कृषि
DILRMP एवं भू-अभिलेखों का डिजिटलीकरण
- 03 Jan 2025
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (NLRMP), डिजिटल इंडिया भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP), गाँवों का सर्वेक्षण एवं ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत तकनीक के साथ मानचित्रण (SVAMITVA) योजना मेन्स के लिये:भू-अभिलेखों का डिजिटलीकरण, DILRMP योजना: लाभ, चुनौतियाँ एवं आगे की राह |
स्रोत: द प्रिंट
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2024 तक 98.5% ग्रामीण भू-अभिलेखों का डिजिटलीकरण कर दिया गया है, जिससे पारदर्शिता बढ़ने के साथ भूमि संबंधी समस्याओं का समाधान होगा।
- यह उपलब्धि वर्ष 2008 में शुरू किए गए डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम का हिस्सा है जिसका उद्देश्य कृषि भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल तथा आधुनिक बनाना है ताकि इसकी पहुँच में सुधार होने के साथ इससे संबंधित विवादों में कमी आ सके।
नोट:
- गाँवों का सर्वेक्षण और ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत प्रौद्योगिकी के साथ मानचित्रण (SVAMITVA) योजना, आवासीय क्षेत्रों से संबंधित भू-अभिलेख तैयार करने से संबंधित है, जिसका उद्देश्य भूमि संबंधी विवादों का समाधान करना, ग्रामीणों को उनकी संपत्तियों के आधार पर बैंक ऋण लेने में मदद करना तथा ग्राम पंचायतों को विकास योजना बनाने तथा संपत्ति कर एकत्र करने में सहायता करना है।
डिजिटल इंडिया भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) क्या है?
- राष्ट्रीय भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (NLRMP) को वर्ष 2016 में पुनः आरंभ किया गया और इसका नाम बदलकर डिजिटल इंडिया भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) कर दिया गया, जो केंद्र द्वारा 100% वित्तपोषण वाली एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है।
- NLRMP एक केंद्र प्रायोजित योजना थी जिसे वर्ष 2008 में देश में भूमि अभिलेख प्रणाली का आधुनिकीकरण करने तथा स्वामित्व गारंटी के साथ निर्णायक भूमि-स्वामित्व प्रणाली को लागू करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- DILRMP के अंतर्गत प्रमुख पहल:
- विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (ULPIN): ULPIN या " भू-आधार "प्रत्येक भूमि पार्सल के लिये उसके भू-निर्देशांक के आधार पर 14 अंकों का अल्फान्यूमेरिक कोड है।
- 29 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में कार्यान्वित यह योजना रियल एस्टेट लेन-देन को सुव्यवस्थित करने, संपत्ति विवादों को सुलझाने एवं आपदा प्रबंधन प्रयासों में सुधार करने में सहायक है।
- विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (ULPIN): ULPIN या " भू-आधार "प्रत्येक भूमि पार्सल के लिये उसके भू-निर्देशांक के आधार पर 14 अंकों का अल्फान्यूमेरिक कोड है।
- राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली (NGDRS): NGDRS या ई-पंजीकरण द्वारा देश भर में विलेख/दस्तावेज़ पंजीकरण के लिये एक समान प्रक्रिया प्रदान की गई है जिससे ऑनलाइन प्रविष्टि, भुगतान, नियुक्तियाँ एवं दस्तावेज़ खोज की सुविधा मिलती है।
- अब तक 18 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने इसे अपनाया है तथा 12 अन्य ने राष्ट्रीय पोर्टल के साथ डेटा साझा किया है।
- ई-न्यायालय एकीकरण: भू-अभिलेखों को ई-न्यायालय से जोड़ने का उद्देश्य न्यायपालिका को प्रामाणिक भूमि संबंधी जानकारी प्रदान करना, मामलों के त्वरित समाधान में सहायता करना और भूमि विवादों को कम करना है। 26 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एकीकरण को मंजूरी दे दी गई है।
- भू-अभिलेखों का लिप्यंतरण: भू-अभिलेखों तक पहुँचने में भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिये, यह कार्यक्रम भूमि दस्तावेज़ों को भारतीय संविधान की अनुसूची VIII में सूचीबद्ध 22 भाषाओं में से किसी एक में लिप्यंतरित कर रहा है।
- यह योजना 17 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में पहले से ही प्रयोग में है।
- भूमि सम्मान: इस पहल के तहत, 16 राज्यों के 168 ज़िलों ने भूमि रिकॉर्ड कंप्यूटरीकरण और मानचित्र डिजिटलीकरण सहित कार्यक्रम के 99% से अधिक मुख्य घटकों को पूरा करने के लिये "प्लैटिनम ग्रेडिंग" हासिल की है।
भारत को डिजिटल भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता क्यों है?
- परिचय:
- भूमि भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है क्योंकि आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत का 45% से अधिक कार्यबल कृषि में कार्यरत है, जिसके लिये एक आधुनिक और पारदर्शी भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता है।
- वर्ष 2008 में सरकार ने NLRMP शुरू किया, जिसका नाम वर्ष 2016 में DILRMP रखा गया।
- भूमि भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है क्योंकि आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत का 45% से अधिक कार्यबल कृषि में कार्यरत है, जिसके लिये एक आधुनिक और पारदर्शी भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता है।
- डिजिटल भू-अभिलेखों की आवश्यकता:
- समानता सुनिश्चित करना: पारदर्शी भू-अभिलेखों से निष्पक्ष भूमि सुधार संभव होता है, जिससे भूमिहीनों और हाशिये पर पड़े लोगों को लाभ मिलता है।
- वे महिलाओं और कमज़ोर समूहों को उनके भूमि अधिकारों और संबंधित सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करके सशक्त बनाते हैं।
- मुकदमेबाज़ी को कम करना: भारत में भूमि विवाद न्यायालयी मामलों में प्रमुख स्थान रखते हैं, जिनमें समय और धन दोनों खर्च होते है। पारदर्शी भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन स्पष्ट, सरकार समर्थित स्वामित्व अधिकार सुनिश्चित करके विवादों को कम कर सकता है।
- विकास को बढ़ावा देना: निवेश और विकास के लिये भूमि एक महत्त्वपूर्ण परिसंपत्ति है। सुव्यवस्थित भूमि अभिलेख प्रणालियाँ लेन-देन के जोखिम को कम करती हैं, निवेश को प्रोत्साहित करती हैं, तथा भूस्वामियों को ऋण और बीमा के लिये स्वामित्व का लाभ उठाने में सहायता करती हैं।
- पारदर्शिता में सुधार: भारत के भू-अभिलेख प्रायः पुराने और बिखरे हुए हैं। उन्हें डिजिटल बनाने और स्थानिक तथा आधार जैसे अन्य डेटाबेस के साथ एकीकृत करने से सटीकता और पहुँच में वृद्धि हो सकती है, साथ ही बेनामी संपत्तियों की समस्या का समाधान भी हो सकता है।
- समानता सुनिश्चित करना: पारदर्शी भू-अभिलेखों से निष्पक्ष भूमि सुधार संभव होता है, जिससे भूमिहीनों और हाशिये पर पड़े लोगों को लाभ मिलता है।
- DILRMP (भू-अभिलेखों का डिजिटलीकरण) के लाभ:
- भू-अभिलेखों की गुणवत्ता में सुधार: DILRMP भूमि स्वामित्व और संव्यवहार अभिलेखों को डिजिटल बनाता है तथा उन्हें अद्यतन करता है, जिससे सटीकता, विश्वसनीयता एवं पारदर्शिता बढ़ाने के लिये उन्हें ऑनलाइन उपलब्ध कराया जा सके।
- मुकदमेबाजी और धोखाधड़ी में कमी: DILRMP का उद्देश्य सरकार समर्थित गारंटी के साथ एक निर्णायक भूमि-शीर्षक प्रणाली स्थापित करना, निर्विवाद स्वामित्व सुनिश्चित करना, शीर्षक दोषों के विरुद्ध क्षतिपूर्ति, और भारत में भूमि विवादों एवं धोखाधड़ी में कमी लाना है।
- वृद्धि एवं विकास को बढ़ावा देना: DILRMP कुशल भूमि बाज़ार की सुविधा प्रदान करता है, लेन-देन के जोखिम को कम करता है, भूमि स्वामित्व का उपयोग करके ऋण तक पहुँच को सक्षम बनाता है, साथ ही कृषि, बुनियादी ढाँचे और आवास में निवेश, औद्योगीकरण एवं क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देता है।
टिप्पणी:
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने भू-अभिलेख पोर्टल, यूपी भूलेख पर एक सुविधा आरंभ की है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के बदले लिये गए बैंक ऋण के बारे में जानकारी प्रदान करेगी।
भूमि रिकॉर्ड डिजिटलीकरण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- भाषा और बोली संबंधी बाधाएँ: भारत की भाषाई विविधता ग्रामीण आबादी की डिजिटलीकरण की समझ में बाधा उत्पन्न कर सकती है, क्योंकि किसान और भूस्वामी अपनी मूल भाषाओं में उपलब्ध न होने वाली डिजिटल प्रणालियों से जूझते हैं, जिससे भ्रम और विरोध की भावना उत्पन्न होती है।
- सामुदायिक शेयरधारिता: कई पूर्वोत्तर राज्यों में, समुदाय-आधारित भूमि स्वामित्व भू-अभिलेखों के डिजिटलीकरण और मानकीकरण को जटिल बना देता है, क्योंकि पारंपरिक प्रथाएँ अक्सर औपचारिक स्वामित्व प्रणालियों के साथ मतभेद उत्पन्न करती हैं, जिससे विवाद उत्पन्न होते हैं।
- जागरूकता का अभाव: DILRMP भूमि मालिकों, खरीदारों, विक्रेताओं और किरायेदारों जैसे हितधारकों की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करता है, लेकिन इनके बीच इसके लाभों और प्रक्रियाओं के बारे में जागरूकता और संवेदनशीलता का अभाव है।
- भू-अभिलेखों की गुणवत्ता: अस्पष्ट भूमि शीर्षक और पुराने भूकर मानचित्र सटीक अभिलेखों में बाधा डालते हैं, जिन पर नीति आयोग ज़ोर देता है, ये प्रभावी योजना और संपत्ति अधिकारों की स्पष्टता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- भूकर मानचित्रों में प्रायः परिवारों या गाँवों के बीच भूमि का विभाजन नहीं दिखाया जाता, क्योंकि स्वामित्व में हुए परिवर्तनों को राजस्व अभिलेखों में अद्यतन नहीं किया जाता, जिससे व्यापक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- भूमि प्रबंधन प्रणालियों की जटिलता: भारत की जटिल भूमि प्रबंधन प्रणालियाँ, जिसमें अनेक विभाग और विनियमन शामिल हैं, निर्बाध डिजिटलीकरण और हितधारकों के संरेखण में बाधा डालती हैं।
- संसाधनों की कमी: DILRMP को अपर्याप्त धन, कर्मचारियों, बुनियादी ढाँचे के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, भू-अभिलेखों को प्रभावी ढंग से आधुनिक बनाने के लिये संसाधनों और क्षमता निर्माण में वृद्धि की आवश्यकता है।
आगे की राह
- भू-अभिलेखों का एकीकरण: भूमि संबंधी सेवाओं तक निर्बाध पहुँच के लिये भू-अभिलेखों को संपत्ति पंजीकरण, कर भुगतान और सरकारी सब्सिडी से जोड़ने वाला एक एकीकृत मंच विकसित करना।
- अभिलेखों का अद्यतनीकरण: नियमित ऑडिट और ड्रोन तथा उपग्रह इमेजरी के साथ प्रौद्योगिकी-संचालित मानचित्रण के माध्यम से सटीक और अद्यतन भूमि अभिलेख सुनिश्चित करना।
- समुदाय-आधारित पहल के माध्यम से भू-अभिलेखों के सर्वेक्षण और अद्यतनीकरण में स्थानीय समुदायों को शामिल करना, जहाँ निवासी भूमि की सीमाओं और स्वामित्व को सत्यापित करने, सटीकता सुनिश्चित करने तथा विवादों को कम करने में योगदान करते हैं।
- जन जागरूकता अभियान: स्थानीय मीडिया, सामुदायिक बैठकों और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग करके किसानों और भूमि मालिकों को ULPIN लाभों और डिजिटल भूमि रिकॉर्ड तक पहुँच हेतु शिक्षित करना।
- विवाद समाधान तंत्र: भारत में सभी दीवानी मामलों में से लगभग दो-तिहाई मामले भूमि और संपत्ति से संबंधित होते हैं।
- समर्पित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म स्थापित करके भूमि विवादों को कुशलतापूर्वक और पारदर्शी तरीके से हल करना, जहाँ प्रभावित पक्ष शिकायतें प्रस्तुत कर सकें और उनकी समाधान प्रक्रिया पर नज़र रख सकें।
- नीतिगत ढाँचा: एक व्यापक नीतिगत ढाँचा विकसित करना, जो भूमि प्रबंधन में प्रौद्योगिकी के एकीकरण का समर्थन तथा स्थानीय आवश्यकताओं और राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संरेखण सुनिश्चित करता हो।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म के डिज़ाइन में उपयोगकर्त्ता अनुभव पर ध्यान केंद्रित करना, जो महिलाओं और हाशिये के समुदायों सहित सभी जनसांख्यिकी के लिये सहज और सुलभ हों।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): प्रौद्योगिकी विकास और कार्यान्वयन में विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिये सरकारी एजेंसियों और निजी प्रौद्योगिकी कंपनियों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
- भूमि डिजिटलीकरण के संबंध में आउटरीच और शिक्षा प्रयासों में सहायता के लिये ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित करने वाले गैर-सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी करना।
- अनुसंधान एवं विकास: नवीन प्रौद्योगिकियों (जैसे, सुरक्षित भूमि लेनदेन के लिये ब्लॉकचेन) की खोज हेतु अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना, जिससे भू-अभिलेखों की विश्वसनीयता एवं पारदर्शिता में वृद्धि हो सके।
- डिजिटल उपकरणों और प्रौद्योगिकियों के उपयोग में प्रभावी दक्षता सुनिश्चित करने के लिये सरकारी अधिकारियों और भूमि अभिलेख अधिकारियों हेतु प्रशिक्षण कार्यशालाएँ आयोजित करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में भू-अभिलेखों के डिजिटलीकरण से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. स्वतंत्र भारत में भूमि सुधारों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (a) हदबंदी कानून पारिवारिक जोत पर केंद्रित थे न कि व्यक्तिगत जोत पर। उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार, कृषि उत्पादकता और गरीबी उन्मूलन के बीच संबंध स्थापित कीजिये। भारत में कृषि अनुकूल भूमि सुधारों के रूपांकन व अनुपालन में कठिनाइयों की विवेचना कीजिये। (2013) |