प्रारंभिक परीक्षा
सरोगेट के लिये मातृत्व अवकाश
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में सरकार ने सरोगेसी के माध्यम से जन्म लेने वाले शिशुओं के मामले में सरकारी कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) और अन्य लाभ प्रदान करने के लिये केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियमावली, 1972 में किये गए संशोधन को अधिसूचित किया।
- इस पहल का उद्देश्य सरोगेसी के विकल्प का चयन करने वाले सरकारी कर्मचारियों के लिये अवकाश नीतियों में मौजूदा कमियों में सुधार करना है।
अधिसूचित संशोधित नियमों के प्रावधान क्या हैं?
- सरोगेट और कमीशनिंग माताओं के लिये मातृत्व अवकाश: संशोधन में उन महिला सरकारी कर्मचारियों के लिये 180 दिनों के मातृत्व अवकाश का प्रावधान किया गया है जिनके शिशु सरोगेसी के माध्यम से हुए हैं।
- इसके अंतर्गत सरोगेट माँ और साथ ही कमीशनिंग माँ (इंटेंडेड मदर) जिनके दो से कम जीवित बच्चे हैं, दोनों को शामिल किया गया है।
- कमीशनिंग पिताओं के लिये पितृत्व अवकाश: इस नई नियमावली में "कमीशनिंग पिता" (इंटेंडेड फादर के लिये भी 15 दिनों के पितृत्व अवकाश का प्रावधान किया गया है, जो सरकारी कर्मचारी हैं और जिनके दो से कम जीवित बच्चे हैं।
- छुट्टी की प्रसुविधा को शिशु की जन्म तिथि से 6 माह के भीतर लिया जा सकता है।
- कमीशनिंग माताओं के लिये चाइल्ड केयर लीव:
- इसके अतिरिक्त, केंद्रीय सिविल सेवा (छुट्टी) नियमावली के मौजूदा प्रावधानों के अनुसार, ऐसी कमीशनिंग माँ जिसके दो से कम जीवित बच्चे हैं, चाइल्ड केयर लीव यानी शिशु देखभाल अवकाश के लिये पात्र है।
सरोगेसी और संबंधित विनियमन क्या है?
- परिचय:
- यह एक ऐसी प्रथा है जिसमें एक महिला किसी इच्छित दंपत्ति के लिये बच्चे को जन्म देती है और जन्म के बाद उसे उन्हें सौंपने का इरादा रखती है।
- इसे केवल परोपकारी उद्देश्यों के लिये या ऐसे दंपत्तियों के लिये अनुमति दी जाती है जो सिद्ध बांझपन या बीमारी से पीड़ित हैं।
- बिक्री, वेश्यावृत्ति या किसी अन्य प्रकार के शोषण जैसे वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये सरोगेसी निषिद्ध है।
- सरोगेसी के माध्यम से पैदा हुए बच्चे को दंपत्ति का जैविक (Biological) बच्चा माना जाएगा।
- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 2021 के प्रावधानों के अनुसार ऐसे भ्रूण का गर्भपात केवल सरोगेट मां और अधिकारियों की सहमति से ही किया जा सकता है।
- मापदंड:
- सरोगेसी का लाभ उठाने के लिये, दंपत्ति को कम से कम 5 साल तक विवाहित होना चाहिये, जिसमें पत्नी की आयु 25-50 वर्ष और पति की आयु 26-55 वर्ष के बीच होनी चाहिये।
- जब तक बच्चा विकलांग या जानलेवा बीमारी से ग्रस्त न हो, तब तक उनका कोई जीवित बच्चा नहीं होना चाहिये।
- दंपत्ति के पास पात्रता और अनिवार्यता के प्रमाण-पत्र भी होने चाहिये, जो बांझपन को साबित करते हों और सरोगेट बच्चे के पालन-पोषण और हिरासत के लिये न्यायालय का आदेश भी होना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, इच्छुक दंपत्ति को सरोगेट माँ के लिये 16 महीने के लिये बीमा कवरेज़ प्रदान करना चाहिये।
- सरोगेट माँ के लिये मानदंड:
- वह दंपति का नज़दीकी रिश्तेदार होना चाहिये, विवाहित महिला होनी चाहिये और उसका अपना बच्चा भी हो, उसकी आयु 25-35 वर्ष हो तथा वह केवल एक बार सरोगेट बनी हो।
- उसे सरोगेसी के लिये चिकित्सीय एवं मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य प्रमाणपत्र की भी आवश्यकता है।
- विनियमन:
- राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड तथा राज्य सरोगेसी बोर्ड, सरोगेसी क्लीनिकों को विनियमित करने के साथ-साथ उनके मानकों को लागू करने के लिये उत्तरदायी हैं।
- यह अधिनियम व्यावसायिक सरोगेसी, भ्रूण बिक्री तथा सरोगेट माताओं अथवा बच्चों के शोषण या परित्याग जैसी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाता है। उल्लंघन करने पर 10 वर्ष तक का कारावास या 10 लाख रुपए का ज़ुर्माना हो सकता है।
सरोगेसी से संबंधित कानून:
- सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021,
- सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022
- सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी [ART] (विनियमन) अधिनियम, 2021
और पढ़ें: सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी, सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. मानव प्रजनन प्रौद्योगिकी में अभिनव प्रगति के संदर्भ में "प्राक्केन्द्रिक स्थानांतरण ”(Pronuclear Transfer) का प्रयोग किस लिये होता है। (2020) (a) इन विट्रो अंड के निषेचन के लिये दाता शुक्राणु का उपयोग उत्तर: (d) |
प्रारंभिक परीक्षा
लोकसभा का उपाध्यक्ष
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में लोकसभा में विपक्ष की सीटों संख्या में हुई वृद्धि ने उपाध्यक्ष या डिप्टी स्पीकर का पद हासिल करने में उनकी रुचि को पुनः जागृत कर दिया है।
- यह पद 17वीं लोकसभा (2019-24) के दौरान रिक्त रहा, जो 16वीं लोकसभा (2014-19) से अलग है, जहाँ सत्तारूढ़ पार्टी के सहयोगी दल के सांसद (Member of Parliament - MP) ने संभाला था।
उपाध्यक्ष की भूमिका क्या है?
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 95(1): इसमें प्रावधान है कि यदि अध्यक्ष का पद रिक्त हो तो उपाध्यक्ष उसके कर्त्तव्यों का निर्वहन करेगा।
- सदन की अध्यक्षता करते समय उपाध्यक्ष को अध्यक्ष के समान ही शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
- नियमों में "अध्यक्ष" के सभी संदर्भों को उपाध्यक्ष के लिये भी संदर्भ माना जाएगा, उस समय के लिये जब वह अध्यक्षता करते हैं।
- अनुच्छेद 93: इसमें प्रावधान है कि लोक सभा को यथाशीघ्र सदन के दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनना होगा।
- अनुच्छेद 178: इसमें राज्य विधानसभाओं के अध्यक्षों और उपाध्यक्षों के लिये भी प्रावधान है।
- उपाध्यक्ष चुनने की बाध्यता:
- संविधान में उपाध्यक्ष के चयन के लिये कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है, जिससे सरकारें उसकी नियुक्ति में देरी कर सकती हैं या उसे टाल सकती हैं।
- अनुच्छेद 93 और अनुच्छेद 178 में “करेगा” और “जितनी जल्दी हो सके” शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, जो यह दर्शाता है कि न केवल अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव अनिवार्य है, बल्कि इसे जल्द से जल्द कराया जाना चाहिये।
- चुनाव के नियम:
- अध्यक्ष/उपाध्यक्ष का चुनाव लोक सभा के सदस्यों में से उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा किया जाता है।
- लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के नियम 8 द्वारा शासित होता है।
- उपाध्यक्ष का चुनाव आमतौर पर दूसरे सत्र में होता है, लेकिन नई लोकसभा या विधानसभा के पहले सत्र में भी हो सकता है।
- उपाध्यक्ष सदन के भंग होने तक अपने पद पर बना रहता है।
- त्यागपत्र और निष्कासन:
- अनुच्छेद 94 (और राज्य विधानसभाओं के लिये अनुच्छेद 179) के तहत, यदि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष लोक सभा के सदस्य नहीं रह जाते हैं, तो वे अपना पद छोड़ देंगे।
- वे लोक सभा के सभी सदस्यों के बहुमत (पूर्ण बहुमत) द्वारा पारित प्रस्ताव द्वारा इस्तीफा भी दे सकते हैं या पद से हटाए जा सकते हैं।
- विपक्ष की ओर से उपाध्यक्ष:
- संसदीय परंपरा के अनुसार, विपक्षी पार्टी ने कई मौकों पर लोकसभा के उपाध्यक्ष का पद संभाला है। इसमें काॅन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-I (2004-09) और यूपीए-II (2009-14) सरकारों के साथ-साथ प्रधानमंत्रियों अटल बिहारी वाजपेयी (1999 से 2004), पी वी नरसिम्हा राव (1991-96) और चंद्रशेखर (1990-91) के कार्यकाल के दौरान भी शामिल है।
अध्यक्ष के रूप में उपाध्यक्ष की नियुक्ति
- लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष जी.वी.मावलंकर की वर्ष 1956 में अपना कार्यकाल पूरा किये बिना मृत्यु हो गई जिसके पश्चात् उपाध्यक्ष एम.अनंतशयनम् अयंगर ने 1956 से 1957 की अवधि तक लोकसभा के शेष कार्यकाल का कार्यभार संभाला।
- इसके पश्चात् अयंगर को दूसरी लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया था।
- इसी प्रकार वर्ष 2002 में जी.एम.सी. बालायोगी के निधन के बाद मनोहर जोशी द्वारा अध्यक्ष का पद धारण करने से पूर्व उपाध्यक्ष और काॅन्ग्रेस सांसद पी.एम. सईद ने दो माह की अवधि के लिये कार्यवाहक अध्यक्ष का पद ग्रहण किया।
और पढ़ें: उपाध्यक्ष का चुनाव
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
(a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. लोकसभा अध्यक्ष के पद के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |
रैपिड फायर
केरल का नाम परिवर्तित कर "केरलम" करने की मांग
स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से संविधान में राज्य का नाम बदलकर “केरलम” करने को कहा।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 केंद्र को मौजूदा राज्यों के नाम बदलने का अधिकार देता है, जिसके लिये संविधान के अनुच्छेद 1 के तहत सूचीबद्ध राज्य के नाम में भी संशोधन की आवश्यकता होती है।
- केरल मलयाली केरलम के लिये अंग्रेजी शब्द है और इस शब्द का सबसे पहला उल्लेख 257 ईसा पूर्व के सम्राट अशोक के शिलालेख II में पाया जा सकता है जिसमें "केरलपुत्र" का उल्लेख है।
- संस्कृत में केरलपुत्र का शाब्दिक अर्थ है "केरल का पुत्र", जो चेरों के राजवंश को संदर्भित करता है, जो दक्षिण भारत के तीन मुख्य साम्राज्यों में से एक था (अन्य दो राजवंश चोल और पांड्य थे)।
- मलयालम भाषी राज्य की मांग पहली बार 1920 के दशक में उठाई गई थी और 1949 में स्वतंत्रता के बाद, त्रावणकोर और कोचीन की दो मलयालम भाषी रियासतों को एकीकृत करके त्रावणकोर-कोचीन राज्य का गठन किया गया।
- राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश के आधार पर अंततः भाषाई आधार पर केरल राज्य का निर्माण किया गया।
और पढ़ें: राज्य का दर्जा की मांग
रैपिड फायर
छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगाँठ
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही में छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (Indira Gandhi National Centre for the Arts- IGNCA) और राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (NGMA) द्वारा शिवाजी महाराज के 115 ऑयल पेंटिंग्स की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
- प्रदर्शनी में प्रदर्शित पेंटिंग्स को पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे के मार्गदर्शन में बनाया गया था।
- छत्रपति शिवाजी महाराज का 6 जून 1674 को रायगढ़ में मराठों के राजा के रूप में राज्याभिषेक किया गया था।
- उनका जन्म 19 फरवरी 1630 को पुणे ज़िले के शिवनेरी दुर्ग में हुआ था।
- उनके पिता शाहजी भोंसले बीजापुर सल्तनत के अधीन मराठा सेनापति थे और उनकी माता का नाम जीजाबाई था। उन्होंने छत्रपति, शककर्त्ता, क्षत्रिय कुलवंत और हैंदव धर्मोद्धारक की उपाधियाँ धारण कीं।
और पढ़ें..छत्रपति शिवाजी महाराज
रैपिड फायर
श्रीनगर को ‘विश्व शिल्प शहर’ का दर्जा मिला
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में श्रीनगर विश्व शिल्प परिषद (World Craft Council- WCC) द्वारा ‘विश्व शिल्प शहर (World Craft City- WCC)’ के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाला चौथा भारतीय शहर बन गया है।
- जयपुर, मलप्पुरम और मैसूर अन्य तीन भारतीय शहर हैं जिन्हें पहले विश्व शिल्प शहरों के रूप में मान्यता दी जा चुकी है।
- वर्ष 2021 में श्रीनगर शहर को शिल्प और लोक कलाओं के लिये यूनेस्को क्रिएटिव सिटी नेटवर्क (UNESCO Creative City Network- UCCN) के हिस्से के रूप में एक रचनात्मक शहर नामित किया गया था।
- कागज की लुगदी, अखरोट की लकड़ी पर नक्काशी, कालीन, सोज़नी कढ़ाई और पश्मीना और कानी शॉल श्रीनगर के कुछ शिल्प हैं।
WCC-विश्व शिल्प शहर कार्यक्रम:
- इसे वर्ष 2014 में विश्व शिल्प परिषद AISBL (WCC-इंटरनेशनल) द्वारा दुनिया भर में शिल्प विकास में स्थानीय अधिकारियों, शिल्पकारों और समुदायों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देने के लिये शुरू किया गया था।
- WCC-इंटरनेशनल की स्थापना वर्ष 1964 में हुई थी और श्रीमती कमलादेवी चट्टोपाध्याय, संस्थापक सदस्यों में से एक होने के नाते, प्रथम WCC आम सभा में शामिल हुई थीं।
- श्रीमती कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने भारत की शिल्प विरासत को संरक्षित करने और बढ़ाने के लिये वर्ष 1964 में भारतीय शिल्प परिषद की स्थापना की।
रैपिड फायर
21वीं पशुधन जनगणना
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही में पशुपालन एवं डेयरी विभाग (Department of Animal Husbandry & Dairying- DAHD) ने सितंबर से दिसंबर 2024 तक होने वाली आगामी 21वीं पशुधन जनगणना के लिये एक कार्यशाला का आयोजन किया।
- इसका उद्देश्य जनगणना के दौरान कुशल डेटा संग्रह के लिये राज्य और केंद्रशासित प्रदेश के अधिकारियों को मोबाइल ऐप और सॉफ्टवेयर सहित आवश्यक उपकरणों से लैस करना था।
- अधिकारियों को डेटा संकलन रणनीतियों पर प्रशिक्षित किया गया तथा पशुधन की विभिन्न पंजीकृत नस्लों से परिचित कराया गया।
- वर्ष 1919 से हर 5 साल में पूरे देश में पशुधन जनगणना आयोजित की जाती रही है।
- वर्ष 2019 में आयोजित 20वीं जनगणना के अनुसार, भारत में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन है।
- कुल गोजातीय जनसंख्या (मवेशी, भैंस, मिथुन और याक) 302.79 मिलियन थी।
- पशुधन के विकास हेतु वर्ष 2014-15 में शुरू की गई राष्ट्रीय पशुधन मिशन (National Livestock Mission- NLM) योजना में 3 उप-मिशन शामिल हैं - पशुधन और मुर्गी पालन के लिये नस्ल विकास, चारा तथा आहार विकास एवं नवाचार व विस्तार।
और पढ़ें: भारत का पशुधन क्षेत्र, 20वीं पशुधन जनगणना, विशेष पशुधन क्षेत्र पैकेज