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जैव विविधता और पर्यावरण

कृषि विस्तार से जैवविविधता को खतरा

  • 17 Dec 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जैवविविधता, चिट्रिडिओमाइकोसिस, पश्चिमी घाट, जैवविविधता हॉटस्पॉट, आर्द्रभूमि, नादुकनी-मूलमट्टोम-कुलमावु जनजाति, पारिस्थितिकी तंत्र, मोनोकल्चर, IUCN, परिशुद्ध कृषि, इंटरक्रॉपिंग

मेन्स के लिये:

कृषि विस्तार से जैवविविधता को खतरा, कृषि के साथ-साथ जैवविविधता को बनाए रखना।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में एक अध्ययन में पाया गया कि कृषि विस्तार के कारण पश्चिमी घाट में मेंढकों की आबादी खतरे में पड़ रही है।

  • यह कृषि विस्तार के व्यापक विमर्श का हिस्सा है, जो जैवविविधता को खतरे में डाल रहा है तथा आवास को क्षति पहुँचा रहा है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • कृषि विस्तार का प्रभाव: बागानों और चावल के खेतों की वृद्धि से मेंढकों की आबादी के लिये खतरा पैदा हो गया है; काजू और आम के बागानों में मेंढकों की संख्या सबसे कम है, जबकि धान के खेतों में विविधता न्यून है।
  • दुर्लभ मेंढक प्रजातियों में कमी: CEPF बुरोइंग मेंढक (मिनरवेरा सेप्फी) और गोवा फेजेरवेरा (मिनरवेरा गोमांतकी) जैसी दुर्लभ प्रजातियाँ, परिवर्तित कृषि आवासों में दुर्लभ थीं।
  • वैश्विक और स्थानीय उभयचरों में गिरावट: विश्व भर में लगभग 40.7% (8,011 प्रजातियाँ) उभयचरों को आवास क्षति, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और चिट्रिडिओमाइकोसिस जैसी बीमारियों के कारण संकटग्रस्त माना गया है।
  • गिरावट के कारण:
    • माइक्रो हैबिटेट की क्षति: रॉक पूल जैसे महत्त्वपूर्ण माइक्रो हैबिटेट आवास, जो सूखे के दौरान मेंढक के अंडों और टैडपोल की रक्षा करते हैं, कृषि पद्धतियों के कारण खतरे में पड़ रहे हैं।
    • आर्द्रभूमि का विनाश: कृषि और शहरी विस्तार मेंढक प्रजनन के लिये महत्त्वपूर्ण आर्द्रभूमियों को नुकसान पहुँचा रहा है।
    • कृषि अपवाह: कीटनाशकों और उर्वरकों के साथ कृषि अपवाह जल की गुणवत्ता को नुकसान पहुँचाता है, जिससे संवेदनशील मेंढक आबादी खतरे में पड़ जाती है।
    • जलवायु परिवर्तन: मेंढकों की सूक्ष्म पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति संवेदनशीलता उन्हें जलवायु परिवर्तन और मानवीय व्यवधानों के प्रति संवेदनशील बनाती है।

नोट: भारतीय समुदायों में मेंढकों का सांस्कृतिक महत्त्व है, जो वर्षा और उर्वरता का प्रतीक है। उदाहरण,

  • असम में भेकुली बिया (मेंढक विवाह) की प्रथा वर्षा को आमंत्रित करने के साधन के रूप में प्रचलित है।
  • दक्षिण भारत में, मेंढक विवाह को मण्डूक परिणय के नाम से जाना जाता है, जिसमें वर्षा के लिये प्रार्थना की जाती है।
  • उत्तर प्रदेश में सोनभद्र, गोरखपुर और वाराणसी जैसी जगहों पर मेंढक विवाह की प्रथा है।
  • केरल की नादुकानी-मूलमट्टम-कुलमावु जनजातियाँ मानसून के दौरान भोजन के लिये पिगनोज़ पर्पल फ्रॉग का पालन करती हैं।

कृषि विस्तार जैवविविधता को कैसे नुकसान पहुँचाता है?

  • वनों की कटाई: वनों को कृषि भूमि में परिवर्तित करना आवासीय क्षति का प्रमुख कारण है।  
    • वर्ष 1990 के बाद से विश्व भर में प्राथमिक वन के क्षेत्रफल में 80 मिलियन हेक्टेयर की कमी दर्ज की गई है, जिसके परिणामस्वरूप आवास विनाश, विखंडन और अंततः विलुप्ति हुई है।
  • आवास विनाश: वर्ष 1962 और वर्ष 2017 के बीच, वैश्विक स्तर पर लगभग 340 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि और 470 मिलियन हेक्टेयर प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को चारागाह में परिवर्तित कर दिया गया, जिससे महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों का विनाश हुआ।
  • मोनोकल्चर: पशुपालन, सोया और ताड़ के तेल की कृषि जैसी बड़े पैमाने की कृषि पद्धतियों वाले विविध पारिस्थितिक तंत्रों की जगह मोनोकल्चर को महत्त्व दिया गया है।
  • रसायनों का अत्यधिक उपयोग: औद्योगिक कृषि पद्धतियाँ, विशेषकर कीटनाशकों, उर्वरकों और रसायनों का अत्यधिक उपयोग भूजल और जल प्रणालियों को प्रदूषित करता है, जिससे जलीय एवं स्थलीय दोनों प्रजातियाँ प्रभावित होती हैं। 
  • निम्न कार्बन भंडारण: कृषि भूमि में मूल वनों या वनस्पतियों की तुलना में निम्न कार्बन का भंडारण है।
    • भूमि-उपयोग में परिवर्तन से दीर्घावधि में 17 गीगाटन CO2 उत्सर्जित हो सकती है, जिससे जलवायु संकट और अधिक गंभीर हो सकता है तथा पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान उत्पन्न होने से जैवविविधता को खतरा हो सकता है।
  • विलुप्त होने का खतरा: IUCN द्वारा संकटग्रस्त के रूप में पहचानी गई 25,000 प्रजातियों में से लगभग 13,382 प्रजातियाँ मुख्य रूप से कृषि भूमि के क्षरण के कारण खतरे में हैं।
    • इसके अतिरिक्त, लगभग 3,019 प्रजातियाँ शिकार और मत्स्य संग्रहण तथा 3,020 प्रजातियाँ खाद्य प्रणाली से होने वाले प्रदूषण से प्रभावित होती हैं।
  • प्रजातियों का पृथक्करण: अंतःप्रजनन, संसाधनों की कमी और सीमित गतिशीलता के परिणामस्वरूप, कृषि विस्तार से आवास खंडित हो जाते हैं, पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होते हैं, साथ ही प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाता है।

Threats_to_Biodiversity

कृषि विस्तार और जैवविविधता संरक्षण को कैसे संतुलित किया जा सकता है?

  • उपज अंतराल (Closing Yeild Gap) को कम करना: कई निम्न आय वाले देशों में, बढ़ती खाद्य मांग के बावजूद उपज स्थिर रही है, जिसके कारण भूमि क्षरण में वृद्धि हुई है।
    • उच्च जैवविविधता वाले उष्णकटिबंधीय देशों में उपज अंतराल को कम करना, प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर और अधिक अतिक्रमण किये बिना खाद्यान्न की मांग को पूरा करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • उपज अंतर वर्तमान और संभावित उपज के बीच का अंतर है।
  • सतत् गहनता: परिशुद्ध कृषि उर्वरक उपयोग को अनुकूलित करके प्रदूषण, उत्सर्जन और भूमि उपयोग को कम करती है, जिससे किसानों को कम पर्यावरणीय लागत के साथ उच्च पैदावार बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • विविधीकृत कृषि प्रणालियाँ: अंतर-फसल (एक साथ कई फसलें उगाना) या आवरण फसलों का उपयोग करने जैसी पद्धतियाँ अतिरिक्त रासायनिक इनपुट के बिना उत्पादकता तथा मिट्टी की उर्वरता एवं कीट नियंत्रण को बढ़ा सकती हैं। 
  • भूमि-उपयोग नियोजन: मज़बूत भूमि-उपयोग नियोजन और क्षेत्रीकरण नीतियाँ, जो उच्च पारिस्थितिक मूल्य वाले क्षेत्रों की रक्षा करती हैं, संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा करते हुए कृषि विकास को निर्देशित कर सकती हैं।
  • स्वस्थ आहार: ऐसे आहार जो अधिक पौधे-आधारित होते हैं तथा संसाधन-गहन मांस उत्पादन पर कम निर्भर होते हैं, उन्हें कम फसल भूमि की आवश्यकता होती है तथा उनका पर्यावरण पर कम प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिये समुद्री भोजन लाल मांस का एक स्वस्थ विकल्प है।
  • खाद्यान्न की बर्बादी को कम करना: खाद्यान्न की हानि और बर्बादी को आधे में कम करने से विश्व में खाद्यान्न की खपत में 15% की कमी आ सकती है, जिसके परिणामस्वरूप 230 मिलियन हेक्टेयर अतिरिक्त कृषि भूमि की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष:

कृषि विस्तार जैवविविधता के लिये महत्त्वपूर्ण खतरे उत्पन्न करता है, जिसका उदाहरण पश्चिमी घाट में मेंढकों की आबादी में गिरावट है। हालाँकि उपज अंतराल को कम करने, परिशुद्ध कृषि, विविध खेती और उचित भूमि-उपयोग योजना जैसी सतत् विधियाँ जैवविविधता संरक्षण के साथ खाद्य उत्पादन को संतुलित करने में मदद कर सकती हैं, जिससे पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा दोनों सुनिश्चित हो सकती हैं।

प्रश्न: कृषि विस्तार जैवविविधता हानि में किस प्रकार योगदान देता है तथा इस प्रभाव को कम करने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारतीय कृषि परिस्थितियों के संदर्भ में, “संरक्षण कृषि” की संकल्पना का महत्त्व बढ़ जाता है। निम्नलिखित में से कौन-कौन से संरक्षण कृषि के अंतर्गत आते हैं? (2018)

  1. एकधान्य कृषि पद्धतियों का परिहार
  2. न्यूनतम जोत को अपनाना
  3. बागानी फसलों की खेती का परिहार
  4. मृदा धरातल को ढकने के लिये फसल अवशिष्ट का उपयोग
  5. स्थानिक एवं कालिक फसल अनुक्रमण/फसल आवार्तनों को अपनाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) 1, 3 और 4
(b) 2, 3, 4 और 5
(c) 2, 4 और 5
(d) 1, 2, 3 और 5

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा भौगोलिक क्षेत्र की जैवविविधता के लिये खतरा हो सकता है? (2012)   

  1. ग्लोबल वार्मिंग
  2. आवास का खंडीकरण 
  3. विदेशी प्रजातियों का आक्रमण 
  4. शाकाहार को बढ़ावा देना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करे सही उत्तर का चयन कीजिये:  

(a) केवल 1, 2 और 3  
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 4  
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (a)   


मेन्स

Q. भारत में जैवविविधता किस प्रकार अलग-अलग पाई जाती है? वनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण में जैवविविधता अधिनियम, 2002 किस प्रकार सहायक है? (2018)

Q. भूमि और जल संसाधन का प्रभावी प्रबंधन मानव विपत्तियों को कम कर देगा। स्पष्ट कीजिये। (2016)

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