जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु जोखिम सूचकांक
- 22 Feb 2025
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन, जलवायु जोखिम सूचकांक 2025, बाढ़, सूखा, चक्रवात मेन्स के लिये:जलवायु जोखिम सूचकांक 2025 के मुख्य निष्कर्ष, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, चुनौतियाँ और शमन रणनीतियाँ |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण थिंक टैंक 'जर्मनवाच' ने जलवायु जोखिम सूचकांक (Climate Risk Index- CRI) 2025 जारी किया है।
जलवायु जोखिम सूचकांक 2025 क्या है और इसके प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- जलवायु जोखिम सूचकांक:
- परिचय: CRI के अंतर्गत चरम मौसम की घटनाओं के प्रति देशों की सुभेद्यता के आधार पर उनका श्रेणीकरण करता है, तथा जलवायु-जनित आपदाओं से होने वाली मानवीय और आर्थिक हानि का आकलन किया जाता है।
- आवृत्ति: यह वर्ष 2006 से प्रतिवर्ष जारी किया जाता है, जिसमें विगत 30 वर्षों का डेटा शामिल होता है।
- कार्यप्रणाली और मानदंड: CRI के अंतर्गत छह प्रमुख संकेतकों के आधार पर देशों पर, पूर्ण और सापेक्ष दोनों रूप में, चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव का आकलन किया जाता है: आर्थिक नुकसान, मृत्यु दर और प्रभावित लोग।
- जलवायु जोखिम सूचकांक 2025 के निष्कर्ष:
- वर्ष 1993 से वर्ष 2022 की अवधि में 765,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई, जिसके परिणामस्वरूप 4.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ।
- बाढ़, सूखा और झंझावात वैश्विक विस्थापन के प्रमुख कारण थे।
- वर्ष 1993 से वर्ष 2022 की अवधि में, डोमिनिका, चीन और होंडुरास चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित शीर्ष-3 देश थे।
- म्याँमार, इटली और भारत अन्य अत्यधिक प्रभावित देशों में शामिल थे।
- पाकिस्तान, बेलीज़ और इटली 2022 में सबसे अधिक प्रभावित होने वाले शीर्ष-3 देश थे।
- सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों में से 7 निम्न एवं मध्यम आय वाले देश (LMIC) हैं।
- वर्ष 1993 से वर्ष 2022 की अवधि में 765,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई, जिसके परिणामस्वरूप 4.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ।
- भारत पर प्रभाव: भारत सर्वाधिक प्रभावित देशों में छठे स्थान (1993-2022) पर है, जहाँ चरम मौसमी घटनाओं के कारण 80,000 मौतें (विश्व की 10%) हुई हैं तथा कुल वैश्विक आर्थिक नुकसान (180 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का 4.3% नुकसान हुआ है।
- भारत में अत्यधिक बाढ़ (वर्ष 1993, 2013, 2019), तीव्र हीट वेव्स (वर्ष 1998, 2002, 2003, 2015 में ~ 50°C) एवं हुदहुद (वर्ष 2014) तथा अम्फान (वर्ष 2020) जैसे विनाशकारी चक्रवातों की स्थिति देखी गई है।
नोट: एशियाई विकास बैंक की एशिया-प्रशांत (APAC) जलवायु रिपोर्ट 2024 में अनुमान लगाया गया है कि भारत को जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2070 तक 24.7% तक GDP में हानि हो सकती है, जिसका कारण समुद्र का बढ़ता जल स्तर तथा श्रम उत्पादकता में गिरावट होगी।
रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन शमन रणनीतियों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- ऐतिहासिक उत्तरदायित्व बनाम भावी उत्सर्जन: उच्च आय वाले राष्ट्र अपने ऐतिहासिक उत्सर्जन के बावजूद भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं से जलवायु के प्रति अधिक उत्तरदायित्व की मांग करते हैं, जिसके कारण भार-साझाकरण एवं जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं के संबंध में तनाव पैदा होता है।
- वैश्विक स्तर पर निर्धारित तापमान सीमा का उल्लंघन: वर्ष 2024 में 1.5°C की तापमान सीमा का उल्लंघन हुआ, जिससे अपर्याप्त शमन प्रयासों पर प्रकाश पड़ता है।
- राष्ट्रीय स्तर पर अभिनिर्धारित योगदान (NDC) जैसी महत्त्वाकांक्षा के पालन के बिना विश्व, वर्ष 2100 तक 2.6-3.1 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की ओर अग्रसर है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रति कमज़ोर प्रतिबद्धताएँ: कई देश अपने राष्ट्रीय स्तर पर अभिनिर्धारित योगदान (NDC) को अपडेट नहीं कर रहे हैं, जिससे इस दिशा में कार्रवाई में बाधा आ रही है। अतार्किक नीति कार्यान्वयन से शमन प्रयास और भी कमज़ोर हो रहे हैं।
- अपर्याप्त जलवायु वित्त: विकासशील देशों के लिये 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक वित्तपोषण अपर्याप्त है तथा हानि एवं क्षति कोष के संचालन में देरी से जलवायु के प्रति संवेदनशील देशों को सहायता मिलने में बाधा उत्पन्न हुई है।
और पढ़ें:
रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु प्रमुख सुझाव क्या हैं?
- उन्नत जलवायु वित्त: जलवायु-जनित हानियों और क्षतियों के अनुकूलन और प्रबंधन के लिये कमज़ोर देशों को अधिक वित्तीय एवं तकनीकी सहायता की आवश्यकता है।
- शमन प्रयासों को मज़बूत करना: वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C या उससे कम तक सीमित रखने के लिये राष्ट्रों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को बढ़ाना होगा।
- उच्च आय-उच्च उत्सर्जन वाले देशों की जवाबदेही: विकसित देशों को बढ़ती मानवीय और आर्थिक लागतों पर अंकुश लगाने के लिये शमन कार्यों में तेज़ी लानी चाहिये।
- जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्रवाई का आह्वान: भविष्य में जलवायु परिवर्तन से संबंधित नुकसानों को बढ़ने से रोकने के लिये अनुकूलन और शमन हेतु समय पर कार्रवाई आवश्यक है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभावों और वैश्विक भू-आर्थिक परिदृश्य पर उनके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। |
जलवायु जोखिम सूचकांक 2025 | जलवायु परिवर्तन | चरम मौसम
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिकप्रश्न 1. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर:(d) प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-सा भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य का सबसे अच्छा वर्णन करता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न.3 'वैश्विक जलवायु परिवर्तन गठबंधन' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017) |