भारतीय अर्थव्यवस्था
विमानन और उत्सर्जन पर इसका प्रभाव
- 26 Dec 2024
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:क्षेत्रीय संपर्क योजना-UDAN, ओपन स्काई संधि, कार्बन तटस्थता मेन्स के लिये:विमानन क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन, इससे संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ और आगे की राह, भारत के विमानन क्षेत्र का परिवर्तन, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि विमानन क्षेत्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में शीर्ष वैश्विक योगदानकर्त्ताओं में से एक है, निजी जेट विमानों का प्रति यात्री कार्बन उत्सर्जन काफी अधिक है।
- भारत का निजी विमानन क्षेत्र अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है लेकिन देश की बढ़ती संवृद्धि के कारण इसमें तीव्र वृद्धि हो रही है।
विमानन क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन की क्या स्थिति है?
- विमानन क्षेत्र:
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, वर्ष 2022 में वैश्विक ऊर्जा-संबंधित CO2 उत्सर्जन में विमानन की 2% भागीदारी रही, जिसमें उत्सर्जन लगभग 800 मीट्रिक टन CO2 (जो कोविड-19 महामारी के स्तर का लगभग 80% है) तक पहुँच गया।
- हाल के दशकों में विमानन क्षेत्र से उत्सर्जन में रेल, सड़क या जहाज़रानी की तुलना में अधिक तीव्र वृद्धि हुई।
- यदि विमानन क्षेत्र को एक देश माना जाए तो यह विश्व में शीर्ष 10 उत्सर्जकों में शामिल होगा।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, वर्ष 2022 में वैश्विक ऊर्जा-संबंधित CO2 उत्सर्जन में विमानन की 2% भागीदारी रही, जिसमें उत्सर्जन लगभग 800 मीट्रिक टन CO2 (जो कोविड-19 महामारी के स्तर का लगभग 80% है) तक पहुँच गया।
- निजी विमानन क्षेत्र से उत्सर्जन: अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 2019 और 2023 के बीच निजी विमानन क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन में 46% की वृद्धि हुई।
- निजी जेट विमान, वाणिज्यिक उड़ानों की तुलना में प्रति यात्री 5 से 14 गुना अधिक CO2 उत्सर्जित करते हैं तथा प्रति यात्री आधार पर रेलगाड़ियों की तुलना में 50 गुना अधिक प्रदूषण करते हैं।
- इससे नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) एवं अन्य ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं।
निजी विमानन क्षेत्र में वृद्धि:
- वैश्विक: निजी जेट की संख्या दिसंबर 2023 के 25,993 से बढ़कर फरवरी 2024 में 26,454 हो गई, जिससे होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि हुई।
- प्रत्येक निजी उड़ान से औसतन लगभग 3.6 टन CO2 का उत्सर्जन होता है जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि होती है।
- भारत: मार्च 2024 तक भारत में 112 पंजीकृत निजी विमान हैं।
- यद्यपि यह संख्या अमेरिका एवं माल्टा जैसे देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है फिर भी इससे भारत निजी विमान स्वामित्व के मामले में शीर्ष 20 देशों में शामिल है।
- भारत में प्रति एक लाख व्यक्तियों पर एक निजी जेट है, जो माल्टा (46.51 प्रति लाख) एवं अमेरिका (5.45 प्रति लाख) जैसे देशों की तुलना में काफी कम है।
- भारत में अरबपतियों (विश्व स्तर पर तीसरी सबसे बड़ी संख्या) और करोड़पतियों की बढ़ती संख्या से निजी जेट की मांग को बढ़ावा मिला है।
विमानन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के संभावित समाधान क्या हैं?
- सतत् विमानन ईंधन (SAF): SAF (स्पाइसजेट और एयर एशिया जैसी एयरलाइनों द्वारा परीक्षण किया गया) जैव-आधारित या अपशिष्ट-व्युत्पन्न ईंधन हैं जो रासायनिक रूप से पारंपरिक जेट ईंधन के समान हैं, लेकिन इनका कार्बन उत्सर्जन काफी कम है।
- संभावित लाभ:
- कार्बन उत्सर्जन में कमी: SAF फीडस्टॉक और उत्पादन विधि के आधार पर कार्बन उत्सर्जन को 80% तक कम कर सकता है।
- अनुकूलता: SAF ड्रॉप-इन ईंधन हैं, जिनका उपयोग मौजूदा विमान इंजन और बुनियादी ढाँचे में बिना किसी बड़े बदलाव के किया जा सकता है, जो उत्सर्जन में कमी के लिये एक निकट-अवधि समाधान प्रदान करता है।
- विविध फीडस्टॉक: SAF उत्पादन से विभिन्न प्रकार के फीडस्टॉक्स (जैसे शैवाल, कृषि अवशेष, अपशिष्ट तेल या नगरपालिका ठोस अपशिष्ट) का लाभ उठाया जा सकता है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो सकती है और आपूर्ति शृंखलाओं में लचीलापन आ सकता है।
- चुनौतियाँ:
- उच्च लागत: SAF वर्तमान में पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में अधिक महंगे हैं, जिससे वे बाज़ार में कम प्रतिस्पर्द्धी बन गए हैं।
- सीमित उत्पादन: SAF की वैश्विक उत्पादन क्षमता सीमित है, और विमानन उद्योग की मांग को पूरा करने के लिये उत्पादन बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश और बुनियादी ढाँचे के विकास की आवश्यकता है।
- स्थायित्व: हालाँकि SAF उत्सर्जन को कम करते हैं, लेकिन भूमि उपयोग में परिवर्तन, जल उपयोग और जैव विविधता जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए उनका उत्पादन धारणीय होना चाहिये।
- बैटरी-इलेक्ट्रिक प्रणोदन: इसमें विमान के इंजनों को चलाने के लिये बैटरियों में संग्रहीत विद्युत् का उपयोग करना, तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये पारंपरिक जेट इंजनों के स्थान पर विद्युत मोटरों का उपयोग करना शामिल है।
- संभावित लाभ:
- शून्य उत्सर्जन: बैटरी-इलेक्ट्रिक विमान कोई प्रत्यक्ष उत्सर्जन नहीं करते हैं, जिससे छोटी दूरी की उड़ानों के लिये स्वच्छ, कार्बन-तटस्थ भविष्य में योगदान मिलता है।
- ऊर्जा दक्षता: विद्युत मोटर दहन इंजन की तुलना में अधिक कुशल हैं, जो बैटरी से अधिक ऊर्जा को थ्रस्ट में परिवर्तित करते हैं।
- शोर में कमी: विद्युत प्रणोदन ध्वनि प्रदूषण को कम करता है, जिससे यह शहरी और क्षेत्रीय हवाई अड्डों के लिये आदर्श बन जाता है।
- चुनौतियाँ:
- बैटरी की सीमाएँ: वर्तमान बैटरी प्रौद्योगिकी ऊर्जा घनत्व की सीमाओं के कारण लंबी दूरी की उड़ानों के लिये उपयुक्त नहीं है।
- वजन और आकार: बैटरियाँ भारी होती हैं और काफी स्थान घेरती हैं, जिससे इलेक्ट्रिक विमान का आकार और पेलोड क्षमता सीमित हो जाती है।
- चार्जिंग अवसंरचना: हवाई अड्डों पर चार्जिंग अवसंरचना की व्यापक आवश्यकता है और इसके लिये महत्त्वपूर्ण निवेश और समन्वय की आवश्यकता है।
- हाइड्रोजन: हाइड्रोजन ईंधन उच्च ऊर्जा घनत्व प्रदान करता है और दहन के समय केवल जल वाष्प उत्सर्जित करता है, जिससे यह एक स्वच्छ ईंधन विकल्प बन जाता है।
- हाइड्रोजन दहन (40% दक्षता) और हाइड्रोजन ईंधन सेल (45-50% दक्षता) दोनों पर सक्रिय अनुसंधान चल रहा है।
- संभावित लाभ:
- उच्च ऊर्जा घनत्व: हाइड्रोजन में केरोसिन की तुलना में तीन गुना अधिक गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा घनत्व होता है, जिससे यह बड़े विमानों और लंबी उड़ानों के लिये उपयुक्त हो जाता है।
- गुरुत्वीय ऊर्जा घनत्व किसी पदार्थ के प्रति इकाई द्रव्यमान पर उपलब्ध ऊर्जा है।
- स्वच्छ उत्सर्जन: जब हाइड्रोजन का दहन किया जाता है या फ्यूल सेल में उपयोग किया जाता है, तो यह केवल जल वाष्प उत्पन्न करता है, जिससे यह जीवाश्म-आधारित जेट ईंधन का एक स्वच्छ विकल्प बन जाता है।
- उच्च ऊर्जा घनत्व: हाइड्रोजन में केरोसिन की तुलना में तीन गुना अधिक गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा घनत्व होता है, जिससे यह बड़े विमानों और लंबी उड़ानों के लिये उपयुक्त हो जाता है।
- चुनौतियाँ:
- हाइड्रोजन का भंडारण: हाइड्रोजन के खराब ऊर्जा घनत्व के कारण, इसके लिये विशाल, भारी भंडारण टैंकों की आवश्यकता होती है, जिससे विमानन हेतु हल्के, कॉम्पैक्ट विकल्प ढूंढना मुश्किल हो जाता है।
- तरल हाइड्रोजन उच्च घनत्व प्रदान करता है, लेकिन अतिरिक्त बाधाएँ उत्पन्न करता है, जिससे कुशल भंडारण कठिन हो जाता है।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: हवाई अड्डों पर ईंधन भरने के बुनियादी ढाँचे की स्थापना और हाइड्रोजन के सुरक्षित वैश्विक परिवहन को सुनिश्चित करना इसकी उच्च ज्वलनशीलता के कारण चुनौतीपूर्ण है।
- विशेष सुरक्षा उपायों और कुशल श्रम की आवश्यकता से लागत बढ़ जाती है।
- विमान का पुनः ईंधन कोशिकाओं के लिये व्यापक रूप से ओवरहाल की आवश्यकता होती है, जिसमें ईंधन टैंक, वितरण प्रणाली और भंडारण में संशोधन शामिल हैं, जबकि हाइड्रोजन दहन के लिये विमान के आंशिक पुनः डिज़ाइन की आवश्यकता होती है।
- इसके लिये महत्त्वपूर्ण तकनीकी विशेषज्ञता और मौजूदा विमानों के नवीनीकरण के लिये पर्याप्त धन की आवश्यकता होगी।
- हाइड्रोजन का भंडारण: हाइड्रोजन के खराब ऊर्जा घनत्व के कारण, इसके लिये विशाल, भारी भंडारण टैंकों की आवश्यकता होती है, जिससे विमानन हेतु हल्के, कॉम्पैक्ट विकल्प ढूंढना मुश्किल हो जाता है।
हवाई यात्रा को सतत् बनाने के लिये भारत की क्या पहल हैं?
- नीतिगत पहल: भारत सरकार ने ग्रामीण हवाई संपर्क में सुधार के लिये उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) योजना और हवाईअड्डे की क्षमता बढ़ाने के लिये NABH (भारत निर्माण के लिये अगली पीढ़ी के हवाईअड्डे) योजना शुरू की।
- सतत् विमानन ईंधन (SAF): भारतीय एयरलाइनों द्वारा SAF पर परीक्षण किया गया, स्पाइसजेट द्वारा वर्ष 2018 में जट्रोफा तेल के मिश्रण तथा एयरएशिया द्वारा वर्ष 2023 में SAF का उपयोग किया गया।
- विमानन के लिये इथेनॉल: भारत की इथेनॉल उत्पादन आपूर्ति शृंखला विमानन ईंधन के लिये एक व्यवहार्य मध्यम अवधि समाधान हो सकती है।
- विमानन ईंधन के लिये इथेनॉल का उत्पादन करने हेतु अधिशेष चीनी का उपयोग करने से वर्ष 2050 तक भारत की विमानन ईंधन मांग का 15-20% पूरा हो सकता है, हालाँकि भूमि-उपयोग में परिवर्तन एवं भूजल की कमी से बचने के लिये सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
विमानन उद्योग से संबंधित भारत की पहल
- राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति, 2016
- घरेलू रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO) सेवाओं के लिये वस्तु एवं सेवा कर (GST) की दर 18% से घटाकर 5% कर दी गई।
- ओपन स्काई संधि
- डिजी यात्रा
आगे की राह:
- सतत् विमानन ईंधन (SAF) को बढ़ावा देना: लागत कम करने और उपलब्धता बढ़ाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से SAF उत्पादन को बढ़ाना।
- हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक प्रणोदन का विकास: हाइड्रोजन-संचालित विमान और इलेक्ट्रिक प्रणोदन प्रौद्योगिकियों में निवेश करना, भंडारण समाधान, बुनियादी ढाँचे और विमान पुन: डिज़ाइन पर ध्यान केंद्रित करना।
- कार्बन ऑफसेट पहल: विमानन गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने और उसे कम करने के लिये ICAO कार्बन एमिशन कैलकुलेटर (ICEC) जैसे कार्बन ऑफसेट कार्यक्रमों को लागू करना।
- बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: सुरक्षा और दक्षता पर ध्यान केंद्रित करते हुए हवाई अड्डों पर SAF उत्पादन, हाइड्रोजन ईंधन भरने और इलेक्ट्रिक चार्जिंग के लिये बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना।
- नीति और विनियामक समर्थन: विमानन में हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिये कार्बन मूल्य निर्धारण, कर प्रोत्साहन और कड़े उत्सर्जन लक्ष्य जैसी नीतियों को लागू करना।
- कार्बन ऑफसेट कार्यक्रम: संक्रमण के दौरान उत्सर्जन को कम करने के लिये ICAO कार्बन उत्सर्जन कैलकुलेटर (ICEC) जैसे मज़बूत कार्बन ऑफसेट कार्यक्रम स्थापित करना।
- हितधारक सहयोग: सतत् विमानन के लिये तकनीकी और वित्तीय बाधाओं को दूर करने के लिये एयरलाइनों, निर्माताओं और नियामकों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
निष्कर्ष:
वैश्विक स्तर पर और भारत में निजी विमानन का विकास जलवायु परिवर्तन प्रयासों को चुनौती देता है। जबकि विमानन वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है, नवाचार, नीति और स्थिरता के माध्यम से डीकार्बोनाइज़ेशन को प्राथमिकता देना महत्त्वपूर्ण है। जैसे-जैसे भारत का निजी विमानन क्षेत्र विस्तार कर रहा है, उसे पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये कम कार्बन प्रौद्योगिकियों और ज़िम्मेदार हवाई यात्रा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: विमानन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के संभावित समाधानों पर चर्चा कीजिये, जिसमें SAF, हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन की भूमिका भी शामिल है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. सार्वजनिक-निज़ी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत संयुक्त उद्यमों के माध्यम से भारत में हवाई अड्डों के विकास की जाँच कीजिये। इस संबंध में अधिकारियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं? (2017) |