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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 26 Nov, 2024
  • 21 min read
रैपिड फायर

सगोत्रीय विवाह और अंतःप्रजनन

स्रोत: द हिंदू

आंध्र प्रदेश के उप्पाडा तट के गाँवों में सगोत्रीय विवाहों के कारण सेरिब्रल पाल्सी (मस्तिष्क विकार), डेंडी-वाकर मालफॉर्मेशन (DWM), ऐल्बिनिज़्म (रंगहीनता) और अन्य विकार उत्पन्न हो रहे हैं।

  • सगोत्रीय विवाह (रक्त-संबंधी विवाह) का आशय रक्त संबंधियों (जैसे एक-दूसरे के रिश्तेदार, आमतौर पर चचेरे भाई या करीबी रिश्तेदार) के बीच होने वाले विवाह से है। 
    • यह अनाचारपूर्ण  विवाहों (Incestuous Marriages) जैसे- प्रत्यक्ष वंशजों (पिता और पुत्री, माता और पुत्र, भाई और बहन के बीच विवाह) के बीच होने वाले विवाह से भिन्न है। 
  • 'वोनी' प्रॉमिस जैसी प्रथाएँ (जो कि लड़की के जन्म के समय किया जाने वाला एक मौखिक समझौता है) उपरोक्त मामले में रक्त-संबंध को बढ़ावा देती हैं।
  • अंतःप्रजनन, रक्त-संबंधी विवाह का आनुवंशिक परिणाम है। अंतःप्रजनन से संतान में समयुग्मता की संभावना बढ़ने के साथ अप्रभावी लक्षणों की अभिव्यक्ति भी होती है।
    • होमोज़ायगोसिटी के मामले में किसी व्यक्ति को अपने माता-पिता दोनों से एक विशेष जीन के लिये समान एलील विरासत में मिलते हैं, जिसके कारण आनुवंशिक विकार होते हैं।
      • एलील (Alleles) एक ही जीन के विभिन्न संस्करण होते हैं। उदाहरण के लिये आँखों के रंग के जीन में नीली, भूरी या हरी आँखों के लिये एलील हो सकते हैं।
  • अंतःप्रजनन से आनुवंशिक विकार में वृद्धि होती है। आनुवंशिक विकार से आशय लोगों में कुछ हानिकारक या अतिरिक्त जीनों की उपस्थिति के कारण होने वाले विकार से है।
  • हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हिंदुओं के बीच सपिंड विवाह पर प्रतिबंध (जब तक कि कोई स्थापित प्रथा न हो) लगाया गया है।
    • सपिंड विवाह का आशय पारिवारिक रूप से निकटता से संबंधित लोगों के बीच होने वाले विवाह से है।

और पढ़ें: दुर्लभ रोग दिवस 2024


प्रारंभिक परीक्षा

वायु प्रदूषण के नियंत्रण हेतु क्लाउड सीडिंग

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के उपाय के रूप में क्लाउड सीडिंग के प्रस्ताव पर ध्यान दिया गया है, क्योंकि दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) का आँकड़ा 450 से अधिक दर्ज किया गया है इससे वायु गुणवत्ता गंभीर संकट में है। 

क्लाउड सीडिंग क्या है?

परिचय: 

  • क्लाउड सीडिंग, एक मौसम परिवर्तन तकनीक है, जिसमे सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड या शुष्क बर्फ जैसे रसायनों का मेघों के ऊपरी हिस्से में छिड़काव किया जाता ताकि वर्षण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करके वर्षा कराई जा सके।
  • यह प्रक्रिया बादलों में बर्फ के क्रिस्टल के निर्माण को सुगम बनाती है, जिससे कृत्रिम वर्षा हो सकती है। 
    • इस तकनीक को वायु प्रदूषण से निपटने के लिये एक संभावित समाधान (विशेष रूप से उच्च वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) रीडिंग की अवधि के दौरान) के रूप में माना जा रहा है।

क्लाउड सीडिंग के प्रकार:

  • स्थैतिक क्लाउड सीडिंग:
    • इस विधि में बर्फ के नाभिक, जैसे सिल्वर आयोडाइड या शुष्क बर्फ को ठंडे मेघों में प्रविष्ट कराना शामिल है, जिनमें सुपरकूल तरल जल की बूँदें होती हैं।
    • बर्फ के नाभिक बर्फ के क्रिस्टल या बर्फ के टुकड़ों के निर्माण को गति दे सकते हैं, जो पहले तरल बूँदों का रूप ले सकते हैं और फिर वर्षा के रूप में गिर सकते हैं।
  • डायनेमिक क्लाउड सीडिंग: 
    • डायनेमिक क्लाउड सीडिंग ऊर्ध्वाधर वायु धाराओं को बढ़ावा देकर वर्षा को प्रेरित करने की एक विधि है।
    • इस प्रक्रिया को स्टैटिक क्लाउड सीडिंग की तुलना में अधिक जटिल माना जाता है क्योंकि यह ठीक से काम करने वाली घटनाओं के अनुक्रम पर निर्भर करता है।
  • हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग: 
    • इस विधि में उष्म मेघों के आधार में फ्लेयर्स या विस्फोटकों के माध्यम से हाइग्रोस्कोपिक पदार्थों के बारीक कणों, जैसे नमक का छिड़काव करना शामिल है।
    • ये कण मेघ संघनन नाभिक के रूप में कार्य करते हैं और मेघ के बूंदों की संख्या एवं आकार को बढ़ा सकते हैं, जिससे मेघों की परावर्तनशीलता एवं स्थिरता को बढ़ावा  मिलता है।
  • ग्लेशियोजेनिक क्लाउड सीडिंग: 
    • इसमें सिल्वर आयोडाइड या शुष्क बर्फ जैसे बर्फ के नाभिकों को फैलाकर अतिशीतित (सुपरकूल) बादलों में बर्फ निर्माण को प्रेरित किया जाता है, जिससे बर्फ का नाभिकीकरण और अवक्षेपण होता है।
  • तकनीक के अनुप्रयोग:
    • शीतकालीन हिमपात और पर्वतीय हिमखण्डों को बढ़ाने के लिये क्लाउड सीडिंग की जाती है, जो आसपास के क्षेत्रों में समुदायों के लिये प्राकृतिक जल आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है।
    • ओलावृष्टि को रोकने, कोहरे को समाप्त करने, सूखाग्रस्त क्षेत्रों में वर्षा कराने तथा वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये भी क्लाउड सीडिंग की जा सकती है।

क्लाउड सीडिंग के कार्यान्वयन के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • पर्यावरणीय प्रभाव: कृत्रिम वर्षा के दौरान सिल्वर आयोडाइड, शुष्क बर्फ या लवण जैसे सीडिंग तत्त्व भी धरातल पर आएंगे।
  • क्लाउड-सीडिंग परियोजनाओं के आस-पास के स्थानों में खोजे गए अवशिष्ट चाँदी को विषाक्त माना जाता है। शुष्क बर्फ के लिये यह ग्रीनहाउस गैस का एक स्रोत भी हो सकता है जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है, क्योंकि यह मूल रूप से कार्बन डाइऑक्साइड होता है।
  • अस्थायी राहत: हालाँकि क्लाउड सीडिंग से कणीय पदार्थों को कम करके वायु प्रदूषण से अल्पकालिक राहत मिल सकती है लेकिन इससे वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन एवं औद्योगिक उत्सर्जन जैसे प्रदूषण के मूल कारणों का समाधान नहीं होता है।
    • उदाहरण: लाहौर में क्लाउड सीडिंग से AQI में सुधार हुआ तथा यह "खराब" से "मध्यम" हो गया। हालांकि, इसका प्रभाव अल्पकालिक था।
  • उपलब्धता संबंधी मुद्दे: क्लाउड सीडिंग के लिये आर्द्रता वाले बादलों की आवश्यकता होती है, जो हमेशा उपलब्ध या पूर्वानुमानित नहीं होते हैं।
    • आर्द्रता की मात्रा और ऊर्ध्वाधर गति सहित बादलों की कुछ विशिष्ट विशेषताएँ वर्षा के लिये आवश्यक हैं।
  • तकनीकी रूप से महँगा: इसमें रसायनों को आकाश में छिड़कने और उन्हें फ्लेयर शॉट्स या हवाई जहाज़ द्वारा हवा में छोड़ने जैसी प्रक्रियाएँ शामिल हैं, जिसमें भारी लागत और लॉजिस्टिक शामिल है।
    • उदाहरण: दिल्ली में क्लाउड सीडिंग हेतु 1,300 वर्ग किलोमीटर के संपूर्ण हवाई क्षेत्र को कवर करने के क्रम में 13 करोड़ रुपए की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न: निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में कुछ वैज्ञानिक पक्षाभ मेघ विरलन तकनीक तथा समतापमंडल में सल्पेट वायुविलय अंत:क्षेपण के उपयोग का सुझाव देते हैं? (2019)

(a) कुछ क्षेत्रों में कृत्रिम वर्षा करवाने के लिये
(b) उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बारंबारता और तीव्रता को कम करने के लिये
(c) पृथ्वी पर सौर पवनों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिये
(d) भूमंडलीय तापन को कम करने के लिये

उत्तर: (d)


प्रारंभिक परीक्षा

अटल इनोवेशन मिशन 2.0

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नीति आयोग के तहत अटल नवाचार मिशन (AIM) को 2,750 करोड़ रुपए के बढ़े हुए बजट के साथ जारी रखने की मंजूरी दे दी है, जिससे वर्ष 2028 तक भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करने के लिये AIM 2.0 का शुभारंभ हो गया है।

AIM 2.0 क्या है?

  • AIM 2.0: अटल टिंकरिंग लैब्स (ATL) और अटल इनक्यूबेशन सेंटर (AIC)  जैसी AIM की सफलता के आधार पर, AIM 2.0 का उद्देश्य नई पहलों को बढ़ावा देना और उनका संचालन करना है।
  • AIM 2.0 के अंतर्गत प्रमुख कार्यक्रम:
    • भाषा समावेशी नवाचार कार्यक्रम (LIPI): गैर-अंग्रेज़ी भाषी नवप्रवर्तकों को समर्थन देने के लिये 22 अनुसूचित भाषाओं में स्थानीय नवाचार केंद्र स्थापित करना।
    • फ्रंटियर कार्यक्रम: जम्मू और कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्यों और आकांक्षी ज़िलों जैसे वंचित क्षेत्रों में 2500 नए ATL का निर्माण करना।
    • पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार लाने पर लक्षित कार्यक्रम: नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के लिये पेशेवरों (प्रबंधकों, शिक्षकों, प्रशिक्षकों) को प्रशिक्षित करता है।
      • लंबे समय तक निवेश की आवश्यकता वाले गहन तकनीकी स्टार्टअप के व्यावसायीकरण के लिये एक शोध सैंडबॉक्स बनाना।
      • नीति आयोग के राज्य सहायता मिशन के माध्यम से राज्य स्तरीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना।
      • उन्नत राष्ट्रों के साथ सहभागिता, ग्लोबल टिंकरिंग ओलंपियाड, तथा  संयुक्त राष्ट्र विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) और G-20 के साथ साझेदारी के माध्यम से भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का वैश्विक स्तर पर विस्तार करना।
    • बेहतर उत्पादन गुणवत्ता को लक्षित करने वाले कार्यक्रम: औद्योगिक त्वरक कार्यक्रम का उद्देश्य सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में 10 त्वरक बनाकर उन्नत स्टार्टअप को बढ़ावा देना है।
      • अटल सेक्टोरल इनोवेशन लॉन्चपैड्स (ASIL) कार्यक्रम प्रमुख उद्योग क्षेत्रों में स्टार्टअप्स को एकीकृत करने और उनसे खरीद करने के लिये केंद्रीय मंत्रालयों में 10 iDEX जैसे प्लेटफॉर्म स्थापित करेगा।

अटल नवाचार मिशन:

  • परिचय: नीति आयोग द्वारा वर्ष 2016 में शुरू किया गया अटल नवाचार मिशन (AIM) भारत सरकार की प्रमुख पहल है, जिसे देश में नवाचार और उद्यमशीलता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये स्थापित किया गया है।
  • AIM के अंतर्गत प्रमुख कार्यक्रम:
    • अटल टिंकरिंग लैब्स: 3डी प्रिंटिंग जैसे उपकरणों का उपयोग करके भारतीय स्कूलों में समस्या समाधान मानसिकता विकसित करना।
    • अटल इनक्यूबेशन सेंटर: विश्व स्तर पर स्टार्टअप को बढ़ावा देना और इनक्यूबेटर मॉडल में एक नया आयाम जोड़ना।
    • अटल न्यू इंडिया चैलेंज: उत्पाद नवाचारों को बढ़ावा देना और उन्हें विभिन्न क्षेत्रों/मंत्रालयों की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाना।
    • मेंटर इंडिया कैंपेन: मिशन की सभी पहलों का समर्थन करने हेतु यह सार्वजनिक क्षेत्र, कॉरपोरेट्स और संस्थानों के सहयोग से शुरू किया गया एक राष्ट्रीय मेंटर नेटवर्क है।
    • अटल कम्युनिटी इनोवेशन सेंटर: टियर-2 और टियर-3 शहरों सहित देश के वंचित क्षेत्रों में समुदाय केंद्रित नवाचार एवं विचारों को प्रोत्साहित करना।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. अटल नवप्रवर्तन (इनोवेशन) मिशन किसके अधीन स्थापित किया गया है? (2019)

(a) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग
(b) श्रम और रोज़गार मंत्रालय
(c) नीति (NITI) आयोग
(d) कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय

उत्तर: (c)


रैपिड फायर

राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार 2024

स्रोत: पी.आई.बी

हाल ही में पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD) ने राष्ट्रीय गोकुल मिशन (RGM) के तहत राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार (NGRA), 2024 के विजेताओं की घोषणा की।

  • यह पशुधन और डेयरी क्षेत्र में सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक है और इसे राष्ट्रीय दुग्ध दिवस (26 नवंबर 2024) समारोह पर प्रदान किया जाता है
  • पुरस्कार श्रेणियाँ:
    • स्वदेशी गाय/भैंस नस्लों का पालन करने वाले सर्वश्रेष्ठ डेयरी किसान
    • सर्वश्रेष्ठ कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (AIT) और
    • सर्वश्रेष्ठ डेयरी सहकारी/दुग्ध उत्पादक कंपनी/डेयरी किसान उत्पादक संगठन
  • विभाग द्वारा पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों के लिये एक विशेष पुरस्कार शामिल किया गया है।
  • राष्ट्रीय गोजातीय प्रजनन एवं डेयरी विकास कार्यक्रम (NPBBDD) के तहत स्वदेशी नस्लों के संरक्षण एवं विकास के लिये वर्ष 2014 में RGM की शुरुआत की गई थी।
  • NPBBDD के दो घटक हैं: 
    • राष्ट्रीय गोजातीय प्रजनन कार्यक्रम (NPBB): मान्यता प्राप्त देशी नस्लों का संरक्षण और विकास।
    • राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (NPDD): दूध संघों/महासंघों द्वारा उत्पादन, खरीद, प्रसंस्करण एवं विपणन से संबंधित बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना।

और पढ़ें: राष्ट्रीय गोकुल मिशन


रैपिड फायर

ओफियोफैगस कालिंगा

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में, कर्नाटक की किंग कोबरा प्रजाति, जिसे स्थानीय रूप से 'कालिंगा सर्पा (Kaalinga Sarpa)' के नाम से जाना जाता है, को वैज्ञानिक समुदाय में आधिकारिक तौर पर ओफियोफैगस कलिंगा नाम दिया गया है।

  • किंग कोबरा को पहली बार 1836 में डेनिश प्रकृतिवादी थियोडोर एडवर्ड कैंटर द्वारा ओफियोफैगस हन्ना (Ophiophagus hannah) के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
    • किंग कोबरा पर 186 वर्षों तक कोई आनुवंशिक अध्ययन नहीं किया गया था।
  • भौगोलिक वंशावली के आधार पर किंग कोबरा को चार अलग-अलग प्रजातियों में पुनर्वर्गीकृत किया गया है:
    • उत्तरी किंग कोबरा (ओफियोफैगस हन्नाह): यह पाकिस्तान से लेकर पूर्वी चीन और दक्षिण पूर्व एशिया तक पाया जाता है।
    • सुंडा किंग कोबरा (ओफियोफैगस बंगारस): थाईलैंड, मलेशिया और फिलीपींस के कुछ हिस्सों सहित दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है।
    • पश्चिमी घाट किंग कोबरा (ओफियोफैगस कलिंगा): भारत के पश्चिमी घाट में स्थानिक रूप से पाया जाता है।
    • लूज़ॉन किंग कोबरा (ओफियोफैगस सल्वाटाना): केवल फिलीपींस के लूज़ॉन द्वीप पर पाया जाता है।
  • किंग कोबरा दिनचर (दिन के समय सक्रिय) होते हैं, तथा मुख्य रूप से रैट स्नेक, धामन और अन्य कोबरा जैसे साँपों को खाते हैं।
  • किंग कोबरा एकमात्र ऐसा साँप है जो अंडे से बच्चे निकलने तक घोंसला बनाता है और उसकी रखवाली करता है।
  • इसके विष का उपयोग कोब्रोक्सिन और नाइलॉक्सिन जैसी दर्द निवारक दवाओं के विकास में किया जाता है।

और पढ़ें: सर्प विष को निष्क्रिय करने वाली एंटीबॉडी


रैपिड फायर

तेलंगाना में विशेषाधिकार प्राप्त समूहों के भूमि आवंटन को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द किया जाना

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने तेलंगाना सरकार द्वारा संसद सदस्यों (MP), विधान सभा सदस्यों (MLA), सिविल सेवकों और पत्रकारों वाली सहकारी समितियों को भूमि आवंटन को संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने रियायती दरों पर विशेषाधिकार प्राप्त समूहों को भूमि आवंटन की आलोचना की, जिसमें हाशिये पर पड़े समुदायों की अपेक्षा पहले से ही विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को तरज़ीह दी गई।
    • न्यायालय ने चेतावनी दी कि दुर्लभ भूमि संसाधनों के इस तरह के आवंटन से असमानता पैदा होती है और घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में इसके व्यापक आर्थिक निहितार्थ होते हैं।
  • निर्णय में इस नीति को सत्ता का दुरुपयोग बताया गया, जिससे नीति निर्माताओं और उनके साथियों को लाभ मिल रहा है, जबकि "योग्य वर्गों" की सहायता के नाम पर सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग किया जा रहा है।
    • सत्ता का दुरुपयोग किसी विधायी निकाय द्वारा की गई ऐसी कार्यवाहियों को संदर्भित करता है जो उनके अधिकार क्षेत्र में प्रतीत होती हैं लेकिन वास्तव में संवैधानिक सीमाओं या सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को याद दिलाया कि राज्य नागरिकों के लिये ट्रस्ट के रूप में संसाधन रखता है तथा उसके कार्यों का उद्देश्य चुनिंदा समूहों को लाभ पहुँचाने के बजाय जनहित में होना चाहिये।

और पढ़ें: मौलिक अधिकार (भाग- 1)


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