ्य लाभ और दुर्घटना बीमा तक पहुँच सुनिश्चित हो सके।
- क्षेत्र को कुशल बनाने के साथ श्रमिकों का कल्याण सुनिश्चित करना: एक समर्पित श्रमिक कल्याण मिशन के तहत चमड़ा क्लस्टरों में मोबाइल स्वास्थ्य प्रयोगशालाएँ उपलब्ध करानी चाहिये।
- पीएम विश्वकर्मा योजना को एकीकृत करके कारीगरों को आधुनिक, धारणीय तकनीकों में कुशल बनाया जा सकता है। इससे कर्मचारियों की उत्पादकता में 30-35% की वृद्धि होगी जिससे एक स्वस्थ और अधिक अनुकूल कार्यबल सुनिश्चित होगा।
निष्कर्ष
भारत के चमड़ा उद्योग को वृद्धिशील सुधार की नहीं, बल्कि रणनीतिक छलांग की आवश्यकता है। यदि इसे पर्यावरण-रचनात्मक और सांस्कृतिक रूप से निहित निर्यात इंजन के रूप में देखा जाए, तो यह एथिकल चमड़ा शिल्प कौशल के लिये वैश्विक मानक बन सकता है। रमईपुर क्लस्टर केवल एक नीतिगत परियोजना नहीं है बल्कि यह तकनीक, परंपरा एवं विश्वास द्वारा संचालित चमड़ा क्रांति का एक नया केंद्र बन सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत का चमड़ा क्षेत्र वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा और घरेलू विनियमन जैसे दोहरे बोझ का सामना कर रहा है। इसमें गिरावट के कारणों का समालोचनात्मक विश्लेषण करते हुए एक व्यापक पुनरुद्धार रणनीति बताइये। |