आंतरिक सुरक्षा
वर्ष 2025 को ‘सुधार वर्ष’ के रूप में मनाने का निर्णय
- 03 Jan 2025
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:एकीकृत थिएटर कमांड, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, हाइपरसोनिक्स, रोबोटिक्स, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, अग्निपथ योजना, साइबर युद्ध, सीडीएस, भारत-यूएस आईसीईटी पहल। मेन्स के लिये:भारत के सशस्त्र बलों में सुधार की आवश्यकता है। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने बहु-क्षेत्रीय एकीकृत संचालन में सक्षम सशस्त्र बलों को तकनीकी रूप से उन्नत और युद्धक परिस्थितियों से निपटने के लिये तैयार बल में रूपांतरित करने हेतु वर्ष 2025 को 'सुधार वर्ष (Year of Reforms)' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
नोट:
भारतीय सेना वर्ष 2024 को ‘टेक्नोलॉजी ऐब्सॉर्प्शन ईयर’ के रूप में मना रही है।
वर्ष 2025 को ‘सुधार वर्ष’ के रूप कौन-से क्षेत्र चिन्हित किये गए हैं?
- युक्तता एवं एकीकरण: सैन्य सेवाओं के बीच सहयोग को मज़बूत करना और एकीकृत थिएटर कमांड (ITC) की स्थापना को सुगम बनाना।
- अंतर-सेवा सहयोग एवं प्रशिक्षण के माध्यम से परिचालन आवश्यकताओं और संयुक्त परिचालन क्षमताओं की साझा समझ विकसित करना।
- इनमें तिरुवनंतपुरम स्थित समुद्री कमान, जयपुर स्थित पाकिस्तान-केंद्रित पश्चिमी कमान और लखनऊ स्थित चीन-केंद्रित उत्तरी कमान शामिल हैं।
- उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ: सुधारों को साइबर व अंतरिक्ष जैसे नए क्षेत्रों तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग, हाइपरसोनिक्स और रोबोटिक्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों पर केंद्रित होना चाहिये।
- भविष्य के युद्धों को जीतने के लिये आवश्यक संबद्ध रणनीति, तकनीक और प्रक्रियाएँ भी विकसित की जानी चाहिये।
- रक्षा क्षेत्र और असैन्य उद्योगों के बीच प्रौद्योगिकी हस्तांतरण व ज्ञान साझाकरण को सुविधाजनक बनाना तथा व्यापार को आसान बनाकर सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना।
- अधिग्रहण को सरल बनाना: क्षमता विकास में तेजी लाने और उसे मज़बूत बनाने के लिये अधिग्रहण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित और समयबद्ध किया जाना चाहिये।
- रक्षा निर्यातक: भारत को रक्षा उत्पादों के एक विश्वसनीय निर्यातक के रूप में स्थापित करना , भारतीय उद्योगों और विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं के बीच अनुसंधान एवं विकास तथा साझेदारी को बढ़ावा देना।
- भारत का रक्षा निर्यात वर्ष 2014 के 2,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 21,000 करोड़ रुपए से अधिक हो गया।
- वयोवृद्ध कल्याण और स्वदेशी संस्कृति: वयोवृद्धों की विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए उनके कल्याण को सुनिश्चित करना।
- इसके अतिरिक्त, आधुनिक सेनाओं की सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाते हुए, स्वदेशी क्षमताओं के माध्यम से वैश्विक मानकों को प्राप्त करने में भारतीय संस्कृति पर गर्व और आत्मविश्वास को बढ़ावा देना।
भारत की डिफेंस मिलिट्री/रक्षा सेना की वर्तमान स्थिति क्या है?
- आयातक से निर्यातक: भारत सबसे बड़े शस्त्र आयातक से प्रमुख निर्यातक बन गया है, वर्ष 2023-24 में रक्षा निर्यात 210.83 बिलियन रुपए तक पहुँच गया है, जिसमें वर्ष 2028-29 तक 500 बिलियन रुपए का लक्ष्य रखा गया है।
- रक्षा अधिग्रहण में सुधार: रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) घरेलू उद्योग को प्राथमिकता देती है, जिसके अंतर्गत भारतीय कंपनियों को प्रमुख प्रणालियों के विनिर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने तथा रक्षा खरीद में स्वदेशी सामग्री (IC) को 50% या उससे अधिक तक बढ़ाने की आवश्यकता होती है।
- निज़ी क्षेत्र की भागीदारी: वर्ष 2022-23 तक निज़ी कंपनियाँ भारत के रक्षा उत्पादन में 20% का योगदान देंगी।
- वडोदरा में टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स सैन्य विमानों के लिये भारत का पहला निज़ी क्षेत्र का कारखाना है, जो C-295 परिवहन विमान को समर्पित है।
- रक्षा औद्योगिक विकास: भारत का रक्षा उत्पादन कारोबार वर्ष 2016-17 में 740.54 बिलियन रुपए से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 1,086.84 बिलियन रुपए हो गया, जिसमें वर्ष 2023 तक 14,000 MSME और 329 स्टार्टअप रक्षा क्षेत्र में शामिल होंगे।
रक्षा बल में सुधार की आवश्यकता क्यों?
- राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (NSS) का अभाव: NSS का अभाव राजनीतिक इरादों और सैन्य अभियानों के बीच अंतर उत्पन्न करता है, जिससे राष्ट्रीय नीतियों के साथ रक्षा रणनीतियों का संरेखण कमज़ोर होता है।
- इसके परिणामस्वरूप चीन और पाकिस्तान जैसे उभरते खतरों के प्रति तैयारी में कमी आई है।
- साइबर युद्ध का उदय: साइबरस्पेस युद्ध का पाँचवा क्षेत्र है, जिसमें राज्य प्रायोजित अभिकर्त्ता और स्वयं राज्य प्रमुख आर्थिक मापदंडों और सैन्य प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुँचाते हैं।
- एस्टोनिया तथा अन्य संघर्षों में यह देखा गया, जिसमें नवीनतम उदाहरण यूक्रेन-रूस साइबर युद्ध है।
- आयात पर निर्भरता: भारत वर्ष 2019-23 की अवधि के लिये विश्व का शीर्ष हथियार आयातक बना हुआ है, जिसमें वर्ष 2014-18 की अवधि की तुलना में आयात में 4.7% की वृद्धि हुई है।
- स्वदेशीकरण की धीमी गति और प्रतिस्पर्द्धी घरेलू रक्षा उद्योग के निर्माण में चुनौतियाँ रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता में बाधा डालती हैं।
- संयुक्तता का सांस्कृतिक प्रतिरोध: भारतीय सेना के सेवा-विशिष्ट दृष्टिकोण, जिसमें प्रत्येक शाखा (सेना, नौसेना, वायु सेना) अपनी स्वायत्तता बनाए रखती है, के कारण एकीकृत मॉडल अपनाने में प्रतिरोध उत्पन्न हुआ है।
- अपर्याप्त वित्तपोषण: निरपेक्ष रूप से पर्याप्त आवंटन के बावजूद, यह विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, उपकरण और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.9% है, जो रक्षा बलों के आधुनिकीकरण को सीमित करता है।
- वर्ष 2020 में रक्षा क्षेत्र में FDI की सीमा को स्वचालित मार्ग से 74% तक और आधुनिक प्रौद्योगिकी तक पहुँच के लिये सरकारी मार्ग से 100% तक बढ़ा दिया गया।
- तदर्थ खरीद प्रक्रियाएँ: वर्ष 2020 में गलवान संघर्ष के बाद, सशस्त्र बलों को महत्त्वपूर्ण क्षमता अंतराल को दूर करने के लिये आपातकालीन खरीद के लिये विशेष अधिकार दिये गए थे, जिससे सामरिक आवश्यकता के बावजूद रणनीतिक तत्परता की कमी उज़ागर हुई।
- अल्पकालिक नीति: अग्निपथ योजना की आलोचना इसकी 6 महीने की छोटी प्रशिक्षण अवधि के लिये की गई है, जिससे वास्तविक युद्ध के लिये रंगरूटों की तत्परता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- 4 वर्ष की सेवा अवधि में अनुभवी कार्मिकों को खोने का जोखिम रहता है, जिससे सेना की क्षमता और मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
रक्षा बलों में सुधार के लिये भारत की पहल क्या हैं?
- रक्षा औद्योगिक गलियारे
- आयुध निर्माणी बोर्डों का निगमीकरण
- डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज
- सृजन पोर्टल
- रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX)
- मिशन रक्षा ज्ञान शक्ति
अमेरिका में गोल्डवाटर-निकोल्स सुधार
- परिचय: गोल्डवाटर -निकोल्स रक्षा पुनर्गठन अधिनियम, 1986 ने सैन्य प्रभावशीलता और दक्षता को बढ़ाने के लिये अमेरिकी रक्षा विभाग का पुनर्गठन किया।
- ये सुधार वियतनाम युद्ध (1955-1975) और ऑपरेशन ईगल क्लॉ (ईरान में बंधकों को बचाने का असफल अमेरिकी मिशन) के बाद चिन्हित गए मुद्दों को संबोधित करने के लिये तैयार किये गए थे।
- लक्ष्य: प्राथमिक लक्ष्य संयुक्त सैन्य अभियानों में सुधार करना, नागरिक नियंत्रण को मज़बूत करना और रक्षा निर्णय लेने को सुव्यवस्थित करना था।
- प्रमुख प्रावधान:
- राष्ट्रपति को बेहतर सैन्य सलाह
- एकीकृत लड़ाकू कमांडरों के लिये स्पष्ट ज़िम्मेदारियाँ
- एकीकृत कमांडर के अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ
- रणनीति निर्माण और आकस्मिक योजना
- संसाधनों का कुशल उपयोग
- संयुक्त अधिकारी प्रबंधन
- संयुक्त सैन्य अभियानों की प्रभावशीलता
- रक्षा प्रबंधन और प्रशासन
आगे की राह
- संस्थागत सुधार: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) और सैन्य मामलों के विभाग (DMA) की स्थापना एक सकारात्मक कदम है लेकिन इनके बीच जिम्मेदारी वितरण को स्पष्ट करने की आवश्यकता है।
- CDS द्वारा सैन्य निर्णय लेने में नेतृत्व करने के साथ नागरिक-सैन्य अंतराल को कम करने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
- प्रौद्योगिकियों का एकीकरण: स्वायत्त प्रणालियों, साइबर युद्ध एवं AI पर ध्यान केंद्रित करने से भारत को चीन या पाकिस्तान के साथ संभावित संघर्षों में तकनीकी बढ़त मिल सकती है।
- खुफिया जानकारी, निगरानी, टोही (ISR) एवं सटीक हमलों में ड्रोन क्षमताओं का विस्तार करने से परिचालन अनुकूलन में वृद्धि होगी।
- घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देना: घरेलू रक्षा क्षेत्र को मज़बूत करने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी एवं विदेशी सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये।
- संसाधनों के अधिक कुशल आवंटन को महत्त्व दिये जाने के साथ विषम लाभ प्रदान करने वाली प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- रक्षा सहयोग को अधिकतम करना: भारत-अमेरिका iCET पहल जैसी क्षेत्रीय एवं वैश्विक शक्तियों के साथ रक्षा सहयोग का विस्तार करने से भारत की रणनीतिक स्वायत्तता तथा सुरक्षा को बढ़ावा मिल सकता है।
- राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (NDU): भारत को रणनीतिक विचारकों एवं योजनाकारों का एक मज़बूत कैडर विकसित करने के क्रम में रक्षा रणनीतियों, नीतियों और प्रौद्योगिकियों में उन्नत प्रशिक्षण तथा अनुसंधान हेतु NDU की स्थापना को प्राथमिकता देनी चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: वर्ष 2025 के लिये भारतीय रक्षा बलों में प्रस्तावित सुधारों एवं संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला "टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD)" क्या है? (2018) (a) एक इज़रायली रडार प्रणाली उत्तर:(c) मेन्सप्रश्न:रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को अब उदार बनाया जाना तय है: इससे भारतीय रक्षा एवं अर्थव्यवस्था पर अल्पावधि तथा दीर्घावधि में क्या प्रभाव पड़ने का अनुमान है? (2014) |