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शासन व्यवस्था

समग्र जल प्रबंधन प्रणाली

  • 04 Oct 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सतत् भूजल प्रबंधन, यूट्रोफिकेशन, स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन, खाद्य असुरक्षा।

मेन्स के लिये:

एकीकृत शहरी जल प्रबंधन प्रणाली, भारत में जल प्रबंधन के संबंध में चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

शहरों के तेज़ी से विकसित होने के साथ ही जल की मांग में वृद्धि देखी गई है। भले ही  आकांक्षाएँ  , लोगों के शहरी क्षेत्रों में पलायन करने का कारण बनती हैं, लेकिन निकट भविष्य में लोगों के समक्ष पानी की कमी या न्यूनता एक बड़ी चुनौती बन सकती है

समग्र जल प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता:

  • वर्ष 2020 तक भारत की लगभग 35% आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती थी, वर्ष 2050 तक इसके दोगुना होने की संभावना है।
  • शहरी क्षेत्रों में भूजल संसाधनों के उपयोग से केवल 45% मांग ही पूरी हो पाती है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण ने भी जल संसाधनों पर दबाव बढ़ा दिया है।
  • अधिकांश शहरों में जल की आपूर्ति की तुलना में मांग अधिक है, इसलिये जल प्रबंधन के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अधिकांश शहरी क्षेत्र जल के मामले में भविष्य में आत्मनिर्भर बन सकें।
  • भारत में स्वच्छता, शहरी जल, वर्षा जल और अपशिष्ट जल जैसी उपयोगिताओं पर आधारित विभिन्न जल प्रबंधन प्रणालियाँ हैं जिनसे विभिन्न क्षेत्रों में पानी से संबंधित मुद्दों का समाधान होता है लेकिन अभी भी  एकीकृत समाधान खोजना चुनौती बनी हुई है।
  • इस प्रकार जल प्रबंधन के शेत्र में क्रांति आवश्यक है और भविष्य में जल के मामले में आत्मनिर्भरता के लिये अधिकांश शहरी क्षेत्रों में विश्वसनीय आपूर्ति हेतु एकीकृत शहरी जल प्रबंधन (IUWM) प्रणाली सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है।

‘एकीकृत शहरी जल प्रबंधन प्रणाली:

  • परिचय:
    • IUWM, जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जल प्रबंधन और स्वच्छता योजना को आर्थिक विकास एवं भूमि उपयोग के अनुरूप तैयार किया जा सकता है।
    • यह समग्र प्रक्रिया स्थानीय स्तर पर जल विभागों के बीच समन्वय को आसान बनाने के साथ शहरों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने तथा जल की आपूर्ति को अधिक कुशलता से प्रबंधित करने में भी मदद कर सकती है।
  • जल प्रबंधन के उपागम:
    • सहयोग-पूर्ण कार्रवाई::
      • सभी हितधारकों के बीच स्पष्ट समन्वय होने से जवाबदेहिता को आसानी से परिभाषित किया जा सक्यता है।
      • प्रभावी कानून स्थानीय अधिकारियों को मार्गदर्शन करने में मदद करेगा साथ ही जल प्रबंधन में स्थानीय समुदायों को शामिल करने समस्या का तेज़ी से समाधान होगा।  
    • जल के प्रति धारणा में बदलाव:
      • यह समझना ज़रूरी है किस प्रकार आर्थिक विकास, शहर के बुनियादी ढाँचे और भूमि उपयोग के संबंध में ‘जल’ एक अभिन्न अंग है।
    • जल को एक संसाधन के रूप में समझना:
      • विभिन्न कार्यों के लिये ‘जल’ एक संसाधन है, इसलिये कृषि, औद्योगिक और पर्यावरणीय उद्देश्यों के आधार पर विभिन्न प्रकार के ‘जल’ का उपचार करना आसान हो जाएगा।
    • विभिन्न शहरों के लिये अनुकूलित समाधान:
      • IUWM का बल विशिष्ट संदर्भों और स्थानीय आवश्यकताओं पर रहता है तथा इसके तहत सभी के लिये एक ही उपाय अपनाने के बजाय समस्या के आधार पर भिन्न दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी जाती है।

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भारत में जल प्रबंधन से संबद्ध चुनौतियाँ:

  • ग्रामीण-शहरी संघर्ष:
    • तेज़ी से हो रहे शहरीकरण के परिणामस्वरूप शहरों का विस्तार तेज़ी से  हो रहा है और ग्रामीण क्षेत्रों से प्रवासियों की एक बड़ी संख्यने शहरों में पानी के प्रति व्यक्ति उपयोग में वृद्धि की है जिससे इसकी कमी को पूरा करने के लिये ग्रामीण जलाशयों से शहरी क्षेत्रों में पानी स्थानांतरित किया जा रहा है।
  • अप्रभावी अपशिष्ट जल प्रबंधन:
    • अत्यधिक जल-तनाव के परिदृश्य में अपशिष्ट जल का अप्रभावी उपयोग भारत को अपने जल संसाधनों के इष्टतम उपयोग कर सकने में असमर्थ बना रहा है। शहरों में यह जल मुख्यतः ‘ग्रेवाटर’ के रूप में पाया जाता है।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट (मार्च 2021) के अनुसार, भारत की वर्तमान जल उपचार क्षमता 27.3% और सीवेज उपचार क्षमता 18.6% है (जहाँ अतिरिक्त 5.2% क्षमता जोड़ी जा रही है)।
  • खाद्य सुरक्षा जोखिम:
    • फसल और पशुधन उत्पादन के लिये जल आवश्यक है। कृषि में सिंचाई के लिये जल का वृहत उपयोग किया जाता है और जल घरेलू उपभोग का भी एक प्रमुख स्रोत है। तेज़ी से गिरते भूजल स्तर तथा अक्षम नदी जल प्रबंधन के संयोजन से खाद्य असुरक्षा की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • जल एवं खाद्य की कमी से उत्पन्न प्रभाव आधारभूत आजीविका को नष्ट कर सकते हैं एवं सामाजिक तनाव को बढ़ा सकते हैं।
  • बढ़ता जल प्रदूषण:
    • घरेलू, औद्योगिक और खनन अपशिष्टों की एक बड़ी मात्रा जल निकायों में बहाई जाती है, जिससे जलजनित रोग उत्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा जल प्रदूषण से सुपोषण या यूट्रोफिकेशन (Eutrophication) की स्थिति बन सकती है जो जलीय पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
  • भूजल का अत्यधिक दोहन:
    • केंद्रीय भूजल बोर्ड के नवीनतम अध्ययन के अनुसार, भारत के 700 ज़िलों में से 256 ज़िलों ने गंभीर या अत्यधिक दोहित भूजल स्तर की सूचना दी है।
    • नीति आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपने इतिहास के सबसे खराब जल संकट से जूझ रहा है, जिसमें कहा गया है कि 21 शहरों- जिनमें बंगलूरू, दिल्ली, हैदराबाद और चेन्नई शामिल हैं, ने शायद वर्ष 2021 में अपने भूजल संसाधनों को समाप्त कर दिया।
    • अति-निर्भरता और निरंतर खपत के कारण भूजल संसाधनों पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है तथा इसके परिणामस्वरूप कुएँ, पोखर, तालाब आदि सूख रहे हैं। इससे जल संकट गहरा होता जा रहा ह।

जल प्रबंधन से संबंधित वर्तमान सरकारी पहलें:

आगे की राह

  • जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या वृद्धि के कारण पानी के उपयोग में वृद्धि के कारण बेहतर शहरी जल प्रबंधन के लिये नए समाधानों को नियोजित किये जाने की आवश्यकता है। स्थानीय संदर्भों में अधिक से अधिक लोगों को इससे उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से अवगत कराने की आवश्यकता है।
  • इसी प्रकार हमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले स्थानीय विभागों जैसे संस्थानों में बदलाव करने की आवश्यकता है अतः यह आवश्यक है कि पानी के मुद्दों को हल करने के लिये समग्र और प्रणालीगत समाधान लागू किये जाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'एकीकृत जलसंभर विकास कार्यक्रम' को कार्यान्वित करने के क्या लाभ हैं?

  1. मृदा अपवाह की रोकथाम
  2. देश की बारहमासी नदियों को मौसमी नदियों से जोड़ना
  3. वर्षा-जल संग्रहण तथा भौम-जलस्तर का पुनर्भरण
  4. प्राकृतिक वनस्पतियों का पुनर्जनन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • एकीकृत वाटरशेड/जलसंभर विकास कार्यक्रम (IWDP) को ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
  • IWDP का मुख्य उद्देश्य मृदा, वनस्पति आवरण और जल जैसे अवक्रमित प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, संरक्षण एवं विकास करके पारिस्थितिक संतुलन को पुनः प्राप्त करना है। अतः कथन 1, 3 और 4 सही है।
  • हालाँकि देश की बारहमासी नदियों को मौसमी नदियों से जोड़ने का कार्य वाटरशेड विकास कार्यक्रम के तहत नहीं किया जाता है। अत: कथन 2 सही नहीं है।

अतः विकल्प (c) सही है। 


प्रश्न. पृथ्वी ग्रह पर अधिकांश अलवण जल बर्फ छत्रक और हिमनद के रूप में मौजूद है। शेष अलवण जल का सबसे अधिक भाग है: (2013)

(a) वातावरण में नमी और बादलों के रूप में पाया जाता है
(b) अलवण जल की झीलों और नदियों में पाया जाता है
(c) भूजल के रूप में मौजूद है
(d) मृदा की नमी के रूप में मौजूद है

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारत की राष्ट्रीय जल नीति का आकलन कीजिये। गंगा नदी को एक उदाहरण के रूप में लेते हुए, उन रणनीतियों पर चर्चा कीजिये जिन्हें नदी जल प्रदूषण नियंत्रण और प्रबंधन के लिये अपनाया जा सकता है। भारत में खतरनाक कचरे के प्रबंधन के कानूनी प्रावधान क्या हैं? (2013)

प्रश्न. "भारत में घटते भूजल संसाधनों का आदर्श समाधान जल संचयन प्रणाली है"। इसे शहरी क्षेत्रों में कैसे प्रभावी बनाया जा सकता है? (2018)

प्रश्न. जल तनाव (Water Stress) क्या है? यह भारत में क्षेत्रीय रूप से कैसे और क्यों भिन्न है? (2019)

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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