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सामाजिक न्याय

वैश्विक पोषण लक्ष्य

  • 07 Jan 2025
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कुपोषण, एनीमिया, वैश्विक पोषण लक्ष्य, मोटापा, मध्याह्न भोजन योजना, उच्च रक्तचाप, मिशन पोषण 2.0, एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना

मेन्स के लिये:

वैश्विक पोषण लक्ष्य और भारत की प्रगति, कुपोषण का दोहरा बोझ, भारत में पोषण के लिये नीतिगत हस्तक्षेप।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

वर्ष 2012 से वर्ष 2021 तक वैश्विक पोषण लक्ष्यों (GNT) पर वैश्विक प्रगति का मूल्यांकन करने वाले लैंसेट के एक हालिया अध्ययन में मातृ एवं शिशु कुपोषण, अल्पपोषण और मोटापे से निपटने में धीमी प्रगति देखी गई है। 

  • इन निष्कर्षों से नीति निर्माण और इन सतत् मुद्दों के समाधान के लिये नवीन रणनीतियों की आवश्यकता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।

वैश्विक पोषण लक्ष्य (GNT) क्या हैं?

  • विश्व स्वास्थ्य सभा संकल्प, 2012: मातृ, शिशु और छोटे बच्चों के पोषण पर एक व्यापक कार्यान्वयन योजना का समर्थन किया गया, जिसमें वर्ष 2025 के लिये छह वैश्विक पोषण लक्ष्य निर्धारित किये गए।
  • वैश्विक पोषण लक्ष्य:
    • पाँच वर्ष से कम आयु के अविकसित बच्चों की संख्या में 40% की कमी लाना।
    • प्रजनन आयु की महिलाओं में एनीमिया में 50% की कमी लाना।
    • कम वजन वाले शिशुओं के जन्म में 30% की कमी लाना।
    • यह सुनिश्चित करना कि बच्चों के वजन में कोई वृद्धि न हो।
    • पहले 6 महीनों में केवल स्तनपान की दर को बढ़ाकर कम से कम 50% करना।
    • बचपन में कुपोषण को 5% से कम पर बनाए रखना।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • कुपोषण: यह शरीर के लिये आवश्यक पोषक तत्त्वों और उसे प्राप्त होने वाले पोषक तत्त्वों के बीच असंतुलन है।
  • इसमें कुपोषण (जिसमें स्टंटिंग (आयु के अनुपात में कम ऊँचाई), दुर्बलता (ऊँचाई के अनुपात में कम वजन) और अल्पवजन (आयु के अनुपात में कम वजन) शामिल हैं) और अतिपोषण (अधिक वजन और मोटापा) दोनों शामिल हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य पर दोहरा बोझ पड़ता है।
  • एनीमिया: एनीमिया लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन के कम होने की स्थिति है, जिससे ऊतकों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है, जो मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों को प्रभावित करती है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • धीमी और अपर्याप्त प्रगति: 204 देशों में वर्ष 2012 से वर्ष 2021 तक GNT लक्ष्यों को पूरा करने में धीमी और अपर्याप्त प्रगति हुई है, तथा वर्ष 2050 तक के अनुमान सीमित सफलता दर्शाते हैं।
    • उम्मीद है कि बहुत कम देश 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में स्टंटिंग के लक्ष्य को प्राप्त कर पाएँगे।
    • वर्ष 2030 तक किसी भी देश द्वारा जन्म के समय कम वजन, एनीमिया और बचपन में अधिक वजन के लक्ष्य को पूरा करने का अनुमान नहीं है।
  • एनीमिया और भारत: भारत में एनीमिया की समस्या दो दशकों से स्थिर बनी हुई है। 
    • ऐसा माना जाता है कि आयरन की कमी इसका कारण है, लेकिन एनीमिया के केवल एक तिहाई मामले ही इसके कारण होते हैं, जबकि अन्य एक तिहाई मामले अज्ञात कारणों से होते हैं।
    • कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान एनीमिया का प्रसार बढ़ गया जब स्कूली भोजन (मध्याह्न भोजन योजना) बंद हो गया, जिससे व्यापक पोषण दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया। 
    • अध्ययन में एनीमिया माप में विसंगतियाँ पाई गईं, भारत में शिरापरक रक्त-आधारित (रक्त नस से लिया जाता है) एनीमिया की व्यापकता (जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित है) राष्ट्रीय सर्वेक्षणों में केशिका रक्त-आधारित (रक्त उंगली से लिया जाता है) एनीमिया की व्यापकता की तुलना में आधी थी।
  • स्टंटिंग: स्टंटिंग प्रायः जीवन के पहले दो वर्षों में विकसित होता है, जो भारत में जन्म के समय 7-8% से बढ़कर दो वर्ष की आयु तक 40% हो जाता है।
    • दो वर्ष की आयु के बाद बच्चों को अधिक भोजन देने से उनका स्टंटिंग में सुधार होने के बजाय उनका वजन बढ़ सकता है।
    • भारत में गरीब बच्चे प्रतिदिन केवल 7 ग्राम वसा का उपभोग करते हैं, जबकि आवश्यक 30-40 ग्राम है।
  • बचपन में अधिक वजन: भारत सहित विश्व भर में बच्चों में अधिक वजन बढ़ रहा है, जिससे "चयापचय संबंधी अतिपोषण" को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे गैर-संचारी रोगों जैसी दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • भारतीय बच्चों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (50%) चयापचय संबंधी अतिपोषण का सामना करता है, जो गैर-संचारी रोगों में योगदान देता है।
  • अनुशंसाएँ: एनीमिया से निपटने के लिये आहार में विविधता लाना, क्योंकि यह केवल आयरन की कमी के कारण नहीं होता है।
    • जीवन के प्रथम दो वर्षों में बौनेपन की रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करना।
    • 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिये ऊर्जा सेवन, विशेषकर वसा सेवन में सुधार करें।
    • एनीमिया और स्टंटिंग को मापने के लिये अधिक सटीक और संदर्भ-विशिष्ट तरीकों को अपनाना।

      • गैर-संचारी रोगों की रोकथाम के लिये नीति में कुपोषण और अतिपोषण दोनों को संबोधित करना।

GNT प्राप्त करने से संबंधित क्या चुनौतियाँ हैं?

  • वैश्विक: 
    • एनीमिया: प्रजनन आयु वाली महिलाओं में एनीमिया का वैश्विक प्रसार काफी हद तक अपरिवर्तित रहा है। 
      • अपर्याप्त जागरूकता एवं लक्षित नीतियों के कारण एनीमिया कम आय वाले देशों (विशेषकर ग्रामीण, गरीब और अशिक्षित लोगों) पर बोझ है।
    • स्टंटिंग की दिशा में धीमी प्रगति: विभिन्न प्रयासों के बावजूद अनुमान है कि वर्ष 2025 तक इससे प्रभावित बच्चों की संख्या 127 मिलियन तक पहुँच जाएगी (जो 100 मिलियन तक के लक्ष्य के अनुरूप नहीं है) क्योंकि बच्चे के जीवन के प्रारंभिक दिनों को लक्षित करने वाली प्रारंभिक नीतियों का अभाव है।
    • अधिक वजन एवं मोटापे में वृद्धि: अधिक वजन तथा मोटापे का बढ़ता प्रचलन (जिससे वर्ष 2022 के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु के 37 मिलियन बच्चे तथा 5-19 वर्ष की आयु के 390 मिलियन से अधिक बच्चे और किशोर प्रभावित हैं) शहरीकरण, बदलते आहार पैटर्न और कम शारीरिक गतिविधियों जैसे कारकों से प्रेरित है।
    • बचपन में वेस्टिंग: इससे विश्व भर में 5 वर्ष से कम आयु के लगभग 45 मिलियन बच्चे प्रभावित हैं। 
      • बाल कुपोषण की रोकथाम की दिशा में (विशेष रूप से दक्षिण एशिया में) खाद्य असुरक्षा, सीमित स्वास्थ्य देखभाल और निम्न स्तरीय स्वच्छता जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  • भारत:
    • सीमित आहार विविधता: भारत के आहार में अक्सर चावल, गेहूँ और अनाज का प्रभुत्व है तथा फलों, सब्जियों, डेयरी उत्पाद और प्रोटीन का सेवन अपर्याप्त बने रहने से पोषण का स्तर निम्न बना हुआ है।
      • आहार विविधता में अभाव (विशेष रूप से निम्न आय वाले परिवारों में) से आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों तक पहुँच सीमित बनी हुई है।
      • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 के अनुसार 6 महीने से 2 वर्ष की आयु के केवल 11.3% बच्चों को ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार 'न्यूनतम स्वीकार्य आहार' मिल पाता है जिससे भोजन की गुणवत्ता में प्रमुख अंतराल बना हुआ है।
  • आर्थिक बाधाएँ: कम आय के साथ उच्च खाद्य कीमतों के कारण जनसंख्या का एक बड़ा भाग पौष्टिक आहार का खर्च उठाने के लिये संघर्षरत है जिससे कुपोषण को बढ़ावा मिलता है।
    • अपर्याप्त डेटा: आहार विविधता से संबंधित व्यापक राष्ट्रीय सर्वेक्षणों के अभाव से लक्षित पोषण हस्तक्षेपों में बाधा आती है।
      • हालांकि NFHS से इस संदर्भ में कुछ जानकारी मिलती है लेकिन इसमें उपभोग किये गए भोजन की मात्रा के बारे में विस्तृत आँकड़ों का अभाव रहने से पोषण संबंधी अंतराल को दूर करने के क्रम में इसकी उपयोगिता सीमित हो जाती है।
  • गैर-संचारी रोग (NCD): मोटापा, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसे आहार-संबंधी NCD की बढ़ती संख्या से लोक स्वास्थ्य प्रणालियों पर बोझ में वृद्धि हो रही है, जिसके कारण अल्प-पोषण एवं अति-पोषण दोनों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • खाद्य प्रणालियों की बाधाएँ: जलवायु परिवर्तन एवं चरम मौसमी घटनाओं से खाद्य सुरक्षा के समक्ष और भी खतरा उत्पन्न हो रहा है जिससे फसल की पैदावार के साथ विविध खाद्य पदार्थों की उपलब्धता प्रभावित होती है।

पोषण से संबंधित भारत की पहल

आगे की राह

  • नीति पुनर्संरेखण: पोषण अभियान जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों में अनुकूल तथा क्षेत्र-विशिष्ट आहार समाधानों को शामिल करने के साथ राष्ट्रीय कदन्न मिशन (NMM) जैसी पहलों को बढ़ावा देना चाहिये।
  • राष्ट्रीय स्तर पर लक्ष्य निर्धारित करना: देश के लिये विशिष्ट आधार रेखाएँ एवं वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करने चाहिये।
  • संसाधन आवंटन को मज़बूत करना: पोषण-विशिष्ट तथा पोषण-संवेदनशील कार्यक्रमों को लागू करने के लिये वित्तीय तथा मानव संसाधन जुटाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • विभिन्न क्षेत्रों में पोषण को एकीकृत करना: पोषण परिणामों को स्वास्थ्य, खाद्य प्रणालियों तथा जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य (WASH) नीतियों में शामिल करना चाहिये।
    • प्रभावी मातृ एवं बाल पोषण सेवाओं के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत करना चाहिये।
  • निगरानी तंत्र विकसित करना: चयनित पोषण संकेतकों से संबंधित प्रगति को ट्रैक करने के लिये निगरानी प्रणालियों को उन्नत बनाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा अनुमोदित वैश्विक पोषण लक्ष्यों को बताते हुए उन्हें प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट की गणना के लिये IFPRI द्वारा उपयोग किये जाने वाले संकेतक/संकेतक निम्नलिखित में से कौन-सा है/हैं? (2016)

  1. आधे पेट खाना
  2. बाल स्टंटिंग
  3. बाल मृत्यु दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1
(B) केवल 2 और 3
(C) 1, 2 और 3
(D) केवल 1 और 3

 उत्तर: (C)

प्रश्न. ज़िला ग्रामीण विकास अभिकरण (DRDA) भारत में ग्रामीण निर्धनता को कम करने में कैसे मदद करते हैं? (2012)

  1. DRDA देश के कुछ विनिर्दिष्ट पिछड़े क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाओं के रूप में कार्य करते हैं।
  2.  DRDA विनिर्दिष्ट क्षेत्रों में निर्धनता और कुपोषण के कारणों का वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं तथा उनके समाधान के विस्तृत उपाय तैयार करते हैं।
  3.  DRDA निर्धनता-रोधी कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु अंतर-क्षेत्रीय (इंटर-सेक्टोरल) तथा अंतर-विभागीय समन्वयन और सहयोग सुरक्षित करते हैं।
  4.  DRDA निर्धनता-रोधी कार्यक्रमों के लिये मिले कोष पर निगरानी रखते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनका प्रभावी उपयोग हो।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/ हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 3. और 4
(c) केवल 4
(d) 1, 2, 3. और 4

उत्तर: (b) 


मेन्स:

1. क्या लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुश्चक्र को महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस) प्रदान करके तोड़ा जा सकता है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिये। (2021)

2. लगातार उच्च विकास के बावजूद मानव विकास सूचकांक में भारत अभी भी सबसे कम अंकों के साथ है। उन मुद्दों की पहचान करें जो संतुलित और समावेशी विकास को सुनिश्चित करते हैं। (2019)

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