फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय | 01 Dec 2023
प्रिलिम्स के लिये :फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम), यौन अपराध, आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 मेन्स के लिये :फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय, केंद्र और राज्यों द्वारा जनसंख्या के कमज़ोर वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का प्रदर्शन। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तीन वर्षों (वर्ष 2026 तक) के लिये फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (FTSCs) को जारी रखने की मंज़ूरी दे दी है।
- प्रारंभ में अक्तूबर 2019 में एक वर्ष के लिये शुरू की गई इस योजना को मार्च 2023 तक अतिरिक्त दो वर्षों के लिये बढ़ा दिया गया था।
फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (FTSCs) क्या है?
- परिचय:
- FTSCs भारत में स्थापित विशेष न्यायालय हैं जिनका प्राथमिक उद्देश्य यौन अपराधों से संबंधित मामलों की सुनवाई प्रक्रिया में तेज़ी लाना है, विशेष रूप से यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) के तहत बलात्कार और उल्लंघन से जुड़े मामलों की सुनवाई में तेज़ी लाना है।
- FTSCs की स्थापना सरकार द्वारा यौन अपराधों की चिंताजनक आवृत्ति और नियमित न्यायालयों में लंबित मुकदमों की लंबी अवधि के चलते की गई, जिसके परिणामस्वरूप पीड़ितों को न्याय प्राप्ति में देरी हुई।
- स्थापना:
- केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में दंड विधि (संशोधन) अधिनियम लागू किया, जिसमें बलात्कार अपराधियों के लिये मृत्युदंड सहित कठोर दंड के प्रावधान किये गए।
- इसके बाद ऐसे मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिये FTSC की स्थापना की गई।
- केंद्र प्रायोजित योजना:
- FTSC स्थापित करने की योजना अगस्त 2019 में एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के स्वत: संज्ञान रिट याचिका (आपराधिक) में निर्देशों के बाद तैयार की गई थी।
- अब तक की उपलब्धियाँ:
- तीस राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने इस योजना में भाग लिया है तथा 414 विशिष्ट POCSO न्यायालयों सहित 761 FTSC का संचालन किया गया है, जिन्होंने 1,95,000 से अधिक मामलों का समाधान किया है।
- ये न्यायालय यौन अपराधों के पीड़ितों को समय पर न्याय प्रदान करने के राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकार के प्रयासों का समर्थन करते हैं। यहाँ तक कि दूरवर्ती इलाकों में भी।
फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा तथा कम निपटान दर:
- भारत में विशेष न्यायालय अक्सर नियमित न्यायालयों की तरह ही चुनौतियों से जूझते हैं, क्योंकि उन्हें आमतौर पर नए बुनियादी ढाँचे के रूप में स्थापित करने के बजाय नामित किया जाता है।
- इससे न्यायाधीशों पर अत्यधिक बोझ पड़ता है, जिन्हें आवश्यक सहायक कर्मचारियों अथवा बुनियादी ढाँचे के बिना उनके मौजूदा कार्यभार के अलावा अन्य श्रेणियों के मामले भी सौंप दिया जाता है।
- परिणामस्वरूप इन विशेष न्यायालयों में मामलों के निपटारे की दर धीमी हो जाती है।
- प्रति न्यायालय प्रतिवर्ष लगभग 165 POCSO मामलों के निपटान के अनुमानित लक्ष्य की प्राप्ति में भी काफी कमी है, देश में 1,000 से अधिक FTSCs में से वर्तमान में प्रत्येक की औसतन वार्षिक तौर पर केवल 28 मामलों को निपटान किया जा रहा है।
- लंबे समय तक लंबितता:
- 31 जनवरी 2023 तक FTSCs में 2.43 लाख से अधिक POCSO मामले लंबित हैं।
- अनुमानों से पता चलता है कि अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मेघालय जैसे राज्यों में बैकलॉग/लंबित मामलों के निपटान में कई दशकों का समय लगेगा।
- विभिन्न राज्यों में अनुमानित परीक्षण अवधि भिन्न होती है, यह 21 से 30 वर्ष तक की हो सकती है।
- 31 जनवरी 2023 तक FTSCs में 2.43 लाख से अधिक POCSO मामले लंबित हैं।
- दोषसिद्धि दर संबंधी चुनौतियाँ:
- एक वर्ष के भीतर परीक्षण पूरा करने का लक्ष्य रखने के बावजूद शोधों से पता चलता है कि दोषसिद्धि दर काफी कम है।
- विचाराधीन 2,68,038 मामलों में से केवल 8,909 में दोषसिद्धि की जा सकी है, इसे लेकर FTSC की प्रभावकारिता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- एक वर्ष के भीतर परीक्षण पूरा करने का लक्ष्य रखने के बावजूद शोधों से पता चलता है कि दोषसिद्धि दर काफी कम है।
- सीमित क्षेत्राधिकार:
- इन न्यायालयों की स्थापना एक विशिष्ट क्षेत्राधिकार के साथ की जाती हैं, जो संबंधित मामलों के निपटान की उनकी क्षमता को सीमित कर सकती है। इससे न्याय वितरण में देरी हो सकती है तथा कानूनों के कार्यान्वयन में स्थिरता की कमी हो सकती है।
- एक आदर्श स्थिति में इन विशेष न्यायालयों में मामलों का निपटान एक वर्ष के भीतर किया जाना आवश्यक है। हालाँकि मई 2023 तक दिल्ली के FTSC में कुल 4,369 लंबित मामलों में से केवल 1,049 मामलों का ही निपटान किया गया था। यह मामलों के निपटान संबंधी लक्ष्य के पूरा होने में विलंबता को इंगित करता है।
- इन न्यायालयों की स्थापना एक विशिष्ट क्षेत्राधिकार के साथ की जाती हैं, जो संबंधित मामलों के निपटान की उनकी क्षमता को सीमित कर सकती है। इससे न्याय वितरण में देरी हो सकती है तथा कानूनों के कार्यान्वयन में स्थिरता की कमी हो सकती है।
- न्यायाधीशों की रिक्तियाँ और प्रशिक्षण का अभाव:
- न्यायाधीशों की रिक्तियाँ और प्रशिक्षण का अभाव मामलों के प्रभावी निपटान क्षमता को प्रभावित करता है।
- वर्ष 2022 तक पूरे भारत में निचली न्यायालयों में रिक्ति दर 23% थी।
- सामान्य न्यायालयों के नियमित न्यायाधीशों को अक्सर FTSC में कार्य करने के लिये प्रतिनियुक्त किया जाता है।
- हालाँकि इन न्यायालयों को मामलों के शीघ्र और प्रभावी निपटान के लिये विशेष प्रशिक्षण वाले न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है।
- न्यायाधीशों की रिक्तियाँ और प्रशिक्षण का अभाव मामलों के प्रभावी निपटान क्षमता को प्रभावित करता है।
- कुछ अपराधों को अन्य अपराधों से अधिक प्राथमिकता दिया जाना:
- भारत में विशेष न्यायालयों की स्थापना सामान्यतः सरकार की न्यायिक और कार्यकारी दोनों शाखाओं द्वारा लिये गए तदर्थ निर्णयों के आधार पर की जाती है।
- इसका अर्थ है कि अपराधों की कुछ श्रेणियों के अन्य अपराधों की तुलना में तेज़ी से निपटान के लिये मनमाने ढंग से प्राथमिकता दी जाती है।
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आगे की राह
- सुचारु और कुशल संचालन सुनिश्चित करने के लिये FTSCs को कोर्ट रूम, सहायक कर्मचारी और आधुनिक तकनीक सहित पर्याप्त बुनियादी ढाँचा प्रदान किया जाना चाहिये।
- इन विशिष्ट न्यायालयों की स्थापना और रखरखाव के लिये अतिरिक्त धन आवंटित किया जाना चाहिये।
- निपटान दर को बढ़ाने के लिये FTSCs को सख्त मामला प्रबंधन, स्थगन के कारण होने वाली अनावश्यक देरी को कम करने और साक्ष्य की समय पर प्रस्तुति सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- यह न्यायाधीशों और सहायक कर्मचारियों के लिये विशेष प्रशिक्षण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने तथा कार्यवाही की गति बढ़ाने में मदद कर सकता है।
- रिक्तियों को तुरंत भरने के प्रयास किये जाने चाहिये और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि प्रासंगिक विशेषज्ञता वाले न्यायाधीशों को इन अदालतों में नियुक्त किया जाए।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के बढ़ते मामले देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिये कुछ नवीन उपाय सुझाइये। (2014) |