हस्त एवं विद्युत उपकरण क्षेत्र | 16 Apr 2025
प्रिलिम्स के लिये:नीति आयोग, हस्त एवं विद्युत उपकरण, RoDTEP, गुणवत्ता नियंत्रण आदेश, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मेन्स के लिये:भारत का उपकरण उद्योग, औद्योगिक नीति और विनिर्माण, औद्योगिक विस्तार की चुनौतियाँ |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) ने ‘भारत के हस्त एवं विद्युत उपकरण क्षेत्र में 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक निर्यात क्षमता का दोहन करना’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें वर्ष 2035 तक उपकरण निर्यात को 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने के लिये रोडमैप की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है, जो विकसित भारत @2047 के दृष्टिकोण का समर्थन करता है।
हस्त एवं विद्युत उपकरण क्षेत्र में प्रमुख रुझान क्या हैं?
- वैश्विक बाज़ार: वैश्विक उपकरण बाज़ार का मूल्य वर्ष 2022 में लगभग 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसके वर्ष 2035 तक बढ़कर 190 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- बाज़ार को हस्त औजारों (34 बिलियन अमेरिकी डॉलर, जो बढ़कर 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है) और विद्युत औजारों (63 बिलियन अमेरिकी डॉलर, जो बढ़कर 134 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है) में विभाजित किया गया है, तथा दोनों क्षेत्रों में संतुलित वृद्धि हुई है।
- चीन वैश्विक निर्यात पर हावी है, 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ हस्त उपकरण बाज़ार में लगभग 50% की हिस्सेदारी रखता है, तथा 22 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ विद्युत उपकरण बाज़ार में 40% की हिस्सेदारी रखता है।
- भारत की वर्तमान स्थिति: भारत का उपकरण उद्योग विश्व स्तर पर एक छोटा अभिकर्त्ता है, जिसमें हस्त उपकरण निर्यात में 600 मिलियन अमरीकी डॉलर (1.8% वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी) और विद्युत उपकरण निर्यात में 425 मिलियन अमरीकी डॉलर (0.7% वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी) है।
- भारत के लिये अवसर: भारत में वर्ष 2035 तक विद्युत उपकरणों में वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी में 10% और हस्त उपकरणों में 25% हिस्सेदारी का लक्ष्य रखकर 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात प्राप्त करने की क्षमता है।
- इस लक्ष्य को प्राप्त करने से 3.5 मिलियन नौकरियाँ सृजित होंगी, जो भारत की आर्थिक वृद्धि और रोज़गार में महत्त्वपूर्ण योगदान देंगी तथा भारत को उपकरण उद्योग में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करेंगी।
हस्त एवं विद्युत उपकरण क्या हैं?
- उपकरण: उपकरण एक हाथ से पकड़ा जाने वाला औजार है जिसका उपयोग किसी विशिष्ट कार्य को करने के लिये किया जाता है, जैसे ड्रिलिंग, कटिंग, सैंडिंग या पॉलिशिंग।
- उपकरणों के प्रकार
- हाथ के औजार: बिना मोटर वाले औजार जो हाथ से चलाए जाते हैं। उदाहरणों में रिंच, स्क्रूड्राइवर, प्लायर और हथौड़े शामिल हैं।
- हाथ के औजार सस्ते, श्रम-प्रधान होते हैं तथा सटीकता और मानवीय नियंत्रण की आवश्यकता वाले कार्यों के लिये आदर्श होते हैं।
- विद्युत उपकरण: विद्युत, हाइड्रोलिक्स या न्यूमेटिक्स द्वारा संचालित उपकरण, जिनमें प्रायः मोटरें लगी होती हैं।
- उदाहरणों में शामिल हैं इलेक्ट्रिक ड्रिल, आरी, इलेक्ट्रिक स्क्रूड्राइवर, ग्राइंडर, कटर।
- विद्युत शक्ति उपकरणों में तारयुक्त उपकरण शामिल हैं, जिनके लिये प्रत्यक्ष विद्युत कनेक्शन की आवश्यकता होती है, तथा ताररहित उपकरण, जो अधिक गतिशीलता के लिये बैटरी चालित होते हैं।
- हाथ के औजार: बिना मोटर वाले औजार जो हाथ से चलाए जाते हैं। उदाहरणों में रिंच, स्क्रूड्राइवर, प्लायर और हथौड़े शामिल हैं।
भारत के उपकरण उद्योग के समक्ष कौन सी चुनौतियाँ हैं?
- लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता: चीन की तुलना में भारत को 14-17% लागत हानि का सामना करना पड़ता है।
- यद्यपि भारत का श्रम चीन की तुलना में सस्ता है, लेकिन प्रतिबंधात्मक श्रम कानून (जैसे, ओवरटाइम और दैनिक कार्य घंटों की सीमाएँ) श्रम लचीलेपन को कम करते हैं और परिचालन लागत बढ़ाते हैं।
- अविश्वसनीय विद्युत आपूर्ति और विद्युत् के लिये कैप्टिव जनरेटर के रखरखाव की उच्च लागत (18 रूपए प्रति यूनिट) परिचालन व्यय को और बढ़ा देती है।
- कच्चे माल पर निर्भरता: भारत एक प्रमुख इस्पात उत्पादक होने के बावजूद, उच्च गुणवत्ता वाले कच्चे माल और घटकों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है, तथा वित्त वर्ष 2025 में तैयार स्टेनलेस स्टील का आयात रिकॉर्ड 1.3 मिलियन टन (MT) तक पहुँचने की उम्मीद है।
- चीन और वियतनाम जैसे देशों द्वारा स्क्रैप स्टील जैसी सामग्रियों पर लगाए गए उच्च निर्यात शुल्क के कारण कच्चे माल तक पहुँच में बाधा उत्पन्न होती है।
- तकनीकी सीमाएँ: उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुँच और अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास (R&D) क्षमताएँ नवाचार में बाधा डाल रही हैं।
- भारतीय निर्माता स्पैनर के लिये रैचेट जैसे उच्च मूल्य वाले आयातित घटकों पर निर्भर रहते हैं, जिसके कारण उत्पादन लागत बढ़ जाती है और घरेलू मूल्य शृंखला पर अधिकार करने में बाधा उत्पन्न होती है।
- उच्च मशीनरी लागत: उपकरण उद्योग के समक्ष उच्च मशीनरी लागत की भी समस्या है, विशेष रूप से उन्नत मशीनरी जैसे CNC (कंप्यूटर न्यूमेरिकल कंट्रोल) मशीनों के लिये, जो परिशुद्ध विनिर्माण की दृष्टि से आवश्यक हैं।
- इन मशीनों पर आयात शुल्क और अधिभार अधिरोपित होता है, जिससे लागत और बढ़ जाती है।
- विस्तार संबंधी बाधाएँ: औद्योगिक भूमि की सीमित उपलब्धता, विशेष रूप से पंजाब जैसे प्रमुख केन्द्रों में, जहां भूमि की लागत 3-5 करोड़ रूपए प्रति एकड़ है।
- पंजाब जैसे अंतःस्थलीय राज्यों से उच्च परिवहन लागत के कारण निर्यात व्यय बढ़ता है, जिससे भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम होती है।
- भारत के उपकरण क्षेत्र में सीमित संसाधनों वाली लघु इकाइयों का प्रभुत्व है, जिससे विस्तार क्षमता और नवाचार में बाधा आती है।
- फ्लोर एरिया रेशियो (FAR) मानदंड जैसी नियामक बाधाएँ भूमि की उपयोगिता को और सीमित कर देती हैं, तथा बृहद स्तर पर विकास और उद्योग की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न करती हैं।
- अपर्याप्त सरकारी योजनाएँ: निर्यातित उत्पादों पर शुल्कों और करों में छूट (RoDTEP) जैसी मौजूदा वित्तीय सहायता योजनाएँ उद्योग की वित्तीय आवश्यकताओं को कुशलतापूर्वक पूरा करने में अक्षम हैं।
- उदाहरण के लिये, हस्त और विद्युत उपकरण निर्यातकों के लिये RoDTEP छूट न्यूनतम है {फ्रेट ऑन बोर्ड (FOB) मूल्य का क्रमशः 1.1% और 0.9%}, जो भारतीय निर्माताओं को होने वाले 15% लागत नुकसान की प्रतिपूर्ति करने में अपर्याप्त है।
- उच्च कर और जटिल निर्यात दायित्वों से लघु निर्माता हतोत्साहित होते हैं। भारत की प्रभावी कर दर (34%) चीन (25%) और वियतनाम (20%) से अधिक है।
- चीन और वियतनाम के विपरीत, भारत में अनुसंधान एवं विकास कर प्रोत्साहन का अभाव है, जिससे यह निर्माताओं के लिये अल्प आकर्षक है।
उपकरण उद्योग से संबंधित भारत सरकार की पहलें
- RoDTEP: हस्त उपकरण निर्यातकों को उनके FOB मूल्य के प्रतिशत के रूप में 1.1% की छूट प्रदान की जाती है, तथा विद्युत उपकरण निर्यातकों को उनके FOB मूल्य के प्रतिशत के रूप में 0.9% की छूट प्रदान की जाती है।
- शुल्क मुक्त आयात प्राधिकरण (DFIA): DFIA योजना के अंतर्गत निर्यात उत्पाद में भौतिक रूप से शामिल इनपुट के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति प्रदान की गई है, जिसमें पैकेजिंग सामग्री, ईंधन, तेल और उत्पादन में प्रयुक्त उत्प्रेरक शामिल हैं।
- इस योजना के अंतर्गत आयातित इनपुट को केवल मूल सीमा शुल्क से छूट दी गई है।
भारत किस प्रकार उपकरण उद्योग का सुदृढ़ीकरण और आधुनिकीकरण कर सकता है?
- विशिष्ट उपकरण क्लस्टरों का निर्माण: नीति आयोग की रिपोर्ट में उत्पादन दक्षता में सुधार लाने और निवेश आकर्षित करने के लिये वर्ष 2035 तक लगभग 4,000 एकड़ क्षेत्र में 3-4 हस्त उपकरण क्लस्टर विकसित करने का सुझाव दिया गया है, जिसमें पंजाब में एक क्लस्टर भी शामिल है।
- क्लस्टरों में प्लग-एंड-प्ले अवसंरचना होनी चाहिये जिसमें श्रमिक आवास, अनुसंधान एवं विकास सुविधाएँ, परीक्षण केंद्र, तथा जल और विद्युत जैसी विश्वसनीय सुविधाएँ शामिल हों।
- शासन और विकास के लिये एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV), निजी डेवलपर्स और एक क्लस्टर प्राधिकरण को शामिल करते हुए एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल अपनाया जाना चाहिये।
- अपरिष्कृत माल संबंधी चुनौतियों का समाधान: गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों (QCO) को युक्तिसंगत बनाने और इस्पात, PVC और मोटर जैसे आवश्यक अपरिष्कृत माल पर आयात शुल्क कम करने की आवश्यकता है।
- नीतियों का सरलीकरण: प्राधिकृत आर्थिक ऑपरेटर (AEO) आवश्यकताओं का सरलीकरण कर, चूक पर ब्याज जैसे दंड को कम करके और मशीनरी पर आयात शुल्क को कम करके निर्यात संवर्धन पूंजीगत वस्तु (EPCG) योजना को सरल बनाने की आवश्यकता है।
- बजट 2025-26 में घोषित राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन (NMM) के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (NMM) के लिये विनियामक अनुमोदन को सरल बनाने और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देने के लिये समर्पित अनुसंधान एवं विकास परिषदों की स्थापना करने की आवश्यकता है।
- भूमि विनियमों का उदारीकरण: FAR मानदंडों और औद्योगिक भूमि विनियमों का उदारीकरण करने से MSME को उत्पादन बढ़ाने के लिये वहनयोग्य भूमि प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
- इससे उत्पादन लागत कम होगी और विनिर्माताओं को कुशलतापूर्वक क्षमता विस्तार करने में मदद मिलेगी।
- उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों का अंगीकरण: भारत को उपकरण निर्माण में 3D प्रिंटिंग जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रोत्साहित करना चाहिये। इससे सटीकता में सुधार होगा, लागत में कमी आएगी और उत्पादन दक्षता में वृद्धि होगी।
- उत्पाद रेंज का विविधीकरण: भारतीय निर्माताओं को वैश्विक मांग को पूरा करने और बाज़ार पहुँच को व्यापक बनाने के लिये बैटरी चालित, उच्च परिशुद्धता और स्वचालित वेरिएंट जैसे प्रीमियम उपकरणों का निर्माण करना चाहिये।
निष्कर्ष:
वर्ष 2035 तक अपनी 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर की निर्यात क्षमता को साकार करने के लिये, भारत के उपकरण उद्योग को लक्षित नीति समर्थन, सुदृढ़ बुनियादी ढाँचे और अधिक अनुसंधान एवं विकास निवेश की आवश्यकता है। अपरिष्कृत माल संबंधी बाधाओं, विस्तार क्षमता की चुनौतियों और उच्च परिचालन लागतों का समाधान करना महत्त्वपूर्ण है। रणनीतिक सुधारों और प्रौद्योगिकी अपनाने के साथ, भारत एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बन सकेगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के हस्त एवं विद्युत उपकरण उद्योग के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं तथा वर्ष 2035 तक इसकी निर्यात क्षमता को बढ़ाने के लिये क्या सुधार किये जाने चाहिये? |