चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग | 24 Aug 2023
प्रिलिम्स के लिये:चंद्रयान- 3, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर, चंद्र दिवस, रहने योग्य ग्रह पृथ्वी की स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री (SHAPE), LUPEX, आदित्य L1, NISAR, गगनयान, शुक्रयान 1, XPoSat मेन्स के लिये:चंद्रयान- 3 मिशन के उद्देश्य, अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट-लैंडिंग करने वाला पहला मिशन बनकर चंद्रयान-3 ने इतिहास रच दिया है, दक्षिणी ध्रुव एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी पहले कभी खोज नहीं की गई थी। इस मिशन का उद्देश्य सुरक्षित और सहज चंद्र लैंडिंग, रोवर गतिशीलता और अंतःस्थाने वैज्ञानिक प्रयोगों का प्रदर्शन करना था।
- भारत अब संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के साथ चंद्रमा पर सफलतापूर्वक लैंडिंग करने वाले कुछ देशों में शामिल हो गया है।
पिछले मिशन में उत्पन्न बाधाएँ और चंद्रयान-3:
- वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 मिशन की लैंडिंग में विफलता के बाद अब चंद्रयान-3 ने सफल लैंडिंग की है।
- चंद्रमा पर उतरते समय नियंत्रण और संचार खो देने के कारण चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर क्षतिग्रस्त हो गया था।
- चंद्रयान-3 में भविष्य की समस्याओं का पूर्वानुमान लगाने और उनका समाधान करने के लिये चंद्रयान-2 मिशन से सीखे गए सबक से "विफलता-आधारित" डिज़ाइन रणनीति का उपयोग किया गया।
- महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों में लैंडर के पैरों को मज़बूत करना, ईंधन भंडार बढ़ाना और लैंडिंग साइट के लचीलेपन को बढ़ाना शामिल था।
चंद्रयान-3 की लैंडिंग के लिये चंद्रमा के निकटतम भाग को चुनने का कारण:
- चंद्रयान-3 का उद्देश्य चंद्रमा पर संभावित पानी-बर्फ और संसाधनों के लिये उसके दक्षिणी ध्रुव के पास "स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्रों" की जाँच करना है।
- विक्रम लैंडर का नियंत्रित अवरोह (नीचे उतरने की प्रक्रिया) चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के सबसे निकट पहुँचने के रूप में परिणत हुआ।
- विक्रम लैंडर का नियंत्रित अवरोह (नीचे उतरने की प्रक्रिया) चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के सबसे निकट पहुँचने के रूप में परिणत हुआ।
- चीन के चांग'ई 4 चंद्र मिशन के दूरस्थ भाग के विपरीत चंद्रमा के निकटतम भाग पर विक्रम की लैंडिंग एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।
- तुल्यकालिक घूर्णन (Synchronous Rotation) के कारण पृथ्वी से दिखाई देने वाला नज़दीकी भाग चंद्रमा के 60% हिस्से को कवर करता है।
- वर्ष 1959 में सोवियत अंतरिक्ष यान लूना 3 द्वारा तस्वीरें लिये जाने तक इसका दूर का हिस्सा अदृश्य था।
- वर्ष 1968 में अपोलो 8 मिशन के अंतरिक्ष यात्री इसके दूरस्थ भाग को देखने वाले पहले इंसान थे।
- वर्ष 1968 में अपोलो 8 मिशन के अंतरिक्ष यात्री इसके दूरस्थ भाग को देखने वाले पहले इंसान थे।
- तुल्यकालिक घूर्णन (Synchronous Rotation) के कारण पृथ्वी से दिखाई देने वाला नज़दीकी भाग चंद्रमा के 60% हिस्से को कवर करता है।
- इसके नज़दीकी भाग में चिकनी सतह और असंख्य 'मारिया' (बड़े ज्वालामुखीय मैदान) हैं, जबकि दूर के भाग में क्षुद्रग्रह के टकराव से बने विशाल गड्ढे हैं।
- चंद्रमा के नज़दीकी भाग की परत पतली है, जिससे ज्वालामुखीय लावा बहता है और समय के साथ गड्ढों को भर देता है, जिससे समतल भू-भाग का निर्माण होता है।
- चंद्रमा के नज़दीकी भाग की परत पतली है, जिससे ज्वालामुखीय लावा बहता है और समय के साथ गड्ढों को भर देता है, जिससे समतल भू-भाग का निर्माण होता है।
- लैंडिंग के लिये चंद्रमा के निकटतम भाग को चुनने का मिशन का प्राथमिक उद्देश्य नियंत्रित सॉफ्ट लैंडिंग था।
- यदि चंद्रयान पृथ्वी के साथ सीधी दृष्टि रेखा (Direct Line-of-sight with Earth) से दूर होता तो ऐसे में उसकी लैंडिंग हेतु संचार के लिये एक मध्यवर्ती बिंदु की आवश्यकता होती।
चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद के अपेक्षित कदम:
- चंद्रयान-3 के चंद्रमा की सतह पर कम-से-कम एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) तक संचालित होने की अपेक्षा है।
- प्रज्ञान रोवर लैंडिंग स्थल के चारों ओर 500 मीटर के दायरे में घूमेगा, परीक्षण करेगा और लैंडर को डेटा एवं छवियाँ भेजेगा।
- विक्रम लैंडर डेटा और छवियों को ऑर्बिटर तक प्रसारित करेगा, जो फिर उन्हें पृथ्वी पर भेज देगा।
- लैंडर और रोवर मॉड्यूल सामूहिक रूप से उन्नत वैज्ञानिक पेलोड से सुसज्जित हैं।
- इन उपकरणों को चंद्रमा की विशेषताओं के विभिन्न पहलुओं की व्यापक जाँच करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जिसमें उस क्षेत्र का विश्लेषण, खनिज संरचना, सतह रसायन विज्ञान, वायुमंडलीय गुण और महत्त्वपूर्ण रूप से पानी एवं संभावित संसाधन जलाशयों की खोज शामिल है।मेट्र
- प्रणोदन मॉड्यूल जो लैंडर और रोवर कॉन्फिगरेशन को 100 किमी. चंद्रमा की कक्षा तक ले गया, उसमें चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी के वर्णक्रमीय और पोलरिमेट्री माप का अध्ययन करने के लिये स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) पेलोड भी है।
भविष्य के ISRO के अभियान:
- चंद्रयान-4: चंद्रमा के विकास के पथ पर आगे बढ़ना।
- पिछले मिशनों के आधार पर आने वाले समय में नमूना वापसी मिशन के लिये चंद्रयान-4 को भी भेजा जा सकता है।
- सफल होने पर यह चंद्रयान-2 और 3 के बाद अगला तार्किक कदम हो सकता है, जो चंद्र सतह के नमूनों को पुनः प्राप्त करने की क्षमता प्रदान करेगा।
- यह मिशन चंद्रमा की संरचना और इतिहास के बारे में हमारी समझ को विस्तृत करने में मदद करेगा।
- पिछले मिशनों के आधार पर आने वाले समय में नमूना वापसी मिशन के लिये चंद्रयान-4 को भी भेजा जा सकता है।
- LUPEX: लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन (Lunar Polar Exploration mission-LUPEX) मिशन, ISRO और JAXA (जापान) के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है जो चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों का पता लगाने में मदद करेगा।
- इसे विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों को ढूँढने के लिये डिज़ाइन किया जाएगा जो स्थायी रूप से छायांकित क्षेत्र हैं।
- पानी की उपस्थिति की खोज करना और एक स्थायी दीर्घकालिक स्टेशन की क्षमता का आकलन करना LUPEX के उद्देश्यों में से एक है।
- आदित्य एल1: यह सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन होगा।
- अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लाग्रांज बिंदु 1 (Lagrange point 1, L1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी. दूर है।
- सूर्य के कोरोना, उत्सर्जन, सौर हवाओं, ज्वालाओं और कोरोनल द्रव्यमान उत्सर्जन का अवलोकन करना आदित्य-एल1 का प्राथमिक उद्देश्य है।
- एक्स-रे ध्रुवणमापी उपग्रह (X-ray Polarimeter Satellite- XPoSat): यह चरम स्थितियों में उज्ज्वल खगोलीय एक्स-रे स्रोतों की विभिन्न गतिशीलता का अध्ययन करने वाला भारत का पहला समर्पित ध्रुवणमापी मिशन होगा।
- अंतरिक्ष यान पृथ्वी की निचली कक्षा में दो वैज्ञानिक पेलोड ले जाएगा।
- NISAR: NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) एक निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit- LEO) वेधशाला है जिसे NASA और ISRO द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा है।
- NISAR 12 दिनों में पूरे विश्व का मानचित्रण करेगा तथा पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र, आइस मास (Ice Mass), वनस्पति बायोमास, समुद्र स्तर में वृद्धि, भूजल और भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी एवं भूस्खलन सहित प्राकृतिक खतरों में परिवर्तन को समझने के लिये स्थानिक तथा अस्थायी रूप से सुसंगत डेटा प्रदान करेगा।
- गगनयान: गगनयान मिशन का उद्देश्य मनुष्यों को अंतरिक्ष में भेजना और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना है। इस मिशन में दो मानवरहित उड़ानें और एक मानवयुक्त उड़ान शामिल होगी, जिसमें GSLV Mk III लॉन्च व्हीकल और एक ह्यूमन-रेटेड ऑर्बिटल मॉड्यूल का उपयोग किया जाएगा।
- मानवयुक्त उड़ान एक महिला सहित तीन अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में सात दिनों के लिये ले जाएगी।
- शुक्रयान 1: यह सूर्य से दूसरे ग्रह शुक्र पर एक ऑर्बिटर भेजने हेतु नियोजित मिशन है। इसमें शुक्र की भू-वैज्ञानिक तथा ज्वालामुखीय गतिविधि, ज़मीन पर उत्सर्जन, वायु की गति, मेघ आवरण तथा ग्रह संबंधी अन्य विशेषताओं का अध्ययन किये जाने की अपेक्षा है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016) |