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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 28 Feb, 2024
  • 22 min read
प्रारंभिक परीक्षा

न्यूरोवास्कुलर ऊतक/ऑर्गेनॉइड

स्रोत: पी.आई.बी. 

हाल ही में चंडीगढ़ में स्थित पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) के शोधकर्त्ताओं ने ऑटोलॉगस रक्त से न्यूरोवास्कुलर ऑर्गेनोइड/भ्रूण (Neurovascular Organoids- NVOE) उत्पन्न करने के लिये एक नया प्रोटोटाइप मॉडल विकसित किया है जो न्यूरोवास्कुलर ऊतकों को उत्पन्न करने के लिये एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान करता है।

  • ये नवोन्मेषी NVOE, मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और तंत्रिका संबंधी रोगों की जाँच में सहायता कर सकते हैं।

शोध से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • तंत्रिका ऑर्गेनॉइड विकास से संबंधित चुनौतियों का समाधान:
    • पारंपरिक तंत्रिका ऑर्गेनॉइड में संवहनीकरण (Vascularization) का आभाव होता है जिससे मस्तिष्क की कार्यप्रणाली का अनुकरण और तंत्रिका संबंधी रोगों की जाँच में उनकी उपयोगिता सीमित हो जाती है।
      • ऑक्सीजन और पोषक तत्त्वों की आपूर्ति में सुधार करने के लिये किसी ऊतक में रक्त वाहिकाओं को विकसित करने की प्रक्रिया को संवहनीकरण कहते हैं।
    • पिछले दृष्टिकोण जैसे कि सेरेब्रल ऑर्गेनॉइड के साथ रक्त वाहिका ऑर्गेनॉइड का सह-संवर्द्धन, सक्रिय रक्त प्रवाह की अनुपस्थिति के कारण अप्रभावी सिद्ध हुआ और साथ ही श्रम केंद्रित एवं लागत प्रभावी भी नहीं है।
  • न्यूरोवास्कुलर ऊतक या ऑर्गेनॉइड:
    • PGIMER शोधकर्त्ताओं ने आनुवंशिक हेर-फेर अथवा मॉर्फोजेन पूरकता के बिना, पूरी तरह से ऑटोलॉगस रक्त से स्व-संगठित NVOE स्थापित करने के लिये एक प्रारूप प्रस्तुत किया है।
      • ऑटोलॉगस रक्त, एक रक्त दान है जो एक व्यक्ति अपने स्वयं के उपयोग के लिये देता है, उदाहरण के लिये- सर्जरी से पहले।
    • यह दृष्टिकोण अपने आप कार्यात्मक संवहनी भ्रूण उत्पन्न करता है और इसके लिये किसी विशेष परिस्थितियों की आवश्यकता नहीं होती है, जो इसे लागत-कुशल एवं सुलभ बनाता है।
      • शोधकर्त्ताओं द्वारा बोल्ड(BOLD) (ब्लड-ऑक्सीजन-लेवल-डिपेंडेंट) इमेजिंग नामक विधि का उपयोग करके हीमोग्लोबिन से संकेतों का पता लगाकर सत्यापित किया कि इन न्यूरोवास्कुल ऑर्गेनोइड में रक्त वाहिकाएँ काम कर रही हैं।
        • बोल्ड इमेजिंग एक ऐसी तकनीक है जो मस्तिष्क की गतिविधि को मापने के लिये चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (MRI) का उपयोग करती है।
  • तंत्रिका विज्ञान के लिये निहितार्थ:
    • इन ऑर्गेनॉइड्स का न्यूरोलॉजिकल रोगों का अध्ययन करने, तंत्रिकाओं को पुनर्जीवित करने और ट्यूमर तथा ऑटोइम्यून स्थितियों के लिये उपचार विकसित करने हेतु व्यापक निहितार्थ हैं।
    • ये मॉडल शोधकर्त्ताओं को शुरुआती सेंसरिनुरल हियरिंग लॉस (SNHL) वाले बच्चों में हियरिंग लॉस और भाषा की चुनौतियों के आनुवंशिक कारणों को समझने में मदद करते हैं।
      • वे संचार परिणामों में सुधार लाने के उद्देश्य से ऑटिज़्म या बौद्धिक दिव्यांगता जैसी अतिरिक्त स्थितियों वाले बच्चों का अध्ययन करते हैं। NVOE का अध्ययन करके, शोधकर्त्ता यह जाँच कर सकते हैं कि परिवर्तित मस्तिष्क गतिविधि संवेदी प्रसंस्करण को कैसे प्रभावित करती है।
        • यद्यपि कार्यात्मक MRI (fMRI) मस्तिष्क गतिविधि की निगरानी के लिये एक उपयोगी उपकरण है, लेकिन यह इन बच्चों हेतु उनके कर्णावत प्रत्यारोपण या अति सक्रियता के कारण उपयुक्त नहीं है।
  • आगामी अनुप्रयोग:
    • प्रोटोटाइप में जन्मजात न्यूरोसेंसरी, न्यूरोडेवलपमेंटल और न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के लिये रोगी-विशिष्ट भ्रूण मॉडल विकसित करने की क्षमता है।
    •  यह आनुवंशिकी और तंत्रिका तंत्र को समझने, दवाओं का परीक्षण करने एवं प्रारंभिक न्यूरोलॉजिकल रोगों के लिये नए बायोमार्कर की पहचान करने में सहायता कर सकता है, जिससे तंत्रिका विज्ञान में स्व-अनुकूलित चिकित्सा के एक नए युग की शुरुआत हो सकती है।

न्यूरल ऑर्गेनॉइड्स

  • न्यूरल ऑर्गेनॉइड्स, जिन्हें सेरेब्रल ऑर्गेनॉइड्स के रूप में भी जाना जाता है, मानव प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल (hPSC)-व्युत्पन्न, 3D इन-विट्रो कल्चर सिस्टम में संवर्द्धित होते हैं जो विकासशील मानव मस्तिष्क की विकासात्मक प्रक्रियाओं और संगठन की पुनरावृत्ति करते हैं।
    • ये एक इन-विट्रो 3D मस्तिष्क मॉडल प्रदान करते हैं जो मानव तंत्रिका-तंत्र के लिये विशिष्ट, न्यूरोलॉजिकल विकास और रोग प्रक्रियाओं के अध्ययन के लिये शारीरिक रूप से प्रासंगिक है।
  • मानव मस्तिष्क के विकास और सिज़ोफ्रेनिया जैसे तंत्रिका संबंधी विकारों के अध्ययन में इनका महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोग शामिल है।

प्रारंभिक परीक्षा

कालाज़ार

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

भारत ने कालाज़ार को ख़त्म करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की, पिछले वर्षों की तुलना में वर्ष 2023 में प्रति 10,000 जनसंख्या पर एक से भी कम मामले सामने आए।

नोट:

  • भारत में अभी तक कालाज़ार का उन्मूलन नहीं हुआ है लेकिन अपने उन्मूलन लक्ष्य की दिशा में भारत ने पर्याप्त प्रगति की है।
    • कालाज़ार उन्मूलन के लिये भारत का प्रारंभिक लक्ष्य वर्ष 2010 था, जिसे बाद में वर्ष 2015, 2017 और फिर वर्ष 2020 तक बढ़ा दिया गया था।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत में उप-ज़िला (ब्लॉक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) स्तर पर प्रति 10,000 लोगों पर 1 से कम मामले होने के कारण कालाज़ार के उन्मूलन को परिभाषित करता है। लक्ष्य प्राप्त करने के बाद, कालाज़ार उन्मूलन प्रमाणन के लिये उन्मूलन को 3 वर्षों तक जारी रखा जाना है।
    • यह देखते हुए कि भारत कालाज़ार उन्मूलन के लिये कम-से-कम चार बार समय-सीमा से चूक गया है, भारत को WHO प्रमाणन प्राप्त करने के लिये अगले 3 वर्षों तक इस गति को बनाए रखने की आवश्यकता होगी।
  • वर्ष 2023 में भारत का पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश, सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में कालाज़ार का उन्मूलन करने के लिये WHO द्वारा मान्यता प्राप्त पहला देश था।

कालाज़ार के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय:
    • कालाज़ार (विसेरल लीशमैनियासिस), जिसे ब्लैक फीवर भी कहा जाता है, एक घातक बीमारी है जो जीनस लीशमैनिया के प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होती है।
  • लक्षण:
    • इसमें बुखार के अनियमित दौरे, वज़न में कमी, प्लीहा और यकृत का बढ़ना तथा एनीमिया शामिल हैं।
  • प्रसार:
    • अधिकांश मामले ब्राज़ील, पूर्वी अफ्रीका और भारत में होते हैं। अनुमान है कि विश्व में प्रतिवर्ष विसेरल लीशमैनियासिस (VL) के 50,000 से 90,000 नए मामले सामने आते हैं, जिनमें से केवल 25-45% ही WHO को रिपोर्ट किये जाते हैं। यदि समय पर उपचार नहीं किया गया तो यह रोग मृत्यु का कारण बन सकता है।
  • संचरण:
    • लीशमैनिया परजीवी संक्रमित मादा सैंडफ्लाई के काटने से फैलते हैं, जो अंडे के उत्पादन के लिये रक्त का सेवन करती हैं। मनुष्यों सहित 70 से अधिक पशु प्रजातियों में ये परजीवियाँ पाई जाती हैं।
  • प्रमुख जोखिम कारक:
    • गरीबी, खराब आवास और स्वच्छता।
    • आहार में आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी होती है।
    • उच्च-संचरण क्षेत्रों में आवाजाही।
    • शहरीकरण, वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन।
  • निदान और उपचार:
    • विसेरल लीशमैनियासिस के संदिग्ध मामलों में तत्काल चिकित्सीय ध्यान देने की आवश्यकता होती है। निदान में पैरासिटोलॉजिकल या सीरोलॉजिकल परीक्षणों के साथ संयुक्त नैदानिक ​​​​संकेत शामिल होते हैं।
      • यदि इसका उपचार न किया जाए तो 95% मामलों में यह घातक हो सकता है।
  • रोकथाम एवं नियंत्रण:
    • रोग की व्यापकता को कम करने के साथ-साथ विकलांगता तथा मृत्यु को रोकने के लिये शीघ्र निदान एवं त्वरित उपचार महत्त्वपूर्ण हैं।
    • वेक्टर नियंत्रण, जैसे कि कीटनाशक स्प्रे एवं कीटनाशक उपचारित जाल का उपयोग करने के साथ सैंडफ्लाई से बचाव आदि के माध्यम से संचरण को कम करने में सहायता प्राप्त होती है।
    • महामारी तथा उच्च मृत्यु दर मामलों एवं रोग पर कार्रवाई के लिये प्रभावी निगरानी महत्त्वपूर्ण है।
    • प्रभावी नियंत्रण के लिये सामुदायिक शिक्षा एवं हितधारकों के साथ सहयोग सहित सामाजिक लामबंदी तथा मज़बूत भागीदारी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • कालाज़ार पर नियंत्रण हेतु भारत के प्रयास:
    • भारत सरकार ने वर्ष 1990-91 में एक केंद्र प्रायोजित कालाज़ार नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया, जिसे बाद में वर्ष 2015 में संशोधित किया गया।
    • राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NVBDCP), 2003 वेक्टर जनित रोगों जैसे मलेरिया, लिम्फैटिक फाइलेरिया, कालाज़ार एवं चिकनगुनिया की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये एक व्यापक कार्यक्रम है।
    • हालिया प्रयास: 
      • सैंडफ्लाई प्रजनन स्थलों को कम करने के उद्देश्य से कठोर इनडोर अवशिष्ट छिड़काव प्रयास तथा मिट्टी की दीवारों में दरारें बंद करके, सैंडफ्लाई को एकत्रित होने से रोका जा सकता हैं।
      • PMAY-G के तहत, कालाज़ार (KA) प्रभावित गाँवों में पक्के घर बनाए गए हैं, वर्ष  2017-18 में कुल 25,955 आवास बनाए गए (जिनमें से 1371 बिहार में तथा 24584 झारखंड में थे)।
      • PKDL रोगियों के लिये उपचार पूरा करना सुनिश्चित करने के लिये मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता नेटवर्क का नियोजन किया गया जिन्हें मिल्टेफोसिन (एक कालाज़ार-रोधी/एंटीलिशमैनियल एजेंट) के 12-सप्ताह के सेवन की आवश्यकता होती है।

पोस्ट-कालाज़ार त्वचीय लीशमैनियासिस (PKDL):

  • PKDL एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जो आंत के लीशमैनियासिस (कालाज़ार) के बाद उत्पन्न होती है जिससे मुख, बाहों और धड़ भाग पर चकत्ते (Rashes) पड़ जाते हैं।
  • यह मुख्य रूप से सूडान और भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है तथा कालाज़ार के 5-10% रोगियों में यह विकसित होता है।
  • PKDL, कालाज़ार उपचार के 6 माह से एक वर्ष बाद हो सकता है जिससे संभावित रूप से लीशमैनिया संचारित हो सकता है।

  UPSC विसिल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित रोगों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. डिप्थीरिया 
  2. चेचक 
  3. मसूरिका

उपर्युक्त रोगों में से कौन-सा/से रोग का भारत में उन्मूलन किया गया है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं

उत्तर: (b)


रैपिड फायर

उत्तर प्रदेश में भारत का पहला आयुध-मिसाइल विनिर्माण परिसर

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

हाल ही में अडाणी समूह ने उत्तर प्रदेश के कानपुर में 500 एकड़ में विस्तरित दक्षिण एशिया के सबसे बड़े आयुध (गोला-बारूद) और मिसाइल विनिर्माण परिसर का उद्घाटन किया।

  • यह परिसर क्षेत्र के सबसे बड़े एकीकृत गोला-बारूद विनिर्माण परिसर के रूप में संचालित किया जाएगा जो सशस्त्र बलों, अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस के लिये उच्च गुणवत्ता वाले लघु, मध्यम तथा उच्च-क्षमता वाले गोला-बारूद का उत्पादन करेगा।
  • इस परिसर में 150 मिलियन राउंड के शुरुआती बैच के साथ लघु-क्षमता वाले गोला-बारूद का उत्पादन शुरू किया जा चुका है जिसकी भारत की कुल वार्षिक आयुध आवश्यकता में 25% की हिस्सेदारी है।
  • परिसर का अनावरण बालाकोट में भारतीय वायु सेना द्वारा किये गए एयर स्ट्राइक की 5वीं वर्षगाँठ के दिन किया गया जिसे 'ऑपरेशन बंदर' के नाम से भी जाना जाता है जो भारतीय वायु सेना का एक ऐतिहासिक ऑपरेशन था जिसने बाहरी खतरों का सामना करने में भारत की रणनीतिक दृढ़ता को प्रदर्शित किया।

और पढ़ें…गोला-बारूद स्टॉक का रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID)


रैपिड फायर

प्रधानमंत्री द्वारा 3 अंतरिक्ष अवसंरचना परियोजनाओं और 'एस्ट्रोनॉट विंग्स' का उद्घाटन

स्रोत: पी.आई.बी. 

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने तीन महत्त्वपूर्ण अंतरिक्ष अवसंरचना परियोजनाओं का उद्घाटन किया: सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा में SLV इंटीग्रेशन

  •  फैसिलिटी (PIF); ISRO प्रोपल्शन कॉम्प्लेक्स, महेंद्रगिरि में नवीन ‘सेमी-क्रायोजेनिक्स इंटीग्रेटेड इंजन और स्टेज टेस्ट (SIEST )फैसिलिटी’; विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम में 'ट्राइसोनिक विंड टनल'। 
  • ये सभी अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाएंगे जिससे अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये भारत के दृष्टिकोण को समर्थन मिलेगा। 
    • PIF PSLV प्रक्षेपणों को सालाना 6 से बढ़ाकर 15 करेगा और SSLV व अन्य छोटे प्रक्षेपण वाहनों का समर्थन करेगा।
      • SIEST फैसिलिटी सेमी-क्रायोजेनिक इंजन विकसित करेगी, जो पेलोड क्षमता को बढ़ाएगी, जिसमें 200 टन तक के थ्रस्ट वाले इंजनों का परीक्षण करने की क्षमता होगी।
      • ट्राइसोनिक विंड टनल रॉकेट और विमानों के लिये वायुगतिकीय परीक्षण में एक उपलब्धि है।
    • ये सुविधाएँ गगनयान मिशन के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • साथ ही प्रधानमंत्री ने गगनयान मिशन के लिये चुने गए 4 पायलटों के नामों की घोषणा की और उन्हें 'एस्ट्रोनॉट विंग्स' प्रदान किये।
    • गगनयान मिशन के लिये नामित पायलट– ग्रुप कैप्टन पी. बालाकृष्णन नायर, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन, ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप और विंग कमांडर एस. शुक्ला हैं।

और पढ़ें: गगनयान मिशन


रैपिड फायर

ब्लैनेट्स

स्रोत: द हिंदू

इंटरस्टेलर, क्रिस्टोफर नोलन की वर्ष 2014 की विज्ञान कथा कृति, ब्लैक होल की परिक्रमा करने वाले तीन मनोरम ग्रहों को प्रस्तुत करती है, जिन्हें ब्लैनेट्स के रूप में जाना जाता है, जिसके बारे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह वास्तविकता में मौजूद हो सकते हैं।

  • जापान के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2019 में सिद्धांत दिया कि ग्रह अपने आसपास के क्षेत्र में देखे गए विशाल धूल एवं गैस के बादलों से अतिविशाल ब्लैक होल के समीप निर्मित हो सकते हैं। इन ग्रहों, जिन्हें "ब्लैनेट" कहा जाता है, इनके पृथ्वी से सदृश होने का अनुमान नहीं है।
  • ग्रहों का निर्माण तब होता है जब किसी युवा तारे के चारों ओर घूम रही धूल तथा गैस टकराती हैं और एक साथ चिपक जाती हैं। इसी तरह की प्रक्रिया अतिविशाल ब्लैक होल के समीप भी हो सकती है, जहाँ ग्रह अपने नक्षत्र मंडल के अंदर आकार लेते हैं और अंततः ब्लैनेट निर्मित होते हैं।
  • यह अनुमान लगाया गया है कि ब्लैनेट्स पृथ्वी से काफी बड़ा है, इसका आकार लगभग 3,000 गुना है।
    • गुरुत्वाकर्षण विनाश से बचने के लिये, ब्लैनेट्स को लगभग 100 ट्रिलियन किलोमीटर की दूरी पर ब्लैक होल की परिक्रमा करने की आवश्यकता होगी।

और पढ़ें…  ब्लैक होल


रैपिड फायर

वित्त मंत्रालय द्वारा दस वर्ष की अर्थव्यवस्था की समीक्षा

स्रोत: द हिंदू

अंतरिम बजट 2024-25 से पहले वित्तमंत्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था की 10 वर्ष की समीक्षा प्रस्तुत की।

  • विकास प्रक्षेपण: समीक्षा में अनुमान लगाया गया है कि भारत की GDP 2024-25 में 7% के करीब बढ़ेगी, वर्ष 2030 तक 7% से "काफी ऊपर (Well Above)" जाने की संभावना है।
    • अपेक्षित है कि अर्थव्यवस्था इस वर्ष लगभग 3.7 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर तीन वर्ष में 5 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगी, जिससे यह विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी और वर्ष 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर तक भी पहुँच सकती है।
    • विकास के दो चरण: समीक्षा भारत की विकास कहानी को दो चरणों में विभाजित करती है:
      • 1950-2014 तक और फिर वर्ष 2014 के बाद से ‘परिवर्तनकारी विकास का दशक’।
      • यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि संरचनात्मक बाधाओं, देर से निर्णय लेने और उच्च मुद्रास्फीति के कारण अर्थव्यवस्था की स्थिति "उत्साहजनक" नहीं थी।
      • हालाँकि वर्ष 2014 के बाद के सुधारों ने अर्थव्यवस्था की स्वस्थ रूप से बढ़ने की क्षमता को बहाल कर दिया है, जिससे भारत सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला G-20 राष्ट्र बन गया है।
    • गुणात्मक श्रेष्ठता: समीक्षा में दावा किया गया है कि भारत की 7% की वृद्धि (जब विश्व 2% की दर से बढ़ेगी) पिछले युग के दौरान हासिल की गई 8%- 9% की तुलना में "गुणात्मक रूप से श्रेष्ठ" है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था 4% की दर से बढ़ी थी।

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