भारत में रोज़गार के रुझान | 16 May 2024

प्रिलिम्स के लिये:

रोज़गार, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रमुख रोज़गार, गिग अर्थव्यवस्था, स्टार्ट-अप इंडिया योजना, स्माइल, अनौपचारिक क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारत में रोज़गार की चुनौतियाँ, भारत में बेरोज़गारी, सरकारी पहल, वृद्धि और विकास 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

भारत में हाल के वर्षों में रोज़गार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है, वर्ष 2017-18 और वर्ष 2022-23 के बीच 80 मिलियन से अधिक अतिरिक्त नौकरियों का सृजन हुआ है।  

  • इन रुझानों के तेज़ी से बढ़ने के कारणों और इसकी स्थिरता पर चर्चा शुरू हो गई है।

रोज़गार वृद्धि में प्रमुख रुझान क्या हैं?

  • ऐतिहासिक विकास: वर्ष 1983 से वर्ष 2023 तक राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के आँकड़ों का उपयोग करते हुए विश्लेषण सभी उप-अवधियों में प्रमुख रोज़गार में लगातार वृद्धि को दर्शाता है। 
  • निरंतर विकासः प्रमुख रोज़गार, जो वर्ष के अधिकांश समय कार्य करने वालों को मापता है, वर्ष 1983 के बाद से लगातार बढ़ा है। 
    • प्रमुख रोज़गार से तात्पर्य वर्ष के अधिकांश समय में की गई मुख्य व्यवसाय से है, जबकि सहायक रोज़गार आमतौर पर अंशकालिक, कम अवधि का और मुख्य व्यवसाय के अतिरिक्त होता है।
    • विचाराधीन प्रत्येक उप-अवधि में प्रमुख रोज़गार में वृद्धि देखी गई है, लेकिन इन अवधियों में बेरोज़गारी में वृद्धि होने का कोई उदाहरण नहीं है।
  • उल्लेखनीय वृद्धि (2017-2023): वर्ष 2017-18 से वर्ष 2022-23 की अवधि में लगभग 80 मिलियन अतिरिक्त नौकरियों के साथ रोज़गार में तीव्र वृद्धि देखी गई, जो 3.3% की वार्षिक वृद्धि दर में परिवर्तन करती है।
  • श्रम बाज़ार संकेतक:
    • वर्ष 2000 के बाद से दीर्घकालिक गिरावट के बावज़ूद, हाल के वर्षों में प्रमुख श्रम बाज़ार संकेतकों जैसे श्रम बल भागीदारी दर, कार्यबल भागीदारी दर और बेरोज़गारी दर में सुधार देखा गया है। 
      • ये सुधार विशेष रूप से कोविड-19 महामारी से पूर्व और उसके दौरान, विशेष रूप से आर्थिक संकट की अवधि में हुए।
  • व्यापक आधार पर वृद्धि: रोज़गार वृद्धि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में तथा विभिन्न उद्योगों (विनिर्माण, कृषि, निर्माण, सेवाएँ) में उचित रूप से विभाजित की गई है।
  • महिलाओं और बुजुर्गों के रोज़गार में वृद्धि: महिलाओं के लिये रोज़गार में वृद्धि सर्वाधिक रही है, जो 8% वार्षिक से भी अधिक है। 
    • 60 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लोगों के रोज़गार में वार्षिक वृद्धि दर लगभग 4.5% रही।
    • इस प्रवृत्ति के कई कारण हैं, जिनमें बढ़ता संकट, जल और ऊर्जा जैसे संसाधनों तक बेहतर पहुँच एवं देखभाल से संबंधित कार्यों में अधिक लचीलापन शामिल हैं।
      • 1980 के दशक से, बुज़ुर्ग श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हुई है; यह प्रवृत्ति लंबे जीवनकाल से संबंधित हो सकती है।
  • रोज़गार स्थिति सूचकांक:
    • रोज़गार स्थिति सूचकांक सात श्रम बाज़ार परिणाम संकेतकों पर आधारित है, जिसमें नियमित औपचारिक कार्य में श्रमिकों का प्रतिशत, आकस्मिक मज़दूर, गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले स्व-रोज़गार श्रमिक, कार्य भागीदारी दर, आकस्मिक मज़दूरों की औसत मासिक कमाई, शिक्षित युवाओं की बेरोज़गारी दर के साथ-साथ वे युवा भी शामिल हैं जो रोज़गार व शिक्षा या प्रशिक्षण में सलंग्न नहीं हैं।
      • वर्ष 2004-05 और वर्ष 2021-22 के बीच "रोज़गार स्थिति सूचकांक" में सुधार हुआ है।
      • हालाँकि, इस दौरान कुछ राज्य (बिहार, ओडिशा, झारखंड, यू.पी.) सबसे निचले पायदान पर रहे।
      • अन्य राज्य (दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, उत्तराखंड, गुजरात) शीर्ष पर बने हुए हैं।

रोज़गार गुणवत्ता कैसे विकसित हुई है?

  • अनौपचारिक रोज़गार में वृद्धि:
    • औपचारिक क्षेत्र में लगभग 50% नौकरियाँ अनौपचारिक हैं।
    • लगभग 82% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में नियोजित है।
    • लगभग 90% लोग अनौपचारिक रूप से कार्यरत हैं।
  • स्व-रोज़गार का प्रभुत्व:
    • रोज़गार वृद्धि (44 मिलियन) के एक बड़े भाग के रूप में स्व-रोज़गार प्राप्त करने वाले श्रमिक और अवैतनिक पारिवारिक श्रमिक शामिल हैं।
    • रोज़गार का प्राथमिक स्रोत स्व-रोज़गार है, जिसका रोज़गार के संबंध में वर्ष 2022 में 55.8% का योगदान था।
    • आकस्मिक रोज़गार (आवश्यकतानुसार कार्य के आधार पर कर्मचारियों को नियुक्त करना) 22.7% है और नियमित रोज़गार 21.5% है।

 मज़दूरी और वेतन की प्रवृति क्या है?

  • हाल के वर्षों में कुल मज़दूरी और वेतन में सापेक्षिक स्थिरता देखी गई है।
  • वर्ष 2017-18 से वर्ष 2022-23 तक वेतन और मज़दूरी की औसत वार्षिक वृद्धि नाममात्र के संदर्भ में 6.6% थी, लेकिन मुद्रास्फीति के हिसाब से केवल 1.2% थी।
  • हालाँकि मज़दूरी के संबंध में स्पष्ट रूप से किसी भी प्रकार के संकट की प्रवृत्ति नहीं देखी गई है लेकिन जीवन यापन की स्थिति में भी कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है।
    • संभावित कारणों में श्रमिकों की बड़ी आबादी और स्थिर श्रम उत्पादकता के कारण मज़दूरी/पारिश्रमिक में कमी शामिल है।

युवा रोज़गार की स्थिति क्या है? 

  • वर्ष 2000 से 2019 के बीच युवा रोज़गार और अल्परोज़गार में वृद्धि हुई लेकिन महामारी के वर्षों के दौरान इसमें गिरावट दर्ज़ की गई।
    • हालाँकि समय के साथ युवाओं, विशेष रूप से माध्यमिक स्तर या उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं के बीच बेरोज़गारी के स्तर में वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2022 में कुल बेरोज़गार लोगों में बेरोज़गार युवाओं की हिस्सेदारी 82.9% थी और सभी बेरोज़गार लोगों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी वर्ष 2000 में 54.2% से बढ़कर 2022 में 65.7% हो गई।
  • शिक्षित युवाओं में बेरोज़गारी दर माध्यमिक शिक्षा या उच्चतर शिक्षा प्राप्त युवाओं से छह गुना अधिक (18.4%) और वर्ष 2022 में अशिक्षित व्यक्तियों (3.4%) की तुलना में स्नातकों (29.1%) के लिये नौ गुना अधिक थी।
    • यह पुरुषों (17.5%) की तुलना में शिक्षित युवा महिलाओं (21.4%) में अधिक था, विशेष रूप से पुरुष स्नातकों (26.4%) की तुलना में महिला स्नातकों (34.5%) में अधिक था।

भारत में रोज़गार संबंधित क्या चिंताएँ हैं?

  • अनौपचारिक क्षेत्र का विकास: जबकि अर्थव्यवस्था बढ़ती है, तो कई नए अनौपचारिक रोज़गार उत्पन्न होते हैं, जिनमें सुरक्षा, लाभ या न्यूनतम वेतन निर्धारित किये जाने का अभाव होता है।
  • युवाओं के लिये रोज़गार की गुणवत्ता: हालाँकि, बेरोज़गारी दर अधिक नहीं है, लेकिन युवाओं के लिये रोज़गार का अक्सर निम्न गुणवत्ता का होता है।
    • इसका अर्थ यह है कि युवा लोग उपलब्ध रोज़गार के लिये अति शिक्षित हो सकते हैं या स्वयं को गिग इकॉनमी जैसी अनिश्चित स्थितियों में संलग्न पा सकते हैं।
    • गिग या प्लेटफॉर्म कर्मियों के लिये चुनौतियों में रोज़गार सुरक्षा की कमी, अनियमित वेतन और अनिश्चित रोज़गार की स्थिति शामिल हैं।
  • जेंडर गैप: कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोतरी अपेक्षा के अनुरूप नहीं हुई है। कई महिलाएँ औपचारिक रोज़गार के स्थान पर अवैतनिक पारिवारिक कामकाज़ या अल्प वेतन वाले स्व-रोज़गार में संलग्न हो जाती हैं।
  • बेमेल कौशल (Skill Mismatch): शिक्षा प्रणाली वर्तमान रोज़गार बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हो सकती है।
  • औपचारिकीकरण संबंधी चुनौतियाँ: भारतीय कार्यबल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत रहता है।
    • इसका अर्थ सरकार के लिये निम्न कर राजस्व और श्रमिकों के लिये सीमित सामाजिक सुरक्षा लाभ है।
  • रोज़गार स्वचालन: कई देशों की तरह, स्वचालन भारत में कुछ क्षेत्रों के लिये संकट बन सकता है। इससे विनिर्माण जैसे उद्योगों में रोज़गार विस्थापन जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के बढ़ने से रोज़गार प्रभावित हो सकता है, विशेषकर भारत के आउटसोर्सिंग उद्योगों में, जहाँ कुछ बैक-ऑफिस कार्य AI द्वारा किये जा सकते हैं।
  • आर्थिक संघर्ष के प्रति संवेदनशीलता: अधिकांश कार्यबल अनौपचारिक या आकस्मिक रोज़गार पर निर्भर करते हैं। यह उन्हें आर्थिक मंदी या बाह्य संघर्ष के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाता है, जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान देखा गया।
  • सरकारी नौकरियों की मांग में वृद्धि: निजी क्षेत्र में रोज़गार सृजन की कमी के कारण सरकारी नौकरियों की  मांग में वृद्धि हुई है।
    • यह स्थिति सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए स्थिर रोज़गार की अपील को रेखांकित करती है।

आगे की राह

  • औपचारिकता को बढ़ावा देना: पेरू की राष्ट्रीय रणनीति से सीख लेते हुए, अनौपचारिक क्षेत्र के कर्मियों को औपचारिक क्षेत्र में संक्रमण हेतु प्रोत्साहित करने के लिये रणनीतियों को लागू करना।
    • औपचारिकता में परिवर्तन के लिये पेरू के नीति रूपरेखा (FSP) एवं व्यापार और मानव अधिकारों पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NBA व NAP) में विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण में हितधारकों को शामिल किया गया है, जिसमें राज्य, व्यवसाय, शिक्षा, श्रमिक, नागरिक समाज तथा स्वदेशी लोग शामिल हैं।
    • अनौपचारिक क्षेत्र में छोटे व्यवसायों के लिये पंजीकरण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना चाहिये। यह उन्हें औपचारिक बनाने के लिये प्रोत्साहित करता है तथा उन्हें श्रम कानूनों और सामाजिक सुरक्षा लाभों के दायरे में लाता है।
  • सीमांत समूहों के लिये लक्षित कार्यक्रम: SMILE पहल के समान, सीमांत समुदायों के व्यक्तियों के लिये लक्षित कौशल विकास कार्यक्रम लागू किये जाएँ।
  • इस से समुदायों के मध्य समावेशिता सुनिश्चित होती है जो इन समुदायों को कार्यबल में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये सशक्त बनाती है।
  • AI और ऑटोमेशन रीस्किलिंग: AI, रोबोटिक्स एवं डेटा साइंस जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करके ऑटोमेशन (स्वचालन) रीस्किलिंग के लिये कार्यबल तैयार किया जाए।
    • यह श्रमिकों को उभरते कार्य क्षेत्रों में अनुकूलन तथा योगदान करने की अनुमति देता है।
  • सामाजिक सुरक्षा संवहनीयता: एक संवहनीय सामाजिक सुरक्षा प्रणाली तैयार की जाए जो गिग श्रमिकों तथा औपचारिक एवं अनौपचारिक क्षेत्रों के बीच संक्रमण करने वाले श्रमिकों की आवश्यकताओं को पूर्ण करती है।
  • उद्यमिता और नवाचार: उद्योग-विशिष्ट स्टार्टअप इनक्यूबेटर तथा एक्सेलेरेटर स्थापित किये जाएँ।
    • एंजेल निवेशकों द्वारा नेटवर्क के विकास को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जो स्टार्टअप के लिये  प्रारंभिक चरण का निवेश प्रदान करते हैं।
  • दूरस्थ कार्य अवसर: कंपनियों को प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने तथा दूरस्थ कार्य अवसर प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित किया जाए। इससे प्रमुख शहरों से बाहर रहने वाले व्यक्तियों के लिये नौकरी के अवसरों का विस्तार होता है तथा बेहतर कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा मिलता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. अनौपचारिकरोज़गार वृद्धि, स्थिरता एवं सामाजिक सुरक्षा को कैसे प्रभावित करती है? क्या औपचारिकीकरण और AI रीस्किलिंग को बढ़ावा देने से स्थायी रोज़गार सुनिश्चित हो सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स 

प्रश्न. प्रधानमंत्री MUDRA योजना का लक्ष्य क्या है?  (2016) 

(a) लघु उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना
(b) निर्धन कृषकों को विशेष फसलों की कृषि के लिये ऋण उपलब्ध कराना
(c) वृद्ध एवं निस्सहाय लोगों को पेंशन प्रदान करना
(d) कौशल विकास एवं रोज़गार सृजन में लगे स्वयंसेवी संगठनों का निधियन करना

उत्तर: (a)


प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्यतः अर्थ है कि:  (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न: भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)