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भारतीय अर्थव्यवस्था

कंटेनर पोर्ट परफॉर्मेंस इंडेक्स (CPPI) 2023

  • 21 Jun 2024
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सागरमाला कार्यक्रम, बड़े और छोटे बंदरगाह, जहाज निर्माण वित्तीय सहायता नीति (SBFAP), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), कंटेनर बंदरगाह प्रदर्शन सूचकांक (CPPI)

मेन्स के लिये:

भारत के बंदरगाह पारिस्थितिकी तंत्र का परिदृश्य, भारत में बंदरगाह क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियाँ, आगे की राह

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

भारत के बंदरगाह विकास कार्यक्रम को एक बड़ा बढ़ावा मिला क्योंकि कंटेनर पोर्ट परफॉर्मेंस इंडेक्स (CPPI), 2023 में पहली बार भारत के 9 बंदरगाहों को ग्लोबल टॉप 100 में शामिल किया गया।

  • इस उपलब्धि का श्रेय  सागरमाला कार्यक्रम को दिया गया है, जिसने बंदरगाहों के आधुनिकीकरण एवं उनकी दक्षता में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया है।

CPPI, 2023 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • सूचकांक के बारे में: 
    • यह विश्व बैंक और S&P ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस द्वारा विकसित एक वैश्विक सूचकांक है। यह दुनिया भर के कंटेनर बंदरगाहों के प्रदर्शन को मापता है और साथ ही उनकी तुलना करता है।
      • यह सूचकांक 405 वैश्विक कंटेनर बंदरगाहों को दक्षता के आधार पर रैंकिंग करता है, तथा कंटेनर जहाज़ों के बंदरगाह पर ठहरने की अवधि पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • इसका प्राथमिक उद्देश्य बंदरगाहों से लेकर शिपिंग लाइनों, राष्ट्रीय सरकारों के साथ-साथ उपभोक्ताओं तक वैश्विक व्यापार प्रणाली और आपूर्ति शृंखलाओं में विभिन्न हितधारकों के लाभ वृद्धि क्षेत्रों की पहचान करना है।
  • ग्लोबल रैंकिंग: 
    • CPPI, 2023 रैंकिंग में चीन का यांगशान बंदरगाह पहले स्थान पर है, उसके बाद ओमान का सलालाह बंदरगाह है। कार्टाजेना बंदरगाह तीसरे तथा टैंजियर-मेडिटेरेनियन बंदरगाह चौथे स्थान पर है।
  • भारत की स्थिति: 
    • विशाखापत्तनम बंदरगाह वर्ष 2022 में 115वें स्थान से वर्ष 2023 की रैंकिंग में 19वें स्थान पर पहुँच गया है और साथ ही यह वैश्विक स्तर पर शीर्ष 20 में पहुँचने वाला पहला भारतीय बंदरगाह बन गया है।
    • मुंद्रा पोर्ट/बंदरगाह ने भी अपनी स्थिति में सुधार किया है, जो पिछले वर्ष के 48वें स्थान से बढ़कर वर्तमान रैंकिंग में 27वें स्थान पर पहुँच गया है।
    • शीर्ष 100 में स्थान प्राप्त करने वाले अन्य सात भारतीय बंदरगाह हैं - पीपावाव (41), कामराज (47), कोचीन (63), हजीरा (68), कृष्णापट्टनम (71), चेन्नई (80) और जवाहरलाल नेहरू (96)।

सागरमाला कार्यक्रम

  • वर्ष 2015 में शुरू किया गया सागरमाला कार्यक्रम, बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय की एक प्रमुख पहल है, जो देश के समुद्री क्षेत्र को बदलने के लिये सरकार द्वारा एक दूरदर्शी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। 
  • भारत की व्यापक तटरेखा, नौगम्य जलमार्ग एवं रणनीतिक समुद्री व्यापार मार्गों के साथ, सागरमाला का उद्देश्य बंदरगाह-आधारित विकास तथा तटीय समुदाय के उत्थान के लिये इन संसाधनों की अप्रयुक्त क्षमता का उपयोग करना है। 
  • यह घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार दोनों के लिये रसद लागत को कम करके के साथ इसके प्रदर्शन को बढ़ाने का भी प्रयास करता है। तटीय एवं जलमार्ग परिवहन का लाभ उठाकर, कार्यक्रम का उद्देश्य व्यापक बुनियादी ढांचे के निवेश की आवश्यकता को कम करना है, 
  • इस प्रकार रसद को अधिक कुशल बनाना और साथ ही भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करना है।

भारत के बंदरगाह पारिस्थितिकी तंत्र का परिदृश्य क्या है?

  • परिचय: 
    • पोत परिवहन मंत्रालय के अनुसार, भारत का लगभग 95% व्यापार मात्रा के हिसाब से और 70% व्यापार मूल्य के हिसाब से होता है, जिसमें समुद्री परिवहन माध्यम होता है।
    • भारत सरकार बंदरगाह क्षेत्र को समर्थन देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसने बंदरगाह और बंदरगाह निर्माण एवं रखरखाव परियोजनाओं के लिये स्वचालित मार्ग के तहत 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी है।
  • प्रमुख पत्तन बनाम लघु पत्तन:
    • भारत में बंदरगाहों को भारतीय पत्तन अधिनियम, 1908 के तहत परिभाषित केंद्र एवं राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के अनुसार प्रमुख और लघु बंदरगाहों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
      • सभी 13 प्रमुख बंदरगाहों को प्रमुख बंदरगाह ट्रस्ट अधिनियम, 1963 के तहत शासित किया जाता है, जबकि उनका स्वामित्व और प्रबंधन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
      • सभी लघु बंदरगाहों को भारतीय पत्तन अधिनियम, 1908 के तहत शासित किया जाता है और उनका स्वामित्व और प्रबंधन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
    • सागरमाला के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत, देश में छह नवीन मेगा बंदरगाह विकसित किये जाएँगे।
  • संबंधित आँकड़े: 
    • भारत 7,516.6 किलोमीटर की तटरेखा के साथ विश्व का सोलहवाँ सबसे बड़ा समुद्री देश (Maritime Country) है। भारतीय पत्तन एवं पोत उद्योग देश के व्यापार और वाणिज्य में वृद्धि को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • भारत में बंदरगाह क्षेत्र बाहरी व्यापार में उच्च वृद्धि से प्रेरित है।
      • वित्त वर्ष 23 में भारत के प्रमुख बंदरगाहों के द्वारा 783.50 मिलियन टन कार्गो यातायात हुआ, जिसका तात्पर्य वित्त वर्ष 16-23 में 3.26% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से है।
      • वित्त वर्ष 24 (अप्रैल-जनवरी) में प्रमुख पत्तनों द्वारा किया गया कार्गो यातायात 677.22 मिलियन टन था।
    • घरेलू जलमार्ग माल परिवहन का एक लागत प्रभावी और पर्यावरण की दृष्टि से सतत् तरीका है।
  • प्रमुख पहलें:
    • वर्ष 2023 में पत्‍तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय ने बंदरगाह शुल्कों में पारदर्शिता बढ़ाने और दंड को अद्यतन करने के उद्देश्य से भारतीय पत्तन विधेयक का प्रस्ताव रखा।
      • यह विधेयक एकीकृत योजना के लिये समुद्री राज्य विकास परिषद (MSDC) को सशक्त बनाता है, जो राज्य समुद्री बोर्डों के बीच संघर्षों के लिये त्रि-स्तरीय विवाद समाधान तंत्र प्रस्तुत करता है।
    • मेक इन इंडिया पहल के तहत जहाज़ निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने के लिये, मंत्रालय ने जहाज़ निर्माण वित्तीय सहायता नीति (SBFAP) प्रस्तुत की।
      • मार्च, 2026 तक लागू यह योजना भारतीय शिपयार्ड को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करती है और वैश्विक ऑर्डर हासिल करती है।

नोट:

  • भारत विश्व में सबसे बड़ा शिप ब्रेकिंग फेसिलिटीज़ (Ship Breaking Facilities) का घर है, जिसके तट पर 150 यार्ड से ज़्यादा का स्थान है। औसतन भारत में प्रत्येक वर्ष करीब 6.2 मिलियन GT (सकल टन भार) स्क्रैप किया जाता है, जो विश्व में स्क्रैप किये गए कुल टन भार का 33% है।
  • भारत प्रत्येक वर्ष करीब 70 लाख GT का पुनर्चक्रण करता है, जिसके बाद बाँग्लादेश, पाकिस्तान और चीन का नंबर आता है।
  • गुजरात में अलंग शिप ब्रेकिंग यार्ड विश्व का सबसे बड़ा जहाज़ पुनर्चक्रण सुविधा (Ship Recycling Facility) है।

भारत में बंदरगाह क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ:

  • वैश्विक नौवहन में भारत की सीमित हिस्सेदारी: विशाल तटरेखा और रणनीतिक भौगोलिक अवस्थिति के बावजूद, वैश्विक नौवहन में भारत की हिस्सेदारी सीमित बनी हुई है। हाल के आँकड़ों के अनुसार, भारतीय जहाज़ो की विश्व के नौवहन में 1% से भी कम की हिस्सेदारी है, जो चीन जैसे देशों (लगभग 19%) से बहुत पीछे है।
    • हालाँकि कुल नाविकों में भारत (वैश्विक नाविकों में लगभग 10% हिस्सेदारी) तीसरे स्थान (केवल चीन और फिलीपींस से पीछे) पर है।
  • भारतीय बंदरगाहों पर उच्च टर्नअराउंड समय: भारतीय बंदरगाहों पर उच्च टर्नअराउंड समय से न केवल दक्षता प्रभावित होती है बल्कि शिपिंग कंपनियों के लिये लागत में वृद्धि होती है। 
    • भारतीय बंदरगाहों का औसतन टर्नअराउंड समय 3-4 दिनों का है जबकि सिंगापुर और शंघाई जैसे प्रमुख बंदरगाहों में यह एक दिन से भी कम का है। इसका कारण पुराना बुनियादी ढाँचा, नौकरशाही की निष्क्रियता तथा बंदरगाह हैंडलिंग की अपर्याप्त सुविधाओं का होना है। 
    • किसी एक बंदरगाह पर खराब प्रदर्शन से आयात/निर्यात लागत बढ़ने एवं प्रतिस्पर्द्धा कम होने के साथ आर्थिक विकास में बाधा आ सकती है। इससे विशेष रूप से भू-आबद्ध विकासशील देशों (LLDCs) के साथ छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • बुनियादी ढाँचा और परिचालन अक्षमताएँ: मौजूदा बंदरगाह क्षेत्र सड़क एवं रेल की सीमित कनेक्टिविटी, कार्गो हैंडलिंग उपकरण तथा मशीनरी के अभाव, निम्न स्तरीय अंतर्देशीय कनेक्टिविटी, अपर्याप्त ड्रेजिंग क्षमता और तकनीकी विशेषज्ञता के अभाव से ग्रस्त है।
    • बुनियादी ढाँचे हेतु सहायक बीमा और वित्तपोषण कंपनियाँ मुख्य रूप से भारत के बाहर स्थित हैं। उदाहरण के लिये समुद्री क्षेत्र से संबंधित अधिकांश बीमा कंपनियों का मुख्यालय लंदन में है, जिससे भारतीय शिपिंग फर्मों के लिये घरेलू स्तर पर लागत प्रभावी एवं विश्वसनीय सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

आगे की राह:

  • डिजिटलीकरण: डिजिटल और भौतिक संपर्क एक दूसरे के पूरक हैं। जिस तरह कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और ब्लॉकचेन जैसी नवीनतम तकनीकों से व्यापार को लाभ होता है, उसी तरह बंदरगाह और शिपिंग संचालन को भी डिजिटलीकरण से उत्पन्न अवसरों का लाभ उठाने से लाभ होगा।
  • बंदरगाह आधुनिकीकरण: शिपिंग लाइनों और व्यापारियों को जहाज़ों और कार्गो के लिये तेज़, विश्वसनीय तथा लागत-कुशल सेवाओं की आवश्यकता होती है। बंदरगाहों को अपनी तकनीकी, संस्थागत एवं मानवीय क्षमताओं में लगातार निवेश करने की आवश्यकता है। इस संबंध में सार्वजनिक व निजी सहयोग महत्त्वपूर्ण है।
  • आंतरिक क्षेत्र का विस्तार: बंदरगाहों को पड़ोसी देशों और घरेलू उत्पादन केंद्रों से वस्तुओं को आकर्षित करने का लक्ष्य रखना चाहिये।
    • पड़ोसी देशों (खास तौर पर भूमि से घिरे देशों के कई बंदरगाहों और व्यापारियों) के बीच एक साझा हित है। गलियारों, क्षेत्रीय ट्रकिंग बाज़ारों तथा सीमा पार व्यापार एवं पारगमन सुविधा में निवेश से बंदरगाहों के अंदरूनी इलाकों का विस्तार करने में मदद मिल सकती है।
  • स्थिरता को बढ़ावा देना: बंदरगाह के हितधारक विविध हैं और इसमें शिपिंग लाइनें तथा व्यापारी साथ ही सामाजिक साझेदार एवं बंदरगाह-शहर समुदाय शामिल हो सकते हैं। हितधारक तेज़ी से मांग कर रहे हैं कि बंदरगाह अपने सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरणीय स्थिरता दायित्वों को पूरा करें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न. भारतीय बंदरगाह पारिस्थितिकी तंत्र के वर्तमान परिदृश्य का विश्लेषण कीजिये। साथ ही भारत में बंदरगाह क्षेत्र के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2023)

पत्तन (पोर्ट)

विशेषताएँ

1. कामराज पोर्ट

भारत में एक कंपनी के रूप में पंजीकृत सबसे पहला प्रमुख पत्तन

2. मुंद्रा पोर्ट

भारत में निजी स्वामित्व वाला सबसे बड़ा पत्तन

3. विशाखापत्तनम पोर्ट

भारत का सबसे बड़ा कंटेनर पोर्ट

उपर्युक्त युग्मों में से कितने युग्म सही सुमेलित हैं?

(a) केवल एक युग्म 
(b) केवल दो युग्म 
(c) सभी तीन युग्म 
(d) कोई भी युग्म नहीं

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत में बंदरगाहों को प्रमुख और गैर-प्रमुख बंदरगाहों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। निम्नलिखित में से कौन एक गैर-प्रमुख बंदरगाह है? (2009)

(a) कोच्चि (कोचीन)  
(b) दाहेज
(c) पारादीप
(d) न्यू मैंगलोर

उत्तर: (b)

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