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जैव विविधता और पर्यावरण

ई-फ्लो मॉनिटरिंग सिस्टम

  • 19 Jun 2024
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

एनवायरनमेंट फ्लो, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, नमामि गंगे कार्यक्रम, जैवविविधता संरक्षण, भौगोलिक सूचना प्रणाली

मेन्स के लिये:

ई-फ्लो पारिस्थितिकी निगरानी प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ, नमामि गंगे कार्यक्रम से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने एनवायरनमेंट फ्लो (ई-फ्लो) निगरानी प्रणाली शुरू की है, जिसे नदी के जल की गुणवत्ता की वास्तविक समय पर निगरानी की सुविधा प्रदान करने तथा नदी पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित परियोजनाओं की निगरानी में सहायता हेतु डिज़ाइन किया गया है। 

  • इस प्रणाली का उद्देश्य गंगा एवं यमुना सहित प्रमुख भारतीय नदियों में जल संसाधनों तथा एनवायरनमेंट फ्लो के प्रबंधन को उन्नत बनाना है।

एनवायरनमेंट फ्लो: 

  • परिचय: एनवायरनमेंट फ्लो (ई-फ्लो) का आशय जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के स्वास्थ्य को बनाए रखने तथा इन पारिस्थितिकी प्रणालियों पर निर्भर जीवों का समर्थन करने हेतु निश्चित समय पर आवश्यक जल प्रवाह की मात्रा एवं गुणवत्ता की उपलब्धता से है। 
    • नदियों, झीलों एवं आर्द्रभूमि के पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने हेतु ई-फ्लो आवश्यक है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि इनसे महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी सेवाएँ मिलती रहें।
  • एनवायरनमेंट फ्लो के प्रमुख पहलू:
    • मात्रा: पारिस्थितिकी तंत्र में पारिस्थितिकी प्रक्रियाओं तथा प्रजातियों हेतु आवश्यक जल की पर्याप्त मात्रा सुनिश्चित होना।
    • समय: प्राकृतिक जल विज्ञान चक्र के अनुसार मौसमी और अंतर-वार्षिक उतार-चढ़ाव सहित जल प्रवाह में प्राकृतिक विविधताओं को संरक्षित करना।
    • गुणवत्ता: जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य हेतु उपयुक्त जल गुणवत्ता मानकों (जिसमें घुलित ऑक्सीजन, तापमान तथा पोषक तत्त्वों की सांद्रता का उचित स्तर शामिल है) को बनाए रखना।
    • आवृत्ति: यह सुनिश्चित करना कि विशिष्ट प्रवाह की स्थितियाँ (जैसे- उच्च प्रवाह, निम्न प्रवाह और बाढ़ की घटनाएँ) ऐसी हों जिससे जलीय प्रजातियों के जीवन चक्र का समर्थन किया जा सके।

ई-फ्लो पारिस्थितिकी निगरानी प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ:

  • परिचय: ई-फ्लो निगरानी प्रणाली को जल शक्ति मंत्रालय के एक प्रभाग, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा विकसित किया गया था।
    • यह प्रणाली संपूर्ण वर्ष गंगा के विभिन्न हिस्सों में न्यूनतम ई-फ्लो बनाए रखने के लिये केंद्र द्वारा वर्ष 2018 के जनादेश का अनुसरण करती है।
    • यह जनादेश पर्यावरण समूहों की चिंताओं का जवाब था, जो बाँधों के कारण नदी की पारिस्थितिकी और प्रवाह पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव के संदर्भ में था।
  • मुख्य विशेषताएँ: 
    • वास्तविक समय (Real-Time) पर निगरानी: यह प्रणाली गंगा, यमुना और उनकी सहायक नदियों में जल गुणवत्ता के निरंतर विश्लेषण की अनुमति देती है।
    • केंद्रीकृत निरीक्षण: यह नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत गतिविधियों की निगरानी करने में सक्षम बनाता है, जो विशेष रूप से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) के प्रदर्शन की निगरानी करता है।
    • व्यापक डेटा विश्लेषण: गंगा की मुख्यधारा के साथ 11 परियोजनाओं में इन-फ्लो, आउट-फ्लो और अनिवार्य ई-फ्लो को ट्रैक करने के लिये केंद्रीय जल आयोग तिमाही रिपोर्ट का उपयोग करता है।

नमामि गंगे कार्यक्रम क्या है?

  • परिचय: नमामि गंगे कार्यक्रम एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा ‘फ्लैगशिप कार्यक्रम' के रूप में अनुमोदित किया गया था, ताकि प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन और राष्ट्रीय नदी गंगा के संरक्षण एवं कायाकल्प के दोहरे उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।
  • कार्यक्रम के मुख्य स्तंभ हैं:
  • हालाँकि, अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों और पर्याप्त वित्त पोषण के बावजूद, नमामि गंगे कार्यक्रम अपने लक्ष्यों से पीछे रह गया।

नमामि गंगे कार्यक्रम अपने लक्ष्यों से क्यों पीछे रह गया है?

  • परियोजना के क्रियान्वयन में विलंब: भूमि अधिग्रहण से संबंधित समस्याओं और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) में संशोधन की आवश्यकता के कारण कई सीवेज उपचार परियोजनाओं में विलंब का सामना करना पड़ा है।
    • इन चुनौतियों के कारण महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के निर्माण और संचालन में विलंब हुआ है और इस प्रकार वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति में कमी आई है।
  • वित्तपोषण और बजट आवंटन: कार्यक्रम को 37,396 करोड़ रुपए की परियोजनाओं के लिये सैद्धांतिक स्वीकृति मिल गई है, लेकिन बुनियादी ढाँचे के कार्य के लिये राज्यों को केवल 14,745 करोड़ रुपए ही जारी किये गए हैं।
    • स्वीकृत और वितरित निधियों के बीच इस विसंगति ने परियोजनाओं के समय पर पूरा होने में बाधा उत्पन्न की है।
  • अपर्याप्त सीवेज उपचार क्षमता: महत्त्वपूर्ण निवेश के बावजूद यह कार्यक्रम केवल गंगा के किनारे के पाँच प्रमुख राज्यों में उत्पन्न सीवेज के लगभग 20% को उपचारित करने में सक्षम उपचार संयंत्र स्थापित करने में सफल रहा है।
    • यह क्षमता वर्ष 2024 तक केवल 33% और वर्ष 2026 तक 60% तक बढ़ने की उम्मीद है, जो वर्तमान एवं अनुमानित सीवेज उत्पादन के आधार पर आवश्यकताओं की पूर्ति से कम है।
  • औद्योगिक प्रदूषण की निरंतरता: कार्यक्रम औद्योगिक प्रदूषण के मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये संघर्ष कर रहा है।
    • गंगा के किनारे स्थित कई उद्योग बिना उपचारित अपशिष्टों को नदी में बहा रहे हैं, जिससे नदी प्रदूषित हो रही है।
    • हाल के सरकारी अनुमानों के अनुसार, 3,186 अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों (Grossly Polluting Industries- GPI) द्वारा लगभग 402.67 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD) औद्योगिक अपशिष्ट गंगा और यमुना नदियों में छोड़ा जाता है।

गंगा नदी के संरक्षण और पुनरुद्धार हेतु क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • निगरानी और डेटा प्रबंधन हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: कार्यक्रम की प्रगति तथा गंगा नदी के स्वास्थ्य की प्रभावी निगरानी के लिये रिमोट सेंसिंग, भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information Systems- GIS) एवं वास्तविक समय निगरानी प्रणाली जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना।
    • विभिन्न स्रोतों से डेटा को एकीकृत करने के लिये एक केंद्रीकृत डेटा प्रबंधन प्लेटफॉर्म विकसित करना, जिससे सूचित निर्णय लेने और अनुकूली प्रबंधन को सक्षम किया जा सके।
  • एडाप्ट-ए-घाट इनिशिएटिव: गैर सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों के साथ साझेदारी करके "एडाप्ट -ए-घाट (Adopt-a-Ghat)" कार्यक्रम शुरू करना।
    • समूहों को गंगा के किनारे विशिष्ट घाटों (नदी तट की सीढ़ियों) की सफाई और सौंदर्यीकरण के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, जिससे स्वामित्व तथा सामुदायिक भागीदारी की भावना को बढ़ावा मिलेगा।
  • रिवराइन इकॉनोमी इन्सेन्टिव: उन व्यवसायों के लिये "रिवराइन इकॉनोमी इन्सेन्टिव/गंगा नदी अर्थव्यवस्था" प्रमाणन बनाना जो प्रदूषण को कम करने और सतत् जल उपयोग को बढ़ावा देने वाली प्रथाओं को अपनाते हैं।
    • इससे उद्योगों एवं होटलों को नदी की स्वच्छता में ज़िम्मेदार हितधारक बनने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • बाढ़ के मैदान का जीर्णोद्धार: लंबे समय में बाढ़ के मैदानों की बहाली परियोजनाओं के लिये अवसरों की पहचान करना। नदी को उसके प्राकृतिक बाढ़ क्षेत्रों से दोबारा जोड़ने से जल निस्पंदन में सुधार हो सकता है, कटाव कम हो सकता है और साथ ही जलीय जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण आवास प्रदान किया जा सकता है।
  • वेस्ट-टू-वेल्थ हस्तशिल्प:  नदी तट पर एकत्रित अपशिष्ट से पर्यावरण अनुकूल हस्तशिल्प बनाने के लिये स्वयं सहायता समूहों को समर्थन एवं प्रोत्साहन देना।
    • इससे स्थानीय समुदायों के लिये आय सृजित हो सकती है, अपशिष्ट संग्रहण को प्रोत्साहन प्राप्त होगा तथा सतत् विकास को बढ़ावा भी मिलेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

नदी पारिस्थितिकी तंत्र में पर्यावरणीय प्रवाह को बनाए रखने के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। ई-प्रवाह निगरानी प्रणाली गंगा नदी के कायाकल्प और संरक्षण में किस प्रकार योगदान देती है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न: नमामि गंगे और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) कार्यक्रमों पर और इससे पूर्व की योजनाओं से मिश्रित परिणामों के कारणों पर चर्चा कीजिये। गंगा नदी के परिरक्षण में कौन-सी प्रमात्रा छलांगे, क्रमिक योगदानों की अपेक्षा ज़्यादा सहायक हो सकती हैं? (2015)

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