प्रिलिम्स फैक्ट्स (25 Apr, 2023)



Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 25 अप्रैल, 2023

समुद्र आधारित बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा इंटरसेप्टर

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) और भारतीय नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में ओडिशा के तट से समुद्र आधारित अंतः वायुमंडलीय इंटरसेप्टर मिसाइल का सफलतापूर्वक पहला उड़ान परीक्षण किया। परीक्षण का उद्देश्य शत्रुतापूर्ण बैलिस्टिक मिसाइल खतरे का सामना एवं उसे बेअसर करना था, जो भारत को नौसेना बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा (Ballistic Missile Defence- BMD) क्षमता वाले देशों में शामिल करेगा। इससे पहले DRDO ने विरोधियों से बैलिस्टिक मिसाइल के खतरों को बेअसर करने की क्षमता वाली भूमि आधारित BMD प्रणाली का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया था। इस सफल परीक्षण के साथ भारत ने अत्यधिक जटिल नेटवर्क-केंद्रित एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम विकसित करने में आत्मनिर्भरता हासिल की है, जो भारत की रणनीतिक रक्षा क्षमताओं की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यह सफल परीक्षण स्वदेशी रूप से विकसित प्रौद्योगिकियों के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में भारत की प्रतिबद्धता को भी उजागर करता है।

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राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली

28 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों ने भूमि अभिलेखों के सुरक्षित विवरण रखने के लिये राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली (National Generic Document Registration System- NGDRS) को कार्यान्वित कर लिया है। भूमि संसाधन विभाग (Department of Land Resources- DoLR) का मानना है कि इन राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में ई-पंजीकरण को प्रमुखता दी जा रही है या फिर राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों ने उपयोगकर्त्ता इंटरफेस/API के माध्यम से NGDRS के राष्ट्रीय पोर्टल पर अपना डेटा साझा करना शुरू कर दिया है। साथ ही विशिष्ट भूमि खंड पहचान संख्या (Unique Land Parcel Identification Number- ULPIN) अथवा भू-आधार को 26 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा अंगीकृत किया गया तथा 7 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा इसको प्रायोगिक परीक्षण के तौर पर लागू किया गया है। कुछ राज्य स्वामित्त्व पोर्टल में ULPIN का भी उपयोग कर रहे हैं। भू संसाधन विभाग भारत सरकार द्वारा शत- प्रतिशत वित्तपोषण के साथ केंद्रीय क्षेत्र की एक योजना के रूप में डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (Digital India Land Records Modernisation Programme- DILRMP) को सुचारु रूप से लागू कर रहा है।

किसान उत्पादक कंपनियाँ

भारत की प्रमुख निजी कंपनियों में से एक ITC लिमिटेड ने 78 किसान-उत्पादक कंपनियों (FPCs) के गठन में मदद करके एक असाधारण उपलब्धि हासिल की है, जिसे किसान उत्पादक संगठन के रूप में भी जाना जाता है।

FPC एक ऐसी कंपनी है जिसका स्वामित्त्व और संचालन किसानों के पास है। यह इन किसानों को उनके द्वारा उगाई जाने वाली फसलों को एक साथ और समूह के रूप में बेचने में मदद करती है, जिससे उनके उत्पादों को बेहतर मूल्य प्राप्त करना आसान हो जाता है। किसान उपकरण और आपूर्ति जैसी वस्तुओं पर साथ मिलकर काम करके भी पैसा बचा सकते हैं तथा अपनी खेती के तरीकों को बेहतर बनाने के लिये ज्ञान एवं विशेषज्ञता साझा कर सकते हैं। यह उन्हें अपने दम पर बड़े, अधिक सुव्यवस्थित व्यवसायों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के बजाय एक समूह के रूप में अधिक कुशल और लाभदायक स्थिति प्राप्त करने की अनुमति देता है। FPC के गठन में मदद करने के लिये ITC ने क्लस्टर-आधारित व्यवसाय संगठन (CBBO) के रूप में कार्य किया। FPC को हैंड-होल्डिंग सहायता प्रदान करने और वर्ष 2024 तक 10,000 FPO बनाने के लक्ष्य को पूरा करने के लिये केंद्रीय बजट 2019-20 में एक अवधारणा पेश की गई। केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, CBBO की घोषणा के बाद FPC के गठन में भारी वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2018 के लगभग 5,000 से बढ़कर वर्ष 2023 में 16,000 से अधिक हो गई हैं। हाल के विश्लेषण से पता चलता है कि CBBO के रूप में कार्य करने वाली बड़ी कंपनियों द्वारा गठित FPC अकसर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने या किसान-केंद्रित कार्य करने में असमर्थ होती है, जो उनके निर्माण के उद्देश्य को विफल करता है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि CBBO मार्जिन के लिये FPC को कम कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप FPC अपने CBBO द्वारा उत्पादित या विपणन किये गए सामानों के लिये कैप्टिव बाज़ार बना सकता है। इसके अतिरिक्त किसानों का तर्क है कि FPC की मदद करने में CBBO का वास्तविक उद्देश्य केवल सस्ता और कच्चा माल प्राप्त करना है। उनका मानना है कि FPC का मकसद किसानों की मदद करना था, न कि बड़ी कंपनियों को ज्यादा पैसा दिलाना।

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मूल संरचना के सिद्धांत के 50 वर्ष

मूल संरचना के सिद्धांत को इस वर्ष 50 वर्ष हो गए और इसे भारत के संवैधानिक इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है। मूल संरचना का सिद्धांत एक संवैधानिक सिद्धांत को संदर्भित करता है जिसे 1973 के केशवानंद भारती मामले में संवैधानिक पीठ द्वारा स्थापित किया गया था। खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में तब तक संशोधन कर सकती है जब तक कि वह संविधान की बुनियादी संरचना या आवश्यक विशेषताओं में परिवर्तन या संशोधन नहीं करता। जबकि न्यायालय ने 'मूल संरचना' शब्द को परिभाषित नहीं किया, इसने कई सिद्धांतों को सूचीबद्ध किया जो इसका हिस्सा हैं। मूल संरचना के सिद्धांत की व्याख्या संविधान की सर्वोच्चता, कानून के शासन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत, संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य, सरकार की संसदीय प्रणाली, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत, कल्याणकारी राज्य आदि को शामिल करने के लिये की गई है। मूल संरचना के सिद्धांत का महत्त्व राजनीतिक शक्ति को सीमित करने, न्यायिक समीक्षा प्रक्रिया और शक्ति का बुद्धिमानी से प्रयोग करने तथा अंतिम निर्णय लेने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को है। न्यायिक स्वतंत्रता कानून के शासन के सार के लिये महत्त्वपूर्ण है एवं संविधान की अखंडता को बनाए रखने के लिये संवैधानिक परंपराओं और प्रथाओं हेतु सम्मान महत्त्वपूर्ण है। एस.आर. बोम्मई मामले (1994) में मूल संरचना के सिद्धांत के अनुप्रयोग को देखा जा सकता है, जहाँ सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति के माध्यम से भाजपा सरकारों की बर्खास्तगी को बरकरार रखा, इन सरकारों को धर्मनिरपेक्षता के लिये खतरा बताया।


लघु बचत योजनाएँ

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा जारी गणना के अनुसार, पिछली तीन तिमाहियों में कई लघु बचत योजनाओं (Small Savings Instruments- SSI) पर ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद ऐसी कुछ योजनाओं पर प्रतिलाभ अभी भी काफी कम है जो लाभार्थियों को मिलना चाहिये।

लघु बचत योजनाएँ/साधन:

  • परिचय:
    • लघु बचत साधन व्यक्तियों को विशेष अवधि में अपने वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं।
    • वे भारत में घरेलू बचत का प्रमुख स्रोत हैं।
    • सभी छोटी बचत योजनाओं से संग्रह को राष्ट्रीय लघु बचत कोष (National Small Savings Fund- NSSF) में जमा किया जाता है।
  • वर्गीकरण:
    • लघु बचत योजनाओं के वर्ग में 12 साधन शामिल हैं जिन्हें तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
      • डाक जमा: इसमें बचत खाता, आवर्ती जमा, अलग-अलग परिपक्वता की सावधि जमा और मासिक आय योजना शामिल है।
      • बचत प्रमाणपत्र: राष्ट्रीय लघु बचत प्रमाणपत्र (NSC) और किसान विकास पत्र (KVP)।
      • सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ: सुकन्या समृद्धि योजना, सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF) और वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (SCSS)।
  • लघु बचत योजनाओं की दरें:
    • लघु बचत योजनाओं की दरों की घोषणा तिमाही आधार पर की जाती है।
    • सैद्धांतिक रूप से यह परिपक्वता के सरकारी प्रतिभूति/G-Sec के प्रतिफल पर आधारित होती है लेकिन कई बार राजनीतिक कारक भी दर परिवर्तन को प्रभावित करते हैं।
    • लघु बचत योजना पर गठित श्यामला गोपीनाथ पैनल (2010) ने इन योजनाओं के लिये बाज़ार से जुड़ी ब्याज दर प्रणाली को अपनाने का सुझाव दिया था।
  • लघु बचत दरों के लिये सूत्र:
    • इसका उपयोग भारत में विभिन्न लघु उद्योगों के लिये ब्याज दरों की गणना करने हेतु किया जाता है और यह पूर्ववर्ती 4 महीनों के पहले 3 महीनों में G-sec पर औसत तिमाही प्रतिफल पर आधारित होता है।
      • लघु बचत योजनाओं में निवेश करने वाले बचतकर्त्ताओं को ब्याज दिये जाने संबंधी सीमा तय करने के लिये इस सूत्र का उपयोग किया जाता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण लघु बचत योजनाएँ:

  • सुकन्या समृद्धि खाता योजना:
    • इस योजना का उद्देश्य भारत में बालिकाओं के कल्याण को बढ़ावा देना है।
    • माता-पिता अथवा कानूनी अभिभावक 10 वर्ष से कम आयु की दो बालिकाओं के लिये जमा खाता खोल सकते हैं और जुड़वाँ बालिकाओं अथवा तीन बालिकाओं के मामले में यह योजना तीन खाते खोलने की सुविधा प्रदान करती है।
    • न्यूनतम प्रारंभिक जमा 250 रुपए, अधिकतम वार्षिक सीमा 150,000 रुपए है।
    • खाता खोलने की तिथि से 21 वर्ष पूरे होने पर या खाताधारक के विवाह पर, जो भी पहले हो, अधिकतम 15 वर्षों के लिये जमा किया जा सकता है।
  • वरिष्ठ नागरिक बचत योजना:
    • देश में वरिष्ठ नागरिकों को 60 वर्ष की आयु के बाद आय का नियमित स्रोत प्रदान करना।
    • पात्रता:
      • 60 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय नागरिक।
      • 55-60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त, जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (Voluntary Retirement Scheme-VRS) या अधिवर्षिता का विकल्प चुना है
      • 50-60 वर्ष की आयु के बीच सेवानिवृत्त रक्षा कर्मी।
    • पाँच वर्ष की परिपक्वता अवधि जिसे और तीन वर्ष के लिये और बढ़ाया जा सकता है।
    • न्यूनतम जमा 1,000 रुपए, केंद्रीय बजट 2023-24 में अधिकतम जमा सीमा बढ़ाकर 30 लाख रुपए की गई।
    • खाता खोलने के एक वर्ष बाद समयपूर्व निकासी की अनुमति है।
    • SCSS में जमा राशि भी धारा 80-सी के तहत कटौती के लिये योग्य है।
    • आयकर अधिनियम।
  • मासिक आय योजना:
    • 10 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय निवासियों को मासिक निवेश की अनुमति देता है। 1-3 व्यक्ति संयुक्त रूप से खाता रख सकते हैं।
    • इसकी लॉक-इन अवधि 5 वर्ष है, जिसमें एक वर्ष के बाद पेनाल्टी के साथ समय से पहले निकासी की अनुमति है।
    • केंद्रीय बजट 2023-24 में अधिकतम जमा सीमा 9 लाख रुपए (एकल खाते के लिये) और 15 लाख रुपए (संयुक्त खाते के लिये) है।
      • योजना से प्राप्त आय TDS या कर कटौती के अधीन नहीं है।
    • NRI इस योजना में निवेश करने के पात्र नहीं हैं।
    • यह खाता एक डाकघर से दूसरे डाकघर में स्थानांतरित किया जा सकता है।
  • सामान्य भविष्य निधि (PPF):
    • यह योजना व्यक्तियों को उनकी सेवानिवृत्ति के लिये बचत करने हेतु प्रोत्साहित करती है।
    • इसकी अवधि 15 वर्ष है, जिसे परिपक्वता के बाद अतिरिक्त 5 वर्ष के लिये बढ़ाया जा सकता है।
    • सामान्य भविष्य निधि खाते को सक्रिय रखने के लिये आवश्यक न्यूनतम वार्षिक निवेश 500 रुपए है और अधिकतम निवेश सीमा 1.5 लाख रुपए प्रति वित्त वर्ष है।
  • किसान विकास पत्र (KVP):
    • सरकारी बचत प्रमाणपत्र अधिनियम, 1959 (इंडिया पोस्ट द्वारा प्रस्तावित एक SSI) द्वारा शासित।
    • इसे मूल रूप से वर्ष 1988 में लॉन्च किया गया और वर्ष 2014 में फिर से लॉन्च किया गया।
    • यह निवासी भारतीयों और ट्रस्टों के लिये उपलब्ध है।
    • इसकी निवेश अवधि 124 महीने, लेकिन यह निश्चित नहीं है।
    • न्यूनतम निवेश राशि 1,000 रुपए, कोई ऊपरी सीमा नहीं।
    • सरकार द्वारा तिमाही आधार पर ब्याज दर की समीक्षा की जाती है।
  • महिला सम्मान बचत प्रमाणपत्र:
    • यह महिलाओं या लड़कियों के लिये एकमुश्त नई लघु बचत योजना है।
    • यह मार्च 2025 तक दो वर्ष की अवधि के लिये उपलब्ध है।
    • योजना के तहत 2 लाख रुपए तक की जमा सुविधा (7.5 प्रतिशत की निश्चित ब्याज दर) प्रदान की जाती है।
    • आंशिक निकासी का विकल्प।

स्रोत: द हिंदू


सुरक्षित शहर परियोजना

सुरक्षित शहर परियोजना को लागू करने के लिये दिल्ली अब पूरी तरह तैयार है, इसका उद्देश्य नागरिकों, विशेषकर महिलाओं को बेहतर सुरक्षा प्रदान करना है।

सुरक्षित शहर परियोजना:

  • सुरक्षित शहर परियोजना निर्भया फंड के तहत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सहयोग से संचालित गृह मंत्रालय की एक पहल है जिसका उद्देश्य सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं और बालिकाओं के लिये एक सुरक्षित और सशक्त वातावरण बनाना है।
  • यह परियोजना दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, अहमदाबाद, लखनऊ और बंगलूरू सहित आठ मेट्रो शहरों में लागू की जा रही है।
    • इस परियोजना के तहत वीडियो एनालिटिक्स, AI, मशीन लर्निंग और फेसियल रिकॉग्निशन (चेहरे की पहचान) जैसी सुविधाओं से युक्त एक कमांड-एंड-कंट्रोल सेंटर के साथ-साथ CCTV कैमरे लगाए जाएंगे।
  • परियोजना की लागत केंद्र तथा राज्य सरकार के बीच 60:40 के अनुपात में साझा की जाती है।

दिल्ली की परियोजना का दायरा:

  • परिचय:
    • दिल्ली की परियोजना पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित है और दिल्ली पुलिस द्वारा उन्नत कंप्यूटिंग विकास केंद्र (सी-डैक) के माध्यम से कार्यान्वित की जाएगी।
    • सी-डैक (C-DAC) द्वारा रेलटेल (RailTel) तथा NEC इंडिया को क्रमशः सीसीटीवी कैमरे लगाने और उन्हें फीडर एवं मुख्य सर्वर से जोड़ने के लिये नियुक्त किया गया है।
    • इसके अतिरिक्त मोबाइल डेटा टर्मिनलों, शरीर में पहने जाने वाले कैमरों (Body-Worn Cameras) और अन्य सुविधाओं से लैस 88 प्रखर वैनों को पूरे शहर में तैनात किया जाएगा।
  • परियोजना के माध्यम से पुलिसिंग और सुरक्षा को बढ़ाना:
    • दिल्ली में सुरक्षित शहर परियोजना एक पहल है जिसका उद्देश्य AI-आधारित अनुप्रयोगों का उपयोग करके शहर में पुलिसिंग और सुरक्षा को बढ़ाना है।
      • परियोजना AI का उपयोग वास्तविक समय में भीड़ का आकलन करने, व्यवहार संबंधी लक्षणों और विसंगतियों का पता लगाने के लिये किया जाएगा।
      • आसन्न अपराध का संकेत देने वाले विचलन के मामले में AI तुरंत पुलिस मुख्यालयों, ज़िला कार्यालयों और पुलिस स्टेशनों में कमांड और कंट्रोल सेंटरों को सूचित करेगा।
      • परियोजना का लक्ष्य पुलिस अधिकारियों को वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करके और उन्हें समय पर कार्रवाई करने में सक्षम बनाकर अपराध को रोकना है।
    • यह प्रोजेक्ट सभी की सुरक्षा और संरक्षा हेतु सही दिशा में एक कदम है।

स्रोत: द हिंदू