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जैव विविधता और पर्यावरण

UNCCD का COP16

  • 17 Dec 2024
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय, ग्रेट ग्रीन वॉल (GGW) पहल, रियाद वैश्विक सूखा प्रतिरोध भागीदारी, अनुकूलित फसलों और मृदा हेतु विज़न, पवित्र भूमि, मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा (DLDD), रियो सम्मेलन, संयुक्त राष्ट्र  जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC), जैवविविधता अभिसमय, ग्रहीय सीमाएँ, ग्रीनहाउस गैसकार्बन भंडार, शुष्क अरल सागर, साहेल, सहारा, आर्द्रभूमि। 

मेन्स के लिये:

मरुस्थलीकरण का बढ़ता खतरा एवं उससे निपटने के उपाय।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD) के पक्षकारों का 16वाँ सम्मेलन (COP16) सऊदी अरब के रियाद में आयोजित हुआ, जिसमें लगभग 200 देशों ने भूमि पुनरुद्धार तथा सूखा प्रतिरोधक क्षमता को प्राथमिकता देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की। 

  • पहली बार UNCCD COP का आयोजन मध्य पूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका (MENA) क्षेत्र में हुआ।

UNCCD COP16 के प्रमुख परिणाम क्या थे?

  • वैश्विक सूखा फ्रेमवर्क: इसमें वैश्विक सूखा फ्रेमवर्क की दिशा में राष्ट्रों के प्रयासों पर प्रकाश डाला गया तथा मंगोलिया में वर्ष 2026 में होने वाले COP17 तक इन्हें पूरा करने का लक्ष्य रखा गया।
  • वित्तीय प्रतिज्ञाएँ: मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण एवं सूखे से निपटने के क्रम में 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की धनराशि देने का संकल्प लिया गया।
    • रियाद ग्लोबल ड्राॅट रेज़िलियेंस पार्टनरशिप: इसमें 80 कमज़ोर देशों को सहायता देने के क्रम में 12.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता व्यक्त  की गई, जिसमें अरब समन्वय समूह के 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर शामिल हैं। 
    • ग्रेट ग्रीन वॉल (GGW) पहल: अफ्रीका के नेतृत्व वाली GGW पहल के तहत साहेल परिदृश्य के पुनरुद्धार हेतु इटली से 11 मिलियन यूरो तथा 22 अफ्रीकी देशों के बीच समन्वय बढ़ाने के लिये ऑस्ट्रिया से 3.6 मिलियन यूरो प्राप्त करने पर प्रकाश डाला गया।
    • अनुकूलित फसलों और मृदाओं के लिये विज़न (VACS): VACS पहल के लिये  लगभग 70 मिलियन अमेरिकी डॉलर की घोषणा की गई।
      • VACS का लक्ष्य स्वस्थ मृदा में विविध, पौष्टिक तथा जलवायु-अनुकूलित फसलों के साथ अनुकूल खाद्य प्रणालियों का विकास करना है।
  • स्थानीय लोग और स्थानीय समुदाय: स्थानीय लोगों एवं स्थानीय समुदायों के लिये कॉकस का गठन किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके दृष्टिकोण तथा चुनौतियों का प्रतिनिधित्व किया जा सके।
    • स्थानीय लोगों के फोरम में प्रस्तुत पवित्र भूमि घोषणा, वैश्विक भूमि एवं सूखा प्रबंधन में अधिक भागीदारी पर केंद्रित है।
  • Business4Land पहल: यह मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण एवं सूखे (DLDD) संबंधी चुनौतियों से निपटने के क्रम में निजी क्षेत्र के प्रयास, पर्यावरण, सामाजिक तथा शासन (ESG) रणनीतियों सहित धारणीय वित्त की भूमिका पर प्रकाश डालने पर केंद्रित है।
    • भूमि पुनर्स्थापन तथा सूखा रोकथाम हेतु वर्तमान में निजी क्षेत्र की वित्तपोषण में केवल 6% की भागीदारी है।
  • UNCCD का विज्ञान-नीति इंटरफेस (SPI): सभी पक्षों ने UNCCD के SPI को जारी रखने पर सहमति (जिसकी स्थापना वर्ष 2013 में COP11 (विंडहोक, नामीबिया) में की गई थी) व्यक्त की ताकि वैज्ञानिक निष्कर्षों को निर्णयकर्त्ताओं हेतु सिफारिशों के रूप में उपयोग किया जा सके।

संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय

  • परिचय: UNCCD तीन रियो सम्मेलनों में से एक है, जिसमें जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) और जैवविविधता पर अभिसमय शामिल हैं।
  • उद्देश्य और महत्त्व: UNCCD की स्थापना वर्ष 1994 में भूमि की रक्षा और पुनर्स्थापना के लिये की गई थी, जिसका उद्देश्य एक स्थायी भविष्य बनाना था।
    • इसमें फसल की क्षति, पलायन और संघर्ष सहित भूमि क्षरण तथा सूखे के परिणामों पर चर्चा की गई है।
  • उद्देश्य: इसका मुख्य लक्ष्य भूमि क्षरण को कम करना और भूमि की रक्षा करना है ताकि सभी लोगों के लिये भोजन, जल, आश्रय तथा आर्थिक अवसरों तक पहुँच सुनिश्चित हो सके।
  • कानूनी रूप से बाध्यकारी ढाँचा: यह मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने के लिये एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
  • सदस्यता: इस सम्मेलन में 197 पक्षकार हैं, जिनमें 196 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं।
  • सिद्धांत: यह भागीदारी, साझेदारी और विकेंद्रीकरण के सिद्धांतों पर काम करता है।

इंटरनेशनल ड्रॉट रेज़िलियेंस ऑब्जर्वेटरी

  • इंटरनेशनल ड्रॉट रेज़िलियेंस ऑब्जर्वेटरी (IRDO) पहला वैश्विक AI-संचालित मंच है जो देशों को गंभीर सूखे से निपटने के लिये उनकी क्षमता का आकलन करने और उसे बढ़ाने में मदद करता है।
  • यह नवोन्मेषी उपकरण इंटरनेशनल ड्रॉट रेज़िलियेंस एलायंस (IDRA) की एक पहल है।
    • IDRA एक वैश्विक गठबंधन है जो देशों, शहरों और समुदायों में सूखे से निपटने की क्षमता बढ़ाने के लिये राजनीतिक, तकनीकी एवं वित्तीय पूंजी जुटाने में मदद करता है।
    • इसे स्पेन और सेनेगल द्वारा शर्म अल-शेख में UNFCCC के 27 वें सम्मेलन (COP27) में लॉन्च किया गया था।

मरुस्थलीकरण क्या है और इसकी वर्तमान स्थिति क्या है?

  • मरुस्थलीकरण: मरुस्थलीकरण भूमि क्षरण का एक प्रकार है, जिसमें पहले से ही अपेक्षाकृत शुष्क भूमि क्षेत्र और अधिक शुष्क हो जाता है, जिससे उत्पादक मृदा क्षीण हो जाती है तथा जल निकायों, जैवविविधता एवं वनस्पति आवरण नष्ट हो जाता है।
  • वर्तमान स्थिति:
    • शुष्क भूमि का विस्तार: UNCCD की रिपोर्ट ' द ग्लोबल थ्रेट ऑफ ड्राईंग लैंड्स' के अनुसार, 1990 के दशक से पृथ्वी की 77.6% भूमि शुष्कता का अनुभव कर रही है।
      • पृथ्वी की स्थलीय सतह (अंटार्कटिका को छोड़कर) का 40.6% भाग शुष्क भूमि है, जो उत्पादक भूमि में तेज़ी से हो रही कमी को दर्शाता है।
    • प्रभावित प्रमुख क्षेत्र: यूरोप (इसकी 95.9% भूमि), ब्राज़ील के कुछ भाग, पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका, एशिया और मध्य अफ्रीका में महत्त्वपूर्ण रूप से सूखे की प्रवृत्ति देखी जा रही है।
      • अफ्रीका और एशिया के कुछ भागों में पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण तथा मरुस्थलीकरण हो रहा है, जिससे जैवविविधता को खतरा है।
    • अनुमानित भविष्य का प्रभाव: अनुमानों से पता चलता है कि, सबसे खराब स्थिति में, सदी के अंत तक 5 अरब लोग शुष्क भूमि पर रह सकते हैं और उन्हें मृदा के क्षरण, जल की कमी तथा पारिस्थितिकी तंत्र के पतन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

Current_Status_of_Desertification

भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण के निहितार्थ क्या हैं?

  • ग्रहीय सीमाओं को खतरा: नौ में से सात ग्रहीय सीमाओं पर असंवहनीय भूमि उपयोग के कारण नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जैसा कि UNCCD की रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है।
    • विश्व में स्वच्छ जल के उपयोग का 70%, वनों की कटाई का 80% तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 23% कृषि के कारण होता है।
  • आर्थिक लागत: सूखे से विश्वभर में 1.8 बिलियन लोग प्रभावित होते हैं और सूखे से होने वाला आर्थिक नुकसान प्रतिवर्ष 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जिससे कृषि, ऊर्जा और जल उपलब्धता पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
  • सामाजिक लागत: जल की कमी और कृषि की बर्बादी के कारण मध्य पूर्व, अफ्रीका तथा दक्षिण एशिया सहित विभिन्न क्षेत्रों में लोगों को मजबूरन पलायन करना पड़ रहा है, जिससे सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
  • खाद्य सुरक्षा: भूमि क्षरण से वैश्विक खाद्य आपूर्ति का छठा हिस्सा खतरे में पड़ सकता है, जिससे पृथ्वी के कार्बन भंडार का एक तिहाई हिस्सा समाप्त हो सकता है। 
  • प्राकृतिक आपदाओं से संबंध: शुष्कता के कारण, विशेष रूप से अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में, शुष्क जैव ईंधन में वृद्धि के कारण, बड़े पैमाने पर वनाग्नि जैसी घटनाएँ देखने को मिल रही हैं।
    • रेत और धूल के तूफान विशेष रूप से मध्य पूर्व में सामान्य होते जा रहे हैं।

नोट: नौ ग्रहीय सीमाएँ:

Planetary_Boundaries

भारत में मरुस्थलीकरण की वर्तमान स्थिति:

  • UNCCD के आँकड़ों अनुसार, वर्ष 2015-2019 तक भारत की कुल 30.51 मिलियन हेक्टेयर भूमि का क्षरण हुआ है।
    • इसका तात्पर्य यह है कि वर्ष 2019 तक देश के 9.45% भू-भाग का क्षरण हो चुका था। जो वर्ष 2015 में 4.42% था।
  • भारत की कुल बंजर भूमि 43 मिलियन फुटबॉल के मैदानों के आकार के बराबर है।
  • उस दौरान भूमि क्षरण से 251.71 मिलियन भारतीय, या देश की कुल जनसंख्या का 18.39% प्रभावित हुआ।
  • वर्ष 2015 से 2018 तक देश में 854.4 मिलियन लोग सूखे के खतरे में थे।

आगे की राह: 

  • पुनर्वनीकरण एवं वनरोपण: 
    • पुनर्वनरोपण: उज़्बेकिस्तान के पुनर्वनरोपण कार्यक्रम के तहत अराल रेगिस्तान के दस लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्ष और झाड़ियाँ लगाई गई हैं तथा मिट्टी को स्थिर करने एवं रेत के तूफानों को रोकने के लिये सूखा प्रतिरोधी ब्लैक सैक्सुअल श्रब्स/झाड़ियों (हेलोक्सीलोन एफिलम) का उपयोग किया गया है।
    • वनरोपण: "ग्रेट ग्रीन वॉल" का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 100 मिलियन हेक्टेयर भूमि को पुनर्स्थापित करना है, जिसमें साहेल और सहारा क्षेत्र के 22 अफ्रीकी देश शामिल होंगे।
  • कृषि वानिकी: वृक्षों को कृषि फसलों के साथ एकीकृत करने से मिट्टी की उर्वरता में सुधार हो सकता है, जल संरक्षण तथा मिट्टी का कटाव कम हो सकता है।
  • जल प्रबंधन तकनीकें: वर्षा जल संचयन और ड्रिप सिंचाई से पौधों की जड़ों तक कुशलतापूर्वक पानी पहुँचाया जा सकता है, जिससे जल की कमी वाले क्षेत्रों में वाष्पीकरण तथा अपवाह को कम किया जा सकता है।
    • सूखा प्रतिरोधी फसलें लगाने से जल की कमी वाले क्षेत्रों में भी कृषि की जा सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा।
  • आवास पुनर्स्थापन: आर्द्रभूमि और नदी-तल जैसे प्राकृतिक आवासों का संरक्षण तथा पुनर्वास, जैवविविधता को पुनर्स्थापित करता है, मिट्टी की नमी में सुधार करता है एवं मरुस्थलीकरण के विरुद्ध पारिस्थितिकी तंत्र की सहिष्णुता को बढ़ाता है।
  • मूल कारणों पर ध्यान देना: वनों की कटाई, खराब भूमि प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन जैसे मरुस्थलीकरण के कारणों पर ध्यान देना, साथ ही स्थिरता को बढ़ावा देने वाली नीतियों का भी ध्यान रखना आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: मरुस्थलीकरण क्या है? शुष्क क्षेत्रों में भूमि क्षरण को कम करने के लिये कौन-सी प्रमुख रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. 'मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification)' का/के क्या महत्त्व है/हैं?

  1. इसका उद्देश्य नवप्रवर्तनकारी राष्ट्रीय कार्यक्रमों एवं समर्थक अंतर्राष्ट्रीय भागीदारियों के माध्यम से प्रभावकारी कार्रवाई को प्रोत्साहित करना है।
  2. यह विशेष/विशिष्ट रूप से दक्षिणी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका के क्षेत्रों पर केंद्रित होता है तथा इसका सचिवालय इन क्षेत्रों को वित्तीय संसाधनों के बड़े हिस्से का नियतन सुलभ कराता है।
  3. यह मरुस्थलीकरण को रोकने में स्थानीय लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने हेतु ऊर्ध्वगामी उपागम (बॉटम-अप अप्रोच) के लिये प्रतिबद्ध है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c), केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न: निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. खाद्य एवं कृषि के लिये पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि
  2. मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन
  3. विश्व विरासत सम्मेलन

उपर्युक्त में से किसका/किनका जैवविविधता पर प्रभाव पड़ता है?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायविक सीमाएँ नहीं होती हैं। उदाहरणों सहित औचित्य सिद्ध कीजिये। (2020)

प्रश्न. पर्यावरण से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना की परिभाषा दीजिये। स्पष्ट कीजिये कि किसी प्रदेश के दीर्घोपयोगी विकास (सस्टेनेबल डेवेलप्मेंट) की योजना बनाते समय इस संकल्पना को समझना किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है। (2019)

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