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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार वार्ता में बाल श्रम के आरोप

  • 14 May 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता, बंधुआ मज़दूरी, बाल श्रम, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, अनुच्छेद 24, अनुच्छेद 23

मेन्स के लिये:

भारत में बाल श्रम और बलात् श्रम, बच्चों से संबंधित मुद्दे, भारत में बलात् श्रम

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने ऑस्ट्रेलिया की व्यापार एवं निवेश वृद्धि संयुक्त स्थायी समिति द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट में लगाए गए बाल श्रम के आरोपों का दृढ़ता से खंडन किया है।

  • व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) के लिये भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चल रही वार्ता के मध्य ये आरोप सामने आए, CECA का उद्देश्य 2022 में हस्ताक्षरित आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ECTA) को व्यापक बनाना है।

ऑस्ट्रेलियाई पैनल द्वारा लगाए गए आरोप क्या हैं?

  • ऑस्ट्रेलियाई समिति की रिपोर्ट ने भारत में बाल और बलात् श्रम की उपस्थिति का आरोप लगाया। ये आरोप सामुदायिक और सार्वजनिक क्षेत्र संघ (CPSU) तथा राज्य लोक सेवा महासंघ (SPSF) द्वारा जताई गई चिंताओं पर आधारित थे, जिसमें दावा किया गया था कि भारत में "बाल और बलात्  (बंधुआ) मज़दूरी की स्थिति है।"
  • ऑस्ट्रेलियाई पैनल ने अनुशंसा की है कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार अपने व्यापार समझौतों में मानवाधिकार, श्रम और पर्यावरण को शामिल करना चाहती है, जो ऑस्ट्रेलिया द्वारा समर्थित प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र एवं अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन सम्मेलनों व घोषणाओं के साथ संरेखित हों।
  • ऑस्ट्रेलियाई दावे के समर्थन में तथ्य:
    • आधुनिक दासता के उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार समूह वॉक फ्री के वैश्विक दासता सूचकांक 2023  के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2021 में, भारत में 11 मिलियन लोग आधुनिक दासता में रह रहे थे, जो किसी भी देश की तुलना में सबसे अधिक संख्या है।
    • जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में 5-14 वर्ष आयु वर्ग की कुल बाल जनसंख्या 259.6 मिलियन है।
      • इनमें से 10.1 मिलियन (कुल बाल आबादी का 3.9%) या तो 'मुख्य कामगार' या 'सीमांत कामगार' के रूप में संलग्न हैं। इसके अलावा भारत में 42.7 मिलियन से अधिक बच्चों की स्कूल तक पहुँच नहीं है।

भारत की प्रतिक्रिया:

  • बाल श्रम निषेध: भारत सरकार ने इन आरोपों का स्पष्ट रूप से खंडन किया है, जिसमें कहा गया है कि मौजूदा नियम और कानून बाल श्रम एवं बंधुआ मज़दूरी पर प्रतिबंध लगाते हैं।
  • संवैधानिक संरक्षण: भारत का संविधान श्रम अधिकारों की रक्षा करता है तथा केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 जैसे कानून बनाने सहित श्रमिकों को यूनियन बनाने एवं उत्पीड़न को रोकने का अधिकार भी देता है। 
  • सख्त लाइसेंसिंग और अनुपालन: भारत में जिन व्यावसायिक संस्थाओं को स्थानीय शासी निकायों द्वारा लाइसेंस प्रदान किये गए हैं, उन्हें संघ और राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित श्रम कल्याण कानूनों का पालन करना होगा।
  • व्यापक रिकॉर्ड: प्रसंस्करण इकाइयों के पास प्रसंस्करण, गुणवत्ता की जाँच, कर्मचारी प्रशिक्षण एवं नियमों एवं विनियमों के अनुपालन से संबंधित विस्तृत रिकॉर्ड होता है।

भारत का कानूनी ढाँचा बाल श्रम और बलात् श्रम के विषय में क्या कहता है?

  • संवैधानिक अधिकार: 
    • अनुच्छेद 23: यह मानव तस्करी एवं बलात् श्रम पर रोक लगाता है तथा शोषण और अपमानजनक कार्य स्थितियों के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
      • यह सार्वजनिक उद्देश्यों के लिये अनिवार्य सेवा की अनुमति देता है, जिसमें धर्म, नस्ल, जाति या वर्ग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है।
      • इस अनुच्छेद का उद्देश्य व्यक्तियों का शोषण करने वाली प्रथाओं को समाप्त करना तथा समानता, न्याय एवं मानवाधिकार के सिद्धांतों का पालन करना है।
    • अनुच्छेद 24: भारतीय संविधान 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों, खदानों या परिसंकटमय व्यवसायों में नियोजित करने पर प्रतिबंध लगाता है।
      • इसका उद्देश्य बच्चों को शोषण से बचाना, उनके स्वास्थ्य एवं विकास को सुनिश्चित करना और शिक्षा तक पहुँच प्रदान करना है।
      • सरकार विशिष्ट परिसंकटमय व्यवसायों का निर्धारण कर सकती है और कानून एवं विनियमों के माध्यम द्वारा इस प्रावधान को लागू कर सकती है।
      • अनुच्छेद 24 और अनुच्छेद 21A अंतर्संबंधित हैं, जो 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करते हैं।
        • अनुच्छेद 24 बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाकर शिक्षा के अधिकार का समर्थन करता है एवं यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे उचित स्कूली शिक्षा के माध्यम से अपनी क्षमता तथा कौशल विकसित कर सकें।
    • अनुच्छेद 39: यह उन सिद्धांतों पर प्रकाश डालता है जिनका राज्य को पालन करना चाहिये, जैसे- पुरुषों व महिलाओं के लिये आजीविका के समान अधिकार, समान कार्य के लिये समान मुआवज़ा, श्रमिक एवं बाल स्वास्थ्य सुरक्षा तथा बच्चों को स्वस्थ और सम्मानजनक वातावरण में विकास का अवसर प्रदान करना।
  • बाल श्रम के विरुद्ध कानून:
    • बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 (2016 में संशोधित)
      • 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सभी प्रकार के कार्यों में नियोजित करने पर प्रतिबंध। हालाँकि यह स्कूल की छुट्टी के बाद और छुट्टियों के दौरान पारिवारिक व्यवसायों (Family Businesses) व मनोरंजन उद्योग (सुरक्षा उपायों के अधीन) में कार्य को अपवाद बनाता है, बशर्ते इससे उनकी स्कूली शिक्षा  प्रभावित न हो।
      • किशोरों (14-18) को परिसंकटमय व्यवसायों में नियोजित करने से प्रतिबंधित करता है।
      • अनुशंसाओं के आधार पर यह सूची उत्तरोत्तर विस्तृत होती जाती है।
    • कारखाना अधिनियम, 1948: कारखानों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की कार्य में संलग्नता को प्रतिबंधित करता है।
    • खदान अधिनियम, 1952: यह खदानों (Mines) में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के कार्य कार्य करने पर प्रतिबंध लगाता है।
    • किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015:
      • बाल श्रम में सलंग्न बच्चों की "देख-रेख और सुरक्षा की आवश्यकता" होती है।
        • देख-रेख और संरक्षण की आवश्यकता वाला कोई भी बच्चा जिसका कोई घर या निश्चित निवास स्थान नहीं है, अवैध श्रम में सलंग्न है, सड़कों पर भीख मांगते या रहते पाया जाता है या ऐसे अभिभावक के साथ रह रहा है जो उसके साथ दुर्व्यवहार अथवा उसका शोषण कर रहा है, असाध्य रोगों या दिव्यांगताओं से पीड़ित है, सशस्त्र संघर्ष या प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित है या जिस पर विवाह की आयु प्राप्त करने के पूर्व विवाह का आसन्न जोखिम है।
    • बाल श्रम पर राष्ट्रीय नीति (1987): इस नीति में पहले से ही श्रम में संलग्न बच्चों के पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • निशुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा (RTE) अधिनियम, 2009: यह निशुल्‍क शिक्षा सुनिश्चित करता है और बच्चों का स्कूल में दाखिला सुनिश्चित कर अप्रत्यक्ष रूप से बाल श्रम को रोकता है।
    • वर्ष 2001 में 25.2 करोड़ की कुल बाल आबादी में से 1.26 करोड़ कामकाजी बच्चे 5-14 आयु वर्ग के थे। वर्ष 2004-05 के सर्वेक्षण के अनुसार, कामकाजी बच्चों की संख्या 90.75 लाख थी।
      • वर्ष 2011 तक समान आयु वर्ग में कामकाजी बच्चों की संख्या घटकर 43.53 लाख हो गई थी, जो सफल सरकारी प्रयासों का संकेत है।
  • बलात् श्रम के विरुद्ध कानून:
    • बंधुआ श्रम प्रणाली (उत्सादन) अधिनियम, 1976: बंधुआ मजदूरी (ऋण जाल) को अपराध घोषित करता है।
      • इस अधिनियम ने सभी बंधुआ मज़दूरों को मुक्त कर दिया, उनके ऋणों को समाप्त कर दिया और बंधुआ प्रथा को कानून द्वारा दंडनीय बना दिया।
      • यह अधिनियम राज्य सरकारों द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। अधिनियम को लागू करने के लिये ज़िला मजिस्ट्रेटों को ज़िम्मेदारियाँ प्रदान की गई हैं और ज़िला एवं उप-विभागीय स्तरों पर सतर्कता समितियों का गठन किया जाना आवश्यक है। अधिनियम के तहत अपराध करने पर तीन साल तक की कैद और दो हज़ार रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है।
    • बंधुआ श्रमिकों के पुनर्वास के लिये केंद्रीय क्षेत्र योजना, 2021:
      • श्रम मंत्रालय द्वारा इस योजना को वर्ष1978 में शुरू किया गया, यह केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा साझा किये गए मुक्त बंधुआ श्रमिकों के पुनर्वास के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
      • योजना को बाद में वर्ष 2016 और वर्ष 2022 में अद्यतन और पुन: डिज़ाइन किया गया, जिससे लाभार्थियों को 1 लाख रुपए से लेकर 3 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान की गई।
      • राज्य सरकारों को नकद पुनर्वास सहायता के लिये समान योगदान प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है। 
      • अब तक कुल 3,15,302 बंधुआ मज़दूरों को रिहा किया गया है और वर्ष 1978 से जनवरी 2023 तक कुल 2,96,305 बंधुआ मज़दूरों का पुनर्वास किया गया है।

नोट:

  • भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा परिभाषित बंधुआ श्रम, दासता का एक रूप है जिसे ऋण बंधन कहा जाता है जो सदियों से मौजूद है।  
  • इसे आधुनिक दासता का सबसे गंभीर रूप माना जाता है, जहाँ मज़दूरों को कम वेतन के साथ लंबे समय तक काम करने के लिये मज़बूर किया जाता है। इसमें ऋण चुकाने के तरीके के रूप में नियोक्ता द्वारा एक विशिष्ट अवधि के लिये बिना वेतन काम करने के लिये मज़बूर किया जाना शामिल हो सकता है। 
  • वर्ष1983 में सर्वोच्च न्यायालय ने पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (PUDR) बनाम भारत संघ मामले में फैसला सुनाया कि ज़बरन श्रम के खिलाफ अधिकार में न्यूनतम मज़दूरी का अधिकार भी शामिल है। 
    • न्यायालय ने माना कि प्रवासी और अनुबंधित श्रमिकों के पास अक्सर न्यूनतम मज़दूरी से कम पर काम स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है तथा यह कहा कि यह आर्थिक मज़बूरी ज़बरन श्रम का एक रूप है। 
  • न्यायालय ने इस मुद्दे के समाधान के लिये न्यूनतम वेतन की संवैधानिक गारंटी की आवश्यकता पर बल दिया।

बाल श्रम के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कन्वेंशन (ILO) क्या हैं?

ILO के मुख्य कन्वेंशन (जिन्हें मौलिक/मानवाधिकार कन्वेंशन भी कहा जाता है) हैं:

कन्वेंशन

प्रमुख प्रावधान

भारत में स्थिति

बलात् श्रम सम्मेलन, 1930 (संख्या 29)

ऋण बंधन सहित सभी प्रकार के ज़बरन या अनिवार्य श्रम पर प्रतिबंध लगाता है।

अनुसमर्थित 

समान पारिश्रमिक कन्वेंशन (संख्या 100)

लिंग की परवाह किये बिना समान मूल्य के काम के लिये समान पारिश्रमिक के सिद्धांतों की रूपरेखा। 

रोज़गार में लैंगिक भेदभाव पर ध्यान केंद्रित करता है।

अनुसमर्थित 

न्यूनतम आयु कन्वेंशन, 1973 (संख्या 138)

प्रावधान है कि काम के लिये न्यूनतम आयु अनिवार्य स्कूली शिक्षा की आयु से कम नहीं होनी चाहिये और किसी भी मामले में विकासशील देशों के लिये संभावित अपवादों को छोड़कर 15 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिये।

अनुसमर्थित 

बाल श्रम के सबसे बुरे रूप कन्वेंशन, 1999 (संख्या 182)

बच्चों के शारीरिक, मानसिक या नैतिक स्वास्थ्य को खतरे में डालने वाले खतरनाक काम पर प्रतिबंध लगाता है, जिसका लक्ष्य 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये बाल श्रम के सबसे खराब रूपों को तत्काल समाप्त करना है।

अनुसमर्थित 

संगठित करने और सामूहिक सौदेबाज़ी सम्मेलन का अधिकार (संख्या 98)

संघीकरण और सामूहिक सौदेबाज़ी की स्वतंत्रता के लिये नियम स्थापित करता है, श्रमिकों को संघ में होने वाले भेदभाव से बचाता है। सरकारों और श्रमिकों के बीच स्वैच्छिक बातचीत को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

अनुसमर्थित नहीं

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. आर्थिक सहयोग समझौतों और मानवाधिकार दायित्वों के बीच संबंधों की जाँच करें। क्या व्यापार समझौतों में मानवाधिकार, श्रम एवं पर्यावरण अध्याय शामिल किये जाने चाहिये? उदाहरण सहित अपने उत्तर की पुष्टि करें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कन्वेंशन 138 और 182 किससे संबंधित हैं? (2018)

(a) बाल श्रम 
(b) वैश्विक जलवायु परिवर्तन के लिये कृषि प्रथाओं का अनुकूलन
(c) खाद्य कीमतों और खाद्य सुरक्षा का विनियमन
(d) कार्यस्थल पर लिंग समानता

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. ऑस्ट्रेलिया
  2.  कनाडा
  3.  चीन
  4.  भारत 
  5.  जापान
  6.  यू.एस.ए.

उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के ‘मुक्त व्यापार समझौतों’ में से हैं?

(a) केवल 1, 2, 4 और 5    
(b) केवल 3, 4, 5 और 6
(c) केवल 1, 3, 4 और 5   
(d) केवल 2, 3, 4 और 6

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके क्रियान्वयन की प्रस्थिति पर प्रकाश डालिये। (2016)

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