भारत में जलवायु परिवर्तन का अर्थशास्त्र | 24 May 2023
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021, जलवायु जोखिम घटनाएँ, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), हीट स्ट्रेस, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA), पंचामृत, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना, प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार योजना (PAT), प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना मेन्स के लिये:भारत की समष्टि अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये भारत की पहल |
चर्चा में क्यों?
विगत महीनों में इस बारे में कई मामले सामने आए जिन्होंने यह दर्शाया कि कैसे चरम मौसमीय घटनाओं ने भारत में सामान्य जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021 ने जलवायु जोखिम की घटनाओं के जोखिम और भेद्यता के मामले में सबसे अधिक प्रभावित देशों की सूची में भारत को 7वाँ स्थान दिया था।
- जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है, जो न केवल पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के लिये बल्कि आर्थिक विकास के लिये भी जोखिम उत्पन्न करता है।
जलवायु परिवर्तन भारत की समष्टि अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर सकता है?
- परिचय:
- जलवायु परिवर्तन अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष (उत्पादक क्षमता) और मांग पक्ष (उपभोग और निवेश) दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
- इसका विविध स्थानों एवं आर्थिक क्षेत्रों में स्पिलओवर प्रभाव अर्थात् (विविध क्षेत्रों की आपसी संबद्धता के कारण प्रभाव) पड़ सकते है, साथ ही सीमा पार तथा वैश्विक रूप से विस्तृत प्रभाव के जोखिम हो सकते हैं।
- प्रभाव:
- कृषि उत्पादन में कमी: जलवायु परिवर्तन फसल चक्र को गंभीर रूप से बाधित कर सकता है और तापमान में बदलाव, वर्षा के प्रारूप, कीट संक्रमण,मृदा कटाव, जल की कमी व बाढ़ तथा सूखे जैसी चरम मौसमीय घटनाओं के कारण कम कृषि उपज का कारण बन सकता है।
- कृषि अपने संबद्ध क्षेत्रों के साथ भारत में आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत है और अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। कम पैदावार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है एवं शहरी क्षेत्रों में भी मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है।
- मत्स्य पालन क्षेत्र में व्यवधान: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र की सतह का बढ़ता तापमान मत्स्य प्रजातियों के वितरण और व्यवहार को बाधित कर सकता है।
- कुछ प्रजातियाँ ठंडे जल में प्रवास कर सकती हैं या अपने प्रवासी प्रतिरूप को बदल सकती हैं, जिससे कुछ क्षेत्रों में मत्स्य उपलब्धता प्रभावित हो सकती है। इससे मत्स्यन संरचना (अल्प या व्यापक उपलब्धता) में परिवर्तन हो सकता है, जिससे मछुआरों की आजीविका प्रभावित हो सकती है।
- स्वास्थ्य लागत में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन से मलेरिया, डेंगू, हैज़ा, हीट स्ट्रोक, श्वसन संक्रमण और मानसिक तनाव जैसी बीमारियों की घटनाओं एवं गंभीरता में वृद्धि हो सकती है।
- यह बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों और गरीबों जैसे कमज़ोर समूहों के पोषण एवं कल्याण को भी प्रभावित कर सकता है। स्वास्थ्य लागत प्रयोज्य आय को कम कर सकती है, श्रम उत्पादकता को कम कर सकती है, साथ ही सार्वजनिक व्यय को बढ़ा सकती है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वर्ष 2030 से 2050 के बीच जलवायु परिवर्तन के कारण प्रतिवर्ष लगभग 2,50,000 अतिरिक्त मौतें कुपोषण, मलेरिया, डायरिया एवं गर्मी व तनाव के कारण होने की आशंका है।
- क्षतिग्रस्त बुनियादी ढाँचा: जलवायु परिवर्तन से समुद्र के स्तर में वृद्धि, तटीय क्षरण, भूस्खलन, तूफान, बाढ़ और हीट वेव के कारण भौतिक बुनियादी ढाँचे जैसे सड़कें, पुल, रेलवे, बंदरगाह, हवाई अड्डे, विद्युत संयंत्र, जल आपूर्ति प्रणाली एवं इमारतें क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।
- क्षतिग्रस्त अवसंरचना आर्थिक गतिविधि, व्यापार और कनेक्टिविटी को बाधित कर सकती है तथा रख-रखाव एवं प्रतिस्थापन लागत में वृद्धि कर सकती है।
- उदाहरण के लिये भारत को पिछले दशक में बाढ़ के कारण 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक क्षति हुई जो वैश्विक आर्थिक नुकसान का 10% है।
- औद्योगिक उत्पादन में कमी: जलवायु परिवर्तन नए जलवायु-अनुकूल नियमों, पुराने स्टॉक के कम उपयोग, उत्पादन प्रक्रियाओं के स्थानांतरण तथा जलवायु संबंधी नुकसान के कारण गतिविधियाँ बाधित जैसे कारकों के कारण औद्योगिक क्षेत्र में परिचालन लागत बढ़ा सकता है और मुनाफा कम कर सकता है।
- वर्ष 2030 तक गर्मी के तनाव से जुड़ी उत्पादकता में गिरावट के कारण 80 मिलियन वैश्विक नौकरी के नुकसान में से 34 मिलियन का नुकसान भारत में होने का अनुमान है।
- ऊर्जा संकट: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, भारत की प्राथमिक ऊर्जा मांग वर्ष 2030 तक दोगुनी हो जाएगी।
- ऊर्जा और जलवायु एक विशिष्ट संबंध साझा करते हैं जैसे बढ़ते तापमान गर्मी के प्रभाव को कम करने की प्रक्रिया में सहायता के लिये ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि की मांग करते हैं।
- वित्तीय सेवाओं पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिये बढ़ते क्रेडिट जोखिम के कारण वित्तीय सेवाओं पर दबाव डाल सकता है। यह जलवायु से संबंधित घटनाओं जैसे बाढ़, तूफान या सूखे के कारण ऋण चुकाने की उधारकर्त्ताओं की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
- ये घटनाएँ संपत्तियों को नुकसान पहुँचा सकती हैं, आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकती हैं और व्यवसायों की लाभप्रदता को प्रभावित कर सकती हैं, संभावित रूप से ऋण चूक तथा ऋण हानि हो सकती है।
- यह कम मांग, रद्दीकरण और सुरक्षा चिंताओं के कारण बीमा दावों को भी बढ़ा सकता है तथा यात्रा एवं आतिथ्य सेवाओं को बाधित कर सकता है।
- कृषि उत्पादन में कमी: जलवायु परिवर्तन फसल चक्र को गंभीर रूप से बाधित कर सकता है और तापमान में बदलाव, वर्षा के प्रारूप, कीट संक्रमण,मृदा कटाव, जल की कमी व बाढ़ तथा सूखे जैसी चरम मौसमीय घटनाओं के कारण कम कृषि उपज का कारण बन सकता है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु भारत की पहलें:
- पंचामृत: भारत ने भारत की जलवायु के निम्नलिखित पाँच अमृत तत्वों (पंचामृत) को प्रस्तुत किया है:
- वर्ष 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता तक पहुँचना।
- वर्ष 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा करना।
- वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कमी।
- वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक कार्बन अर्थव्यवस्था में 45% की तीव्र कमी।
- वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना:
- इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इसका मुकाबला करने के चरणों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने हेतु भारत की तैयारियाँ:
- कार्बन पृथक्करण को बढ़ाना: भारत अपने वन और वृक्षों के आवरण के विस्तार, खराब भूमि को बहाल कर, कृषिवानिकी को बढ़ावा देकर और कम कार्बन वाली खेती के तरीकों को अपनाकर अपनी कार्बन पृथक्करण क्षमता को बढ़ा सकता है।
- कार्बन पृथक्करण न केवल उत्सर्जन को कम कर सकता है बल्कि जैवविविधता संरक्षण, भूमि की उर्वरता में सुधार, जल सुरक्षा, आजीविका समर्थन और आपदा जोखिम में कमी जैसे कई सह-लाभ भी प्रदान करता है।
- जलवायु लचीलापन का निर्माण: भारत अपनी आपदा प्रबंधन प्रणालियों को सुदृढ़ कर, अपनी पूर्व चेतावनी और पूर्वानुमान क्षमताओं में सुधार, जलवायु बुनियादी ढाँचे में निवेश, जलवायु-स्मार्ट कृषि विकसित कर, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को बढ़ाकर और स्थानीय समुदायों एवं संस्थानों को सशक्त बनाकर अपनी जलवायु कार्यक्रम में लचीलापन ला सकता है।
- भारत की हरित परिवहन क्रांति को बढ़ाना: एक सुदृढ़ चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क स्थापित करके और EV अपनाने के लिये प्रोत्साहन की पेशकश कर इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- इलेक्ट्रिक बसों, साझा गतिशील सेवाओं और स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन प्रणालियों जैसे नवीन सार्वजनिक परिवहन समाधानों का परिचय भीड़भाड़ और उत्सर्जन को कम कर सकता है।
- क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर: जैविक खेती, कृषि वानिकी और सटीक कृषि को बढ़ावा देकर टिकाऊ कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- रिमोट सेंसिंग, IoT डिवाइस और AI-आधारित एनालिटिक्स जैसे प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों को एकीकृत करने से संसाधन उपयोग को अनुकूलित किया जा सकता है तथा जल की खपत को कम किया जा सकता है और फसल उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रारंभिक:प्रश्न. जलवायु-अनुकूलन कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये, भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य का सबसे अच्छा वर्णन करता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. 'भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन संधि' (ग्लोबल क्लाइमेट चेंज एलाएन्स के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के कारण भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017) |