भारतीय उच्च शिक्षा का अति-राजनीतिकरण | 29 May 2024
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय उच्च शिक्षा, कुलपति, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद मेन्स के लिये:भारतीय उच्च शिक्षा में राजनीतिक हस्तक्षेप, शैक्षणिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता |
स्रोत द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारतीय उच्च शिक्षा का राजनीतिक एजेंडों के साथ जुड़ने का एक लंबा इतिहास रहा है। हाल के वर्षों में यह प्रवृत्ति और भी तीव्र हो गई है, जिसका प्रभाव शैक्षणिक जीवन एवं संस्थागत अखंडता के विभिन्न पहलुओं पर पड़ रहा है।
राजनीति ने भारतीय उच्च शिक्षा को किस प्रकार आकार दिया है?
- राजनीतिक आधार: भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान लंबे समय से राजनीतिक एजेंडों से प्रभावित रहे हैं, राजनेता अपने कॅरियर को बेहतर बनाने के लिये समय-समय पर कॉलेजों की स्थापना करते रहे हैं।
- मतदाताओं की मांगें: मतदाताओं की सामाजिक-सांस्कृतिक मांगों को पूरा करने के लिये कई संस्थाओं का निर्माण किया गया है, जो भारतीय समाज की विविध और जटिल प्रकृति को दर्शाती हैं।
- सरकारों ने शैक्षणिक संस्थानों को राजनीतिक रूप से लाभप्रद स्थानों पर स्थापित किया है, जो अक्सर सामाजिक-सांस्कृतिक मांगों को पूरा करते हैं।
- नामकरण और पुनर्नामकरण: विश्वविद्यालयों का नामकरण और पुनर्नामकरण, विशेष रूप से राज्य सरकारों द्वारा, अक्सर राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होता है।
- उदाहरण: उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय (UPTU), लखनऊ का नाम कई बार बदला गया।
- नियुक्तियाँ और पदोन्नतियाँ: शैक्षणिक नियुक्तियाँ और पदोन्नतियाँ कभी-कभी अभ्यर्थियों की योग्यता एवं गुणों के बजाय राजनीतिक विचारों से प्रभावित होती हैं।
- कई भारतीय राज्य विश्वविद्यालयों के लिये राज्य के राज्यपाल को कुलाधिपति नियुक्त करने पर असहमति जता रहे हैं।
- शैक्षणिक स्वतंत्रता: हालाँकि शैक्षणिक स्वतंत्रता के मानदंडों का हमेशा सख्ती से पालन नहीं किया गया है, विशेषकर स्नातक महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों ने अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का पालन किया है, जिससे प्रोफेसरों को पढ़ाने, शोध करने और शोध पत्रों को स्वतंत्र रूप से प्रकाशित करने की अनुमति दी गई है।
- सेल्फ-सेंसरशिप विशेष रूप से सामाजिक विज्ञान और मानविकी में प्रचलित हो रही है। प्रमुख शिक्षाविदों को विवादास्पद सामग्री प्रकाशित करने के लिये हानिकारक परिणाम भुगतने पड़े हैं।
भारत में उच्च शिक्षा:
- भारत में उच्च शिक्षा से तात्पर्य 12 वर्ष की स्कूली शिक्षा के बाद प्रदान की जाने वाली तृतीयक स्तर की शिक्षा से है।
- भारत में 58,000 से अधिक उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ विश्व की दूसरी सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली मौज़ूद है।
- वर्तमान में भारत में उच्च शिक्षा के लिये 43.3 मिलियन छात्र नामांकित हैं। लगभग 79% विद्यार्थी स्नातक पाठ्यक्रमों में नामांकित हैं, जबकि 12% विद्यार्थियों ने स्नातकोत्तर (मास्टर डिग्री) के लिये नामांकन दर्ज़ किया है। केवल 0.5% विद्यार्थी PhD के लिये अध्ययन कर रहे हैं, जबकि बाकी अधिकांश उप-डिग्री (Sub-Degree) डिप्लोमा कार्यक्रमों के तहत अध्ययनरत हैं।
- सबसे लोकप्रिय स्नातक विषय क्षेत्र कला (34%) है, इसके बाद विज्ञान (15%), वा णिज्य (13%), और इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी (12%) हैं।
- स्नातकोत्तर स्तर पर, शीर्ष विषय क्षेत्र सामाजिक विज्ञान (21%) है, उसके बाद विज्ञान (15%) और प्रबंधन (14%) हैं। PhD स्तर के लिये इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी (25%) में सबसे अधिक छात्र नामांकित हैं, उसके बाद विज्ञान (21%) का स्थान आता है।
- उच्च शिक्षा भागीदारी दर (GER) बढ़कर 28.4% हो गई है, जो वर्ष 2020-21 से 1.1% अधिक है।
- उच्चतम GER वाले शीर्ष राज्य/केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, पुडुचेरी, दिल्ली, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, केरल और तेलंगाना हैं।
- वर्ष 2021-22 में भारतीय संस्थानों में विदेशी छात्रों की कुल संख्या लगभग 46,000 थी।
शिक्षा के अत्यधिक राजनीतिकरण के परिणाम क्या हैं?
- शैक्षणिक स्वतंत्रता में कमी: इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि राजनीतिक प्रभाव शैक्षणिक स्वतंत्रता को कमज़ोर कर सकता है, जिससे संकाय और छात्रों पर राजनीतिक विचारधारा के साथ जुड़ने का दबाव पड़ सकता है।
- पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय की अध्यक्ष लिज़ मैगिल ने कॉलेज परिसरों में यहूदी-विरोधी भावना के मुद्दे पर अमेरिकी कॉन्ग्रेस समिति के समक्ष गवाही दी। फिर धनी दानदाताओं और पूर्व छात्रों के दबाव में आकर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया।
- वैश्विक प्रतिष्ठा: राजनीतिकरण वाला शैक्षणिक माहौल प्रतिभाशाली छात्रों और शिक्षकों को भारतीय संस्थानों में दाखिला लेने या कार्य करने से हतोत्साहित कर सकता है। यह उच्च शिक्षा में वैश्विक नेता बनने के भारत के प्रयासों में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- विचारों की विविधता में कमी: जब राजनीतिक एजेंडा अकादमिक चर्चा पर हावी हो जाता है, तो इससे खुली बहस में बाधा उत्पन्न होती है और वैकल्पिक दृष्टिकोण का अन्वेषण करने में अरुचि उत्पन्न हो जाती है।
- छात्र सक्रियता की संभावना: राजनीतिकरण बढ़ने से छात्र सक्रियता राजनीतिक दल के साथ या उसके विरुद्ध हो सकती है। हालाँकि छात्र सक्रियता सकारात्मक भी हो सकती है, लेकिन अगर यह अत्यधिक राजनीतिक हो जाए तो यह शैक्षणिक जीवन को बाधित भी कर सकती है।
- शिक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक विश्वास का ह्रास: जब विश्वविद्यालयों को राजनीतिक खेलों में मोहरे के रूप में देखा जाता है, तो शैक्षिक शोध के मूल्य और निष्पक्षता में लोक विश्वास भंग हो सकता है। यह सार्वजनिक नीति को आकार देने में शैक्षिक विशेषज्ञता की वैधता को कमज़ोर करता है।
- शोध वित्तपोषण में कमी: अल्पकालिक एजेंडा वाले राजनेताओं द्वारा अनिश्चित वाणिज्यिक अनुप्रयोगों वाली दीर्घकालिक शोध परियोजनाओं में निवेश करने की संभावनाएँ कम हो सकती हैं।
- इससे नवाचार और वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धा करने की भारत की क्षमता बाधित हो सकती है।
- रोज़गार में कमी: नियोक्ता आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान और अनुकूलनशीलता जैसे कौशल को अधिक महत्त्व देते हैं। एक अति-राजनीतिक शिक्षा जो इन कौशलों पर विचारधारा को प्राथमिकता देती है, स्नातकों को कार्यबल के लिये असमर्थ बना सकती है।
राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करने के लिये क्या किया जा सकता है?
- संस्थागत स्वायत्तता: अनुचित प्रभाव का विरोध करने के लिये संस्थागत स्वायत्तता को मज़बूत करना आवश्यक है। विश्वविद्यालयों को सरकारी निधियों पर निर्भरता कम करने के लिये वित्तपोषण स्रोतों में विविधता लाने हेतु प्रोत्साहित करना।
- शैक्षिक स्वतंत्रता को एक अटूट सिद्धांत के रूप में बनाए रखना तथा स्वतंत्र विचार-विमर्श और अनुसंधान सुनिश्चित करना।
- स्वायत्त विश्वविद्यालय बोर्ड की स्थापना करना, जिससे उच्च शोध गुणवत्ता को बढ़ावा मिले, विशेष रूप से उन विषयों में जो राजनीतिक प्रभाव के प्रति संवेदनशील हों।
- विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों के लिये भारत के प्रयासों के अनुरूप, संस्थानों को स्वायत्त दर्ज़ा प्राप्त करने का प्रयास करना।
- इससे उन्हें नवीन पाठ्यक्रम तैयार करने, विविध वित्तपोषित स्रोतों की तलाश करने और UGC अधिनियम 2017 के तहत उत्कृष्ट संस्थानों के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिये प्रतिस्पर्द्धा करने का अधिकार मिलता है, जिससे अंततः भारत में उच्च शिक्षा का परिदृश्य अधिक गतिशील एवं प्रतिस्पर्द्धी हो जाता है।
- शैक्षिक, प्रशासनिक और वित्तीय मामलों में उच्च शिक्षा संस्थानों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (National Knowledge Commission- NKC), वर्ष 2005 तथा यशपाल समिति (2009) की सिफारिशों को लागू करना।
- NKC ने मौज़ूदा विश्वविद्यालयों में सुधार की सिफारिश की है: प्रत्येक तीन वर्ष में पाठ्यक्रम का अद्यतन किया जाए, आंतरिक मूल्यांकन प्रक्रिया का उपयोग किया जाए, पाठ्यक्रम क्रेडिट प्रणाली अपनाई जाए तथा प्रतिभाशाली संकाय को आकर्षित किया जाए।
- पाठ्यक्रम और परीक्षाओं के लिये केंद्रीय एवं राज्य स्नातक शिक्षा बोर्ड की स्थापना की जाए।
- संसद के एक अधिनियम द्वारा हितधारकों द्वारा उच्च शिक्षा के लिये स्वतंत्र विनियामक प्राधिकरण (Independent Regulatory Authority for Higher Education- IRAHE) का निर्माण किया जाएगा।
- शासी निकायों का राजनीतिकरण: शैक्षणिक योग्यता और अनुभव के आधार पर कुलपति तथा अन्य प्रमुख पदों के चयन के लिये एक स्वतंत्र चयन प्रक्रिया से राजनीतिक प्रभाव कम हो सकता है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 में स्पष्ट रूप से परिभाषित, स्वतंत्र, पारदर्शी भर्ती, पाठ्यक्रम/शिक्षणशास्त्र डिज़ाइन करने की स्वतंत्रता, उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करने और संस्थागत नेतृत्व में बदलाव के माध्यम से संकाय की प्रेरणा, ऊर्जा एवं क्षमता निर्माण के लिये सिफारिशें की गई हैं। बुनियादी मानदंडों पर खरा नहीं उतरने वाले संकाय को जवाबदेह ठहराया जाएगा।
- इससे यह सुनिश्चित करने में सहायता मिल सकती है कि निर्णय राजनीतिक लाभ के बजाय संस्थान और उसके छात्रों के सर्वोत्तम हित में लिये जाएँ।
- असहमति और आलोचनात्मक जाँच की रक्षा: प्रतिशोध अथवा सेंसरशिप के भय के बिना शोध में संलग्न होने और विचार व्यक्त करने के संकाय के अधिकार को बनाए रखना उच्च शिक्षा की अखंडता को बनाए रखने के लिये आवश्यक है।
- शैक्षणिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिये स्पष्ट नीतियाँ और सुरक्षा उपाय लागू किये जाने चाहिये।
- छात्र संघ की स्वतंत्रता: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि विश्वविद्यालय छात्र संघ छात्रों द्वारा निर्वाचित स्वायत्त निकाय बने रहें तथा उनके चुनाव अथवा कार्यप्रणाली में राजनीतिक दलों या प्राधिकारियों का हस्तक्षेप न हो।
- सशक्त लोकपाल: राजनीतिक हस्तक्षेप, शैक्षणिक स्वतंत्रता के उल्लंघन या किसी भी हितधारक से राजनीतिक रूप से प्रेरित उत्पीड़न की शिकायतों की जाँच और समाधान के लिये एक स्वतंत्र लोकपाल तंत्र की स्थापना करना।
भारत में उच्च शिक्षा के लिये नियामक ढाँचा:
- भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली की देखरेख केंद्रीय और राज्य स्तर पर शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत विभिन्न वैधानिक निकायों द्वारा की जाती है, जो उच्च शिक्षा की गुणवत्ता एवं मानकों को बनाए रखने के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- मुख्य नियामक निकाय:
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC): वर्ष 1956 में स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जो विश्वविद्यालय शिक्षा में मानकों के समन्वयन एवं रखरखाव तथा अनुदान जारी करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- आयोग उच्च शिक्षा के विकास के उपायों पर केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देता है।
- यह नई दिल्ली से संचालित होता है तथा इसके छह क्षेत्रीय कार्यालय बंगलूरू, भोपाल, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता और पुणे में हैं।
- अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE): इसकी स्थापना वर्ष 1945 में एक सलाहकार निकाय के रूप में की गई थी और बाद में वर्ष 1987 में इसे वैधानिक दर्ज़ा दिया गया।
- यह नए तकनीकी संस्थानों, पाठ्यक्रमों और प्रवेश क्षमता को अनुमोदित करता है तथा डिप्लोमा स्तर के संस्थानों के लिये राज्य सरकारों को कुछ विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान करता है।
- यह मानदंड और मानक निर्धारित करता है, संस्थानों को मान्यता देता है तथा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देता है।
- AICTE का मुख्यालय नई दिल्ली में है तथा इसके क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता, चेन्नई, कानपुर, मुंबई, चंडीगढ़, भोपाल, बंगलूरू और हैदराबाद में हैं।
- वास्तुकला परिषद (Council of Architecture- COA): इसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा वास्तुविद् अधिनियम (Architects Act), 1972 के तहत की गई है। यह वास्तुविदों को पंजीकृत करने और मान्यता प्राप्त योग्यताओं के लिये मानकों के प्रबंधन को सुनिश्चित करने के हेतु उत्तरदायी है।
- भारत में वास्तुकला शिक्षा और व्यवसाय के मानकों को नियंत्रित करता है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC): वर्ष 1956 में स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जो विश्वविद्यालय शिक्षा में मानकों के समन्वयन एवं रखरखाव तथा अनुदान जारी करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- नियामकीय ढाँचे से संबंधित हालिया घटनाक्रम:
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: चिकित्सा और विधिक शिक्षा को छोड़कर सभी प्रकार की उच्च शिक्षा के लिये एकल व्यापक निकाय के रूप में भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (Higher Education Commission of India- HECI) की स्थापना का प्रस्ताव करती है। HECI में चार स्वतंत्र वर्टिकल शामिल होंगे:
- विनियमन के लिये राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा विनियामक परिषद (NHERC)
- मानक निर्धारण के लिये सामान्य शिक्षा परिषद (GEC)
- वित्तपोषण के लिये उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (HEGC)
- मान्यता के लिये राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (NAC)
- HECI प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेप के माध्यम से कार्य करेगा और मानदंडों एवं मानकों का पालन नहीं करने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों को दंडित करने का अधिकार होगा।
- राष्ट्रीय महत्त्व के सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार के उच्च शिक्षण संस्थान समान विनियमन, मान्यता एवं शैक्षणिक मानकों के अधीन होंगे।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: चिकित्सा और विधिक शिक्षा को छोड़कर सभी प्रकार की उच्च शिक्षा के लिये एकल व्यापक निकाय के रूप में भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (Higher Education Commission of India- HECI) की स्थापना का प्रस्ताव करती है। HECI में चार स्वतंत्र वर्टिकल शामिल होंगे:
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. उच्च शिक्षा के राजनीतिकरण से क्या अभिप्राय है, विवेचना कीजिये। इसके परिणामों का विश्लेषण कीजिये तथा शैक्षणिक संस्थाओं की अखंडता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के उपाय सुझाइये। |
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का शिक्षा पर प्रभाव है? (वर्ष 2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर- (d) मेन्स:प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों का विस्तार से उल्लेख कीजिये। (2021) |