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भारतीय समाज

राष्ट्रीय बालिका दिवस

  • 25 Jan 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय बालिका दिवस

मेन्स के लिये:

बालिकाओं के अधिकार, संबंधित मुद्दे  तथा इन मुद्दों के समाधान हेतु उठाए जा सकने वाले कदम

चर्चा में क्यों?

हर साल 24 जनवरी को भारत राष्ट्रीय बालिका दिवस (National Girl Child Day) के रूप में मनाता है।

प्रमुख बिंदु

  • शुरुआत:
    • राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत पहली बार वर्ष 2008 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development) द्वारा की गई थी। 
    • इसका मुख्य उद्देश्य लड़कियों के प्रति समाज का नज़रिया बदलने, कन्या भ्रूण हत्या को कम करने और घटते लिंगानुपात के बारे में जागरूकता पैदा करना है।
  • ‘सेव द गर्ल चाइल्ड’ वेबिनार:
    • राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) द्वारा बालिकाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण सहित लड़कियों से संबंधित विभिन्न विषयों पर जागरूकता बढ़ाने के लिये यह वेबिनार आयोजित किया गया था।
  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार-2022:
    • इस अवसर पर 29 बच्चों को नवाचार, सामाजिक विज्ञान, शिक्षा, खेल, कला एवं संस्कृति में उनकी असाधारण उपलब्धियों और बहादुरी का प्रदर्शन करने के लिये पुरस्कार दिया गया।
    • इन्हें ऑनलाइन आयोजित एक कार्यक्रम में ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करते हुए डिजिटल प्रमाणपत्र और 1 लाख रुपए का नकद पुरस्कार दिया गया। 

बालिकाओं से संबंधित मुद्दे 

  • कन्या बाल हत्या और भ्रूण हत्या:
    • भारत में कन्या भ्रूण हत्या की दर विश्व भर में कन्या भ्रूण हत्या की उच्चतम दरों में से एक है।
    • कन्या भ्रूण हत्या का कारण पुत्र को वरीयता देना, दहेज प्रथा और उत्तराधिकारी की पितृवंशीय आवश्यकता है।
    • वर्ष 2011 की जनगणना में 0-6 वर्ष की आयु वर्ग में सबसे कम लिंगानुपात (914) दर्ज किया गया है, जिसमें 3 मिलियन लापता लड़कियाँ शामिल थीं। इनकी संख्या वर्ष 2001 में 78.8 मिलियन की तुलना में वर्ष 2011 में 75.8 मिलियन हो गई।
  • बाल विवाह:
    • प्रत्येक वर्ष, भारत में कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है, जिसके चलते भारत में बाल वधुओं की संख्या विश्वभर में सबसे अधिक (वैश्विक रूप से कुल संख्या का एक-तिहाई) है। वर्तमान में 15-19 आयु वर्ग की लगभग 16% किशोरियों की शादी हो चुकी है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) 5 के अनुसार बाल विवाह में मामूली गिरावट दर्ज की गई है, जो वर्ष 2015-16 के 27% से घटकर में वर्ष 2019-20 में 23% हो गई है।
  • शिक्षा:
    • लड़कियाँ घर के कामों में अधिक व्यस्त रहती हैं और कम उम्र में ही स्कूल छोड़ देती हैं।
      • इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन के एक अध्ययन में पाया गया है कि स्कूल में पढ़ रही लड़कियों की तुलना में स्कूल छोड़ चुकी लड़कियों की शादी होने की संभावना 3.4 गुना अधिक होती है या उनकी शादी पहले तय हो चुकी होती है। 
  • स्वास्थ्य और मृत्यु दर:
    • भारत में लड़कियों को अपने घरों के अंदर और बाहर अपने समाज में ही भेदभाव का सामना करना पड़ता है। भारत में असमानता का अर्थ है लड़कियों के लिये असमान अवसर।
    • भारत में पाँच साल से कम उम्र की लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में 8.3 फीसदी अधिक है। विश्व स्तर पर यह लड़कों के लिये 14% अधिक है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • बेटी बचाओ बेटी पढाओ: वर्ष 2015 में लिंग चयनात्मक गर्भपात और कम होते बाल लिंगानुपात (वर्ष 2011 में प्रत्येक 1,000 लड़कों पर 918 लड़कियाँ) को संबोधित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • सुकन्या समृद्धि योजना: बालिकाओं के कल्याण को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2015 में यह योजना शुरू की गई। यह माता-पिता को लड़कियों के भविष्य के अध्ययन और विवाह पर होने वाले खर्च के लिये निवेश करने तथा धन एकत्रित करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
  • सीबीएसई उड़ान योजना: यह योजना सीबीएसई द्वारा प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में छात्राओं के कम नामांकन और स्कूली शिक्षा और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं के बीच शैक्षिक अंतराल को दूर करने के लिये शुरू की गई एक परियोजना है।
  • माध्यमिक शिक्षा के लिये लड़कियों हेतु प्रोत्साहन प्रदान करने की राष्ट्रीय योजना (NSIGSE): यह वर्ष 2008 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य माध्यमिक स्तर पर 14-18 आयु वर्ग में लड़कियों के नामांकन को बढ़ावा देना है, विशेष रूप से ऐसी लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिये, जिन्होंने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की है।

आगे की राह

  • बाल विवाह की समस्या का समाधान शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करना है क्योंकि यह प्रथा एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है।
    • स्कूलों में स्किल एंड बिज़नेस ट्रेनिंग और सेक्स एजुकेशन से भी सहायता मिलेगी।
  • विवाह की उम्र में वृद्धि और नए कानून बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक की सामाजिक स्वीकृति को प्रोत्साहित करने के लिये बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान की आवश्यकता है, जो कि दबावपूर्ण उपायों से कहीं अधिक प्रभावी होगा।
  • NFHS के निष्कर्ष लड़कियों की शिक्षा में अंतराल कम करने और महिलाओं एवं बच्चों की दयनीय पोषण स्थिति को दूर करने की तत्काल आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं।

स्रोत-पी.आई.बी

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