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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रूस के साथ प्रमुख रक्षा समझौतों में चुनौतियाँ

  • 22 Aug 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

रूस के साथ प्रमुख रक्षा समझौतों में चुनौतियाँ, S-400 डील, यूक्रेन में युद्ध, काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सेंक्शंस एक्ट (CAATSA), रुपया-रूबल व्यवस्था, सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (SWIFT)

मेन्स के लिये:

रूस के साथ प्रमुख रक्षा समझौतों में चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

भारत और रूस के बीच प्रमुख रक्षा समझौते, विशेषकर S-400 डील, को यूक्रेन में चल रहे युद्ध और भुगतान चुनौतियों सहित विभिन्न कारकों के कारण अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ रहा है।

  • S-400 डील में रूस से उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों (Advanced Air Defense Systems) की खरीद शामिल है। अनुबंधित पाँच S-400 मिसाइल प्रणाली में से तीन को वर्ष 2018 में हस्ताक्षरित समझौते के हिस्से के रूप में भारत लाया गया है।

रक्षा समझौते के समक्ष चुनौतियाँ:

  • S-400 डील की जटिलताएँ: 
    • S-400 डील को जटिलताओं का सामना करना पड़ा है, जिसमें अमेरिकी प्रतिबंधों, काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शंस एक्ट (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act- CAATSA) और चरणबद्ध भुगतान में विलंब की चिंताएँ शामिल हैं।
      • यूक्रेन में युद्ध के कारण समझौते को क्रियान्वित करने में चुनौतियाँ बढ़ गई हैं।
  • भुगतान संकट:
    • भुगतान चुनौतियों के कारण वर्तमान में अनुमानित 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान बकाया है। व्यापार असंतुलन के कारण रुपया-रूबल व्यवस्था (Rupee-Rouble Arrangement) के माध्यम से इस संकट को हल करने के प्रयास सफल नहीं हुए हैं।
    • हालाँकि छोटे भुगतान फिर से शुरू हो गए हैं, लेकिन बड़े भुगतान अटके हुए हैं, जिससे जारी और भविष्य के सौदों को पूरा करने में चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं।
  • S-400 डिलीवरी और फ्रिगेट्स में विलंब:
    • जबकि तीन मिसाइल प्रणालियों की डिलीवरी हो चुकी है, शेष दो मिसाइल प्रणालियों की डिलीवरी में देरी हो रही है। भुगतान संबंधी मुद्दे हल न होने के कारण संशोधित कार्यक्रमों की स्थिति अनिश्चित बनी हुई  है।

भारत और रूस के बीच रक्षा व्यापार की गतिशीलता: 

  •  संयुक्त अनुसंधान के लिये क्रेता-विक्रेता रूपरेखा:
    • भारत-रूस सैन्य-तकनीकी सहयोग क्रेता-विक्रेता ढाँचे से विकसित होकर उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों के संयुक्त अनुसंधान, विकास एवं उत्पादन तक विस्तृत हो गया है।
  • संयुक्त सैन्य कार्यक्रम:
    • ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल कार्यक्रम
    • 5वीं पीढ़ी का लड़ाकू जेट कार्यक्रम
    • सुखोई Su-30MKI कार्यक्रम
    • इलुशिन/HAL सामरिक परिवहन विमान
    • KA-226T जुड़वाँ इंजन उपयोगिता हेलीकॉप्टर
    • कुछ फ्रिगेट्स 
  • सैन्य हार्डवेयर:
  • पनडुब्बी कार्यक्रम:
    • रूस अपने पनडुब्बी कार्यक्रमों द्वारा भारतीय नौसेना की सहायता करने में भी बहुत महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है:
      • भारतीय नौसेना की पहली पनडुब्बी 'फॉक्सट्रॉट क्लास' रूस से प्राप्त हुई थी।
      • भारत द्वारा संचालित एकमात्र विमान वाहक पोत INS विक्रमादित्य रूसी मूल का है।
      • भारत रूस से प्राप्त 14 पारंपरिक पनडुब्बियों में से 9 का संचालन करता है।
  • हाल में हुई प्रगति:
    • वर्ष 2018 और 2021 के बीच भारत एवं रूस के मध्य रक्षा व्यापार लगभग 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें S-400, फ्रिगेट्स, AK-203 असॉल्ट राइफल और आपातकालीन खरीद सहित महत्तवपूर्ण सौदे शामिल थे।
    • रक्षा व्यापार संबंध भू-राजनीतिक गतिशीलता से प्रभावित हुआ है, जिसमें वर्ष 2019 में बालाकोट हवाई हमला और वर्ष 2020 में पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ गतिरोध शामिल है।

S-400 सौदा:

  • परिचय:
    • S-400 ट्रायम्फ रूस द्वारा डिज़ाइन की गई एक गतिशील (Mobile) और सतह से हवा में मार करने वाली (Surface-to-Air Missile System- SAM) मिसाइल प्रणाली है, S-400 सौदे से आशय भारत द्वारा S-400 की खरीद से है।
    • अमेरिका की आपत्तियों और काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शंस एक्ट (CAATSA) के तहत प्रतिबंधों की धमकी के बावजूद S-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली के लिये अक्तूबर 2018 में भारत ने रूस के साथ 5.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किये
  • विशेषता:
    • यह 30 किमी. तक की ऊँचाई पर 400 किमी. के दायरे में विमान, मानव रहित हवाई वाहन और बैलिस्टिक तथा क्रूज़ मिसाइलों सहित सभी प्रकार के हवाई लक्ष्यों को निशाना बना सकती है।
    • यह प्रणाली एक साथ 100 हवाई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकती है और उनमें से छह को एक साथ लक्षित कर सकती है।

आगे की राह

  • विभिन्न प्रकार के प्रतिबंधों के कारण कंपनियों और व्यापारियों के बीच बाधा उत्पन्न होने की आशंका है। इन आशंकाओं को दूर करने तथा द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक का हस्तक्षेप आवश्यक है।
  • अधिकारियों को यह समझने की आवश्यकता है कि भुगतान की समस्या हल करने के लिये एक समग्र रणनीति की ज़रूरत है, क्योंकि इस दिशा में उठाया जाने वाला एकमात्र कदम पर्याप्त नहीं हो सकता है।
  • भुगतान चुनौतियों को कम करने और व्यापार विकल्पों का विस्तार करने के लिये युआन के उपयोग सहित मुद्रा विविधीकरण का उपयोग किया जा सकता है।
  • उन्नत रक्षा प्रणालियों की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करने, राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने और भारतीय सशस्त्र बलों की क्षमताओं में वृद्धि के लिये भुगतान के मुद्दों को हल करना तथा प्रमुख रक्षा सौदों को क्रियान्वित करने हेतु संबंधित तंत्र को सुव्यवस्थित करना अहम है।

स्रोत: द हिंदू

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