इथेनॉल उत्पादन और स्थिरता में संतुलन | 21 Apr 2025

प्रिलिम्स के लिये:

इथेनॉल, इथेनॉल मिश्रण, फोटोकैमिकल स्मॉग, मीथेन, प्रधानमंत्री जी-वन योजना, कार्बन क्रेडिट

मेन्स के लिये:

इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम (EBP), इथेनॉल उत्पादन की चुनौतियाँ और इसका पर्यावरणीय प्रभाव, खाद्य सुरक्षा बनाम जैव ईंधन उत्पादन

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

वर्ष 2024-25 सीज़न में लगभग 35 लाख टन चीनी को इथेनॉल उत्पादन में प्रयुक्त करने की उम्मीद है, जो वर्ष 2023-24 में 21.5 लाख टन से अधिक है, जो जैव ईंधन अपनाने और ऊर्जा विविधीकरण पर भारत के निरंतर फोकस को दर्शाता है।

इथेनॉल क्या है?

  • परिचय: इथेनॉल (CH₃CH₂OH), जिसे एथिल अल्कोहल के रूप में भी जाना जाता है, एक नवीकरणीय जैव ईंधन है जो मुख्य रूप से गन्ना, मक्का, चावल, गेहूँ और अन्य बायोमास  जैसे कृषि फीडस्टॉक्स से प्राप्त होता है।
    • भारत में, चीनी उत्पादन का एक उपोत्पाद, गुड़, इथेनॉल निर्माण के लिये एक प्रमुख कच्चे माल के रूप में कार्य करता है। 
    • इथेनॉल का उत्पादन किण्वन या एथिलीन हाइड्रेशन जैसी पेट्रोकेमिकल प्रक्रियाओं के माध्यम से भी किया जा सकता है।
  • गुण: इथेनॉल एक स्पष्ट, रंगहीन तरल है जो जल और अधिकांश कार्बनिक विलायकों में पूरी तरह से विलेय है। 
    • इसमें पेट्रोल की तुलना में उच्च ऑक्टेन संख्या (ईंधन के अपस्फोट को रोकने की क्षमता का माप) होती है, जो इंजन को अपस्फोट से रोकने में मदद करती है। 
    • अपने शुद्ध रूप में इथेनॉल अत्यधिक ज्वलनशील होता है जिसका गलनांक -114°C तथा क्वथनांक 78.5°C होता है।
    • इथेनॉल 99.9% शुद्ध अल्कोहल है जिसे पेट्रोल के साथ मिश्रित करके स्वच्छ ईंधन विकल्प बनाया जा सकता है।
  • सामान्य मिश्रण: सामान्य इथेनॉल मिश्रणों में E10 (10% इथेनॉल, 90% गैसोलीन), E15 (15% इथेनॉल), E20 (20% इथेनॉल) और E85 (83% तक इथेनॉल) शामिल हैं।
    • E10 का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है, जबकि E85 का उपयोग लचीले ईंधन वाले वाहनों के लिये किया जाता है।
  • अनुप्रयोग: ईंधन (इथेनॉल-मिश्रित), विलायक, कीटाणुनाशक, फार्मास्यूटिकल्स, सफाई उत्पादों और निर्जलीकरण एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय प्रभाव: इथेनॉल के संपर्क में आने से त्वचा में जलन, उनींदापन (Drowsiness), मतली हो सकती है, तथा उच्च सांद्रता में कोमा या मृत्यु भी हो सकती है।
    • इथेनॉल पर्यावरण में तेज़ी से विघटित हो सकता है, जिसके अंतिम उत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड और पानी होते हैं। हालाँकि, यह फोटोकैमिकल स्मॉग के निर्माण में भी योगदान दे सकता है ।
    • मृदा या जल में, इथेनॉल ऑक्सीजन की मौजूदगी में विघटित हो जाता है, जो सूक्ष्मजीवों के लिये पोषक तत्त्व के रूप में काम करता है। ऑक्सीजन के बिना, इथेनॉल मीथेन का निर्माण कर सकता है।
  • भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण: इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (EBP) वर्ष 2003 में 5% इथेनॉल सम्मिश्रण के साथ शुरू किया गया था और तब से इसे देश भर में विस्तारित किया गया है। 
    • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति 2018 (वर्ष 2022 में संशोधित) के तहत, इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य वर्ष 2025-26 तक 20% तक बढ़ा दिया गया है।
      • वर्ष 2022-23 में इथेनॉल मिश्रण 12.06%, वर्ष 2023-24 में 14.60% और वर्ष 2024-25 में 20% (मार्च 2025 तक) तक पहुँच गया। भारत ने वर्ष 2030 तक पेट्रोल में 30% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य रखा है।
    • वर्ष 2024 तक इथेनॉल उत्पादन क्षमता 1,600 करोड़ लीटर तक पहुँच गई। EBP ने कच्चे तेल के आयात को कम करके 1.06 लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत की।
    • इससे CO2 उत्सर्जन में 544 लाख मीट्रिक टन की कमी लाने तथा 181 लाख मीट्रिक टन कच्चे तेल का विकल्प उपलब्ध कराने में भी मदद मिली। 

Ethanol Blending

Ethanol

भारत में इथेनॉल उत्पादन के संबंध में चिंताएँ क्या हैं?

  • खाद्य सुरक्षा चिंताएँ: भारत इथेनॉल के लिये मुख्य रूप से गन्ने का उपयोग करता है। लेकिन मिश्रण लक्ष्यों तक पहुँचने के लिये, यह मक्का, चावल और टूटे हुए चावल पर अधिक निर्भर करेगा।
    • यह बदलाव खाद्य फसलों को उपभोग से विमुख कर सकता है, जिससे संभावित रूप से खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है, क्योंकि इथेनॉल उत्पादन की उच्च लाभप्रदता भोजन के बजाय ईंधन के लिये अधिक भूमि उपयोग को प्रोत्साहित कर सकती है।
    • इथेनॉल की बढ़ती मांग ने मक्का और चावल की कीमतों को बढ़ा दिया है, वर्ष 2023 में खुदरा चावल की कीमतों में 14.51% की वृद्धि हुई, जिससे कमज़ोर वर्गों के लिये भोजन की सामर्थ्य प्रभावित हुई।
  • भूमि उपयोग संबंधी चिंताएँ: E20 लक्ष्य को पूरा करने के लिये फीडस्टॉक कृषि के लिये 7.1 मिलियन हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होगी (भारत के सकल फसल क्षेत्र का लगभग 3%), जिससे भूमि, जल, उर्वरक और कीटनाशकों जैसे संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा। 
    • एक अध्ययन में मक्के से प्राप्त इथेनॉल की अकुशलता पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें कहा गया है कि एक हेक्टेयर सौर ऊर्जा के उत्पादन के बराबर ऊर्जा उत्पादन के लिये 187 हेक्टेयर मक्के की आवश्यकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहे देश में भूमि उपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • घटते जल संसाधन: इथेनॉल उत्पादन में प्रति लीटर इथेनॉल के लिये 8-12 लीटर जल का उपयोग होता है, जिससे भूजल स्तर घट रहा है और कृषि के लिये जल संसाधनों पर दबाव पड़ रहा है।
  • उत्सर्जन में सीमित कटौती: EBP के उपयोग से उत्सर्जन में केवल सामान्य कटौती संभव है, जिससे भारत की नेट ज़ीरो 2070 प्रतिबद्धता में पर्याप्त सहायता नहीं मिलेगी।
    • प्रदूषणकारी उद्योगों की 'लाल श्रेणी' के अंतर्गत वर्गीकृत इथेनॉल संयंत्र, एसीटैल्डिहाइड और फॉर्मेल्डिहाइड जैसे संकटजनक पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं, जिससे वायु, जल और मृदा प्रदूषण होता है।
  • तकनीकी और अवसंरचना संबंधी अभाव: भारत का इथेनॉल उत्पादन मुख्य रूप से गन्ने से प्राप्त प्रथम पीढ़ी के इथेनॉल पर निर्भर करता है, जो वैश्विक स्तर पर प्रयुक्त सेल्यूलोसिक इथेनॉल अथवा बायोमास आधारित उत्पादन जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों की तुलना में कम कुशल है।
    • इससे संधारणीयता सीमित होती है और समग्र ऊर्जा दक्षता घटती है, जिससे भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों में बाधा उत्पन्न होती है।
    • विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन सम्मिश्रण अवसंरचना के अविकसित होने से, इथेनॉल वितरण सीमित होता है, इसके विस्तार में बाधा उत्पन्न होती है तथा भारत के इथेनॉल रोडमैप की दीर्घकालिक सफलता प्रभावित होती है।

भारत इथेनॉल उत्पादन और सतत् संसाधन प्रबंधन में किस प्रकार संतुलन स्थापित कर सकता है?

  • 3G इथेनॉल को बढ़ावा देना: प्रधानमंत्री जी-वन योजना के तहत सूक्ष्म शैवाल (अपशिष्ट जल, अपवाहित मल अथवा समुद्री जल से) का उपयोग करके 3G इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देना, 1G (गन्ने का शीरा, जूस, गेहूँ और चावल) और 2G (चावल के भूसे, गेहूँ के भूसे, खोई और मकई के अवशेष जैसे कृषि अवशेष) विधियों के लिये एक संधारणीय विकल्प प्रदान करता है, जिससे खाद्य अथवा स्वच्छ जल के संसाधनों को प्रभावित किये बिना पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  • पर्यावरणीय विनियमों का सुदृढ़ीकरण: फीडस्टॉक की खेती से लेकर पौधों के उत्सर्जन तक इथेनॉल उत्पादन के पूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि पारिस्थितिकी तंत्र को अप्रभावित रखते हुए संधारणीयता लक्ष्यों को पूरा किया जाए, जीवन चक्र आकलन (LCA) का क्रियान्वन किया जाना चाहिये।
    • उत्सर्जन को संतुलित करने तथा भारत के नेट ज़ीरो 2070 उद्देश्यों के साथ संरेखित करने के लिये इथेनॉल उत्पादन स्थलों पर कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
    • भारत को इथेनॉल आपूर्ति शृंखला में कार्बन क्रेडिट को एकीकृत करना चाहिये, तथा उत्पादन प्रक्रिया में निम्न उत्सर्जन वाले फीडस्टॉक्स का उपयोग करने वाले उत्पादकों को पुरस्कृत करना चाहिये।
  • उन्नत सिंचाई प्रणालियाँ: सभी जैव ईंधन फसलों के लिये ड्रिप सिंचाई और वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। महाराष्ट्र के गन्ना किसानों ने ड्रिप सिंचाई को अपनाकर 40% जल की बचत की, जिसे अन्य राज्यों में भी लागू किया जा सकता है।
  • शून्य-तरल निर्वहन (ZLD) प्रौद्योगिकी को अनिवार्य बनाना: इथेनॉल संयंत्रों को ZLD प्रणाली को अपनाने के लिये अनिवार्य बनाया जाना चाहिये, जो संयंत्र के भीतर जल को पुनः चक्रित करती है, जिससे अलवणीय जल के स्रोतों पर दबाव कम होता है। 
    • उत्तर प्रदेश में बलरामपुर चीनी मिल्स ने पहले ही इस प्रणाली को लागू कर दिया है, जिससे जल के उपयोग में 60% से अधिक की बचत हुई है।
  • कृषि वानिकी के साथ पूरक: कृषि वानिकी पद्धतियों को प्रोत्साहित करना, जहाँ जैव ईंधन फसलों को वानिकी के साथ एकीकृत किया जाता है, भूमि उपयोग दक्षता को अनुकूलित कर सकता है। 
    • मीठी ज्वार के साथ कृषि वानिकी जैसे मॉडल अतिरिक्त कृषि भूमि का उपयोग किये बिना भूमि उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं।
  • इथेनॉल उत्पादन में सर्कुलर इकोनॉमी: राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा कार्यक्रम के तहत, भारत पशु आहार, उर्वरक या बायोगैस के लिये इथेनॉल उप-उत्पादों का पुन: उपयोग करके तथा सिंचाई के लिये और भारी औद्योगिक बुनियादी ढाँचे में शीतलक के रूप में उपचारित अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग करके सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल को अपना सकता है।

निष्कर्ष:

भारत का इथेनॉल मिश्रण अभियान जीवाश्म ईंधन के आयात को कम करके, उत्सर्जन में कमी लाकर और ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं का सशक्तीकरण करके अपने ऊर्जा परिदृश्य को नया आकार दे रहा है। वर्ष 2030 तक 30% के लक्ष्य के साथ, संधारणीय संसाधन प्रबंधन पर ध्यान देने के साथ, देश जैव ईंधन अपनाने में अग्रणी देश बनने की और अग्रसर है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता के साथ अपने इथेनॉल उत्पादन लक्ष्यों को संतुलित करने में भारत के समक्ष विद्यमान चुनौतियों की विवेचना कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. चार ऊर्जा फसलों के नाम नीचे दिये गए हैं। उनमें से किसकी खेती इथेनॉल के लिये की जा सकती है? (2010)

(a) जटरोफा
(b) मक्का
(c) पोंगामिया
(d) सूरजमुखी

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत की जैव ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता है? (2020) 

  1. कसावा   
  2. क्षतिग्रस्त गेहूँ के दाने   
  3. मूँगफली के बीज   
  4. कुलथी (Horse Gram)   
  5. सड़ा आलू  
  6. चुकंदर

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 5 और 6
(b) केवल 1, 3, 4 और 6
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (a)