डार्क मैटर
हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने अदृश्य डार्क मैटर, जो कि ब्रह्मांड का 85% हिस्सा है, का विस्तृत मानचित्र तैयार किया है।
प्रमुख बिंदु
- नए निष्कर्ष आइंस्टीन के गुरुत्त्वाकर्षण के सिद्धांत पर आधारित कॉस्मोलॉजी के मानक मॉडल के अनुरूप हैं।
- शोधकर्त्ताओं ने अटाकामा कॉस्मोलॉजी टेलीस्कोप (ACT) का इस्तेमाल प्रारंभिक ब्रह्मांड से प्रकाश का उपयोग करके डार्क मैटर को मानचित्रण करने हेतु किया, जिसे कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (CMB) विकिरण के रूप में जाना जाता है।
- शोधकर्त्ताओं ने यह जानने के लिये कि आकाशगंगा एवं डार्क मैटर के समूहों जैसी विशाल वस्तुओं के गुरुत्वाकर्षण के साथ यह कैसे स्वयं को अंतर्संबंधित करती है, CMB विकिरण का उपयोग डार्क मैटर को मानचित्रित करने हेतु किया।
- इन वस्तुओं द्वारा उत्पन्न गुरुत्त्वाकर्षण क्षेत्र उनके माध्यम से गुज़रने वाले प्रकाश को मोड़ता एवं विकृत करता है, जिससे डार्क मैटर का पता लगाने में मदद मिलती है।
डार्क मैटर:
- परिचय:
- "डार्क मैटर" ब्रह्मांड में मौजूद एक काल्पनिक वस्तु है, लेकिन यह अदृश्य होती है और इसका प्रकाश से कोई संबंध नहीं है।
- महत्त्व:
- ब्रह्मांड की संरचना को समझने के लिये डार्क मैटर महत्त्वपूर्ण है।
- यह आकाशगंगाओं और ब्रह्मांडीय परिदृश्य में पदार्थ के वितरण को समझने में मदद करता है। ब्रह्मांड और इसके विकास की पूरी समझ विकसित करने के लिये डार्क मैटर को समझना महत्त्वपूर्ण है।
- डार्क एनर्जी:
- यह एक प्रकार की ऊर्जा है, ऐसा माना जाता है की ब्रह्मांड के त्वरित विस्तार के लिये उत्तरदायी माना जाता है।
- यह एक प्रकार की ऊर्जा है जो पूरे ब्रह्मांड में विस्तृत है जो आकाशगंगाओं और अन्य पदार्थों को एक-दूसरे से दूर धकेलती है।
- ब्रह्मांड की कुल ऊर्जा सामग्री का लगभग 68% डार्क एनर्जी से बनने का अनुमान है।
- यह एक प्रकार की ऊर्जा है, ऐसा माना जाता है की ब्रह्मांड के त्वरित विस्तार के लिये उत्तरदायी माना जाता है।
- डार्क मैटर से संबंधित साक्ष्य:
- डार्क मैटर के लिये मज़बूत अप्रत्यक्ष प्रमाण विभिन्न स्तरों (या दूरी के पैमाने) पर परिलक्षित होता है।
- उदाहरण के लिये जब आप आकाशगंगा के केंद्र से इसकी परिधि की ओर बढ़ते हैं, तो तारे की गति के अवलोकित क्षेत्र और उनके अनुमानित आंँकड़े के बीच एक महत्त्वपूर्ण असमानता होती है।
- इसका तात्पर्य है कि आकाशगंगा में पर्याप्त मात्रा में डार्क मैटर है।
- अन्य दूरी मापक प्रमाण:
- आकाशगंगाओं के बुलेट क्लस्टर्स हैं जो दो आकाशगंगाओं के विलय से बनते हैं, वैज्ञानिकों के अनुसार, उनके विलय को केवल कुछ डार्क मैटर की उपस्थिति के माध्यम से समझा जा सकता है।
- डार्क मैटर के लिये मज़बूत अप्रत्यक्ष प्रमाण विभिन्न स्तरों (या दूरी के पैमाने) पर परिलक्षित होता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान के संदर्भ में हाल ही में समाचारों में आए दक्षिणी ध्रुव पर स्थित एक कण संसूचक (पार्टिकल डिटेक्टर) आइसक्यूब के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
स्रोत : डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय विमानन सुरक्षा आकलन
हाल ही में फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA), अमेरिका के विमानन सुरक्षा नियामक ने विमानन सुरक्षा का मूल्यांकन किया और भारत के विमानन सुरक्षा निरीक्षण के "श्रेणी 1" दर्जे को बरकरार रखा है।
अंतर्राष्ट्रीय विमानन सुरक्षा आकलन:
- परिचय:
- फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन वार्षिक अवधि में अंतर्राष्ट्रीय विमानन सुरक्षा मूल्यांकन (IASA) कार्यक्रम आयोजित करता है, वर्ष 2022 में किये गए परीक्षण में ऑडिट और समीक्षा शामिल थी।
- यह कार्यक्रम तीन व्यापक क्षेत्रों पर केंद्रित होता है:
- कार्मिक लाइसेंसिंग
- विमान संचालन
- विमान की उड़ान योग्यता
- इस मूल्यांकन के आधार पर निर्धारित किया जाता है कि किसी देश का विमानन सुरक्षा निरीक्षण मानक अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organization- ICAO) सुरक्षा मानकों का अनुपालन करता है अथवा नहीं।
- भारत संबंधी मूल्यांकन:
- FAA ने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (Directorate General of Civil Aviation- DGCA) को सूचित किया है कि भारत शिकागो अभिसमय और उसके अनुलग्नकों (Annexes ) के विमानन सुरक्षा निरीक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करता है और FAA ने IASA श्रेणी 1 का दर्जा बनाए रखा है जिसका अंतिम मूल्यांकन जुलाई 2018 में किया गया था।
- 'श्रेणी-1' के तहत सूचीबद्ध देश नागरिक उड्डयन की सुरक्षा निगरानी हेतु ICAO मानकों को पूरा करते हैं।
- FAA ने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (Directorate General of Civil Aviation- DGCA) को सूचित किया है कि भारत शिकागो अभिसमय और उसके अनुलग्नकों (Annexes ) के विमानन सुरक्षा निरीक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करता है और FAA ने IASA श्रेणी 1 का दर्जा बनाए रखा है जिसका अंतिम मूल्यांकन जुलाई 2018 में किया गया था।
- भारत के लिये इसका महत्त्व:
- यह सुरक्षित और विश्वसनीय विमानन बाज़ार के रूप में भारत की प्रतिष्ठा की पुष्टि करता है।
- यह भारतीय एयरलाइन्स को अमेरिका हेतु उड़ानें संचालित करना जारी रखने और अमेरिकी वाहकों के साथ कोडशेयर साझेदारी करने की अनुमति देता है, जो व्यापार एवं निवेश बढ़ाने में मदद कर सकता है।
- यह यूनाइटेड नेशन एविएशन वॉचडॉग, ICAO द्वारा स्थापित सुरक्षा मानकों के अनुपालन हेतु भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organisation- ICAO):
- ICAO संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) की एक विशिष्ट एजेंसी है, जिसे वर्ष 1944 में स्थापित किया गया था, जिसने शांतिपूर्ण वैश्विक हवाई नेविगेशन के लिये मानकों और प्रक्रियाओं की नींव रखी।
- अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संबंधी अभिसमय/कन्वेंशन पर 7 दिसंबर, 1944 को शिकागो में हस्ताक्षर किये गए। इसलिये इसे शिकागो अभिसमय भी कहते हैं।
- शिकागो कन्वेंशन ने वायु मार्ग के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय परिवहन की अनुमति देने वाले प्रमुख सिद्धांतों की स्थापना की और ICAO के निर्माण का भी नेतृत्त्व किया।
- इसमें अंतर्राष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में विमानन अधिकार, विमानों का पंजीकरण, सुरक्षा मानक, हवाई यातायात नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण सहित कई मुद्दों को शामिल किया गया है।
- ICAO का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय हवाई परिवहन योजना के विकास को बढ़ावा देना है, ताकि विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन के सुरक्षित और व्यवस्थित विकास को सुनिश्चित किया जा सके।
- इसके 193 सदस्यों में भारत भी शामिल है।
- इसका मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में स्थित है।
स्रोत : द हिंदू
भारतीय सौर ऊर्जा निगम
हाल ही में भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा भारतीय सौर ऊर्जा निगम लिमिटेड (SECI) को केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (Central Public Sector Enterprise- CPSE) के मिनीरत्न श्रेणी- I के रूप में मान्यता दी गई है।
भारतीय सौर ऊर्जा निगम:
- परिचय:
- SECI को वर्ष 2011 में शामिल किया गया था, यह भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की दिशा में नवीकरणीय ऊर्जा योजनाओं अथवा परियोजनाओं हेतु MNRE की प्राथमिक कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करती है।
- उपलब्धि:
- अपने स्वयं के निवेश के माध्यम से एवं अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों हेतु एक परियोजना प्रबंधन सलाहकार (PMC) के रूप में परियोजनाओं की स्थापना के अतिरिक्त SECI ने पहले से ही 56 गीगावाट से अधिक की नवीकरणीय ऊर्जा (RE) परियोजना क्षमता प्रदान की है।
- SECI ने ICRA द्वारा AAA की उच्चतम क्रेडिट रेटिंग भी प्राप्त की है।
- अपने स्वयं के निवेश के माध्यम से एवं अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों हेतु एक परियोजना प्रबंधन सलाहकार (PMC) के रूप में परियोजनाओं की स्थापना के अतिरिक्त SECI ने पहले से ही 56 गीगावाट से अधिक की नवीकरणीय ऊर्जा (RE) परियोजना क्षमता प्रदान की है।
- सौर ऊर्जा क्षेत्र में योगदान:
- SECI ने फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट और सोलर-विंड हाइब्रिड सिस्टम जैसी नवीन सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- इसने वृहत सौर परियोजनाओं में निवेश के लिये घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय अभिकर्त्ताओं को आकर्षित किया है।
- इसके अतिरिक्त SECI के रूप में देश के ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये कई पहलें शुरू की हैं, इनमें ऑफ-ग्रिड सौर ऊर्जा परियोजनाएँ तथा सिंचाई के लिये सौर पंप शामिल हैं।
- इन पहलों ने स्वच्छ ऊर्जा तक पहुँच प्रदान कर इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद की है।
- SECI ने फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट और सोलर-विंड हाइब्रिड सिस्टम जैसी नवीन सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
CPSEs के लिये मिनीरत्न दर्जे हेतु मानदंड:
- मिनीरत्न श्रेणी- I दर्जा: जिन CPSE को पिछले तीन वर्षों में लगातार लाभ हुआ है, जिनका पूर्व-कर लाभ तीन वर्षों में से कम-से-कम किसी एक वर्ष में 30 करोड़ रुपए अथवा उससे अधिक रहा है और शुद्ध लाभ भी हुआ है, उन्हें मिनीरत्न-I का दर्जा प्रदान करने पर विचार किया जा सकता है।
- मिनीरत्न श्रेणी-II दर्जा: जिन CPSE ने पिछले तीन वर्षों से लगातार लाभ अर्जित किया है और जिनकी निवल संपत्ति सकारात्मक है, वे मिनीरत्न श्रेणी-II का दर्जा प्राप्त करने हेतु पात्र हैं।
- मिनीरत्न CPSE को सरकार को देय किसी भी ऋण पर ऋण/ब्याज भुगतान के पुनर्भुगतान में चूक नहीं होनी चाहिये।
- मिनीरत्न CPSE बजटीय सहायता या सरकारी गारंटी पर निर्भर नहीं होंगे।
स्रोत: पी.आई.बी.
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 अप्रैल, 2023
कंबम अंगूर को GI टैग
हाल ही में तमिलनाडु के प्रसिद्ध कंबम पन्नीर थ्राचाई, जिसे कंबम अंगूर के रूप में भी जाना जाता है, को भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication- GI) टैग प्रदान किया गया है। तमिलनाडु में पश्चिमी घाट पर स्थित कुंबुम घाटी को 'दक्षिण भारत के अंगूरों के शहर' के रूप में जाना जाता है जहाँ पन्नीर थ्राचाई की खेती की जाती है। यह किस्म, जिसे मस्कट हैम्बर्ग के रूप में भी जाना जाता है, अपनी त्वरित वृद्धि एवं जल्दी परिपक्वता हेतु लोकप्रिय है, साथ ही यह फसल लगभग पूरे वर्ष बाज़ार में उपलब्ध रहती है। पन्नीर अंगूर पहली बार वर्ष 1832 में एक फ्राँसीसी पुजारी द्वारा तमिलनाडु में लाए गए थे, ये विटामिन, टार्टरिक एसिड एवं एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होते हैं, साथ ही कुछ पुरानी बीमारियों के जोखिम को कम करते हैं। ये बैंगनी भूरे रंग के अलावा बेहतर स्वाद हेतु भी जाने जाते हैं। GI उन उत्पादों हेतु इस्तेमाल किया जाने वाला एक संकेत है जिनकी एक विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति होती है एवं उन गुणों या विशेषता से युक्त होते हैं जो उस भौगोलिक मूल के कारण होती है। वस्तुओं का भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 भारत में वस्तुओं से संबंधित भौगोलिक संकेतों के पंजीकरण एवं बेहतर सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करता है। यह TRIPS/ट्रिप्स पर WTO समझौते द्वारा शासित तथा निर्देशित है।
और पढ़ें… भौगोलिक संकेतक टैग
गुणवत्ता नियंत्रण आदेश
वस्त्र मंत्रालय ने तकनीकी नियमों की अधिसूचना की उचित प्रक्रिया पूरी करने के बाद पहले चरण में 19 भू-वस्त्र उत्पाद और 12 सुरक्षात्मक वस्त्र उत्पाद वाली 31 वस्तुओं के लिये 02 गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (Quality Control Orders- QCO) प्रारंभ करने की घोषणा की। ये गुणवत्ता नियंत्रण आदेश तकनीकी वस्त्र उद्योग के लिये भारत की तरफ से जारी किये गये पहले तकनीकी नियमन हैं। भू-वस्त्र उत्पाद का उपयोग बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं एवं पर्यावरणीय अनुप्रयोगों के लिये किया जाता है, जबकि सुरक्षात्मक वस्त्रों का इस्तेमाल मानव जीवन को खतरनाक तथा प्रतिकूल कार्य स्थितियों से सुरक्षित रखने हेतु होता है। जारी किये गए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश उपयोगकर्त्ताओं एवं लक्षित उपभोक्ताओं को सर्वोत्तम सुरक्षा अधिमान उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे। इस कदम से भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ावा मिलेगा, जो वैश्विक मानकों के समतुल्य होगी। ये दो भू-वस्त्र उत्पाद और सुरक्षात्मक वस्त्र उत्पाद गुणवत्ता नियंत्रण आदेश आधिकारिक राजपत्र में इसके प्रकाशन की तारीख से 180 दिनों के तुरंत बाद लागू होंगे। इन गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों में निर्दिष्ट अनुरूपता मूल्यांकन आवश्यकताएँ घरेलू उत्पादकों के साथ-साथ उन विदेशी निर्माताओं पर भी समान रूप से लागू होती हैं, जो भारत में अपने सामान का निर्यात करना चाहते हैं।
और पढ़ें… राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (NTTM), भारत का वस्त्रोद्योग क्षेत्र
ग्राफीन और मैग्नेटोरेसिस्टेंस
ब्रिटेन के शोधकर्त्ताओं ने ग्राफीन के एक और गुण की खोज की है। यह कमरे के तापमान पर एक असामान्य विशाल चुंबकत्त्व (Giant Magnetoresistance- GMR) प्रदर्शित करता है। GMR परिघटना तब देखी जाती है जब आसन्न चुंबकीय क्षेत्र विद्युत प्रतिरोध की सुचालकता को प्रभावित करता है। इसका उपयोग कंप्यूटर, बायोसेंसर, ऑटोमोटिव सेंसर, माइक्रोइलेक्ट्रोमैकेनिकल सिस्टम और मेडिकल इमेजर्स में हार्ड डिस्क ड्राइव तथा मैग्नेटोरेसिस्टिव रैम में किया जाता है। GMR-आधारित उपकरण मूल रूप से चुंबकीय क्षेत्र संवेदन के लिये उपयोग किये जाते हैं। नए अध्ययन में पाया गया है कि ग्राफीन आधारित उपकरणों को अपने पारंपरिक फेरोमैग्नेटिक समकक्षों के विपरीत इन क्षेत्रों के संवेदन के लिये न्यूनतम तापमान की आवश्यकता नहीं होती है। ग्राफीन षट्कोणीय जाली में व्यवस्थित कार्बन परमाणुओं की एक मोटी परत है। यह ग्रेफाइट का मूलभूत घटक है। यह लचीली, पारदर्शी और अविश्वसनीय रूप से मज़बूत होने के साथ-साथ विश्व का सबसे पतला, अधिक तापीय और विद्युत प्रवाहकीय पदार्थ है। ग्राफीन को ऊर्जा एवं चिकित्सा जगत में इसकी अपार संभावनाओं के कारण एक अद्भुत पदार्थ के रूप में भी जाना जाता है
और पढ़ें… भारत का पहला ग्राफीन नवाचार केंद्र
अमिट स्याही
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के दौरान मैसूर में मैसूरु पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड फिर से चर्चा में है क्योंकि यह एकमात्र कंपनी है जिसे भारत में लोकसभा चुनावों में इस्तेमाल होने वाली अमिट स्याही बनाने की अनुमति है। मैसूर नलवाड़ी कृष्णराज वोडेयार के महाराजा ने वर्ष 1937 में लोगों को रोज़गार प्रदान करने और आसपास के वनों से प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग हेतु कारखाने की स्थापना की। वर्ष 1962 में इसे अमिट स्याही बनाने हेतु चुना गया, जिसका पहली बार देश के तीसरे लोकसभा चुनाव में इस्तेमाल किया गया। तब से अब तक कंपनी ने पूरे भारत में प्रत्येक चुनाव हेतु स्याही की आपूर्ति की है। इसने अन्य देशों को स्याही का निर्यात भी किया है। इस इकाई को वर्ष 1947 में कर्नाटक की महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में से एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी में परिवर्तित कर दिया गया था। अमिट स्याही जिसे 'मतदाता स्याही' के रूप में भी जाना जाता है, यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी पात्र मतदाता चुनाव में दो बार मतदान न करे, अतः यह धोखाधड़ी तथा एकाधिक मतदान से बचने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
और पढ़ें…स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव