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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 19 Sep, 2023
  • 36 min read
प्रारंभिक परीक्षा

पूर्वोत्तर भारत में रबड़ की खेती को प्रोत्साहन

स्रोत: द हिंदू

रबड़ बोर्ड ने केंद्र सरकार और ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के साथ मिलकर पूर्वोत्तर राज्यों (सिक्किम को छोड़कर, लेकिन पश्चिम बंगाल को शामिल करते हुए) में प्राकृतिक रबड़ की खेती व उत्पादन के लिये समर्पित क्षेत्र को विस्तारित करने के लिये एक परियोजना शुरू की है।

  • टायर निर्माताओं (रबड़ के प्राथमिक उपभोक्ता) ने वर्ष 2021 में शुरू हुई इस पाँच वर्ष की परियोजना के लिये 1,000 करोड़ रुपए के निवेश का आश्वासन दिया है।

भारत में रबड़ बाज़ार की स्थिति: 

  • प्राकृतिक रबड़ के विषय में: 
    • प्राकृतिक रबड़ एक बहुपयोगी और आवश्यक कच्चा माल है जो कुछ पौधों की प्रजातियों( मुख्य रूप से रबड़ के पेड़) के लेटेक्स अथवा दूधिया तरल पदार्थ से प्राप्त होता है, जिसे वैज्ञानिक रूप से हेविया ब्रासिलिएन्सिस के नाम से जाना जाता है।
      • इस लेटेक्स में कार्बनिक यौगिकों का एक जटिल मिश्रण होता है, जिसका प्राथमिक घटक पॉलीआइसोप्रीन नामक बहुलक होता है।
  • खेती हेतु उपयुक्त जलवायवीय स्थितियाँ: 
    • इसकी खेती के लिये 2000 - 4500 मि.मी. वार्षिक वर्षा वाली उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है।
    • इसके लिये 4.5 से 6.0 के अम्लीय pH तथा उपलब्ध फॉस्फोरस की न्यूनतम मात्रा वाली गहरी और लेटराइट उपजाऊ मृदा की आवश्यकता होती है।
    • न्यूनतम और अधिकतम तापमान 25 से 34 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिये जिसमें 80% सापेक्ष आर्द्रता खेती के लिये आदर्श है। 
      • तीव्र पवनों की संभावना वाले क्षेत्रों से बचना चाहिये।
    • वर्ष भर प्रतिदिन 6 घंटे की दर से प्रति वर्ष लगभग 2000 घंटे तक तेज़ धूप की आवश्यकता होती है।
  • रबड़ उत्पादन और खपत:
    • भारत वर्तमान में प्राकृतिक रबड़ का विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा उत्पादक देश है, तो वहीं यह विश्व स्तर पर इसका दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।  (भारत की कुल प्राकृतिक रबड़ खपत का लगभग 40% वर्तमान में आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है) 
  • रबड़ का वितरण:
    • वर्तमान में भारत में लगभग 8.5 लाख हेक्टेयर रबड़ के बागान हैं।
    • प्रमुख रबड़ उत्पादक राज्यों में शामिल हैं: केरल, तमिलनाडु, त्रिपुरा और असम 
      • रबड़ की खेती का एक बहुत बड़ा हिस्सा, लगभग 5 लाख हेक्टेयर, दक्षिणी राज्यों केरल और तमिलनाडु के कन्याकुमारी ज़िले में स्थित है।
      • इसके अतिरिक्त, त्रिपुरा रबड़ उत्पादन परिदृश्य में लगभग 1 लाख हेक्टेयर का योगदान करता है।
  •  प्रमुख अनुप्रयोग: 
    • टायर निर्माण: रबड़ अपनी उत्कृष्ट पकड़ और घिसावट प्रतिरोध के कारण टायर उत्पादन का एक प्रमुख घटक है।
    • ऑटोमोटिव पार्ट्स: सील, गास्केट, होसेस और वाहनों के विभिन्न घटकों में उपयोग किया जाता है।
    • जूते: सामान्यतः इसके कुशनिंग और स्लिप-प्रतिरोधी गुणों के चलते इसका उपयोग जूतों के सोल बनाने में किया जाता है।
    • औद्योगिक उत्पाद: कन्वेयर बेल्ट, होसेस और मशीनरी घटकों में पाए जाते हैं।
    • चिकित्सा उपकरण: दस्ताने, सिरिंज प्लंजर और चिकित्सा उपकरणों में उपयोग किया जाता है।
    • उपभोक्ता वस्तुएँ: गुब्बारे, इरेज़र और घरेलू दस्ताने जैसे उत्पादों में उपयोग किया जाता है।
    • खेल का सामान: टेनिस बॉल, गोल्फ बॉल और सुरक्षात्मक गियर जैसी वस्तुओं में पाया जाता है।

रबड़ बोर्ड:

  • रबड़ बोर्ड रबड़ अधिनियम, 1947 की धारा (4) के तहत गठित एक वैधानिक संगठन है तथा वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत कार्य करता है।
  • बोर्ड का नेतृत्व केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अध्यक्ष करता है और इसमें प्राकृतिक रबड़ उद्योग के विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले 28 सदस्य हैं।
    • बोर्ड का मुख्यालय केरल के कोट्टायम में स्थित है।
  • बोर्ड रबड़ से संबंधित अनुसंधान, विकास, विस्तार एवं प्रशिक्षण गतिविधियों को सहायता और प्रोत्साहन प्रदान करके देश में रबड़ उद्योग के विकास के लिये उत्तरदायी है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक पादप-समूह ‘नवीन विश्व (न्यू वर्ल्ड)’ में कृषि-योग्य बनाया गया तथा इसका प्रचलन ‘प्राचीन विश्व (ओल्ड वर्ल्ड)’ में था?(2019)

(a) तंबाकू, कोको और रबड़
(b) तंबाकू, कपास और रबड़
(c) कपास, कॉफी और गन्ना
(d) रबड़, कॉफी और गेहूँ

उत्तर: (a)


प्रश्न. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिये और सूचियों के नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (2008) 

      सूची-I                                    सूची-II 

    (बोर्ड)                                  (मुख्यालय) 

A. कॉफी बोर्ड                                  1. बंगलूरू
B. रबड़ बोर्ड                                    2. गुंटूर
C. चाय बोर्ड                                     3. कोट्टायम
D. तंबाकू बोर्ड                                  4. कोलकाता

कूट: 

        A       B         C         D 

(A)   2       4          3          1 
(B)   1       3          4          2 
(C)   2       3          4          1 
(D)   1       4          3          2 

उत्तर: (B)


प्रारंभिक परीक्षा

पी.एम. विश्वकर्मा योजना

स्रोत: पी.आई.बी

हाल ही में भारत सरकार ने विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर 'प्रधानमंत्री (PM) विश्वकर्मा योजना' शुरू की है।

पी.एम. विश्वकर्मा योजना:

  • परिचय:
    • यह योजना लोहार, सुनार, मिट्टी के बर्तन (कुम्हार), बढ़ईगीरी और मूर्तिकला जैसे विभिन्न व्यवसायों में लगे पारंपरिक कारीगरों तथा शिल्पकारों के उत्थान के लिये बनाई गई है, जिसमें सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने एवं उन्हें औपचारिक अर्थव्यवस्था व वैश्विक मूल्य शृंखला में एकीकृत करने पर ध्यान दिया गया है।
    • इसे एक केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में लागू किया जाएगा, जो पूरी तरह से भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित होगी।
  • मंत्रालय:
    • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (MoMSME) इस योजना के लिये नोडल मंत्रालय है।
    • यह योजना MoMSME, कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय और वित्तीय सेवा विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा संयुक्त रूप से कार्यान्वित की जाएगी।
  • विशेषताएँ: 
    • मान्यता और समर्थन: योजना में नामांकित कारीगरों व शिल्पकारों को प्रधानमंत्री विश्वकर्मा प्रमाण पत्र तथा एक पहचान पत्र प्राप्त होगा।
      • वे 5% की रियायती ब्याज दर पर 1 लाख रुपए (पहली किश्त) और 2 लाख रुपए (दूसरी किश्त) तक की संपार्श्विक-मुक्त ऋण सहायता के लिये भी पात्र होंगे।
    • कौशल विकास और सशक्तिकरण: इस योजना को सत्र 2023-2024 से सत्र 2027-2028 तक 5 वित्तीय वर्षों के लिये 13,000 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है।
      • यह योजना कौशल प्रशिक्षण के लिये 500 रुपए प्रतिदिन और आधुनिक उपकरणों की खरीद के लिये 1,5000 रुपए का अनुदान प्रदान करती है।
    • दायरा और कवरेज: इस योजना में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में 18 पारंपरिक व्यापार शामिल हैं।
      • इन व्यवसायों में बढ़ई, नाव बनाने वाले, लोहार, कुम्हार, मूर्तिकार, मोची, दर्जी और अन्य व्यवसायी शामिल हैं।
    • पंजीकरण और कार्यान्वयन: विश्वकर्मा योजना के लिये पंजीकरण गाँवों में सामान्य सेवा केंद्रों पर पूरा किया जा सकता है।
      • इस योजना के लिये जहाँ केंद्र सरकार धनराशि मुहैया कराएगी, वहीं राज्य सरकारों से भी सहयोग मांगा जाएगा।
  • उद्देश्य:
    • यह सुनिश्चित करना कि कारीगरों को घरेलू और वैश्विक मूल्यशृंखलाओं में निर्बाध रूप से एकीकृत किया जाए, जिससे उनकी बाज़ार पहुँच एवं अवसरों में वृद्धि हो।
    • भारत की पारंपरिक शिल्प की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण और संवर्धन।
    • कारीगरों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तन करने और उन्हें वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करने में सहायता करना।
  • महत्त्व:
    • तकनीकी प्रगति के बावजूद, विश्वकर्मा (पारंपरिक कारीगर) समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • इन कारीगरों को पहचानने और समर्थन करने तथा उन्हें वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एकीकृत करने की आवश्यकता है।


प्रारंभिक परीक्षा

सिकल सेल रोगियों को विकलांगता प्रमाण पत्र

स्रोत: द हिंदू

5 वर्ष से अधिक आयु के सिकल कोशिका रोग (Sickle Cell Disease- SCD) से ग्रस्त रोगियों के लिये स्थायी विकलांगता प्रमाणपत्र जारी करने की योजना लगभग तीन वर्षों से तीन केंद्रीय मंत्रालयों (स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय और अधिकारिता, जनजातीय मामले) के बीच दुविधा में फँसी हुई है।

SCD के लिये स्थायी विकलांगता प्रमाणपत्र जारी करने में विलंब के कारण:

  • SCD को विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत विकलांगों की सूची में शामिल किये जाने के बाद विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण विभाग (Department of Empowerment of Persons with Disabilities-DEPwD) ने SCD रोगियों के लिये विकलांगता प्रमाणपत्रों की वैधता को 1 वर्ष से बढ़ाकर 3 वर्ष कर दिया, लेकिन फिर भी इस प्रमाणपत्र को प्राप्त करने के लिये न्यूनतम 25% विकलांगता आवश्यक है।
  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय इन प्रमाणपत्रों के लिये मानदंड और नियम निर्धारित करने का प्रभारी है।
  • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय प्रमाण पत्र जारी करता है, जबकि जनजातीय मामलों का मंत्रालय SCD रोगियों के अधिकारों का समर्थन करता है।
  • "महिला सशक्तिकरण पर संसदीय स्थायी समिति ने कहा कि SCD एक ‘जीवन पर्यंत रहने वाली बीमारी’ है और रक्त एवं अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण ही इसका एकमात्र इलाज है, "जिसे बहुत कम लोग, विशेष रूप से आदिवासी आबादी के बीच, अपना सकते हैं।"
  • उन्होंने सरकार से SCD रोगियों के लिये स्थायी या दीर्घकालिक प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने का आग्रह किया।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा अक्तूबर 2023 तक इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट जारी करने की उम्मीद है।

सिकल सेल रोग (SCD):

  • परिचय:
    • SCD वंशानुगत लाल रक्त कोशिका विकारों का एक समूह है। SCD में, लाल रक्त कोशिकाएँ कठोर और चिपचिपी हो जाती हैं तथा C-आकार के कृषि उपकरण की तरह दिखती हैं जिसे "सिकल" कहा जाता है।
  • लक्षण:
    • सिकल सेल रोग के लक्षण भिन्न हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:
      • क्रोनिक एनीमिया: यह शरीर में थकान, कमज़ोरी और पीलेपन का कारण बनता है।
      • तीव्र दर्द (सिकल सेल संकट के रूप में भी जाना जाता है): यह हड्डियों, छाती, पीठ, हाथ एवं पैरों में अचानक और असहनीय दर्द उत्पन्न कर सकता है।
      • यौवन व शारीरिक विकास में विलंब।
  • उपचार:
    • रक्ताधान: ये एनीमिया से छुटकारा पाने और तीव्र दर्द संकट के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं।
    • हाइड्रॉक्सीयूरिया: यह दवा दर्द की निरंतरता की आवृत्ति को कम करने और बीमारी की कुछ दीर्घकालिक जटिलताओं को रोकने में सहायता कर सकती है।
      • इसका इलाज अस्थि मज्जा या स्टेम सेल प्रत्यारोपण द्वारा भी किया जा सकता है।
  • SCD से निपटने हेतु सरकारी पहल:
    • राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन का लक्ष्य वर्ष 2047 तक भारत से सिकल सेल एनीमिया को समाप्त करना है।
    • सरकार ने वर्ष 2016 में सिकल सेल एनीमिया सहित हीमोग्लोबिनोपैथी की रोकथाम और नियंत्रण के लिये तकनीकी परिचालन दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
    • उपचार और निदान हेतु 22 आदिवासी ज़िलों में एकीकृत केंद्र भी स्थापित किये गए हैं।
    • बीमारी की जाँच और प्रबंधन में आने वाली चुनौतियों का समाधान करने हेतु मध्य प्रदेश में राज्य हीमोग्लोबिनोपैथी मिशन की शुरुआत की गई है।
    • एनीमिया मुक्त भारत रणनीति।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. एनीमिया मुक्त भारत रणनीति के अंतर्गत की जा रही व्यवस्थाओं के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः(2023)

  1. इसमें स्कूल जाने से पूर्व के (प्री-स्कूल) बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के लिये रोगनिरोधक कैल्सियम पूरकता प्रदान की जाती है।
  2. इसमें शिशु जन्म के समय देरी से रज्जु बंद करने के लिये अभियान चलाया जाता है।
  3. इसमें बच्चों और किशोरों की निर्धारित अवधियों पर कृमि-मुक्ति की जाती है।
  4. इसमें मलेरिया, हीमोग्लोबिनोपैथी और फ्लोरोसिस पर विशेष ध्यान देने के साथ स्थानिक बस्तियों में एनीमिया के गैर-पोषण कारणों की ओर ध्यान दिलाना शामिल है।

उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं?

(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) केवल तीन
(d) सभी चार

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • इसमें रोगनिरोधी कैल्शियम पूरकता नहीं बल्कि प्रोफिलैक्टिक आयरन और फोलिक एसिड पूरकता बच्चों, किशोरों एवं प्रजनन आयु की महिलाओं तथा गर्भवती महिलाओं को एनीमिया के बावजूद प्रदान की जाती है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • शिशु और छोटे बच्चों का उपयुक्त आहार (Appropriate Infant and Young Child Feeding- IYCF) 6 महीने तथा उससे अधिक उम्र के बच्चों हेतु पर्याप्त एवं आयु-उपयुक्त पूरक खाद्य पदार्थ प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • अपने आहार में विविधता लाकर भोजन की मात्रा एवं आवृत्ति में वृद्धि करना, साथ ही खाद्य पदार्थों में आयरन युक्त, प्रोटीन युक्त तथा विटामिन C युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ाना।
  • सभी स्वास्थ्य सुविधाओं में विलंबित कॉर्ड क्लैम्पिंग (रक्त के प्रवाह को रोकना) (कम से कम 3 मिनट या रज्‍जु स्पंदन बंद होने तक) को बढ़ावा देना, इसके बाद प्रसव के 1 घंटे के भीतर प्रारंभिक स्तनपान कराने पर ज़ोर देना। अतः कथन 2 सही है।
  • राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (National Deworming Day- NDD) के तहत प्रत्येक वर्ष 1-19 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों हेतु द्वि-वार्षिक सामूहिक कृमि नियंत्रण कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। अतः कथन 3 सही है।
  • NDD योजना के हिस्से के रूप में एनीमिया मुक्त भारत में गर्भवती महिलाओं और प्रजनन आयु की महिलाओं हेतु कृमिनाशक दवा भी शामिल है।
  • मलेरिया, हीमोग्लोबिनोपैथी और फ्लोरोसिस पर विशेष ध्यान देने के साथ स्थानिक क्षेत्रों में एनीमिया मे के गैर-पोषण संबंधी कारणों को उजागर करना। अतः कथन 4 सही है।


प्रारंभिक परीक्षा

आयुष्मान भवः अभियान

स्रोत: द हिंदू

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage- UHC) हासिल करने तथा सभी के लिये स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम के रूप में भारत के राष्ट्रपति ने वर्चुअली आयुष्मान भवः अभियान और आयुष्मान भवः पोर्टल लॉन्च किया।

  • इस पहल का उद्देश्य सभी की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना और वंचित आबादी तक इसकी पहुँच व सामर्थ्य को सुदृढ़ करना है।
  • यह अभियान स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में वृद्धि करने के लिये भारत के डिजिटल समावेशन प्रयासों का लाभ उठाते हुए प्रमुख स्वास्थ्य योजनाओं व बीमारियों के बारे में जागरूकता भी बढ़ाता है।
  • 'सेवा पखवाड़ा' के दौरान 'आयुष्मान भवः' अभियान को पूरे देश और पूरे समाज के दृष्टिकोण के साथ लागू किया जाएगा।

नोट:

  • सेवा पखवाड़ा दो सप्ताह तक चलने वाली एक पहल है (17 सितंबर से 2 अक्तूबर, 2023 तक) जिसका उद्देश्य राज्य-स्तरीय प्रमुख स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।

भारत के स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य पर आयुष्मान भवः अभियान का प्रभाव:

  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज लक्ष्य:
    • यह अभियान सहयोगात्मक, बहु-मंत्रालयी दृष्टिकोण पर आधारित है।
    • आयुष्मान भवः "सबका साथ सबका विकास" के आदर्शों के अनुरूप है।
    • यह समावेशिता पर केंद्रित है जो सुनिश्चित करती है कि हर किसी को स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच प्राप्त हो।
  • आयुष्मान भवः के तीन प्रमुख घटक:
    • आयुष्मान- आपके द्वार(AAD) 3.0: यह पात्र लाभार्थियों को स्वयं/परिवार के किसी भी सदस्य के लिये आयुष्मान कार्ड बनाने में सक्षम करेगा।
      • यह स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच और लाभों को सुव्यवस्थित करता है।
    • HWC और CHC में आयुष्मान मेले:
      • स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (Health Melas and Medical Camps- HWC) तथा सामुदायिक स्वास्थ्य क्लीनिकों (CHC) में साप्ताहिक स्वास्थ्य मेले व चिकित्सा शिविर का आयोजन।
      • गैर-संचारी रोगों की जाँच, टेली-परामर्श, मुफ्त दवाएँ और निदान सहित सुपर-स्पेशियलिटी स्वास्थ्य सेवाओं की डिलीवरी को प्राथमिकता।
    • आयुष्मान सभाएँ:
      • आयुष्मान सभा एक समुदाय-स्तरीय सभा है, जिसका नेतृत्त्व ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम स्वास्थ्य और स्वच्छता समिति (Village Health and Sanitation Committee- VHSNC) अथवा शहरी वार्डों में वार्ड समिति/नगरपालिका सलाहकार समिति (Municipal Advisory Committee - MAC) द्वारा किया जाता है।
      • इसका प्राथमिक लक्ष्य व्यापक स्वास्थ्य कवरेज और इष्टतम स्वास्थ्य सेवा वितरण सुनिश्चित करना है।
    • आयुष्मान ग्राम पंचायतें: स्वास्थ्य देखभाल उद्देश्यों को सफलतापूर्वक पूरा करने वाली ग्राम पंचायतों को आयुष्मान ग्राम पंचायत का दर्जा प्राप्त प्रदान किया जाएगा।
      • यह स्थानीय भागीदारी और समर्पण को प्रोत्साहित करता है।

स्वास्थ्य सेवा से संबंधित हालिया सरकारी पहलें:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना। 
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना। 
  3. बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना। 
  4. पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a)  केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: A

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान) महिला और बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जो आंँगनवाड़ी सेवाओं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, स्वच्छ-भारत मिशन आदि जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के साथ अभिसरण सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम) का लक्ष्य 2017-18 से शुरू होकर अगले तीन वर्षों के दौरान 0-6 वर्ष के बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति में समयबद्ध तरीके से सुधार करना है। अतः कथन 1 सही है।
  • एनएनएम का लक्ष्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) को कम करना तथा बच्चों के जन्म के समय कम वज़न की समस्या को दूर करना है। अत: कथन 2 सही है।
  • एनएनएम के तहत बाजरा, बिना पॉलिश किये चावल, मोटे अनाज और अंडों की खपत से संबंधित ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। अत: कथन 3 और 4 सही नहीं हैं।

अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 19 सितंबर, 2023

हृदय स्वास्थ्य पर लेड एक्सपोज़र का वैश्विक प्रभाव

  • द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि विश्व में कार्डियो-वैस्कुलर मौतों में लेड के संपर्क की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
    • वर्ष 2019 में, लगभग 5.5 मिलियन लोगों ने लेड के संपर्क से कार्डियो-वैस्कुलर रोग से दम तोड़ दिया, जिसमें वैश्विक कार्डियो-वैस्कुलर मौतों का 30% शामिल है।
  • निम्न और मध्यम आय वाले देशों (Low- and middle-income countries- LMIC) को लेड के संपर्क से संबंधित स्वास्थ्य प्रभावों का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है, लगभग 95% प्रभावित आबादी इन क्षेत्रों में रहती है।
    • लेड युक्त पेट्रोल के उन्मूलन के बावज़ूद, LMIC प्रभावित देशों में उच्च आय वाले देशों की तुलना में हृदय रोगों से छह गुना अधिक मौतें हुईं।
    • सबसे अधिक लेड ज़ोखिम वाले देशों में ईरान, अफगानिस्तान, यमन, पेरू, वियतनाम, फिलीपींस और मध्य अफ्रीका के कुछ देश शामिल हैं।
  • हृदय रोग के अलावा, लेड का संपर्क क्रोनिक किडनी रोग और बौद्धिक अक्षमताओं से जुड़ा है।
    • लेड के संपर्क में आने से पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में 765 मिलियन इंटेलिजेंस कोशेंट (Intelligence quotient- IQ) अंकों का नुकसान हुआ, जो पिछले अनुमानों की तुलना में LMIC में 80% अधिक है।
  • वर्ष 2019 में लेड के संपर्क में आने की आर्थिक लागत वैश्विक स्तर पर 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर या वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 7% थी, जिसमें बच्चों में IQ हानि और हृदय रोग से होने वाली मौतें शामिल हैं।

और पढ़ें: लेड विषाक्तता

ऑपरेशन सजग

  • 'ऑपरेशन सजग' 18 सितंबर, 2023 को पश्चिमी तट पर भारतीय तट रक्षक (Indian Coast Guard- ICG) द्वारा आयोजित किया गया था।
    • 'ऑपरेशन सजग' एक मासिक, दिन भर चलने वाली ड्रिल है जो निरंतर फीडबैक लूप के रूप में कार्य करती है। ड्रिल का प्राथमिक लक्ष्य तटीय सुरक्षा तंत्र को फिर से वैध बनाना और समुद्र में जाने वाले मछुआरों के बीच जागरूकता बढ़ाना है।
    • इस अभ्यास/ड्रिल में समुद्र में सभी मछली पकड़ने वाली नौकाओं, नौकाओं और शिल्पों के लिये व्यापक दस्तावेज़ सत्यापन तथा क्रू पास की जाँच शामिल थी।
  • ICG की स्थापना अगस्त 1978 में तटरक्षक अधिनियम, 1978 द्वारा भारत के एक स्वतंत्र सशस्त्र बल के रूप में की गई थी।
    • ICG विश्व का चौथा सबसे बड़ा तटरक्षक बल है, इसने भारतीय तटों को सुरक्षित करने और भारत के समुद्री क्षेत्रों में नियमों को लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • तटीय सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये, ICG ने मछुआरों के लिये बायोमेट्रिक कार्ड जारी करने, राज्य के आधार पर मछली पकड़ने वाली नौकाओं के लिये रंग कोडिंग का कार्यान्वयन, तटीय मानचित्रण और समुद्री पुलिस कर्मियों के प्रशिक्षण सहित विभिन्न उपाय पेश किये हैं।

और पढ़ें… भारतीय तट रक्षक (ICG)

माली, नाइज़र और बुर्किना फासो ने एक पारस्परिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किये

हाल ही में तीन साहेल देशों माली, नाइजर और बुर्किना फासो के मंत्रिस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने माली की राजधानी ‘बमाको’ में एक पारस्परिक रक्षा समझौते की घोषणा की।

  • यह तीन देशों के बीच पारस्परिक रक्षा और सहायता के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है।
  • लिप्टाको-गौरमा चैटर के प्रावधानों के तहत इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं, जिसने साहेल राज्यों के गठबंधन की स्थापना की थी।
  • माली, बुर्किना फासो और नाइजर के बीच के सीमावर्ती क्षेत्र लिप्टाको-गौरमा क्षेत्र का हिस्सा है।
  • यह गठबंधन तीन देशों के सैन्य व आर्थिक प्रयासों का एक संयोजन कहा जा सकता है जिसका लक्ष्य आतंकवाद और जिहादवाद का उन्मूलन करना है।
  • पश्चिम अफ्रीकी क्षेत्रीय समूह ECOWAS द्वारा देश में हुए तख्तापलट को लेकर नाइजर पर हमला करने की धमकी के मद्देनजर भी यह समझौता महत्त्वपूर्ण हो गया है।
  • देश में हुए हालिया तख्तापलट की प्रतिक्रिया में नाइजर पर आक्रमण करने की पश्चिम अफ्रीकी क्षेत्रीय समूह (ECOWAS) की धमकी के आलोक में यह संधि काफी महत्त्वपूर्ण है।

भारतीय अंतरिक्ष स्टार्ट-अप के लिये फंडिंग चुनौतियाँ

अंतरिक्ष स्टार्ट-अप के वित्तपोषण तंत्र के संबंध में चिंताएँ और मुद्दे बढ़ रहे हैं, जिससे संभावित क्षेत्र का विकास प्रभावित हो रहा है।

  • INSPAC के निदेशक के अनुसार, अंतरिक्ष क्षेत्र अगले 10 वर्षों में 8 बिलियन डॉलर के मौजूदा मूल्य से 44 बिलियन डॉलर तक बढ़ सकता है।
  • सरकार को स्टार्ट अप इंडिया योजना आदि की तर्ज़ पर अंतरिक्ष क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिये सॉफ्ट फंड और अतिरिक्त प्रोत्साहन स्थापित करने पर विचार करना चाहिये।
  • एक और चिंता यह है कि अंतरिक्ष क्षेत्र के निर्माण के लिये आवश्यक 95% उपकरणों को आयात करने की आवश्यकता है तथा भारत को आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में 10 वर्ष और लग सकते हैं।
  • भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में पहले से ही तेज़ी से विकास देखा जा रहा है क्योंकि IN-SPACe पोर्टल ने अब तक लगभग 420 स्टार्ट-अप पंजीकृत किये हैं।
  • भारत का मसौदा अंतरिक्ष गतिविधि विधेयक, 2017 तथा भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 यदि प्रभावी ढंग से लागू किये जाते हैं तो आने वाले समय में उभरते क्षेत्र को आवश्यक प्रोत्साहन और शक्ति प्रदान की जाएगी।

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मसौदा अंतरिक्ष गतिविधियाँ विधेयक, 2017 और भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023


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