सामाजिक न्याय
भारत में किशोर गर्भावस्था की रोकथाम
- 17 Jan 2025
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:बाल विवाह, NFHS-5, अवरुद्ध विकास, उच्च शिशु मृत्यु दर, लैंगिक असमानता, ASHA, मानसिक स्वास्थ्य, Bpl परिवार, आयुष्मान भारत, बाल लिंग अनुपात, अधिक उम्र में विवाह। मेन्स के लिये:बाल विवाह संबंधी मुद्दे, महिलाओं से संबंधित मुद्दों के समाधान में शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं का महत्त्व। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
टीन एज प्रेगनेंसी एंड मदरहुड इन इंडिया: एक्सप्लोरिंग स्टेटस एंड आईडेंटिफायिंग प्रिवेंशन एंड मिटिगेशन स्ट्रेटेज़ीज़ नामक अध्ययन में देश में किशोर गर्भावस्था से संबंधित मौजूदा चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।
भारत में किशोर गर्भावस्था के संबंध में अध्ययन के निष्कर्ष क्या हैं?
- किशोर गर्भावस्था और बाल विवाह: भारत में किशोर गर्भावस्था, बाल विवाह और लैंगिक असमानता से संबंधित है।
- बाल विवाह की दर में गिरावट आई है (वर्ष 2005 के 47% से वर्ष 2020 में 24%) लेकिन किशोर गर्भधारण उच्च (6%) बना हुआ है, विशेषकर पश्चिम बंगाल, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में।
- सामाजिक और आर्थिक कारक: किशोरावस्था में गर्भधारण के प्रमुख कारणों में गरीबी, सामाजिक मानदंड तथा प्रजनन शिक्षा का अभाव शामिल है।
- कम उम्र में विवाह को अक्सर वित्तीय समाधान के रूप में देखा जाता है और दुल्हनों पर जल्दी माँ बनने का दबाव रहता है।
- क्षेत्रीय भिन्नता: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 (वर्ष 2019-21) में पाया गया कि 15-19 वर्ष की आयु की 6.8% महिलाएँ गर्भवती थीं या उन्होंने बच्चे को जन्म दिया था, जिनमें पश्चिम बंगाल (16%) और बिहार (11%) में इसकी दर सबसे अधिक थी।
- सहायता का अभाव और कल्याण में कमी: किशोर माताओं को कलंक का सामना करना पड़ता है और इन्हें संस्थागत सहायता का अभाव होता है, जिसके कारण इनके स्कूल छोड़ने से कम शिक्षा के कारण गरीबी बनी रहती है।
- कल्याणकारी योजनाओं में प्रायः आयु आधारित पात्रता के कारण इन्हें शामिल न किये जाने से इन्हें कम संसाधन मिल पाते हैं।
- नीतिगत अंतराल: प्रयासों के बावजूद, नीतिगत बाधाएँ किशोर माताओं के लिये प्रभावी सेवाओं में बाधाक हैं।
- किशोर गर्भधारण को कम करने के उद्देश्य से संचालित कल्याणकारी कार्यक्रमों से वंचित किये जाने से उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है।
किशोर गर्भावस्था के क्या प्रभाव हैं?
- मातृ स्वास्थ्य जोखिम: किशोर माताओं को एनीमिया, समय से पहले प्रसव और मातृ मर्त्यता का अधिक जोखिम रहता है।
- NFHS-5 के अनुसार, कई किशोर माताओं को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच प्राप्त नहीं है, जिससे जोखिम बढ़ जाता है।
- बाल स्वास्थ्य और वृद्धिरोध: किशोर माताओं से जन्मे बच्चों में साधारण से कम वज़न, वृद्धिरोध और उच्च शिशु मृत्यु दर का खतरा अधिक होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार किशोर माताओं से जन्मे बच्चों में वृद्धिरोध और साधारण से कम वज़न का प्रचलन 11% अधिक है।
- सामाजिक परिणाम: किशोरावस्था में गर्भधारण से माता और बच्चे दोनों के लिये स्वास्थ्य संबंधी जोखिम उत्पन्न होते हैं, जैसे मातृ जटिलताएँ और बाल कुपोषण, जबकि युवा माताओं के लिये आर्थिक और शैक्षिक अवसर गंभीर रूप से सीमित हो जाते हैं।
- किशोर माताएँ प्रायः स्कूल छोड़ देती हैं, जिससे उनके आर्थिक अवसर सीमित हो जाते हैं और गरीबी का चक्र (अंतर-पीढ़ीगत गरीबी) जारी रहता है।
- वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार, किशोर कन्याओं में 55% अनपेक्षित गर्भधारण के परिणामस्वरूप गर्भपात होता है, जिनमें से कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में असुरक्षित हैं।
- लैंगिक असमानता और हिंसा: लैंगिक असमानता और पितृसत्तात्मक मानदंडों से किशोर माताओं का हाशियाकरण होता है तथा वे अपने जीवन में सुधार लाने के अवसरों से वंचित हो जाती हैं।
- बाल विवाह से घरेलू हिंसा के मामले बढ़ते हैं और लैंगिक असमानता बढ़ती है। इसके साथ ही, इन प्रथाओं से युवा लड़कियों के अवसर सीमित हो गए हैं।
किशोर कालीन सगर्भता में कमी लाने, मातृत्व स्वास्थ्य और शिक्षा के लिये क्या योजनाएँ हैं?
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): PMMVY के अंतर्गत 19 वर्षीय अथवा उससे अधिक आयु की गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को उनके पहले जीवित बच्चे के जन्म पर 5,000 रुपए प्रदान किये जाते हैं, जिससे बेहतर मातृ स्वास्थ्य और पोषण को बढ़ावा मिलता है।
- आयु संबंधी यह अनिवार्यता किशोरावस्था में गर्भधारण और बाल विवाह उन्मूलन के प्रयासों को बल देती है।
- जननी सुरक्षा योजना (JSY): JSY के तहत 19 वर्षीय और उससे अधिक आयु की गर्भवती महिलाओं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की, और आशा कार्यकर्त्ताओं को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान कर संस्थागत प्रसव को बढ़ावा दिया जाता है।
- किशोरावस्था में गर्भधारण और बाल विवाह को रोकने के लिये आयु मानदंड एक महत्त्वपूर्ण उपाय है।
- राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (RKSK): RKSK के अंतर्गत पोषण, प्रजनन स्वास्थ्य और मानसिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करते हुए 10 से 19 वर्षीय किशोरों को लक्षित किया जाता है, जिससे किशोर स्वास्थ्य और अल्प आयु में विवाह से संबंधित मुद्दों का प्रत्यक्ष समाधान होता है।
- बालिका समृद्धि योजना: BSY, बीपीएल परिवारों को बालिका शिक्षा के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है। स्कूल में लड़कियों की पढ़ाई को लगातार बनाए रखना तथा जब तक शादी के लिये कानूनी रूप से बालिक नहीं हो जाती शादी न करने के लिये प्रोत्साहन करना, जिससे बालिकाओं की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति में सुधार होता है।
- एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS): ICDS छह वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिये पोषण, टीकाकरण, स्वास्थ्य सम्बन्धी जाँच तथा स्कूल-पूर्व शिक्षा के साथ-साथ गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को सहायता प्रदान करती है।
- स्कूल स्वास्थ्य और कल्याण कार्यक्रम: आयुष्मान भारत के तहत वर्ष 2020 में शुरू किया गया, यह 6-18 वर्ष की आयु के छात्रों के लिये किशोर स्वास्थ्य पर केंद्रित है, जिसमें यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और स्वच्छता जागरूकता शामिल है।
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना: इसका उद्देश्य लिंग आधारित चयन को रोकना तथा 18 वर्ष तक की लड़कियों की शिक्षा और सशक्तीकरण को बढ़ावा देना है, साथ ही शिशु लिंगानुपात में सुधार एवं समान अवसर सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना है।
आगे की राह:
- शिक्षा की भूमिका: वर्जनाओं को दूर करने और सुरक्षित प्रजनन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये व्यापक प्रजनन शिक्षा को स्कूल पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिये।
- पश्चिम बंगाल में कन्याश्री प्रकल्प जैसे कार्यक्रम, जो विवाह में देरी करने पर वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, को देश भर में लागू किया जाना चाहिये।
- सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समितियाँ बाल विवाह की निगरानी और रोकथाम कर सकती हैं, तथा किशोर गर्भावस्था के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जागरूकता उत्पन्न कर सकती हैं।
- किशोरों को यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य (SRH) के बारे में शिक्षित करने में माता-पिता, शिक्षकों, सामाजिक और स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं की सक्रिय भागीदारी महत्त्वपूर्ण है।
- बाल विवाह से निपटने के लिये आशा, आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं और पुलिस सखी जैसे स्थानीय कार्यकर्त्ताओं को प्रोत्साहित करना महत्त्वपूर्ण है।
- इस दृष्टिकोण का एक सफल उदाहरण असम में देखा गया है, जहाँ बाल विवाह से निपटने के लिये स्थानीय कार्यकर्त्ताओं को प्रभावी ढंग से संगठित किया गया है।
- नीतिगत सिफारिशें: बाल विवाह को रोकने के लिये बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 जैसे कानूनों के प्रवर्तन को मज़बूत बनाना।
- उन्नत डेटा संग्रहण: किशोर गर्भधारण पर एक राष्ट्रीय डेटाबेस स्थापित करना और लक्षित हस्तक्षेपों को डिजाइन करने के लिये अनुदैर्ध्य अध्ययन आयोजित करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच और किशोर गर्भधारण को रोकने के लिये शिक्षा में कैसे सुधार कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रारंभिक:प्रश्न. ‘मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से-कौन सा/से सही है/हैं? (2019)
(a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मुख्य:Q. भारत में जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में महिलाओं की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (2019) |