लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

सामाजिक न्याय

भारत के बच्चों में आहार विविधता का अभाव

  • 06 Nov 2024
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5), एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS), सार्वजनिक वितरण प्रणाली, शिशु और छोटे बच्चों को आहार देने की पद्धतियाँ (IYCF), UNICEF

मेन्स के लिये:

आहार विविधता प्राप्त करने से संबंधित चुनौतियाँ और सिफारिशें।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत में 6-23 माह की आयु के 77% बच्चे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित आहार विविधता मानकों को पूरा नहीं कर पाते हैं तथा देश के मध्य क्षेत्र में यह समस्या सबसे अधिक है।

न्यूनतम आहार विविधता (MDD)

  • यह 6-23 माह की आयु के बच्चों के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित अनुशंसित मानक को संदर्भित करता है।
  • इसमें सुझाव दिया गया है कि बच्चों को 24 घंटे के भीतर आठ निर्धारित खाद्य समूहों में से कम से कम पाँच खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों का सेवन करना चाहिये।
  • दूध, अनाज, फलियाँ, डेयरी उत्पाद, माँस, अंडे तथा फल और सब्जियाँ। 
  • यदि कोई बच्चा इनमें से पाँच खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करता है तो उसके आहार को MDD के अनुसार अपर्याप्त माना जाता है। 
  • MDD शिशु और युवा बाल आहार (IYCF) प्रथाओं का हिस्सा है, जिसका मूल्यांकन WHO और UNICEF द्वारा विकसित संकेतकों द्वारा किया जाता है। MDD न्यूनतम स्वीकार्य आहार (MAD) संकेतक का भी एक घटक है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • ऐतिहासिक तुलना: वर्ष 2019 और 2021 के बीच आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के आँकड़ों का उपयोग करते हुए शोधकर्त्ताओं द्वारा NFHS-3 (2005-06) में MDD की समग्र विफलता दर को 87.4% से कम अंकित किया गया। 
    • कुछ सुधारों के बावजूद 75% से अधिक बच्चों को अभी भी विविध प्रकार का आहार नहीं मिल पा रहा है, जिससे पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करने में चुनौतियों पर प्रकाश पड़ता है।
  • राज्य स्तर पर भिन्नता: अध्ययन में पाया गया कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में आहार विविधता में 80% से अधिक अपर्याप्तता देखी गई, जिससे क्षेत्रीय स्तर की असमानताओं पर प्रकाश पड़ता है। 
    • इसके विपरीत सिक्किम और मेघालय में यह स्तर 50% से कम रहा, जो सफल स्थानीय पोषण रणनीतियों की देन है। यह अन्य क्षेत्रों के लिये आदर्श हो सकते हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के आहार विविधता मानकों की स्थिति: इस अध्ययन के अनुसार, वैश्विक बाल मृत्यु के लगभग 35% और कुल रोग भार के 11% हेतु अपर्याप्त पोषण उत्तरदायी है। 
    • भारत में 3 में से 1 बच्चा कम वज़न और बौनेपन से ग्रसित है तथा 5 में से 1 बच्चा दुर्बलता का शिकार है।
  • खाद्य समूहों के अनुसार आहार संबंधी रुझान: कुछ आहार संबंधी रुझानों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है।
    • इन लाभों के बावजूद ब्रेस्ट मिल्क और डेयरी उपभोग में गिरावट आई है, ब्रेस्ट मिल्क का सेवन NFHS-3 के 87% से घटकर NFHS-5 में 85% रह गया है और डेयरी उपभोग 54% से घटकर 52% रह गया है।
  • कुपोषण और एनीमिया: इस अध्ययन में इस बात पर बल दिया गया है कि कुपोषण और एनीमिया अभी भी प्रमुख स्वास्थ्य मुद्दे हैं। इसमें पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों के ऐसे बच्चों (जिनकी माताएँ अशिक्षित हैं या जिनकी माताओं की मीडिया और स्वास्थ्य सेवा (जैसे आँगनवाड़ी सेवाओं) तक सीमित पहुँच है) उनके आहार में विविधता की कमी होने की  संभावना अधिक है।

संबंधित अनुशंसाएँ:

  • इस अध्ययन में बाल पोषण में सुधार हेतु मज़बूत सरकारी पहल की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है जैसे कि एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS) और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को बढ़ावा देना। 
  • निष्कर्ष बताते हैं कि लक्षित हस्तक्षेप से आहार संबंधी कमियों की व्यापकता को और भी कम किया जा सकता है।

कुपोषण के प्रकार

  • वेस्टिंग: लंबाई के हिसाब से कम वज़न को वेस्टिंग कहते हैं। व्यक्ति को पर्याप्त भोजन न मिलने और/या उसे कोई संक्रामक बीमारी हो जाने से यह समस्या होती है।
  • स्टंटिंग: उम्र के हिसाब से कम लंबाई को स्टंटिंग कहते हैं। इसका कारण अक्सर अपर्याप्त कैलोरी सेवन होता है, जिसके कारण ऊँचाई के सापेक्ष वज़न कम होता है।
  • कम वज़न: उम्र के हिसाब से कम वज़न वाले बच्चों को कम वज़न वाले बच्चे कहा जाता है। कम वज़न वाला बच्चा बौना, कमज़ोर या दोनों हो सकता है।

भारत में आहार विविधता प्राप्त करने में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • आर्थिक और क्षेत्रीय असमानताएँ: उच्च गरीबी दर और क्षेत्रीय असमानताएँ विविध खाद्य पदार्थों तक पहुँच को सीमित (विशेष रूप से मध्य और पश्चिमी राज्यों में) करती हैं।
  • सीमित पोषण शिक्षा: देखभाल करने वालों के बीच जागरूकता की कमी (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) से संतुलित आहार की समझ न होने के कारण कुपोषण को बढ़ावा मिलता है।
  • सार्वजनिक वितरण अंतराल: सार्वजनिक वितरण प्रणाली अक्सर मुख्य अनाजों पर केंद्रित रहती है, जिससे विविधता सीमित होने के साथ पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे फलियाँ, फल और सब्जियाँ उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।
  • स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक पहुँच और परामर्श की कमी: स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और पोषण परामर्श तक पहुँच में कमी के कारण आवश्यक जानकारी का अभाव रहने से बच्चों के आहार विकल्पों पर प्रभाव पड़ता है।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक कारक: कुछ समुदायों में आहार विकल्प सांस्कृतिक मानदंडों से प्रभावित होते हैं, जिससे बच्चे कुछ खाद्य समूहों से वंचित होने के कारण इनके आहार में विविधता सीमित हो जाती है।

आगे की राह

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को मज़बूत करना: विभिन्न खाद्य समूहों तक पहुँच में सुधार के लिये PDS में पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे दालें, फलियाँ और फोर्टिफाइड अनाज को शामिल करना।
  • पोषण शिक्षा कार्यक्रमों का विस्तार: विविध आहार और भोजन योजना के महत्त्व पर, विशेष रूप से माताओं के लिये, समुदाय-आधारित पोषण शिक्षा पहल को लागू करना।
  • ICDS और आँगनवाड़ी सेवाओं को बढ़ाना: ICDS केंद्रों के माध्यम से बाल पोषण की निगरानी, ​​परामर्श प्रदान करने और संतुलित भोजन विकल्प प्रदान करने के प्रयासों को तेज़ करना।
  • प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया का लाभ उठाना: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को लक्षित करते हुए पोषण जागरूकता अभियानों के लिये डिजिटल प्लेटफार्मों का उपयोग करना, आसानी से सुलभ आहार विविधता प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
  • स्थानीय और किफायती खाद्य विकल्पों को बढ़ावा देना: आहार विविधता को अधिक किफायती तथा टिकाऊ बनाने के लिये दालों, फलों एवं सब्जियों जैसे पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की स्थानीय खेती व खपत को प्रोत्साहित करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: बाल विकास में आहार विविधता के महत्त्व पर चर्चा कीजिये तथा भारत में पोषण संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिये सरकारी उपायों का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के संदर्भ में, प्रशिक्षित सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता 'आशा (ASHA)' के कार्य निम्नलिखित में से कौन-से हैं? (2012)

  1. स्त्रियों को प्रसव-पूर्व देखभाल जाँच के लिये स्वास्थ्य सुविधा केंद्र साथ ले जाना 
  2. गर्भावस्था के प्रारंभिक संसूचन के लिये गर्भावस्था परीक्षण किट प्रयोग करना 
  3. पोषण एवं प्रतिरक्षण के विषय में सूचना देना
  4. बच्चे का प्रसव कराना

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3 
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न: भारत में निर्धनता और भूख के बीच संबंध में एक बढ़ता हुआ अंतर है। सरकार द्वारा सामाजिक व्यय को संकुचित किये जाना, निर्धनों को अपने खाद्य बजट को निचोड़ते हुए खाद्येतर अत्यावश्यक मदों पर अधिक व्यय करने के मजबूर कर रहा है। स्पष्ट कीजिये। (2019)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2