भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा | 17 Apr 2025
प्रिलिम्स के लिये:भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, G20, पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव मेन्स के लिये:भारत की बुनियादी ढाँचा कूटनीति, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, आर्थिक विकास में भू-राजनीति की भूमिका |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने नई दिल्ली में कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास पर उच्च स्तरीय गोलमेज़ सम्मेलन में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) को एक पारमहाद्वीपीय पहल के रूप में रेखांकित किया, जो वैश्विक व्यापार गतिशीलता को पुनर्परिभाषित करने और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग बढ़ाने का कार्य करेगा।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा क्या है?
- परिचय: IMEC एक रणनीतिक मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी पहल है जिसे नई दिल्ली में वर्ष 2023 में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के दौरान एक समझौता ज्ञापन (MoU) के माध्यम से लॉन्च किया गया था। इसके हस्ताक्षरकर्त्ताओं में भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्राँस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ शामिल हैं।
- यह पहल वर्ष 2021 में G7 द्वारा शुरू की गई पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (PGII) का एक हिस्सा है।
- IMEC का उद्देश्य राष्ट्रीय संप्रभुता को अक्षुण्ण रखते हुए पारदर्शी, संधारणीय और ऋण-मुक्त बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देकर इसे चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक व्यवहार्य विकल्प बनाना है।
- कॉरिडोर खंड: IMEC के दो भाग हैं: पूर्वी कॉरिडोर (भारत से खाड़ी) और उत्तरी कॉरिडोर (खाड़ी से यूरोप)।
- उद्देश्य: भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ाने के उद्देश्य से बंदरगाहों, रेलवे, सड़कों, समुद्री लाइनों, ऊर्जा पाइपलाइनों और डिजिटल बुनियादी ढाँचे का एक एकीकृत नेटवर्क विकसित करना।
- भारत के लिये महत्त्व: IMEC के उपयोग से स्वेज़ नहर समुद्री मार्ग की तुलना में रसद लागत 30% तक कम हो जाएगी और परिवहन समय में 40% तक की कमी आएगी, जिससे भारतीय निर्यात की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा बढ़ जाएगी।
- भारत की वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG) पहल IMEC के ऊर्जा लक्ष्यों के अनुरूप है, जिससे भारत मध्य पूर्व से सौर और हरित हाइड्रोजन ऊर्जा का दोहन करने में सक्षम होगा, जो नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता से समृद्ध क्षेत्र है।
- IMEC में व्यापार और ऊर्जा सहयोग बढ़ाने के लिये ऊर्जा पाइपलाइन, स्वच्छ ऊर्जा अवसंरचना और अधोसमुद्री केबल शामिल है।
- यह भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करेगा, विशेष रूप से बुनियादी ढाँचे, लॉजिस्टिक्स, हरित ऊर्जा और डिजिटल प्रौद्योगिकियों में, जिससे भारत को अल्प लागत वाली नवीकरणीय ऊर्जा का अभिगम प्राप्त करने और निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था में संक्रमण करने में मदद मिलेगी।
- IMEC की स्थिति: वर्ष 2023 में इजरायल-हमास संघर्ष के कारण इस परियोजना में अत्यधिक विलंब हुआ। मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक अस्थिरता से अस्थायी रूप से इसकी विकास गति मंद हो गई है।
- इसके बावजूद, कूटनीतिक सहभागिता जारी है जहाँ भारत और UAE ने वर्ष 2024 में एक अंतर-सरकारी रूपरेखा समझौते (IGFA) पर हस्ताक्षर किये, यह परिचालन सहयोग और IMEC के लिये एक संयुक्त रसद मंच के निर्माण पर केंद्रित है।
IMEC की प्रगति के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
- भू-राजनीतिक अस्थिरता: इसकी प्रगति के समक्ष गाज़ा संघर्ष एक गंभीर चिंता का विषय है, जिससे पश्चिम एशिया में कूटनीतिक सामान्यीकरण बाधित हो रहा है, जो IMEC की सफलता का एक प्रमुख आधार है।
- सऊदी-ईरान प्रतिद्वंद्विता और इराक तथा सीरिया में अस्थिरता सहित क्षेत्रीय अस्थिरता, IMEC के तहत बुनियादी ढाँचे के विकास और आपूर्ति शृंखला सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा है।
- स्पष्ट वित्तीय प्रतिबद्धता का अभाव: IMEC का लक्ष्य बुनियादी ढाँचे के अभाव को पूरा करने के लिये वर्ष 2027 तक 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाना है, लेकिन इसमें हितधारकों के बीच स्पष्ट वित्तीय रोडमैप और लागत-साझाकरण योजना का अभाव है।
- इस स्तर के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये दीर्घकालिक निवेश (लगभग 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की आवश्यकता है, जो वैश्विक आर्थिक मंदी के बीच अनिश्चित बना हुआ है।
- व्यापार व्यवधान की संभावना: स्वेज़ नहर अवरोध (2021) और काला सागर नौवहन व्यवधान (रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण) जैसे उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि समुद्री व्यापार अति संवेदनशील है।
- IMEC क्षेत्र में इसी प्रकार की घटनाओं से विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है, जबकि हिंद महासागर में चीन जैसी अतिरिक्त आंचलिक शक्तियों के बढ़ते सैन्यीकरण और नौसेना की उपस्थिति से समुद्री विवाद की आशंका बढ़ती है।
- सीमित भौगोलिक समावेशन: तुर्की, ईरान, कतर और मिस्र जैसे प्रमुख क्षेत्रीय देश वर्तमान में IMEC का हिस्सा नहीं हैं, जिससे इसकी भू-राजनीतिक और आर्थिक पहुँच सीमित हो गई है।
- IMEC की दीर्घकालिक सफलता सतत् राजनीतिक सहयोग पर निर्भर करती है, जो इसमें शामिल देशों के भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय हितों और गठबंधनों के कारण चुनौतीपूर्ण है।
- स्थापित मार्गों से प्रतिस्पर्द्धा: स्वेज़ नहर मार्ग अच्छी तरह से स्थापित है, और इसकी तुलना में IMEC की लागत प्रभावशीलता पर अभी भी बहस चल रही है।
- यदि क्षेत्रीय चुनौतियाँ बनी रहीं तो IMEC एक महँगा विकल्प हो सकता है, जिसमें कोई गारंटीकृत रिटर्न नहीं होगा।
- तकनीकी चुनौतियाँ: समुद्र के नीचे डेटा केबलों सहित IMEC के डिजिटल बुनियादी ढाँचे को सदस्य देशों के बीच अलग-अलग तकनीकी मानकों के कारण एकीकरण संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
- निर्बाध कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना जटिल है, और अमेरिका में कोलोनियल पाइपलाइन घटना जैसे साइबर हमलों का जोखिम वैश्विक डिजिटल प्रणालियों की भेद्यता को रेखांकित करता है।
भारत IMEC को प्रभावी कार्यान्वयन की ओर कैसे ले जा सकता है?
- IMEC की तैयारी के लिये घरेलू बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: भारत पश्चिम एशिया में धीमी प्रगति की इस अवधि का उपयोग अपने बंदरगाहों (मुंद्रा (गुजरात), कांडला (गुजरात) और जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (नवी मुंबई)) को मज़बूत करने, IMEC नोड्स के साथ आर्थिक क्षेत्रों को विकसित करने और वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में बेहतर एकीकरण के लिये घरेलू रसद को उन्नत करने और भारत को एक विश्वसनीय वैश्विक आपूर्ति शृंखला विकल्प के रूप में स्थापित करने के लिये कर सकता है।
- व्यापार प्रक्रिया का मानकीकरण: IMEC के तहत कुशल सीमा पार व्यापार के लिये सभी सदस्य देशों को कागज़ी कार्यवाही को न्यूनतम करने और विलंब को कम करने के लिये इंडिया-UAE वर्चुअल ट्रेड कॉरिडोर जैसे ढाँचे को अपनाने की आवश्यकता है।
- लचीले बुनियादी ढाँचे की ओर: भारत सतत्, जलवायु-लचीले और भू-राजनीतिक रूप से अनुकूलनीय परियोजनाओं के निर्माण के लिये गुणवत्ता बुनियादी ढाँचे के निवेश (QII) के G-20 सिद्धांतों को अपनाने के लिये IMEC देशों का नेतृत्व कर सकता है।
- यह दृष्टिकोण ग्रीन बॉण्ड और सतत् वित्त के माध्यम से सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और निजी पूंजी को आकर्षित कर सकता है, जिससे राष्ट्रीय बजट पर दबाव कम हो सकता है।
- क्षेत्रीय सुरक्षा ढाँचे में वृद्धि: भारत IMEC को आतंकवाद, समुद्री डकैती और साइबर खतरों से बचाने के लिये हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के माध्यम से मज़बूत सुरक्षा संबंधों पर ज़ोर दे सकता है।
- तकनीकी एकीकरण को बढ़ावा देना: भारत एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) आधारित भुगतान प्रणाली, समुद्र के नीचे केबल, 5G अवसंरचना को बढ़ावा देकर, ई-कॉमर्स, फिनटेक और स्मार्ट सिटी पहलों का समर्थन करते हुए IMEC के साथ डिजिटल विभाजन को कम करते हुए डिजिटल कनेक्टिविटी में अग्रणी हो सकता है।
भारत की अन्य प्रमुख रणनीतिक अवसंरचना पहल
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC): इसे वर्ष 2000 में रूस के बाल्टिक सागर तट को ईरान के माध्यम से भारत के पश्चिमी बंदरगाहों से जोड़ने के लिये प्रस्तावित किया गया था।
- रूस, भारत और ईरान ने 7,200 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) के विकास के लिये वर्ष 2002 में प्रारंभिक समझौतों पर हस्ताक्षर किये थे।
- वर्तमान में इसमें 13 सदस्य हैं: भारत, ईरान, रूस, अज़रबैजान, आर्मेनिया, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्की, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान और सीरिया, तथा बुल्गारिया एक पर्यवेक्षक राज्य है।
- चाबहार बंदरगाह परियोजना: भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने चाबहार बंदरगाह पर शाहिद बेहेश्टी टर्मिनल विकसित करने के लिये एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये, जो भारत की पहली विदेशी बंदरगाह परियोजना है।
- इस परियोजना का उद्देश्य पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुँच प्रदान करना है, जिससे तीनों देशों के बीच पारगमन व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
- भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग: इस परियोजना का उद्देश्य भारत के मणिपुर राज्य के मोरेह से शुरू होकर म्याँमार से गुज़रते हुए थाईलैंड के माई सोत पर समाप्त होने वाला सड़क संपर्क बनाना है।
- कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट: इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य कोलकाता के पूर्वी बंदरगाह को म्याँमार के सित्तवे बंदरगाह से समुद्र के रास्ते जोड़ना है, जिससे दक्षिण पूर्व एशिया के साथ व्यापार और संपर्क में वृद्धि होगी।
निष्कर्ष
भारत के नेतृत्व में IMEC कनेक्टिविटी को बढ़ाकर और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर वैश्विक व्यापार को नया आकार देने का वादा करता है। IMEC सचिवालय की स्थापना परिचालन को सुव्यवस्थित करने और परियोजना के सुचारू निष्पादन को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण होगी। इसके कार्यान्वयन से सतत् आर्थिक विकास और वैश्विक समृद्धि का एक नया युग शुरू होगा।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: क्षेत्रीय भूराजनीति और व्यापार गतिशीलता को नया आकार देने में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे के रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में आने वाला 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative)' किसके मामलों के संदर्भ में आता है? (2016) (a) अफ्रीकी संघ उत्तर: (d) |